उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ने के ज्यादा दाम चुकाने का दबाव बढ़ने लगा है। इस सिलसिले में राज्य सरकार ने प्रदेश के डिवीजनल कमिश्नरों को पहल करने का निर्देश दिया है। इन कमिश्नरों से गन्ना विकास समितियों, गन्ना किसान प्रतिनिधियों और चीनी मिलों के बीच जारी गतिरोध खत्म करवाने को कहा गया है, ताकि किसानों को राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) से ऊंची कीमत मिल सके। इसके अलावा किसानों के आक्रोश को देखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र से फिलहाल प्रदेश में कच्ची चीनी न भेजने की भी अपील की है।
रविवार को लखनऊ में एक संवाददाता सम्मेलन में राज्य के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्तमान पेराई सत्र के लिए पहले ही गन्ने का एसएपी घोषित कर दिया है। चीनी मिलें किसानों को इससे कम मूल्य का भुगतान नहीं कर सकती हैं। राज्य सरकार ने गन्ने का एसएपी 162.50 रुपये से 170 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है। इसके बाद चीनी मिलों ने अभी तक 180 से 185 रुपये प्रति क्विंटल तक की पेशकश की है। लेकिन किसान इसे नाकाफी बता रहे हैं और 200 रुपये क्विंटल से ज्यादा की कीमत मांग रहे हैं। इसी को देखते हुए राज्य सरकार ने यह आदेश जारी किया है। इससे पहले केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार भी उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिकों के साथ बैठक में साफ कह चुके हैं कि वे किसानों को एफआरपी से ज्यादा कीमत दें, क्योंकि एफआरपी सिर्फ बेस-प्राइस है। हरियाणा की भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार ने प्रदेश के किसानों को गन्ने पर 25 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की घोषणा कर रखी है। इससे वहां के किसानों को गन्ने की कीमत 210 रुपये प्रति क्विंटल मिलेगी।
शशांक शेखर ने कहा, उत्तर प्रदेश शुगर मिल एसोसिएशन किसानों को एसएपी से ज्यादा कीमत देने पर सहमत है, लेकिन गन्ना किसान अब भी मिलों को संभवतया गन्ना बेचने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए डिवीजनल कमिश्नरों को इस दिशा में पहल करने का निर्देश दिया गया ताकि राज्य में गन्ने की पेराई जल्द से जल्द शुरू हो सके। उन्होंने दावा किया कि राज्य में अभी तक 14 मिलों ने पेराई का काम शुरू किया है। राज्य के किसान प्रदेश की चीनी मिलों द्वारा आयातित कच्ची चीनी की रिफाइनिंग का भी विरोध कर रहे हैं। इसे देखते हुए राज्य ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि वह फिलहाल प्रदेश में कच्ची चीनी न भेजे। गौरतलब है कि कृषि मंत्री पवार ने राज्य सरकार को एक पत्र लिखकर कच्ची चीनी का आयात शुरू करने का अनुरोध किया था। इसका विरोध करते हुए कैबिनेट सचिव ने कहा कि इससे किसान फिर आंदोलित हो सकते हैं।
इस बीच, सोमवार को केंद्र सरकार संसद में एफआरपी अध्यादेश में संशोधन के लिए नया बिल लाने वाली है। शुक्रवार को सरकार ने कहा था कि राज्य सरकारें एफआरपी (129।84 रुपये क्विंटल) से अधिक एसएपी तय कर सकेंगी और उनको इन दोनों के अंतर का भुगतान नहीं करना होगा। एफआरपी और एसएपी के अंतर का बोझ राज्यों पर डालने के लिए गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 में गन्ना नियंत्रण आदेश, 2009 के जरिए 22 अक्टूबर को जोड़े गए खंड 3(ख) को हटा दिया जाएगा। (बिज़नस भास्कर)
23 नवंबर 2009
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