कोच्चि March 11, 2010
प्राकृतिक रबर के उत्पादन और खपत में अंतर की वजह से पिछले 3 साल से रबर के आयात में तेज बढ़ोतरी हुई है।
रबर बोर्ड के हाल के आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में उत्पादन की तुलना में खपत 104,000 टन ज्यादा रहने की उम्मीद है। बोर्ड के हाल के आंकड़ों के मुताबिक 2009-10 में कुल उत्पादन 827,000 टन रहने का अनुमान है, जबकि इस दौरान खपत बढ़कर 931,000 टन हो जाएगी।
आपूर्ति और मांग के बीच इस भारी अंतर के बीच फरवरी के अंत में 269,750 टन का स्टॉक है। इसकी वजह से इस नकदी फसल की भारी किल्लत रहने के अनुमान लगाए जा रहे हैं। वहीं इसकी कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। इसके चलते देश में रबर के भंडार के आंकड़े को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
उपभोक्ता उद्योग, खासकर टायर उद्योग ने आयात का रास्ता अख्तियार किया है, जिससे कच्चे माल की बिना दिक्कत आपूति सुनिश्चित हो सके। इसकी वजह से अप्रैल से फरवरी के बीच चालू वित्त वर्ष के दौरान आयात में 122 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इस अवधि के दौरान भारत ने कुल 1,57,980 टन रबर का आयात किया, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 71,025 टन रबर का आयात हुआ था।
दिलचस्प है कि रबर बोर्ड ने मूल रूप से 2009-10 में उत्पादन 867,000 टन और खपत 881,000 टन रहने का अनुमान लगाया था। इस तरह से ताजा अनुमानों के मुताबिक उत्पादन में 40,000 टन की गिरावट आने का अनुमान है, जबकि पिछले अनुमान की तुलना में खपत में 50,000 टन की बढ़ोतरी होगी।
2009-10 में उत्पादन पिछले साल की तुलना में 4.3 प्रतिशत गिरने के अनुमान हैं। इसके साथ ही पिछले साल के दौरान 9,71,720 टन रबर की खपत हुई थी, जबकि 2009-10 में खपत में 6.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है।
मूल अनुमान में रबर बोर्ड ने उत्पादन और खपत के बीच सिर्फ 14,000 टन के अंतर का अनुमान लगाया गया था, लेकिन पुनरीक्षित आंकड़ों के मुताबिक अंतर बढ़कर 104,000 टन हो गया। इस तरह से ताजा आंकड़ों से संकेत मिलता है कि उत्पादन में कमी की वजह के भारतीय बाजार में रबर का संकट होगा।
बोर्ड का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष 2010-11 में कुल उत्पादन 901,680 टन और खपत 986,860 टन रहेगा। स्पष्ट है कि मांग और आपूर्ति में 85,180 टन का अंतर होगा। रबर आधारित उद्योग इन आंकड़ों से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि अगले वित्त वर्ष में अंतर और बढ़ेगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों में तेज बढ़ोतरी हो रही है।
उद्योग जगत के सूत्रों का अनुमान है कि अंतर कम से कम 154,000 टन रहेगा। क्योंकि में 125,000 टन की बढ़ोतरी का अनुमान है। उन्होंने कहा कि भारत की आयात पर निर्भरता धीरे-धीरे बढ़ रही है। घरेलू उत्पादन और खपत में अंतर बढ़ने की वजह से आयात के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।
आयात पर दो महत्वपूर्ण तत्व सबसे ज्यादा प्रभाव डाल रहे हैं- उच्च आयात शुल्क और विदेशी बाजार में बढ़ी हुई कीमतें। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-फरवरी माह के दौरान आयात में तेज बढ़ोतरी की प्रमुख वजह यह थी कि पहली छमाही के दौरान घरेलू बाजार की तुलना में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें कम थीं। (बीएस हिंदी)
11 मार्च 2010
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