नई दिल्ली November 24, 2009
गन्ने आंदोलन का असर बासमती धान की आवक पर भी पड़ता नजर आ रहा है। हरियाणा व पंजाब की मंडियों में पूसा 1121 धान की आवक में कमी आ गयी है।
लिहाजा इसकी कीमत बढ़ने लगी है। पिछले सप्ताह तक हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में 2000 रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला बासमती धान अब 2500 रुपये प्रति क्विंटन बिक रहा है। उम्दा किस्म के बासमती धान में भी 600 रुपये का इजाफा हुआ है और यह 3700 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रहा है।
बासमती धान के भाव में हो रहे इस उतार-चढ़ाव से हरियाणा के चावल मिलर्स असमंजस में है। उन्हें यह पता नहीं चल पा रहा है कि वे धान की कब और कितनी खरीदारी करे। उधर अरब देशों में चावल आयातकों को मिलने वाली छूट खत्म होने से बासमती चावल की निर्यात मांग में कमी आ सकती है।
हरियाणा में करनाल के बासमती धान उत्पादकों के मुताबिक सप्ताह भर पहले तक मंडी में उन्हें पूसा-1121 की कीमत 1500 रुपये प्रति क्विंटल मिल रही थी। बासमती चावल की कोई सरकारी खरीद नहीं होती है, लिहाजा चावल मिल एवं बड़े व्यापारी ही उनके धान के खरीदार होते हैं।
किसानों ने बताया कि पिछले साल पूसा 1121 चावल की कीमत 8000 रुपये प्रति क्विंटल से भी अधिक हो गई थी। फिलहाल कीमत में भारी गिरावट के बावजूद थोक मंडी में पूसा-112 की कीमत 53-54 रुपये प्रति किलोग्राम चल रही है। धान एवं चावल के भाव में भारी अंतर को देखते हुए किसानों ने बासमती धान की आवक कम कर दी है।
इस साल हरियाणा एवं पंजाब में बासमती धान के उत्पादन में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है। किसानों का मानना है कि अगले साल बासमती धान की अच्छी कीमत मिल सकती है। धान के भाव बढ़ने से हरियाणा चावल मिर्ल्स पसोपेश में है। हरियाणा चावल मिर्ल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष गोयल कहते हैं, पिछले तीन-चार दिनों से बासमती चावल के भाव घट-बढ़ रहे हैं।
धान में उतार-चढ़ाव से चावल की कीमत में भी बदलाव है। अधिक कीमत पर खरीद करने पर कीमत होने की आशंका हो रही है। चावल मिर्ल्स का यह भी कहना है कि चावल आयात के मसले पर सरकार की अलग-अलग बयानबाजी से भी धान की कीमतों में स्थिरता नहीं आ रही है। कुछ दिन पहले वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने कहा था कि सरकार चावल के आयात पर विचार कर रही है।
फिर दो दिन बाद यह बयान आया कि सरकार के पास चावल के पर्याप्त स्टॉक है। चावल निर्यातकों के मुताबिक सऊदी अरब में बासमती चावल के आयातकों को सरकार की तरफ से छूट दी जाती थी जो कि इस साल समाप्त हो रही है। इससे आने वाले समय में उनकी मांग में कमी आ सकती है। (बीएस हिन्दी)
25 नवंबर 2009
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