बेंगलुरु October 25, 2010
देश के प्रमुख कॉफी उत्पादक इलाकों के किसानों ने सरकार से शुल्क ढांचे में कटौती करने और कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) को फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की अपील की है।कॉफी किसानों ने बजट पूर्व परामर्श के तहत वाणिज्य मंत्रालय और कॉफी बोर्ड से आगामी केंद्रीय बजट में ये कदम उठाए जाने की मांग की है। कॉफी बोर्ड के सदस्य और कर्नाटक के कॉफी किसान नंदा बेलिअप्पा ने बताया, 'चूंकि ज्यादातर भारतीय कॉफी का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता है कि इसलिए इसे निर्यातोन्मुख कमोडिटी समझा जाना चाहिए। यही वजह है कि निर्यात प्रतिस्पद्र्घा बढ़ाने के लिए उत्पाद, सीमा और बिक्री समेत अन्य शुल्कों में कटौती की जानी चाहिए।उन्होंने बताया कि ऐसा करने से कॉफी किसानों की लागत में करीब 10 फीसदी तक गिरावट आएगी। गौरतलब है कि भारत में हर साल लगभग 2,80,000 से 3,00,000 टन कॉफी का उत्पादन होता है। इसमें से करीब 70 फीसदी कॉफी निर्यात कर दी जाती है। किसानों ने वाणिज्यिक बैंकों से कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने की भी मांग की है। बेलिअप्पा ने कहा, 'जब बैंकों को नाबार्ड की ओर से 4-4.5 फीसदी ब्याज दर पर वित्तीय मदद हासिल होती है, तो किसानों को 6-6.5 फीसदी ब्याज दर पर ऋण मिलना चाहिए, न कि ऊंची दरों पर।प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए उधार दिशानिर्देशों के तहत कॉफी किसानों को सस्ता ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। किसानों ने कॉपर सल्फेट को भी औद्योगिक रसायन श्रेणी में रखे जाने के बजाय फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की मांग की है। बेलिअप्पा ने बताया, 'यदि सरकार कॉपर सल्फेट को फफूंदनाशक श्रेणी में रखती है, तो इससे कॉफी किसानों को बड़ी राहत मिलेगी क्योंकि इसकी कीमत अधिक होती है जिससे किसानों की लागत बढ़ जाती है।नीले थोथे का इस्तेमाल अरेबिका काफी में पतझड़ की बीमारी रोकने के लिए किया जाता है, जिसकी लागत 8,000 रुपये प्रति 50 किलोग्राम पड़ती है।उन्होंने कहा, 'किसानों को कॉफी की खेती के लिए प्रति एकड़ 60 किलोग्राम नीले थोथे की जरूरत होती है। यदि सरकार इसे फफंूदनाशक की श्रेणी में ले आती है तो इसका भाव कम हो जाएगा। अन्य दूसरे किसानों का भी कहना है कि नीले थोथे का इस्तेमाल दूसरी बागवानी फसलों में भी किया जाता है इसलिए इसे औद्योगिक रसायन की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।कॉफी निर्यात संगठन के अध्यक्ष रमेश राजा ने इस मामले में कहा कि सरकार को रुपये में स्थिर बनाए रखना चाहिए ताकि निर्यात उद्योग को फायदा हो सके। उन्होंने कहा, 'देश में पूंजी की आवक रोकने के लिए उठाए गए किसी भी कदम से रुपया मजबूत होता है और ऐसा होने से कॉफी निर्यात प्रभावित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि कॉफी उद्योग को कम ब्याज दरों पर ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भारतीय कॉफी निर्यातक उन देशों के निर्यातकों से प्रतिस्पद्र्घा नहीं कर सकते जहां ब्याज दरें तुलनात्मक रूप से कम हैं।बहरहाल, कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जाबिर अश्गर ने कहा कि कॉफी किसानों की मांग पर इस वर्ष 4 नवंबर को आयोजित होनेवाली बोर्ड की बैठक में विचार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय का मानना है कि कॉफी के भाव फिलहाल सर्वोच्च स्तर पर बने हुए हैं, इसलिए वे ब्याज दरों में कटौती करने में ज्यादा रुचि नहीं रखते। जाहिर है, वाणिज्य मंत्रालय फिलहाल ऐसा करने के पक्ष में नहीं है। (BS Hindi)
27 अक्टूबर 2010
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