24 नवंबर 2008
आमदनी का अच्छा जरीया है गन्ने का सिरका
सिरका ऐसा प्रिजर्वेटर है जिसका उपयोग खान-पान की वस्तुएं बनाने में सदियों से होता रहा है। लोगों की बदलती जीवनशैली में सिरका की अहमियत और बढ़ गई है। लेकिन इसमें मुश्किल यह है कि बाजार में सिंथेटिक सिरका ही ज्यादा मिलता है। सिंथेटिक सिरका खाद्य वस्तुओं के प्रिजर्वेशन का काम तो करते हैं लेकिन इसका साइड इफैक्ट भी होता है। आश्चर्य है कि इन सबके बावजूद फलों से बना सिरका बाजार में ज्यादा जगह नहीं बना पा रहे हैं। लुधियाना की पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों को फलों से बना सिरका बनाने की विधि बनाकर उन्हें आय का एक और जरिया मुहैया कराने की पहल की है। उम्मीद की जा सकती है कि इससे उपभोक्ताओं को फलों से बना सेहतमंद सिरका औसत मूल्य पर ही मिल जाएगा।पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों को इसकी ट्रेनिंग देकर आमदनी हासिल करने के लिए प्रेरित की पहल की है। फलों के रस से बनने वाला सिरका किसान 22 दिन में तैयार कर बाजार में बेचकर अच्छी आमदनी हासिल कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के मुताबिक यह सिरका सिंथेटिक सिरके के मुकाबले कहीं ज्यादा सेहतमंद है। गन्ने के रस से सिरका बनाया जा सकता है जिसकी लागत तकरीबन 25 रुपये प्रति बोतल आती है जबकि किसान इसे आसानी से 35 से 40 रुपये में स्थानीय बाजार में दुकानदारों को बेच सकते हैं।यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख एवं बेसिक साइंस रिसर्च कोऑर्डिनेटर पी. के. खन्ना के मुताबिक पंजाब स्टेट काउंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी की पहल पर बड़ी संख्या में किसानों को सिरका बनाने की ट्रेनिंग यूनिवर्सिटी के जरिये दिलाई है। इसका फायदा यह रहेगा कि जहां उपभोक्ताओं के लिए स्वास्थ्यवर्धक सिरका बाजार में सुलभ होगा वहीं किसान इससे अच्छा खासा पैसा भी कमा सकेंगे। अभी उन्हें बाजार में सिंथेटिक सिरकी ही मिल पाता है लेकिन अब लोग इसके साइड इफैक्ट के प्रति जागरुक हो रहे हैं। खन्ना के मुताबिक गन्ने के अलावा सेब व अंगूर से भी यह सिरका तैयार किया जा सकता है।दस लीटर सिरका तैयार करने के लिए 10 लीटर गन्ने का रस (या जूस) उबाल लिया जाता है। सिरका बनाने के लिए इसमें खमीरण व एक अन्य तत्व (खास किस्म का बैक्टारिया) मिलाने की जरूरत होती है। ये दोनों वस्तुएं यूनीवर्सिटी खुद ही सुलभ करा रही है। यह खमीरण भी गुड़ से तैयार होता है इसमें कोई केमिकल नहीं रहता है। खमीरण की एक बोतल (750 मिलीलीटर) और दूसरे तत्व का मूल्य 150 रुपये यूनीवर्सिटी लेती है। खमीरण डालकर रस को खमीर बनने दिया जाता है। ठंडा होने के लिए रस में एक दिन बाद खमीर मिलाया जाता है। इसकी मात्रा व तरीका यूनिवर्सिटी का स्टाफ खुद बताता है। इसके बाद इस जूस को तीन-चार दिन के लिए ऐसी जगह रख दिया जाता है जहां का तापमान 25 से 30 डिग्री के बीच हो। इसके बाद इसे छानकर साफ बर्तन में निकाल लिया जाता है और छठे दिन इसमें विशेष बैक्टीरिया वाले तत्व (तरल पदार्थ) थोड़ी मात्रा में डाला जाता है। साथ ही इसमें पुराने सिरका (पहले से तैयार ऐसे ही सिरका) की कुछ मात्रा भी मिला दी जाती है। इसके बाद इस प्रक्रिया को सात दिनों के लिए फिर चलने दिया जाता है। 14वें दिन सिरके के ऊपर एक झिल्ली बन जाती है। जिसे हटाकर ठंडी जगह पर रख दिया जाता है। 22वें दिन सिरका तैयार हो जाता है। जिसे उपयोग में लाया जा सकता है। इसे साफ बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। डॉ. खन्ना के मुताबिक इस इस प्रक्रिया में 10 लीटर सिरका बनाने में करीब 250 रुपए का खर्च होता है। इसमें करीब 50 रुपए का गन्ने का रस, 150 रुपए की बोतल खमीरण की, 10 बोतल की कीमत क रीब 30 रुपए एवं रस उबालने के लिए ईंधन खर्च 20 रुपए पड़ता है। डॉ. खन्ना के मुताबिक सिरका बनाने की विधि यूनीवर्सिटी की एक टीम ने विकसित की है। जिसमें माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉ. जी.एस कोछड़, आरपी फुटेला व डॉ. केएल कालड़ा शामिल थे। बाजार में बिक रहे मौजूदा सिरके की बात की जाए तो वह सिंथेटिक होता है। जिसे काफी लोग सीधे ही एसिड को हलका कर तैयार कर रहे हैं। उससे सेहत को नुकसान पहुंच सकता है जबकि जूस से तैयार होने वाला सिरका पूरी तरह फायदेमंद है। इस सिरके का उपयोग भोजन की सुरक्षा, आचार बनाने के लिए, सब्जियों व सलाद में डालने के लिए किया जा सकता है। इसी वजह से ही पंजाब स्टेट काउंसिल फॉर साइंस एंड टैक्नोलॉजी किसानों को यूनीवर्सिटी से ट्रेनिंग दिलाने के लिए आगे भी पहल कर रही है। (Business Bhaskar)
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