अहमदाबाद March 09, 2010
भारत में बोई जाने वाली बीटी कपास की किस्म बोलगार्ड-1 अब ज्यादातर देशों में प्रचलन से बाहर हो चुकी है। इससे बेहतर तकनीक वाली बोलगार्ड-2 किस्म अब प्रचलन में है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस किस्म में कीट अवरोधी क्षमता ज्यादा है।
दक्षिण गुजरात के नवसारी कृषि विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा, 'प्रतिरोधी क्षमता विकसित होना एक सामान्य प्रक्रिया है। कुछ समय के बाद ऐसा हो ही जाता है।' उन्होंने कहा, 'जहां तक मुझे जानकारी है, बोलगार्ड-1 में पिंक बॉलवार्म की समस्या है, जिसका नियंत्रण क्राई-1एसी जीन से होता है। ये जीन बुआई के दिन से 110 दिन तक प्रभावी होता है।
100 दिनों के बाद इसके टॉक्सिन उत्पादन की क्षमता कम होने लगती है, जबकि पिंक बॉलवार्म का हमला सिर्फ 100 दिन बाद शुरू होता है।' उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि भारत में बीटी क पास की खेती से कोई प्रगति हो रही है। बहरहाल यह चिंता का विषय है और हमें नई तकनीक अपनाने के पहले बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है।
हमें हर चीज की मॉनिटरिंग ठीक-ठाक तरीके से करनी होगी।'कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बीटी या नॉन बीटी किसी भी किस्म की मॉनिटरिंग 90 दिन के बाद होनी चाहिए। कपास के कारोबारियों का मानना है कि बीटी कपास की कई किस्में आ जाने की वजह से देश में प्रति हेक्टेयर कपास के उत्पादन में कमी आई है।
पिछले तीन साल के दौरान कपास की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 710 किलोग्राम से घटकर 625 किलोग्राम रह गई है। अरुण दलाल ऐंड कंपनी के अरुण दलाल ने कहा, 'बीटी कपास की कई किस्में होने के चलते ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में कमी आई है। हमें इनकी किस्मों को 8-10 तक ही सीमित करना होगा।'
बहरहाल, गुजरात के सरकारी अधिकारियों का मानना है कि बीटी कपास का प्रयोग जारी रहेगा, क्योंकि अभी भी इससे तमाम तरह के कीटों से रक्षा होती है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, 'पिंक बॉलवार्म का नियंत्रण जीएम कपास के आने से पहले ही किया जाने का तरीका ढूंढा जा चुका है।
बीटी कपास के आने वाले दिनों में भी प्रयोग जारी रहने के पीछे यह वजह है कि अभी भी इससे तमाम कीटों से रक्षा होती है, जो बाद की अवस्था में हमला करते हैं।' (बीएस हिंदी)
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