22 अक्तूबर 2012
कई वर्षो में भी चीनी डिकंट्रोल होना मुश्किल
चीनी उद्योग पर लगी पाबंदियां हटाने के लिए सरकारी पैनल ने सिफारिशें की है। लेकिन उद्योग की सभी पाबंदियां हटने में अभी कई वर्ष लग सकते हैं। बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के रिसर्च एनालिस्ट संजय सतपति ने एक नोट में कहा है कि हम डिकंट्रोल प्रस्तावों को सकारात्मक कदम मानते हैं। लेकिन वास्तव में डिकंट्रोल होने में कई वर्षो का समय लग सकता है। चीनी उत्पादन में भारत के प्रमुख प्रतिस्पर्धी ब्राजील के मुकाबले कम उत्पादकता होने से दीर्घकाल में नुकसान होने का अंदेशा है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख सी. रंगराजन की अगुवाई वाली एक विशेषज्ञ समिति ने मिलों पर लेवी चीनी का दायित्व हटाने और नॉन लेवी चीनी बिक्री के लिए प्रशासनिक पाबंदियां हटानी चाहिए। नोट में कहा गया है कि अक्टूबर से शुरू हुए नए सीजन में चीनी उत्पादन को लेकर अनिश्चितता है क्योंकि इस साल मानसूनी बारिश कम हुई। इस वजह से रंगराजन समिति की सिफारिशें तुरंत लागू करना मुश्किल है।
कमेटी की सिफारिशों से मिलों का मार्जिन बढ़ने और किसानों को गन्ने की आय घटने की संभावना है क्योंकि कमेटी ने मिलों की 70 फीसदी आय (एक्स-मिल मूल्य के मुकाबले 75 फीसदी) किसानों को गन्ने की कीमत के तौर पर देने का सुझाव दिया है। कमेटी ने राज्यों द्वारा तय होने वाला स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) हटाने का सुझाव दिया है।
पिछले दो वर्षो में गन्ने का एसएपी बढ़ाने से किसानों को 80 फीसदी तक आय मिली है। सतपति ने कहा कि किसान अपना हिस्सा घटाने के लिए राजी नहीं होंगे। इस समय उत्तर प्रदेश में चीनी का भाव 35 रुपये प्रति किलो चल रहा है। यह मूल्य पिछले साल के मुकाबले करीब 20 फीसदी ज्यादा है। लेकिन किसानों की आय में सिर्फ 4 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। (Business bhaskar)
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