चंडीगढ़ October 13, 2010
पंजाब के कपास किसानों के लिए यह वर्ष भी तगड़ा मुनाफे वाला साबित हो रहा है क्योंकि कपास के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,800 रुपये प्रति क्विंटल से लगातार ऊपर बने हुए हैं। वजह यह है कि विभिन्न मंडियों में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में कपास की आवक कम हो रही है। इस वर्ष 11 अक्टूबर तक राज्य की मंडियों में कपास की आवक तकरीबन 28 फीसदी कम रही।सूत्रों के मुताबिक, लंबे और छोटे रेशे वाले कपास के औसत भाव फिलहाल 3,365-3,520 रुपये प्रति क्विंटल है। कुछ मामलों में लंबे रेशे वाले कपास की खरीद-फरोख्त 4,605 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर हो रहा है, जबकि छोटे रेशे वाले कपास 3,000-4,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहे हैं। प्रदेश के विभिन्न मंडियों से इस महीने की 11 तारीख तक कुल मिलाकर 5.37 लाख क्विंटल (1.07 लाख गांठ) कपास की खरीदारी हुई है। इसमें निजी कारोबारियों और सीसीआई का अहम योगदान रहा है। एक साल पहले की समान अवधि में 7.48 लाख क्विंटल (1.50 लाख गांठ) कपास की खरीदारी की गई थी।कपास खरीदारी की जो मौजूदा स्थिति है, उसमें निजी कारोबारियों भूमिका अग्रणी है। इस महीने की 11 तारीख तक निजी कारोबारियों ने 3.36 लाख क्विंटल कपास खरीदी, जबकि सीसीआई ने केवल 900 क्विंटल कपास की खरीदारी की।विश्लेषकों को लगता है कि बेमौसम बरसात की वजह से कपास की फसल प्रभावित हुई है और इसी वजह से मंडियों में इसकी आवक देर से हुई। उनका यह भी कहना है कि एक हद तक कपास की पत्तियों पर हमला करने वाले वायरस की वजह से भी फसल को नुकसान पहुंचा है। बावजूद इसके विश्लेषकों ने उम्मीद जताई है कि इस वर्ष कपास का कुल उत्पादन पिछले साल हुए उत्पादन से थोड़ा कम या ज्यादा रहेगा।उल्लेखनीय है कि पहले अत्यधिक गर्मी, नहरों में पानी की कमी और बीटी कॉटन बीजों की कम आपूर्ति का पंजाब में कपास के रकबे पर नकारात्मक असर हुआ था। नतीजतन इस राज्य में कपास के 5.50 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में इस वर्ष कपास का कुल रकबा 5.30 लाख हेक्टेयर है और कुल 21 लाख गांठ (1 गांठ=170 किलोग्राम) उत्पादन का अंदाजा लगाया गया है। पिछले साल पंजाब में कपास का कुल रकबा 5.11 लाख हेक्टेयर रहा था और कुल उत्पादन 20.06 लाख गांठ हुआ था।पंजाब के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि अगले दो सप्ताह में कपास की आवक बढ़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि नरमा और कपास पर बाजार शुल्क एवं ग्रामीण विकास शुल्क (आरडीएफ) 2 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी किए जाने से मंडियों में कपास की आवक बढ़ाने में मदद होगी। शुल्कों में कटौती से पहले पंजाब के किसान अपनी फसल की बिक्री हरियाणा और राजस्थान में करना पसंद करते थे क्योंकि उन राज्यों में करों एवं शुल्कों की दरें तुलनात्मक रूप से कम थीं।कपास किसानों एवं कपास कताई उद्योगों के हितों की रक्षा के लिए हाल ही में शुल्क कटौती का फैसला किया गया था। गौरतलब है कि प्रदेश सरकार ने कच्चे कपास की कताई और बुनाई पर लगाया जाने वाला 2 फीसदी पंजाब बुनियादी ढांचा विकास उपकर को पहले ही खत्म कर दिया है। (BS Hindi)
14 अक्तूबर 2010
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