नई दिल्ली November 14, 2008
साल 1998 में कई राज्यों की सरकारें इसलिए बदल गई थी कि प्याज की कीमत ने लोगों को खूब रुलाया था।
10 साल बाद यह संयोग एक बार फिर लोगों से मुखातिब है। लेकिन इस बार प्याज की बजाय इसके हमजोली टमाटर की बारी है। हालत है कि लोग इसकी लाली से आकर्षित होने की बजाय इसके लाल-पीले होते भाव से दूर भाग रहे हैं। ऐसे समय जब देश में चुनावी बयार बह रही हो तब टमाटर की कीमतें 150 फीसदी की बुलंदी को छू रही हैं।हाल यह है कि पिछले सालभर मेंउत्तर भारतीय राज्यों दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में टमाटर का थोक भाव 150 फीसदी तक बढ़ गए हैं। कृषि उत्पाद और विपणन समिति (एपीएमसी) के अधिकारियों के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर में दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में टमाटर की कीमत क्रमश: 941, 740 और 729 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो इस साल नवंबर में बढ़कर क्रमश: 1666, 1786 और 1939 रुपये हो गई है।राजस्थान, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी यही हाल है। यहां भी टमाटर की कीमत पिछले साल अक्टूबर में 643, 782 और 916 रुपये प्रति क्विंटल थी, जो इस साल बढ़कर 1783, 1677 और 1871 रुपये हो गई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टमाटर किसानों को विभिन्न कृषि उत्पाद बेचने वाले हेमंत मौर्य बताते है कि उर्वरकों, कीटनाशकों, मजदूरी और मालभाडे में 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी से टमाटर की कीमतों में सीधा उछाल हुआ है। कृषि मंत्रालय के किसान सहायता विभाग में अधिकारी रवि चौधरी बिजनेस स्टैंडर्ड से कहते हैं कि इस साल दिल्ली में टमाटर की आवक पिछले साल के 9,300 टन से बढ़कर 10,500 टन हो चुकी है। इसके बावजूद, टमाटर की आपूर्ति मांग पूरी कर पाने में असमर्थ है।लागत में हुई बढ़ोतरी ने भी टमाटर की कीमतों में वृद्धि की है। यहीं नही अन्य राज्यों से आने वाले टमाटर के सड़ने से भी टमाटर की आपूर्ति कम रही है। इसकी आवक मांग से करीब 25-30 फीसदी तक कम रही है। कीमतों के बढ़ने की यह भी एक वजह है। (BS Hindi)
17 नवंबर 2008
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