नई दिल्ली : सरकार एक तरफ गेहूं की पैदावार बढ़ाने की योजना बना रही है, वहीं दूसरी तरफ किसानों को उर्वरकों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसे में आशंका है कि सरकार की यह योजना धरी की धरी रह जाएगी। गेहूं की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों को मौजूदा बुआई सीजन के पहले 20 दिनों में डीएपी फर्टिलाइजर मिलने में दिक्कत आ रही है। उर्वरक मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर-नवंबर के बुआई सीजन में कुल 37 लाख टन डीएपी की जरूरत है। हालांकि, 23 नवंबर तक फॉस्फोरस फर्टिलाइजर की सप्लाई सिर्फ 19.51 लाख टन हुई थी। मृदा विशेषज्ञों का कहना है कि फसल में उर्वरक की जरूरत बुआई के दौरान होती है और बुआई खत्म होने के बाद फटिर्लाइजर की सप्लाई का कोई मतलब नहीं बनता।
एक कृषि वैज्ञानिक का कहना है, 'पंजाब और हरियाणा में गेहूं की बुआई का काम नवंबर के पहले हफ्ते में शुरू होने के बाद लगभग पूरा हो चुका है। किसानों को बुआई के दौरान डीएपी और फसल पर यूरिया के छिड़काव की जरूरत होती है।' डीएपी उपलब्ध न होने के कारण किसान एनपीके (कॉम्प्लेक्स फटिर्लाइजर) का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं के उत्पादन पर इसके असर का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है क्योंकि हर ब्रांड में प्रत्येक पोषक तत्व (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश) की मात्रा अलग-अलग होती है। वैज्ञानिक ने बताया, 'एनपीके कभी भी डीएपी का विकल्प नहीं हो सकता। डीएपी के बगैर गेहूं की पैदावार घट सकती है, लेकिन इसकी मात्रा के बारे में बताना अभी काफी मुश्किल है।' सरकार ने 2009-10 में गेहूं की पैदावार में 20 लाख टन बढ़ोतरी का लक्ष्य रखा है। पिछले साल देश में 8।05 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। सूत्रों के मुताबिक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने केंद्र सरकार को पहले ही इस बात के संकेत दे दिए हैं कि गेहूं का उत्पादन घट सकता है। (ई टी हिन्दी)
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