बेंगलुरु October 12, 2010
हाल के वर्षों में कॉफी किसानों को उनकी फसल की ऊंची कीमत मिलने की वजह से देश के प्रमुख कॉफी उत्पादक इलाकों के किसान केंद्र सरकार की भाव स्थिरीकरण कोष योजना में योगदान देने के प्रति अनिच्छुक हैं। यही वजह है कि इस योजना की राह मुश्किल नजर आ रही है। कॉफी किसान इस कोष में योगदान के एवज में अधिक फायदे की इच्छा रखते हैं।यह योजना वाणिज्य मंत्रालय की ओर से चलाई जा रही है। खराब फसल वाले साल में कॉफी किसानों की मदद के लिए इसमें सरकार एवं किसान-दोनों की भागीदारी का प्रावधान है।देश के कॉफी बागान मालिकों के संगठन के अध्यक्ष रमेश राजा ने बताया, 'कॉफी किसान भाव स्थिरीकरण कोष में योगदान करने से कतरा रहे हैं क्योंकि हाल के दिनों में उन्हें फसल की अच्छी कीमत मिल रही है। इसलिए सरकार को चाहिए कि इस योजना को और आकर्षक बनाने के लिए वह इसमें कुछ बीमा उत्पादों को भी शामिल करे।Ó उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बीमा उत्पाद और अतिरिक्त फसल बीमा उत्पादों से कॉफी का उत्पादन करने वाले छोटे किसान भाव स्थिरीकरण कोष में योगदान देने के लिए उत्साहित होंगे।उल्लेखनीय है कि भाव में गिरावट वाली स्थिति में देश के कॉफी, चाय, रबर और तंबाकू उत्पादक किसानों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने के लिए वर्ष 2003 में भाव स्थिरीकरण कोष योजना शुरू की गई थी।यह योजना 500 करोड़ रुपये के प्रारंभिक कोष से शुरू हुई थी और इसके तहत एक फसल वर्ष को संकट वाला वर्ष घोषित किया गया था। उस दौरान फसलों की कीमत अंतरराष्टï्रीय स्तर पर 7 वर्षों के औसत भाव से 20 फीसदी नीचे चली गई थी। इसी तर्ज पर इस योजना के तहत एक अन्य साल को अच्छा फसल वर्ष घोषित किया गया था। तब फसलों की कीमत अंतरराष्टï्रीय स्तर पर 7 वर्षों के औसत भाव की तुलना में 20 फीसदी ऊपर थी। कॉफी बोर्ड के सदस्य भी अब मानने लगे हैं कि पिछले 6-7 वर्षों से किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत मिल रही है, लिहाजा वे भाव स्थिरीकरण कोष में 500 रुपये का भी योगदान करने की इच्छा नहीं रखते।हाल ही में, न्यूयॉर्क में एक ओर जहां अरेबिका कॉफी के लिए आईसीई वायदा की दिसंबर डिलीवरी 3 फीसदी ऊपर 1.9 डॉलर प्रति पाउंड के स्तर पर चली गई थी वहीं लंदन के एनवाईएसई लिफे एक्सचेंज में रॉबस्टा किस्म की कॉफी का भाव 2.7 फीसदी चढ़कर 1,850 डॉलर प्रति टन के स्तर पर जा पहुंचा था।ये भाव ऐतिहासिक रूप से बहुत ऊंचे है और वर्ष 2004-05 में जो भाव थे, उनकी तुलना में 30 फीसदी से भी अधिक हैं।कॉफी बोर्ड के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, 'पिछले 6-7 वर्षों के दौरान अंतररष्टï्रीय भाव ऊंचे रहे हैं। यही वजह है कि घरेलू कॉफी किसानों को उनकी फसल की अच्छी कीमत मिलती रही है। इस दौरान फसल के मामले में कोई चिंताजनक वर्ष नहीं रहा और यही वजह है कि भाव स्थिरीकरण कोष के प्रति किसानों ने उदासीनता दिखाई है।Óउन्होंने कहा, 'लेकिन यह अच्छी स्थिति नहीं है, क्योंकि फसल के लिए खराब वर्ष वाली स्थिति में वित्तीय मदद के लिए धन की जरूरत होती है। (BS Hindi)
13 अक्तूबर 2010
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