प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने गन्ने के मू्ल्य पर चर्चा करने के लिए सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है.
केंद्र सरकार ने ये फ़ैसला कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्यों की आपात बैठक में गुरुवार को दिल्ली में चल रहे गन्ना किसानों के प्रदर्शन के बीच किया.
गुरुवार को किसानों के मु्द्दों को लेकर संसद के दोनों सदनों में काफ़ी शोरशराबा हुआ. दोनों संदनों को कई बार स्थगित करने के बाद दिनभर के लिए स्थगित करना पड़ा.
इससे पहले उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों ने राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार के गन्ना मूल्यों की नई नीति के खिलाफ़ विशाल प्रदर्शन किया. किसानों की माँग है कि गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य बढाए जाए.
इस मामले में लगभग सारा विपक्ष किसानों के साथ खड़ा दिखा.
दिल्ली के विशाल प्रदर्शन में राष्ट्रीय लोक दल के साथ भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत गुट) और जनता दल (यूनाइटेड) के बडे़-बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया.
दिल्ली अस्तव्यस्त
हज़ारों किसानों ने हाथों में गन्ने का पौधे को लेकर जंतर मंतर पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की और चेतावनी दी कि अगर उनकी माँगें नहीं पूरी की जाती है तो ये आंदोलन 'विध्वंसक' रूप ले सकता है.
फ़िलहाल किसानों ने चीनी मीलों को अपना गन्ना देना रोक रखा है जिससे उत्तर प्रदेश की अनेक चीनी मिलें चालू नहीं हो सकी हैं, जो सामान्यत अक्तूबर के अंत तक चालू होती जाती हैं.
किसानों की माँग है कि उन्हें गन्ने का उचित मूल्य दिया जाए, साथ ही केंद्र सरकार गन्ने के मूल्य को लेकर अपने नए अध्यादेश को वापस ले.
लोकसभा में विपक्ष के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सरकार के फ़ैसले को किसान विरोधी बताया, तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कैबिनेट के वरिष्ठ साथियों के साथ इस मसले पर आपात बैठक की.
केंद्र की सत्ताधारी संयु्क्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में शामिल द्रविड़ मुनित्र कषगम ने भी गन्ने मूल्य के मामले पर किसानों का साथ देते हुए सरकार के फ़ैसले का विरोध किया.
किसानों की इस विशाल रैली से दिल्ली में यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ.
गन्ने के मूल्य को तय करने के लिए केंद्र सरकार का एक अध्यादेश लाई है जिसमें गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (एफ़आरपी) वर्ष 2009-10 के लिए 129 रुपए 85 पैसे प्रति क्विंटल रखा गया है. साथ ही केंद्र सरकार का कहना है कि अगर राज्य सरकार एफ़आरपी से अधिक मूल्य तय करती है तो उसकी भरपाई भई राज्य सरकार को ही करनी होगी.
मूल्य का चक्कर
हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) 165 रुपए से 170 रुपए निर्धारित किया है, हालाँकि किसानों की माँग है उन्हें गन्ने की क़ीमत ढाई सौ रुपए से अधिक प्रति क्विंटल दी जाए.
राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के अध्यक्ष और किसान नेता अजित सिंह का कहना है कि भारत के अन्य गन्ना उत्पादक राज्यों में पहले ही से गन्ने का मूल्य उत्तर प्रदेश से अधिक है और उसपर केंद्र और राज्य सरकार किसान विरोधी फ़ैसला कर रही है.
उनका कहना है, " विडंबना ये है कि जो मिल मालिक आज 180 रुपए प्रति क्विंटल दे रहे हैं वो अगले साल उससे भी कम देंगे. मेरी माँग है कि अध्यादेश को वापस लिया जाए और राज्य सरकार को मूल्य तय करने का अधिकार हो."
अजित सिंह ने चेतावनी देते हुए कहा, " अगर किसानों की माँगें नहीं मानी जाती है तो न तो किसान संसद का शीतकालीन सत्र चलने देंगे और न ही दिल्ली चल सकेगी."
ग़रीब विरोधी
भाजपा के महासचिव अरूण जेटली ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र की सरकार किसान और ग़रीब विरोधी है. उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार की ये चाल कामयाब होने वाली नहीं है.
उनका कहना था, " सरकार का अध्यादेश राज्य सभा में गिर जाएगा, इसलिए मुझे आशा है कि सरकार अब अध्यादेश को संसद में लाने की हिम्मत नहीं करेगी."
समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कहा कि किसानों के हित के लिए वो किसी भी स्तर पर लडाई लड़ने को तैयार हैं.
उन्होंने किसानों को याद दिलाया कि जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने किसानों की माँग से अधिक गन्ने का मूल्य दिया था.
सपा नेता अमर सिंह का भी कहना था कि सरकार के बड़े-बडे औद्योगिक घरानों और चीनी मिल मालिकों को फ़ायदा पहुँचाने वाली नीतियों के ख़िलाफ़ वो संघर्ष करते रहेंगे.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता एबी बर्धन और मार्क्सवादी पार्टी के नेता डी राजा ने भी रैली को संबंधित किया और उनकी माँग के मामले पर अपने समर्थन का वादा किया.
पश्चिम उत्तर प्रदेश के अनेक गाँव, अंचलों और छोटे शहरों से आए अनेक किसानों ने बातचीत में कहा कि ये रैली दरअसल पंचायत है और हमारे नेता अजित सिंह जो फ़ैसला करेंगे उसका पालन करते हुए आंदोलन करने के लिए हम सब तैयार हैं। (बीबीसी हिन्दी)
20 नवंबर 2009
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