November 24, 2008
अक्टूबर में शुरू हुए नए सीजन में चीनी का घरेलू उत्पादन घटने से सरकार के माथे पर बल पड़ता दिख रहा है।
पिछले दो सालों में चीनी के जबरदस्त उत्पादन के बाद इस साल चीनी का उत्पादन औंधे मुंह गिरा है। उत्पादन घटने की वजहों में रकबे में कमी और पेराई शुरू होने में हुई देरी है। कई वजहें हैं जिसके चलते सरकार इसके आयात को लेकर परेशान है। गौरतलब है कि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का हिस्सा अच्छा-खासा है। जानकारों के मुताबिक, सूचकांक में चीनी की हिस्सेदारी जरूरत से कहीं ज्यादा है। ऐसे में होता यह है कि जैसे ही चीनी महंगी होती है, महंगाई की सुई उपभोक्ताओं समेत सरकार को भी चुभने लगती है। उसे डर है कि चीनी महंगी हुई तो मौजूदा वित्त वर्ष के अंतिम महीनों में महंगाई की तपिश में फिर वृद्धि हो जाएगी। सरकार इन वजहों से चीनी की कीमत को लेकर काफी सतर्क है। हालांकि, महंगाई के बोझ से उपभोक्ताओं को बचाने के लिए एक उपाय है।वह यह कि कच्ची चीनी का आयात किया जाए। तमाम चीनी उत्पादक राज्यों में यह मानकर चला जा रहा है कि इस बार चीनी के उत्पादन में करीब 25 फीसदी की कमी होगी। मौसम की तमाम अनिश्चितताओं जैसे मानसून का देर से आना, जोरदार बारिश, बाढ़ और मानसून की देर से वापसी आदि के चलते गन्ने की फसल और उत्पादकता बुरी तरह से प्रभावित हुई। देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश में इस बार गन्ने की फसल काफी बर्बाद हुई। इस बार तो गन्ने की पेराई भी देर से शुरू हुई। इसके चलते आशंका है कि गन्ने की उत्पादकता इस बार खासी कम रहेगी। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल तबाह करने में जहां आवश्यकता से अधिक बारिश का योगदान रहा है। वहीं महाराष्ट्र में इसके पीछे सूखे की भूमिका रही है। महाराष्ट्र के हालात काफी खराब हैं। यहां गन्ने की फसल का एक हिस्सा तो चारे के रूप में इस्तेमाल हो रहा है।भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक, चीनी उत्पादन में हुई गिरावट के असर को दूर करने की चीनी उद्योग की क्षमता में जबरदस्त कमी हुई है। वह इसलिए कि जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी के भाव तेजी से नीचे की ओर गए हैं। जैन ने बताया कि उत्तर प्रदेश के करीब सभी मिलों को चीनी उत्पादन में काफी नुकसान हुआ है। कई मिलों को तो चीनी उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई अपने सहयोगी इकाइयों जैसे रासायनिक और ऊर्जा उत्पादक संयंत्रों के जरिए करनी पड़ रही है। नुकसान इतना तगड़ा है कि इसके बावजूद इसकी भरपाई नहीं हो पा रही है।जनवरी 2007 से जून 2008 के बीच चीनी की कीमतों में कमी की मुख्य वजह सरकार की ओर से निर्यात पर लगाई गई पाबंदी है। गौरतलब है कि चीनी की कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने जून 2006 में निर्यात पर रोक लगा दी थी। तब वैश्विक बाजार में चीनी की कीमत 480 डॉलर प्रति टन हुआ करती थी। इस्मा के पूर्व अध्यक्ष ओम धानुका कहते हैं कि इस दौरान चीनी के बाजार भाव उत्पादन लागत से भी कम थे। ऐसे में कई चीनी मिलें गन्ने का अपना बकाया चुका पाने में असमर्थ रहीं। ऐसे मुश्किल हालात को देखते हुए किसानों ने तब गन्ने की बजाय गेहूं जैसे खाद्यान्न का रुख करना ज्यादा बेहतर समझा। सभी सहमत हैं कि कई नकारात्मक चीजों के चलते मौजूदा सीजन में चीनी उत्पादन में जोरदार कमी होगी। मालूम हो कि पिछले सीजन में चीनी का उत्पादन करीब 2.63 करोड़ टन रहा था। हालांकि उत्पादन में कितनी कमी होगी इसके लेकर सरकार और चीनी उद्योग एकमत नहीं है। सरकार का कहना है कि 2008-09 सीजन में चीनी का उत्पादन 43 लाख टन घटकर 2.2 करोड़ टन तक सिमट जाएगा। चीनी उद्योग का अनमाुन है कि इस सीजन में उत्पादन 1.8 से 1.95 करोड़ टन के बीच रहेगा। धानुका कहते हैं कि पहले देखा गया है कि सरकार के आंकड़े बिल्कुल सटीक नहीं होते। बहरहाल मौजूदा सीजन के शुरू होते वक्त भंडारों में करीब 80 लाख टन चीनी जमा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चीने के दाम में फिलहाल कोई वृद्धि नहीं होगी। धानुका के मुताबिक, भंडारों में इस वक्त इतनी चीनी जमा है कि देर से पेराई शुरू होने का असर कम से कम कीमतों पर नहीं पड़ने की उम्मीद नहीं है। वे कहते हैं कि पिछले साल भर में चीनी की जितनी खपत हुई, यदि उस दर से खपत हुई तो मौजूदा भंडार अगले 4 महीने से ज्यादा समय तक घरेलू जरूरतों की पूर्ति करने में सक्षम है। वैसे अनुमान है कि मंदी के बावजूद मौजूदा सीजन में चीनी की मांग में कम से कम 10 लाख टन की बढ़ोतरी होगी। इस बात के पूरे आसार हैं कि निकट भविष्य में चीनी की कीमतों में वृद्धि होगी। इस पर नियंत्रण तभी संभव है जब इस समय कच्ची चीनी का पर्याप्त आयात कर लिया जाए। संवेदनशील कृषि जिंस होने के नाते सरकार चीनी पर पैनी नजर रखती है और रखनी भी चाहिए। यदि सरकार चाहती है कि अगले सीजन के शुरू में चीनी का भंडार ठीक-ठाक रहे तो सिवाए आयात के कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ऐसे में कच्ची चीनी की आयातित मात्रा को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई है। अभी चीनी उद्योग को राहत देते हुए सरकार ने वास्तविक उपभोक्ताओं को अग्रिम प्रमाणन योजना के तहत कच्ची चीनी के शुल्करहित आयात की अनुमति दे दी है। इसका मतलब यह कि केवल चीनी मिल ही इस तरह का आयात कर सकेंगे। ऐसे हालात में इन मिलों को महज 24 महीने के अंदर आयातित कच्ची चीनी जितनी परिष्कृत चीनी का निर्यात करना होगा। हां विशेष परिस्थिति में इन मिलों को समय-सीमा में छह-छह महीने के दो विस्तार दिया जा सकता है। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें