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13 अक्टूबर 2012

चीनी उद्योग के विनियंत्रण के लिए रोडमैप पेश

रंगराजन समिति ने शुक्रवार को 80,000 करोड़ रुपये वाले चीनी उद्योग को चरणबद्ध तरीके से विनियंत्रित करने का रोडमैप पेश किया। समिति ने इसके लिए लेवी चीनी के दायित्व व रिलीज की व्यवस्था की समाप्ति और राजस्व से जुड़ाव रखने वाले एकसमान गन्ना कीमत की सिफारिश की है। साथ ही समिति ने पूर्ण पाबंदी या मात्रात्मक प्रतिबंध के उलट मुक्त आयात-निर्यात नीति की सिफारिश की है और कहा है कि इस पर शुल्क अधिकतम 10 फीसदी होना चाहिए। सकारात्मक रिपोर्ट की आस में चीनी उत्पादन से जुड़ी अग्रणी कंपनियों के शेयर में गुरुवार को उछाल आई थी, जो शुक्रवार को भी जारी रही। बीएसई पर बलरामपुर चीनी के शेयर में 2 फीसदी से ज्यादा की तेजी आई और यह 70.05 रुपये पर बंद हुआ जबकि धामपुर शुगर 3.25 फीसदी चढ़कर 71.50 रुपये पर और मवाना शुगर्स 3.25 फीसदी की उछाल के साथ 15.90 रुपये पर बंद हुआ। बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी ने कहा, 'यह रिपोर्ट इस क्षेत्र से जुड़े सभी हितधारकों के हक में है। विनियंत्रित नीति से इस क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है। यह रिपोर्ट पूर्ण रूप से लागू किए जाने की दरकार है। इसकी शुरुआत की जानी चाहिए, चाहे क्रियान्वयन चरणबद्ध तरीके से हो। राजस्व में साझेदारी के फॉर्मूले को और स्पष्ट किए जाने की दरकार है, लेकिन इसकी अवधारणा सही है।' राजस्व में साझेदारी की व्यवस्था का सुझाव देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि उद्योग को प्रति टन गन्ने के प्रसंस्करण से उत्पादित चीनी व इसके उपोत्पाद की बिक्री से मिलने वाली रकम का 70 फीसदी इन्हें किसानों को देना होगा। उदाहरण के लिए यूपी की एक मिल अगर एक टन गन्ने से 100 रुपये की चीनी, शीरा, खोई आदि का उत्पादन करती है तो इसे 70 रुपया किसान को देना होगा। अगर पश्चिम व दक्षिण भारत की मिलें एक टन गन्ने से 120 रुपये की चीनी व इसके उपोत्पाद तैयार करती है तो मिलें इसका 70 फीसदी किसानों के साथ साझा करेंगी। रंगराजन ने कहा, किसानों को गन्ने के बकाया का वास्तविक भुगतान दो चरणों में होगा, पहला अग्रिम भुगतान जब एफआरपी दिया जाएगा और दूसरा छह महीने बाद जब अनुपात का आकलन हो जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि एफआरपी की गारंटी होगी और जब छह महीने बाद जब पूरा आकलन हो जाएगा तो अगर एफआरपी से ज्यादा किसानों का बनता है तो उन्हें इसका भुगतान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जो राज्य गन्ने के बकाए का भुगतान करने के लिए यह व्यवस्था अपनाने को इच्छुक हैं उन्हें राज्य सलाहकारी कीमत का ऐलान नहीं करना चाहिए। मौजूदा समय में केंद्र एफआरपी तय करती है जबकि यूपी जैसे राज्य का अपना एसएपी है, जो थोड़ा ज्यादा है। रिपोर्ट में 10 फीसदी लेवी चीनी के दायित्व को समाप्त करने की सिफारिश की गई है। रंगराजन ने कहा, केंद्र सरकार राशन की दुकानों के जरिए चीनी की बिक्री के लिए करीब 3,000 करोड़ रुपये की सालाना सब्सिडी का वितरण जारी रखेगी, लेकिन यह राज्यों को मिलेगा, जिससे राज्यों को चीनी की खरीद लागत में कमी लाने में सहायता मिलेगी। इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, ये सिफारिशें अच्छी हैं और इससे इस क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा। मिलें अपने नकदी प्रवाह व चीनी के स्टॉक की योजना बना पाएंगी और लेवी चीनी की आपूर्ति से पडऩे वाला वित्तीय बोझ सरकार उठाएगी। नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा, लेवी चीनी के दायित्व और रिलीज की व्यवस्था की समाप्ति से उद्योग को अपना वित्तीय सेहत सुधारने में मदद मिलेगी। सहकारी मिलें पहले से ही राजस्व में साझेदारी वाला मॉडल अपना रही हैं। (BS Hindi)

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