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04 अक्टूबर 2012

आज होगा बड़े सुधारों पर फैसला!

विमानन और बहु-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी देने के बाद अब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार गुरुवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में और भी कई बड़े सुधार विधेयकों पर फैसला ले सकती है। दरअसल संप्रग से तृणमूल कांग्रेस के अलग होने के बाद सरकार के लिए सुधारों पर आगे बढऩा आसान हो गया है। ये विधेयक हैं निजी बीमा कंपनियों में एफडीआई की सीमा मौजूदा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने, कंपनी विधेयक, अंतरिम पेंशन नियामक को संवैधानिक दर्जा देना और वायदा बाजार आयोग नियामक को ज्यादा अधिकार देना। बीमा क्षेत्र में एफडीआई बढ़ाने का मामला काफी समय से अटका पड़ा है और सूत्रों का कहना है कि सरकार ने इस पर फैसला लेने का मन बना लिया है। बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण के चेयरमैन जे हरिनारायण ने भी बीमा में एफडीआई बढ़ाने की वकालत करते हुए कहा, 'जब तक हम बीमा में 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी नहीं देंगे तब तक हमें बीमा उद्योग के लिए जरूरी पूंजी नहीं मिलेगी।' हालांकि इस विधेयक को पारित कराना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है खासतौर पर राज्य सभा में, जहां संप्रग बहुमत में नहीं है। सरकार भी इससे वाकिफ है और मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने हाल में कहा था कि सरकार इस विधेयक का समर्थन करने के लिए विपक्ष से बात करेगी। बीमा विधेयक के साथ ही कैबिनेट पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक पर भी विचार करेगी। यह विधेयक अंतरिम बीमा नियामक पीएफआरडीए को संवैधानिक दर्जा देने से जुड़ा है। विपक्ष को मनाने की खातिर सरकार एफडीआई की सीमा विधेयक में ही देने पर राजी हो गई थी। हालंाकि कैबिनेट के समक्ष आए विधेयक में कहा गया था कि इसमें विदेशी निवेश बीमा क्षेत्र के बराबर यह 26 फीसदी होगा। तब प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इसका समर्थन किया था लेकिन सरकार की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। तृणमूल के विरोध के कारण ही सरकार वायदा अनुबंध (नियमन) संशोधन विधेयक पर भी आगे नहीं बढ़ पाई थी। इस विधेयक में वायदा बाजार आयोग को ज्यादा अधिकार देने और वायदा एवं सूचकांक में ज्यादा योजनाएं लाने की बात कही गई है। वित्त मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने हाल में कंपनी विधेयक में 500 करोड़ रुपये या 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी या फिर वित्त वर्ष में 5 करोड़ रुपये से ज्यादा का मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के लिए कारोबारी सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) पर खर्च अनिवार्य करने की सिफारिश की थी। इससे पहले विधेयक में कंपनियों को उनके औसत शुद्घ मुनाफे का 2 फीसदी सीएसआर खर्च करना जरूरी किया था। (BS Hindi)

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