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13 अक्टूबर 2012

चीनी उद्योग से हटेगा नियंत्रण

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के अध्यक्ष सी. रंगराजन की अगुवाई में गठित विशेषज्ञ समिति ने चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की सिफारिश की है। इसके तहत मिलों को खुले बाजार में चीनी बेचने की आजादी देने की सिफारिश की गई है। समिति ने लेवी चीनी प्रणाली को भी खत्म करने का सुझाव दिया है। समिति ने सिफारिश की है कि किसानों को गन्ने का भुगतान रेवेन्यू शेयरिंग के आधार पर किया जाए। हालांकि, मिलों के लिए गन्ने के रिजर्व क्षेत्र और दो चीनी मिलों के बीच की दूरी को राज्य सरकारों द्वारा तय करने की अनुशंसा की गई है। रंगराजन समिति ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लेवी चीनी की बाध्यता केंद्र को समाप्त कर देनी चाहिए तथा राज्य सरकारों को सब्सिडी दी जाए। सी. रंगराजन ने इस अवसर पर कहा कि राज्य सरकारें खुले बाजार से चीनी की खरीद करें और उसका वितरण उचित भाव पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में करें। लेवी चीनी से उद्योग पर तकरीबन 3,000 करोड़ रुपये का भार पड़ता है। इसके अलावा, सरकार द्वारा तय किए जाने वाले महीने के कोटे का भी समाप्त कर देना चाहिए। इस कमेटी के मुताबिक आयात-निर्यात की नीति भी उद्योग ही तय करे। इस समिति के सदस्य और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कहा कि किसानों को गन्ने का भुगतान रेवेन्यू शेयरिंग के आधार पर किया जाना चाहिए। इसको 70 और 30 फीसदी के अनुपात में बांटा गया है। किसानों को चीनी के बिक्री भाव का 70 फीसदी और मिलों को 30 फीसदी मिले। केंद्र सरकार द्वारा तय की जाने वाली गन्ने की फेयर एंड रिम्यूनिरेटिव प्राइस (एफआरपी) की व्यवस्था को लागू रखने की सिफारिश की गई है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने बताया कि चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने से सभी पक्षों किसान, मिलर्स और उपभोक्ताओं को फायदा होगा। इस फॉर्मूले से जहां चीनी उद्योग को बढ़ावा मिलेगा, वहीं किसानों को गन्ने का उचित दाम मिलेगा। साथ ही, निर्यात और आयात पर संशय की स्थिति नहीं रहेगी। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि चीनी मिलें किसानों को समय से भुगतान कर सकेंगी। (Business Bhaskar .....R S Rana)

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