नई दिल्ली : तमाम वस्तुओं की बढ़ती खुदरा कीमतों की बेहतर तस्वीर पेश करने वाले राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को तैयार करने में देर हो सकती है, क्योंकि इस सूचकांक के ग्रामीण हिस्से के लिए आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया ही अभी तैयार नहीं हो सकी है। शुरुआती योजना के मुताबिक राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अगले साल के मध्य में पेश किया जाना था, लेकिन एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि इस समय-सीमा तक काम पूरा करना लगभग नामुमकिन दिख रहा है। सामूहिक राष्ट्रीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-नेशनल इंडेक्स) में दो हिस्से- सीपीआई ग्रामीण और सीपीआई शहरी शामिल होंगे। शहरी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का काम लगभग पूरा हो चुका है और उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में इसे पेश कर दिया जाएगा, लेकिन राष्ट्रीय सूचकांक तभी पेश किया जा सकेगा जब शहरी सूचकांक के साथ ग्रामीण सूचकांक भी तैयार हो।
नाम जाहिर न करने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया, 'सीपीआई अर्बन इंडेक्स अगले साल पेश हो जाएगा क्योंकि इसके आंकड़ों का संग्रह हो गया है। डाकघरों की मदद से इस बार हमारे पास बड़े पैमाने पर लोकेशन के नमूने हैं।' हालांकि, ग्रामीण इलाकों में आंकड़ों के संग्रह का काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। अधिकारी ने बताया, 'ग्रामीण इलाकों के लिए पहले से ही मुद्रास्फीति से जुड़ा एक तंत्र है, लेकिन इस सूचकांक में खाद्य वस्तुओं का जोर है, जिससे बेहतर तस्वीर सामने नहीं आती।' ऐसे में ग्रामीण इलाकों में नए सिरे से आंकड़ों का संग्रह करना होगा, जो अभी तक सही ढंग से शुरू भी नहीं हो पाया है। नए सीपीआई सूचकांक के लिए बेस ईयर 2004-2005 होगा। वैश्विक स्तर पर मुद्रास्फीति की रफ्तार जानने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ही सबसे सही तरीका है। भारत में इस समय खुदरा कीमतों की नब्ज थामने के लिए तीन प्रमुख सूचकांक हैं। इनमें कृषि एवं ग्रामीण मजदूरों के लिए सीपीआई, औद्योगिक श्रमिकों के लिए सीपीआई और अर्बन नॉन-मैनुअल इम्प्लाई के लिए सीपीआई शामिल हैं। (ई टी हिन्दी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें