मुंबई November 14, 2008
ऐसे समय जब डिफॉल्टर आयातकों की संख्या लगातार बढ़ने से देश की साख दांव पर लगी हो तब घरेलू खाद्य तेल संवर्द्धक परिस्थिति का जमकर लाभ उठा रहे हैं।
गौरतलब हो कि इंडोनेशिया ने करीब 30 भारतीय कंपनियों को काली सूची में डाल दिया है। इस चलते भारत और इंडोनेशिया के बीच का खाद्य तेल कारोबार प्रभावित होने की उम्मीद है।हाल में इंडोनेशिया का शीर्ष औद्योगिक संगठन जैसे जीएपीकेआई और इंडोनेशियाई पाम तेल संगठन ने 30 भारतीय कंपनियों को काली सूची में डाल दिया। इन संगठन ने सरकारी फर्मों जैसे एमएमटीसी, पीईसी और एसटीसी को सुझाव दिया था कि इन कंपनियों को खाद्य तेलों के आयात के लिए प्रोत्साहित न करें। जीएपीकेआई के पत्र के जवाब में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएयशन (एसईए) ने तीन सदस्यों को इस मसले के समाधान के लिए नियुक्त किया है। एसईए के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बताया कि चूंकि मसला दो कारोबारी पक्षों के बीच है, इसलिए एसईए को इन दोनों पक्षों के विरुद्ध किसी तरह की कानूनी कदम लेने का कोई हक नहीं बनता। मेहता ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह मसला सुलझ जाएगा। हालांकि, इस पूरे मसले पर वाणिज्य मंत्रालय की राय आनी बाकी है। मेहता के मुताबिक, काली सूची में डाली गई इन कंपनियों में कम से कम 25 ऐसी हैं जिनका कि नाम शायद ही सुना गया हो। इसका मतलब कि ये कंपनियां काफी छोटी हैं। ये कंपनियां न तो हमारे संगठन के सदस्य हैं और न ही इनके साथ हमारा कोई प्रत्यक्ष संबंध है। ऐसे में इन पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। उनकी राय में इंडोनेशियाई एजेंसियों ने इस पूरे मसले को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है। किसी कंपनी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि इन कंपनियों की कुल जवाबदेही 10 करोड़ रुपये की है, जबकि इनकी कुल संपत्ति इसकी आधी है। ऐसे में इनके दिवालिया होने की संभावना बढ़ जाती है। खबर है कि कच्चे खाद्य तेल की कीमतों में खासी कमी होने से आत्मनिर्भर ऑपरेटर बाजार से बाहर हो गए हैं। इस बीच बेहतर प्रदर्शन करने वाली कंपनियां कच्चे खाद्य तेल का लगातार आयात कर रही है। खबर है कि पिछले साल भर में खाद्य तेल का प्रोसेसिंग मार्जिन 2 से बढ़कर 4 फीसदी हो गया है।कारगिल इंडिया लिमिटेड के सीईओ सीरज चौधरी कहते हैं कि इंडोनेशिया के साथ खाद्य तेल कारोबार में पैदा हुए इस खटास से देश में पाम तेल की होने वाली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। गौरतलब है कि इंडोनेशिया देश की कुल पाम तेल जरूरत के 65 फीसदी की आपूर्ति करता है। उनका कहना है कि आयात के मोर्चे पर तो केवल कुछ दर्जन कंपनियां ही डिफॉल्टर हुई हैं लेकिन घरेलू मोर्चे पर करीब सैकड़ों कंपनियों के डिफॉल्टर होने का खतरा पैदा हो गया है। अदानी इंटरप्राइजेज के कृषि मामलों के प्रमुख अतुल चतुर्वेदी कहते हैं कि कारोबारी मोर्चे पर इंडोनेशिया की तुलना में भारत का पलड़ा ज्यादा भारी पड़ेगा।इसकी वजह साफ है, इंडोनेशिया जहां खाद्य तेलों का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहीं भारत सबसे बड़ा आयातक। इंडोनेशिया को कहीं तो अपना माल भेजना ही है जबकि भारत उनके उत्पादों का सबसे प्रमुख आयातक है। देश की सबसे बड़ी सोया तेल उत्पादक कंपनी रुचि सोया इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक दिनेश सहारा मानते हैं कि मौजूदा अस्थिर परिस्थितियों में वे कंपनियां टिकेंगी जिनका ट्रैक रिकॉर्ड बेहतर हो और खतरे उठाने की क्षमता भी जिनकी अधिक हो। देश में इस समय करीब 1.2 करोड़ टन खाद्य तेल की खपत है। इसमें से 45 फीसदी आयात के जरिए पूरी होती है। ज्यादातर आयात इंडोनेशिया, अजर्टीना और मलयेशिया से होते हैं। वैसे इस साल अब तक कच्चे पाम तेल की कीमतें करीब एक तिहाई लुढ़क गई है।आंकड़ें गवाह हैं कि देश में करीब 15 हजार तेल मिलें, 600 पेराई संयंत्र, 230 वनस्पति इकाइयां और 500 से ज्यादा रिफाइनरियां हैं। इनमें 10 लाख से ज्यादा लोग कार्यरत हैं। दुनिया में तिलहन के बड़ उत्पादकों में भारत का नाम शुमार होता है। मूंगफली उत्पादन में 27 फीसदी, तिल उत्पादन में 23 फीसदी और रेपसीड में 16 फीसदी हिस्सेदारी भारत की है। (BS Hindi)
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