नई दिल्ली October 13, 2010
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जेनेटिकली मोडिफाइड यानी बीटी फूड के खिलाफ अभियान छेड़ रखा है, जिस पर अभी भी राजनीतिक उठापटक जारी है। कृषि पर गठित संसद की स्थायी समिति इस समय बीटी बैगन या अन्य जेनेटिकली मोडिफाइड खाद्य को अनुमति दिए जाने के नफे-नुकसान का जायजा ले रही है। उम्मीद की जा रही है कि समिति इन फसलों का कई आधार पर विरोध करेगी।संसदीय समिति इस मसले पर अपनी रिपोर्ट संसद के मॉनसून सत्र में पेश करेगी। इस मामले से जुड़े विभिन्न समूहों के साथ बैठक के बाद सदस्यों ने यह पाया कि वर्तमान अवस्था में बीटी खाद्य की खेती शुरू किया जाना सुरक्षित नहीं है। समिति के एक सदस्य ने कहा, 'अभी बीटी खाद्य के मनुष्य के स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रभाव को लेकर कोई शोध नहीं हुआ है। साथ ही हम इसके पर्यावरण पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में भी नहीं जानते हैं।Óहाल ही में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जानकारों के एक समूह की उस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था जिसमें बीटी बैगन की सीमित खेती किए जाने की बात कही गई थी। रमेश ने आरोप लगाया था कि 6 प्रमुख वैज्ञानिकों का समूह व्यापक वैज्ञानिक राय नहीं दे सकता, जो सिर्फ एक वैज्ञानिक के निष्कर्षों पर आधारित है। रमेश के मंत्रालय ने बीटी बैगन पर रोक लगा रखी है, जबकि सरकार में इस मसले पर आम राय नहीं है। रमेश ने भी यह तर्क दिया है कि कोई भी राज्य इसकी खेती के लिए तैयार नहीं है। सीपीआई(एम) की अध्यक्षता वाली कृषि समिति ने भी इसका विरोध किया और यह राय जाहिर की कि अगर बीटी बैगन की खेती शुरू होती है तो सिर्फ एक कंपनी मोनसेंटो का इस पर एकाधिकार हो जाएगा। समिति के एक सदस्य ने कहा, 'चीन ने खुद का बीटी बीज विकसित किया है। लेकिन भारत में किसानों को मोनसेंटो के बीज खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। ऐसे में हम कैसे किसी विदेशी कंपनी को भारत की खेती पक एकाधिकार स्थापित करने की छूट दे सकते हैं?Óयह भी देखा गया है कि हर साल किसानों को नया बीज खरीदना पड़ेगा और आने वाले दिनों में सिर्फ मोनसेंटो का कारोबार बढ़ेगा। संसदीय समिति ने पाया है कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने भी बीटी खाद्य की खेती को अनुमति नहीं दी है। सदस्य ने कहा कि सिर्फ 4-5 देशों ने बीटी खाद्य की खेती को अनुमति दी है, जिसमें अमेरिका और कनाडा शामिल हैं। यह वैश्विक रूप से लोकप्रिय अवधारणा नहीं है। पैनल यह भी सवाल उठा सकता है कि कांग्रेस शासित प्रदेशों आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में बीटी कपास की खेती जोरों पर है, उसके बावजूद वहां के किसान आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो रहे हैं? सोमवार को पैनल की 5वीं बैठक में स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन, नैशनल एग्रीकल्चल, फूड ऐंड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीच्यूट और फोरम फॉर बायो टेक्नोलॉजी ऐंड फूड सिक्योरिटी ने इस मसले पर अपनी राय रखी। (BS Hindi)
14 अक्तूबर 2010
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