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16 अक्टूबर 2010

शहद में एन्टीबायोटिक पाए जाने की खबरों को गंभीरता से लेते हुए सरकार ने कहा है कि शहद में कीटनाशक या एन्टीबायोटिक की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। एक

खाद्य सुरक्षा कानून को ले कर चल रही बहस के बीच कई अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि विभिन्न वर्गों के लिए अलग-अलग राशन कार्ड व्यवस्था लागू करने के बजाय देश में सभी नागरिकों के लिए लिए एक समान राशन प्रणाली लागू की जानी चाहिए।अर्थशास्त्रियों ने मौजूदा राशन व्यवस्था को दोषपूर्ण बताते हुए कहा है कि वर्तमान में अलग-अलग श्रेणी के राशन कार्ड होने की वजह से आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरत मंद बहुत से परिवारों को सस्ते राशन का लाभ नहीं मिल पाता। उनका यह भी सुझाव है कि राशन के गल्ले के दाम सबके लिए समान रखे जाएँ और प्रत्येक परिवार को महीने में 35 किलो सस्ता राशन दिया जाए।जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयती घोष ने कहा कि राशन व्यवस्था सार्वभौमिक होनी चाहिए, इसमें गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) या गरीबी की रेखा से नीचे (बीपीएल) का वर्गीकरण नहीं होना चाहिए। उनका मानना है कि कोई भी संपन्न व्यक्ति राशन की दुकान पर लाइन में खड़ा होने नहीं जाएगा, जरूरतमंद ही वहाँ पहुँचेगा।जयती ने कहा कि सबके लिए राशन के गल्ले का एक भाव होना चाहिए और जरूरतमंद को महीने में 35 किलो अनाज दिया जाना चाहिए। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) के पूर्व अर्थशास्त्री कमल नयन काबरा ने भी इसी स्वर में अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि हर जरूरत मंद के लिए सस्ते राशन की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें सस्ता राशन मिलना चाहिए।जनता की क्रयशक्ति बढ़ाने पर जोर देते हुये काबरा ने कहा कि जब सामान खरीदने की क्षमता ही नहीं होगी तो राशन में कितना भी सस्ता अनाज क्यों न उपलब्ध कराया जाए, जरूरतमंद तक नहीं पहुँच सकता।काबरा ने अनाज की सरकारी खरीद व्यवस्था के बारे में कहा कि सरकार को माँग के अनुरूप ही अनाज की खरीदारी करनी चाहिए। जरूरत से 10 से 15 प्रतिशत अधिक अनाज का ही भंडारण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन कर्मचारियों को महँगाई भत्ता मिलता है उन्हें सस्ता राशन नहीं दिया जाना चाहिए। (Webdunia)

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