घरेलू बाजार में चावल कम ना पड़ जाए, इसके लिए सरकार तैयारी में जुट गई है। सरकार अगले एक साल में सब्सिडी के साथ चावल इम्पोर्ट और मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस को बढ़ाने की योजना बना रही है।
खुले बाजार में चावल की किल्लत की आहट अभी से सरकार को सुनाई देने लगी है। जरूरत पड़ने पर महंगा चावल इम्पोर्ट ना करना पड़ जाए इसलिए सरकार अभी से तैयारी में जुट गई है।
बढ़ेगी चावल की सप्लाई
फूड मिनिस्ट्री चाहती है कि अगले एक साल में 20 लाख टन चावल इम्पोर्ट किया जाए। साथ ही इम्पोर्ट पर कुछ सब्सिडी भी दी जाए ताकि इम्पोर्टेड चावल घरेलू बाजार में सस्ता रहे।
इतना ही नहीं बासमती एक्सपोर्ट पर भी अंकुश लगाने की भी तैयारी है। प्रस्ताव के मुताबिक इसका मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस यानी MEP दो सौ डॉलर प्रति टन बढ़ाकर 1100 डॉलर प्रति टन कर दिया जाए।
इस बारे में फूड मिनिस्ट्री ने एक प्रस्ताव एम्पावर्ड ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स यानी EGoM के पास भेज दिया है। गुरुवार को होने वाली EGoM की बैठक में इसपर अंतिम फैसला लिया जा सकता है।
हालांकि सूत्रों के मुताबिक वाणिज्य मंत्रालय एक्सपोर्ट पर अंकुश लगाने का विरोध कर रहा है। तो वित्त मंत्रालय इम्पोर्ट पर सब्सिडी का विरोध कर सकता है। उधर, एक्सपोर्टर का मानना है कि MEP बढ़ाने के बासमती एक्सपोर्ट का कारोबार मुश्किल में पड़ जाएगा।
चावल उत्पादन में 150 लाख टन कमी
दरअसल अब साफ हो गया है कि पिछले साल के मुकाबले चावल का उत्पादन 150 लाख टन कम हो सकता है। हालांकि सरकारी स्टॉक में अभी 153 लाख टन चावल पड़ा है। लेकिन खुले बाजार में सरकारी स्टॉक के चावल की मांग खुले बाजार में ना के बराबर रहती है। ऐसे में खुले बाजार में चावल सप्लाई बढ़ाने के लिए इम्पोर्ट करना और एक्सपोर्ट घटाना सरकार की मजबूरी हो सकती है। (आवाज कारोबार)
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