कोलकाता November 18, 2008
मंदी की भनक से पहले ही देश की सीमेंट कंपनियों ने अपनी क्षमता विस्तार की जो योजना बनाई थी।
यदि अगले दो साल में उसका 80 फीसदी भी पूरा कर लिया गया तो सीमेंट के भाव और कंपनियों के मुनाफे दोनों खतरे में पड़ जाएंगे। ऐसा इसलिए कि सीमेंट की मांग फिलहाल 8 फीसदी सालाना की दर से ही बढ़ रही है।इस मुद्दे पर कई कंपनियों ने कुछ भी बताने से मना कर दिया। हालांकि, अधिकांश कंपनियों ने स्वीकार किया कि कई तरह के करों के लगने से मुनाफे में कमी तो बाद में होगी। जबकि इससे पहले ही सीमेंट कंपनियों का मुनाफा लागत बढ़ने की वजह से घट गया है।बिनानी सीमेंट्स के प्रबंध निदेशक विनोद जुनेजा ने बताया कि फिलहाल ईबीआईटीडीए (कई तरह के करों का समग्र पैकेज) मार्जिन 32 से 33 फीसदी के बीच है। यदि 50 किलोग्राम की बोरी की औसत कीमत 225 रुपये रही तो यह मार्जिन घटकर 20 से 25 फीसदी तक जा सकती है।वित्तीय वर्ष 2008 के खत्म होते-होते देश की कुल सीमेंट उत्पादन क्षमता करीब 17.57 करोड़ टन की है जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 86 लाख टन ज्यादा है। उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2009 के दौरान सीमेंट कंपनियों की उत्पादन क्षमता में 4.64 करोड़ टन का इजाफा हो जाएगा जबकि 2010 में इनकी उत्पादन क्षमता करीब 4 करोड़ टन बढ़ जाएगी।इतना तो छोड़िए यदि इन कंपनियों की उत्पादन क्षमता में प्रस्तावित 8.65 करोड़ टन के विस्तार का 80 फीसदी भी जुड़ गया तो अगले दो साल में उत्पादन में कुल 6.92 करोड़ टन का इजाफा हो जाएगा। इसके विपरीत, पिछले पांच सालों में देश में सीमेंट मांग की विकास दर करीब 8.8 फीसदी रही है। इस तरह मांग की तुलना में सीमेंट उत्पादन की क्षमता में वृद्धि काफी अधिक रही है। आर्थिक मंदी के चलते वित्तीय वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में सीमेंट की मांग पिछले साल की समान अवधि में 10.8 फीसदी की तुलना में घटकर महज 8.8 फीसदी रह गई है। जुनेजा ने बताया कि 60 से 65 फीसदी सीमेंट की खपत हाउसिंग सेक्टर में होती है जबकि मौजूदा मंदी ने सबसे ज्यादा इसी क्षेत्र को प्रभावित किया है। (BS Hindi)
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