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04 अक्टूबर 2010

फाउंड्री उद्योग पर महंगाई की मार

मुंबई October 01, 2010
फेरो अलॉय की कीमतों में भारी उछाल ने फाउंड्री उद्योग के परिचालन को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस पर बढऩे वाली लागत का असर ऑटो सहित पूरे इंजीनियरिंग क्षेत्र पर दिखाई पड़ता है।फाउंड्रियों में फेरो अलॉय, फिनॉल और रेअर अर्थ को प्रत्यक्ष रूप से कच्चे माल के तौर पर प्रयोग किया जाता है। बीते 1 सितंबर से कच्चे माल की कीमतों में 300 फीसदी की तेजी आ चुकी है। फाउंड्री इकाइयों में फेरो सिलिकॉन (फेसि 70 फीसदी) को मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। इसके दाम 37 फीसदी बढ़कर 62 रुपये से 85 रुपये प्रति किग्रा हो चुके हैं।इसी प्रकार, बीते माह के शुरुआती 3 सप्ताहों के दौरान मिश्रित धातु की कीमतें चार गुनी होकर 10 डॉलर से 40 डॉलर प्रति किग्रा तक पहुंच चुकी हैं। 1 से 21 सितंबर के बीच फिनॉल की कीमतें 103 से 129 रुपये तक पहुंच गईं।दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन फाउंड्रीमैन (आईआईएफ) के निदेशक ए के आनंद ने कहा, 'कीमतें बढऩे से धातु ढलाई की निर्माण लागत काफी बढ़ चुकी है। इसलिए स्थिति को सामान्य बनाने के लिए फेरो अलॉय के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अगर कीमतों में तेजी का रुझान बना रहता है तो फाउंड्री उद्योग को अपना परिचालन घटाना पड़ेगा जिससे उन्हें काफी नुकसान होगा।सितंबर में एक माह के दौरान इस्पात को कोमल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मैग्नीशियम की कीमतें 2,600 डॉलर से 3,100 डॉलर प्रति टन तक पहुंच चुकी हैं।ईंधन क्षमता को बढ़ाने के लिए रेअर अर्थ के एक मात्र उत्पादक चीन द्वारा इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से कीमतों में तेजी आई है। दुनिया की 95 फीसदी रेअर अर्थ चीन की खदानों से निकाली जाती है। अगस्त से सितंबर के दौरान रेअर अर्थ के दाम 158 फीसदी बढ़कर 1,200 डॉलर से 3,100 डॉलर तक पहुंच चुके हैं। आईआईएफ के सूत्रों के मुताबिक, चीन के उद्योग और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में टर्बियम, डाइस्प्रेसियम, थीलियम, लीटेटियम के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है। इसके अलावा चीन नीओडाइमीयिम, यूरोपियम, सेरियम और लैंथानम पर पाबंदी लगाएगा।नई तकनीक के कारण इन धातुओं का रणनीतिक महत्व बढ़ा है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका की खदानों से इनकी आपूर्ति शुरू होने में समय लगेगा। (BS Hindi)

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