08 अक्तूबर 2012
केलकर समिति की सिफारिशों पर एकमत नहीं विशेषज्ञ
राशन की दुकानों के जरिए बेचे जाने वाले अनाज की कीमत का जुड़ाव न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ करने की विजय केलकर समिति की सिफारिश से विशेषज्ञों के बीच बहस छिड़ गई है। ज्यादातर का मानना है कि इस सुझाव से सालाना खाद्यान्न सब्सिडी घटाने में मदद मिलेगी, लेकिन धरातल पर यह बहुत ज्यादा उपयुक्त नजर नहीं आ रहा है।
सरकार भी खाद्यान्न की कीमतों का जुड़ाव न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ करने की सिफारिशों पर बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, यह सिफारिश अच्छी है लेकिन विकासशील अर्थव्यवस्था में आपको बड़ी संख्या में गरीबों की जरूरतें पूरी करने के लिए सब्सिडी देने की दरकार होती है। केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, मुझे नहीं लगता कि केलकर रिपोर्ट व्यावहारिक है। न्यूनतम कीमत का विचार गरीबों की रक्षा के लिए है। इसका मकसद एमएसपी से अलग है और इनका जुड़ाव कीमत के साथ करने का मतलब होगा सब्सिडी को सीमित करना, जो व्यावहारिक नहीं है।
हालांकि कई विशेषज्ञों को केलकर के सुझाव में काफी कुछ नजर आ रहा है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा, खाद्यान्न जारी करने वाली केंद्रीय कीमतें साल 2002 में की गई थी और तब से एमएसपी में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है, जिसने खाद्यान्न जारी करने वाली केंद्रीय कीमतों और एमएसपी के अनुपात को बदल दिया है।
साल 2001-02 में जब सरकार ने गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों के लिए गेहूं व चावल की कीमतें क्रमश: 4.15 व 5.65 रुपये प्रति किलोग्राम पर सीमित कर दी थी, वहीं गेहूं की एमएसपी 6.10 रुपये प्रति किलोग्राम थी जबकि सामान्य किस्म के चावल का एमएसपी 5.30 रुपये प्रति किलोग्राम था। साल 2001-02 में सीआईपी व एमएसपी का अनुपात चावल के लिए 1:1 था जबकि गेहूं के लिए 3:5 था। साल 2011-12 में यह हालांकि चावल के लिए 1:2 था जबकि गेहूं के लिए 3:10। दूसरे शब्दों में एमएसपी में बढ़ोतरी के साथ खरीद कीमतें बढ़ीं, लेकिन विक्रय मूल्य स्थिर रखा गया। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें