16 अक्तूबर 2012
ग्वार वायदा से पाबंदी हटाएगा एफएमसी!
सदस्यों के बीच मतभेद के बावजूद वायदा बाजार आयोग मंगलवार को होने वाली सलाहकार समिति की बैठक में ग्वार वायदा से पाबंदी हटाने का फैसला ले सकता है। एक ओर जहां जिंस बाजार नियामक और जिंस एक्सचेंज व उद्योग ग्वार वायदा फिर से शुरू करने के हक में हैं, वहीं 40 सदस्यों वाली सलाहकार समिति का एक वर्ग एफएमसी के इस कदम के खिलाफ है। समझा जाता है कि एमएमसी ने यह मामला सदस्यों पर छोड़ दिया है।
यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि ग्वार के भाव को देखते हुए किसानों ने इस खरीफ सीजन में ग्वार की ज्यादा बुआई की है क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि पिछले साल की तरह इस साल भी उन्हें अच्छी कीमतें मिलेंगी। पिछले साल सभी मौसमी फसलों में सबसे ज्यादा भाव ग्वार का ही था। पिछले साल ग्वार और ग्वार गम की कीमतें नए रिकॉर्ड पर पहुंची थी और क्रमश: 33,500 व 1,03,000 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई थी। एफएमसी चेयरमैन रमेश अभिषेक की अगुआई वाली समिति में एपीडा चेयरमैन असित त्रिपाठी, मसाला बोर्ड के चेयरमैन डॉ. ए जयतिलक, नेफेड के एमडी राजीव गुप्ता, एमसीएक्स के उपाध्यक्ष जिग्नेश शाह, कोटक महिंद्रा ग्रुप के सीएमडी उदय कोटक शामिल हैं।
एफएमसी और जिंस एक्सचेंज समेत कुछ सदस्यों ने कुछ हफ्ते पहले एफएमसी को कुछ सिफारिशें सौंपी थी। एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, अगर एक्सचेंज इसके पक्ष में मजबूती के साथ खड़े होते हैं तो एफएमसी ग्वार वायदा बहाली की अनुमति दे सकता है। इस बीच, जिंस एक्सचेंजों ने ग्वार वायदा को फिर से शुरू करने का मजबूती के साथ समर्थन किया है और कहा है कि यह राजस्व उगाही के मामले में बड़ी जिंसों में से एक है। ग्वार वायदा के निलंबन से पहले एनसीडीईएक्स के रोजाना कारोबार में इसका योगदान करीब 8 फीसदी था जबकि एस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज के कारोबार में करीब 30 फीसदी।
इस साल 9 अप्रैल को एफएमसी ने अगले आदेश तक नए अनुबंधों को टाल दिया था क्योंकि वायदा एक्सचेंजोंं पर कई कारोबारी इसकी कीमतों को हवा दे रहे थे, जिसके चलते ग्वार व ग्वार कम की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई थी। इस साल मार्च में हालांकि एफएमसी ने कारोबारियों को ताजा पोजीशन लेने से मना कर दिया था। लेकिन ऐसे अनुबंध की बिक्री की अनुमति थी। समिति के एक सदस्य के मुताबिक, कई तरह के विवाद के बाद ग्वार व ग्वार गम का वायदा कारोबार निलंबित किया गया था और इन विवादों में कारोबारी सदस्यों की तरफ से कीमतों को हवा देना शामिल है। साथ ही जांच में एफएमसी विशेषज्ञ समिति ने कारोबारियों की तरफ से करीब 13,000 करोड़ रुपये के मुनाफे का पता लगाया था।
अपनी जांच में एफएमसी ने पाया था कि राजस्थान के कारोबारी इसकी कीमतों को हवा दे रहे हैं और इस वजह से उसकी कारोबारी सदस्यता निलंबित कर दी गई थी। इससे पहले एफएमसी ने कहा था कि वायदा एक्सचेंज में अत्यधिक सटोरिया गतिविधियों के चलते ही इसकी कीमतें नहीं बढ़ी। कम उत्पादन और अमेरिकी तेल कंपनियों की तरफ से भारी भरकम आयात ऑर्डर के चलते ऐसा हुआ था। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल ग्वार का उत्पादन 20 फीसदी घटा है और यह 12 लाख टन रह गया जबकि एक साल पहले 15 लाख टन ग्वार का उत्पादन हुआ था। मंत्रालय ने इस खरीफ सीजन में रकबे में 20 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान जताया है।
अनुमान के मुताबिक, ग्वार का कुल रकबा इस सीजन में 35 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है जबकि पिछले सीजन में 29.1 लाख हेक्टेयर में ग्वार की बुआई हुई थी। ऑल इंडिया ग्वारगम मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष पुरुषोत्तम इसारिया का अनुमान है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल उत्पादन करीब 25 फीसदी बढ़ेगा। एक सदस्य ने कहा, ग्वार का उत्पादन इस साल बढऩे का अनुमान है और इसके चलते विरोध करने वाले सदस्यों को अपना नजरिया बदलना पड़ सकता है। लेकिन पिछले साल के विवाद को देखते हुए, जब एसोचैम ने कीमतों में कृत्रिम ïउछाल पर चिंता जताई थी, एफएमसी जोखिम उठाना नहीं चाहेगा।
इस बीच, ग्वार व ग्वार गम की कीमतें मौजूदा समय में क्रमश: 7000 व 34,000 रुपये प्रति क्विंटल है। साथ ही मांग भी कम है। एपीडा के मुताबिक, ग्वार गम का निर्यात साल 2011-12 में बढ़कर 7.06 लाख टन पर पहुंच गया। इस साल निर्यात 5 लाख टन पर आ सकता है। सलाहकार समिति जिंसों में मार्केट मेकिंग को अनुमति देने, इलिक्विड जिंस आदि पर भी अंतिम फैसला ले सकता है। (BS Hindi)
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