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17 अक्टूबर 2012

स्टार्च विनिर्माताओं ने घटाई उत्पादन क्षमता

मक्के की ऊंची कीमतों और स्टार्च व ग्लूकोज की घटती मांग के चलते होने वाले नुकसान को कम करने के लिए स्टार्च विनिर्माताओं ने अपनी उत्पादन क्षमता में कटौती की है और फिलहाल वे अपनी क्षमता का 70 फीसदी ही इस्तेमाल कर रहे हैं। मक्के की कीमतें उच्चस्तर से 15 फीसदी नरम होने से राहत मिली है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। मक्के की कीमतें मध्य जून में 11000 रुपये प्रति टन थीं, लेकिन बारिश में देरी के चलते अगस्त के आखिर तक इसमें 43 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। ऊंची कीमतों पर हालांकि मांग एक मसला बन गया और बारिश में भी सुधार आया, जिसके परिणामस्वरूप मक्के की कीमतें उच्चस्तर से करीब 16 फीसदी नीचे आ गईं। कीमतों में कमी से राहत तो मिली है, लेकिन खरीफ में मक्के के कम उत्पादन अनुमान से चिंता बढ़ी है। ऐसे में उच्चस्तर से मक्के की कीमतों में आई नरमी अस्थायी साबित हो सकती है। ऑल इंडिया स्टार्च मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल मजीठिया ने कहा, उद्योग ने उत्पादन क्षमता में कटौती की है क्योंकि मांग कम है और ज्यादातर इकाइयां फिलहाल 70 फीसदी क्षमता पर संचालित हो रही हैं जबकि दीवाली से यह आमतौर पर 90 फीसदी क्षमता पर संचालित होती थीं। कपड़ा इकाइयों ने स्टार्च के ऑर्डर में कटौती की है। उद्योग के एक अन्य अधिकारी ने कहा, कुछ इकाइयों ने उत्पादन बंद कर दिया है क्योंकि मक्के की कीमतों (फिलहाल 13,500 रुपये) में इजाफे के बावजूद अंतिम उत्पादों स्टार्च व ग्लूकोज की कीमतें 22-23 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर हैं क्योंकि बाजार ऊंची कीमतें स्वीकार नहीं कर रहा है। साल की ज्यादातर अïवधि में मक्के की कीमतें 10,000-11,000 रुपये प्रति टन रही हैं। ज्यादातर कंपनियों ने मक्के की औसत कीमतें 11 रुपये प्रति किलो रहने के अनुमान के आधार पर दवा कंपनियों को ग्लूकोज की आपूर्ति 22 रुपये प्रति किलो पर करने का सालाना अनुबंध किया था। उद्योग का आकलन फिलहाल गलत साबित हुआ है क्योंकि कच्चे माल की कीमतें 15 रुपये के पार चली गईं, हालांकि फिलहाल यह 13-13.5 रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि अंतिम उत्पाद की कीमतें स्थिर हैं। उद्योग के एक कंसल्टेंट ने कहा, मौजूदा साल में मक्के की कीमतों में उतारचढ़ाव को देखते हुए ज्यादातर स्टार्च कंपनियां ग्लूकोज की आपूर्ति के लिए सालाना अनुबंध करने की इच्छुक नहीं हैं। कृषि मंत्रालय ने इस साल खरीफ सीजन में 148.9 लाख टन मक्के के उत्पादन का अनुमान जताया है जबकि पिछले सीजन में 162.2 लाख टन मक्के का उत्पादन हुआ था। पिछले साल रबी सीजन में 50 लाख टन मक्के का उत्पादन हुआ था और अब तक निर्यात 35 लाख टन को पार कर चुका है। अमेरिकी अनाज परिषद के प्रतिनिधि (भारत) अमित सचदेव ने कहा, कई मंडियों में मक्के की कीमतें फिलहाल 12,000 रुपये प्रति टन हैं, जो करीब-करीब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास है। नया एमएसपी 1 अक्टूबर से प्रभावी है और यह मक्के के लिए 11,750 रुपये प्रति टन तय किया गया है। निजामाबाद मंडी में हालांकि कीमतें 13,750 रुपये प्रति टन हैं। रकबे में गिरावट और बारिश में देरी के अलावा कीमतों में बढ़ोतरी की एक वजह निर्यात के आकर्षक मौकों का उपलब्ध होना रहा और कई निर्यातकों ने मक्का निर्यात का अनुबंध 15,500 रुपये प्रति टन पर किया है। जब उन्होंने अनुबंध किया था तब अमेरिकी डॉलर 56 रुपये के आसपास था, जो अब घटकर 53 पर आ गया है और अब निर्यातकों का आकलन बदल रहा है। नाम न छापने की शर्त पर एक निर्यातक ने कहा, रुपये में बढ़त के चलते हम आयातकों से दरों पर फिर से बातचीत की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि निर्यात से मिलने वाली रकम घट रही है क्योंकि हमने ऊंची कीमतों पर बाजार से मक्का खरीदा था। (BS Hindi)

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