वाणिज्य और उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कपास के निर्यात को प्रतिबंधित करने की वकालत की है।
हालांकि उन्होंने कहा कि निर्यात के लिए कपास सरप्लस न रहने की हालत में ही प्रतिबंध लगाया जाएगा। शर्मा ने बताया कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) घरेलू बाजार में कपास की उपलब्धता की समीक्षा कर रहा है।
शर्मा का यह बयान केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन के उस वक्तव्य के दो दिन बाद आया है, जिसमें उन्होंने देश में पर्याप्त भंडार का हवाला देते हुए निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की संभावना को खारिज कर दिया था।
शर्मा ने कहा, 'डीजीएफटी को देश में कपास की उपलब्धता और निर्यात अधिशेष की समीक्षा करने को कहा गया है। यदि निर्यात अधिशेष नहीं पाया गया तो निर्यात की इजाजत नहीं दी जाएगी। सबसे पहले हम इसकी देश में उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे। हां, कपड़े के मूल्यवर्द्धित उत्पादों का निर्यात किसानों और उद्योग दोनों के लिए बेहतर रहेगा।'
उल्लेखनीय है कि कच्चे माल (कपास) की कीमत बढ़ने के चलते कपड़ा उद्योग इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (फियो) ने सरकार से निर्यात पर कुछ प्रतिबंध आयद करने की मांग की थी।
फियो का कहना था कि कपड़ा और गारमेंट निर्यातकों के लिए कपास की आपूर्ति सुनिश्चित कररने के लिए हर महीने 4 लाख बेल के निर्यात की सीमा तय की जाए। फियो के अध्यक्ष ए. शक्तिवेल ने कहा कि कपास की कीमतें बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके उत्पाद महंगे हो गए हैं। गौरतलब है कि मारन ने दो दिन पहले कहा था, 'देश में कपास का पर्याप्त भंडार है। इसलिए इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है।'
मंत्रालय कपड़ा उद्योग के उस मांग को जिसमें कि विशेष कृषि और ग्राम उद्योग योजना (वीकेजीयूवाई) के तहत कपास के निर्यात पर दी जा राहत खत्म की जाए, को मान लिया था। अनुमान है कि यदि इसी रफ्तार से निर्यात होता रहे तो 1 अक्टूबर से शुरू हुए मौजूदा कपास वर्ष में 80 लाख कपास का निर्यात हो जाएगा।
हालांकि देश में कपास का करीब 71।5 बेल कैरीओवर स्टॉक है। कपड़ा उद्योग के मुताबिक, कपास वर्ष 2007-08 का दोहराव हो सकता है। (बीएस हिन्दी)
28 नवंबर 2009
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