चंडीगढ़ October 22, 2010
भारत के चावल निर्यातकों को इस साल बेहतर उम्मीदें नजर आ रही हैं। बाासमती चावल के अधिक उत्पादन के अनुमानों से खुश निर्यातकों को इस साल निर्यात को लेकर बेहतर आसार हैं। वैश्विक बाजार में निर्यात के लिए माकूल अवसर हैं। फिलीपींस में तूफान की वजह से फसलों को नुकसान पहुंचा है, वहीं थाइलैंड और पाकिस्तान में बाढ़ के चलते फसल तबाह हुई है। ऐसे में भारत के निर्यातक उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें वैश्विक बाजार में बेहतर दाम मिलेंगे। दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के पहले हिस्से में ज्यादा बारिश होने की वजह से बासमती उत्पादन की बेहतर संभावनाएं बनी हैं। इसकी वजह है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में देर से बोई जाने वाली बासमती की किस्मों की बुआई हुई है और कुल मिलाकर बासमती का रकबा बढ़ा है। आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन और एग्रीकल्चर ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए) के अनुमानों के मुताबिक बासमती डेवलपमेंट फंड के सहयोग का फायदा हुआ है। इसके चलते बासमती का रकबा इस साल बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल 14 लाख हेक्टेयर था।पिछले साल बासमती चावल का कुल उत्पादन करीब 45 लाख टन था। कारोबारियों, किसानों और निर्यातकों का मानना है कि इस साल उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। ज्यादा उत्पादन से निर्यातकों को बेहतर मुनाफा मिलने की उम्मीद है। अधिक आपूर्ति की वजह से निर्यातकों को किसानों से मोलभाव करने का भी मौका मिलेगा। एपीईडीए से जुड़े सूत्रों के मुताबिक चावल उद्योग और एपीईडीए के साथ पंजीकृत कारोबारियों ने कुल 32 लाख टन चावल खरीद के ऑर्डर दिए हैं। साथ ही वास्तविक निर्यात 20 लाख टन रहने की उम्मीद है। लेकिन निर्यातकोंं का कहा है कि डीजीएफटी के बंदरगाहों से प्राप्त एपीडीईए के निर्यात आंकड़ों के मुताबिक स्थिति कुछ स्पष्ट नहीं है। निर्यातक पंजीकरण के लिए शुल्क जमा करते हैं और उन्होंने अनिश्चित सौदों के लिए पंजीकरण नहीं कराया है। दावत बासमती राइस के प्रबंध निदेशक वीके अरोरा ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि इस साल नए बाजारों पर भारत की नजर है, जिसके चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि बासमती की घरेलू मांग में 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, क्योंकि लोगों की आय बढ़ रही है।आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने भी निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी बाजारों में फसल खराब होने की वजह से निर्यात में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। उनके मुताबिक पश्चिम एशिया में पूसा1121 किस्मय की मांग बढ़ी है। इस समय भारत से बासमती की कुल 11 किस्मों का निर्यात किया जाता है। निर्यातकों को एकमात्र भय है कि अगर अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये में मजबूती आती है तो निर्यातकों के मुनाफे में कमी आएगी। भारतीय चावल का ज्यादातर निर्यात ईरान के जरिए होता है और इसके चलते मुनाफा कम हो सकता है। एपीईडीए ने पिछले साल बासमती के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन तय किया गया है। पिछले साल कुल निर्यात 1000 करोड़ रुपसे से ज्यादा का हुआ था। (BS Hindi)
23 अक्टूबर 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें