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04 अक्तूबर 2012

प्राकृतिक रबर के उत्पादन और खपत के बीच बढ़ रही खाई

मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से अगस्त की अवधि में प्राकृतिक रबर की खपत की रफ्तार इसके उत्पादन के मुकाबले ज्यादा रही है, लिहाजा इसके आयात में तीव्र बढ़ोतरी की संभावना बन रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक उत्पादन व खपत के बीच बढ़ती खाई से निकट भविष्य में देसी बाजार में रबर की किल्लत हो सकती है। ऐसे में रबर की खेती में इजाफा करने पर तत्काल ध्यान दिए जाने की दरकार है। टायर उद्योग के एक विशेषज्ञ ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि इस साल उद्योग को आयात पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ा है और कुल आयात पिछले साल के मुकाबले कम से कम 10 फीसदी बढ़ सकता है। रबर बोर्ड के ताजा आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल-अगस्त के दौरान कुल उत्पादन महज 0.8 फीसदी बढ़ा और यह 3,13,700 टन पर पहुंच गया, वहीं खपत में 4.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 4,20,440 टन पर पहुंच गया। हालांकि इस अवधि में आयात में 23 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 95,047 टन पर पहुंच गया जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में कुल 78,423 टन रबर का आयात हुआ था। विशेषज्ञों ने कहा कि साल 2011-12 में भारत ने 2,05,050 टन रबर का आयात किया था और 2012-13 में यह 2,25,000 टन पर पहुंच सकता है। बोर्ड ने साल 2012-13 में 9.30 लाख टन रबर के उत्पादन का अनुमान जाहिर किया है जबकि उसका मानना है कि कुल खपत 10.06 लाख टन रहेगी। इस तरह कुल 76,000 टन रबर की कमी होगी। हालांकि बोर्ड को नहीं लगता कि देसी बाजार में रबर की किल्लत है क्योंकि उसका अनुमान है कि अप्रैल 2012 में ओपनिंग स्टॉक 2,36,275 टन था और उद्योग 1.50 लाख टन रबर का शुल्क मुक्त आयात कर सकता है। लेकिन उद्योग के विशेषज्ञों ने इसे स्वीकार नहीं किया है और उनका मानना है कि वास्तविक स्टॉक 1.40 लाख टन से कम होगा और इस साल और ज्यादा आयात हो सकता है। शुल्क देकर भी आयात बेहतर विकल्प है क्योंकि वैश्विक बाजार में यहां के मुकाबले रबर के भाव कम हैं। एक विशेषज्ञ ने कहा कि पिछले 4-5 सालों में ऑटोमोबाइल क्षेत्र की बढ़ती मांग को देखते हुए टायर उद्योग में क्षमता काफी ज्यादा बढ़ी है। सरकार ने सड़कों के विकास पर जोर दिया है और इसके चलते दो सालों में बसों के उत्पादन में 33 फीसदी की उछाल आएगी। पिछले 12 महीने में रुपये में 17 फीसदी की गिरावट आई है। लिहाजा टायरों का निर्यात इस अवधि में 46 फीसदी बढ़ गया है। इस तरह से रबर की मांग में 5-6 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि रबर के उत्पादन व उत्पादकता में बढ़ोतरी की दरकार है, अन्यथा रबर का इस्तेमाल करने वाले उद्योग मुश्किल में पड़ जाएंगे। वैश्विक कीमतें फिलहाल कम हैं क्योंकि दुनिया में रबर के सबसे बड़े उपभोक्ता देश चीन में इसकी खपत की रफ्तार धीमी है और यूरोप व अमेरिका की अर्थव्यवस्था नरम है। वैश्विक उत्पादन और खपत की स्थिति हालांकि ठीक रह सकती है, लेकिन भारतीय परिदृश्य अलग रह सकता है। प्राकृतिक रबर उत्पादक देशों के संगठन के महासचिव कमरुल बी बशीर का अनुमान है कि साल 2012 में आपूर्ति 4.7 फीसदी बढ़कर 108.3 लाख टन हो जाएगी, वहीं खपत 4.8 फीदी बढ़कर 115.9 लाख टन पर पहुंच जाएगी। इसमें से 36.7 लाख टन चीन में खपेगा जबकि भारत में 10 लाख टन।चीन में खपत बढऩे से इसकी किल्लत हो सकती है, जिसका भारतीय कंपनियों पर असर पड़ेगा। ऐसे में देश में उत्पादन बढ़ाने की दरकार है और इसे रबर की आपूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा। उपग्रह से प्राप्त तस्वीरों से पता चलता है कि मार्च 2012 तक त्रिपुरा में 58,637 हेक्टेयर में रबर की खेती हुई है और वहां 1 लाख हेक्टेयर में रबर का उत्पादन हो सकता है। (BS Hindi)

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