नई दिल्ली November 17, 2008
देश के सबसे बड़े बाजार सदर बाजार की मंडी में भी मंदी का जबरदस्त असर है। पिछले छह महीनों के मुकाबले कारोबार में 50 फीसदी से अधिक की गिरावट हो चुकी है।
पड़ोसी देशों की निर्यात मांग लगभग समाप्त हो चुकी है। तो घरेलू मांग भी 60 फीसदी तक कम हो गयी है। कारोबारियों के लाखों रुपये उधार में डूब चुके हैं। उन्होंने अब उधार बेचना बंद कर दिया है। लिहाजा उन्हें अपना खर्चा निकालना भी मुश्किल हो रहा है। सदर बाजार के बाराटूटी चौक से कुतुब रोड की परिधि में लगभग 25 हजार दुकानें हैं। जहां घरेलू उपकरण से लेकर शृंगार तक का सामान मिलता हैं। छह माह पहले तक इस इलाके में रोजाना 500 करोड़ रुपये का कारोबार होता था। लेकिन अब यह 250 करोड़ रुपये का भी नहीं रह गया है। व्यापारियों ने बताया कि गत जून-जुलाई माह के दौरान महंगाई अपने चरम पर थी। कच्चे माल की कीमत णकाफी तेज थी। उन्होंने भी महंगे दाम देकर सामान की खरीदारी की। अब कच्चे माल की कीमत में 50-65 फीसदी तक की गिरावट हो चुकी है। सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी देवराज बवेजा कहते हैं, 'ऐसे में वे 20 रुपये में खरीदे गए सामान की बिक्री 10 रुपये में कैसे कर सकते हैं। नया माल वे तभी खरीदेंगे जब पुराने की खपत हो जाएगी। दूसरी तरफ ग्राहक कहता है कि सामान की कीमत कम हो गयी है।' व्यापारियों के मुताबिक लोगों की क्रय शक्ति भी कम हो गयी है। छोटे-मोटे व्यापारी पहले जहां 10 आइटम की खरीदारी करते थे वे अब 3-4 आइटम ही खरीद रहे हैं।सदर बाजार से भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान जैसे देशों में रोजाना लगभग 80-100 करोड़ रुपये का सामान भेजा जाता था जो इन दिनों 20-25 करोड़ रुपये पर सिमट गया है। मंदी के कारण सदर बाजार के कारोबारियों को लाखों रुपये की चपत भी लगी है। सदर बाजार ट्रेडर्स एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य वृजमोहन विग कहते हैं, 'छह-आठ माह पहले तक कारोबारी इंफाल तक के व्यापारी को सामान उधार दे देते थे। लेकिन व्यापार में हुई गिरावट के कारण वे व्यापारी अब पैसे नहीं लौटा रहे हैं।' वे कहते हैं कि अब सिर्फ नगदी से ही कारोबार हो रहा है। इस कारण खरीदार काफी कम मात्रा में खरीदारी कर रहे हैं। नगद खरीदारी करने के कारण बाहर के व्यापारी दस जगहों पर जा कर मोलभाव कर सामान ले रहे हैं जिससे उनके पुराने ग्राहक भी टूट रहे हैं। पिछले 40 सालों से सदर बाजार में कारोबार कर रहे विग याद करते हैं कि ऐसी ही मंदी 1973 में आयी थी। उस समय भी एकदम से कच्चे माल की कीमत कम हो गयी थी और कारोबार बैठ गया था। (BS Hindi)
18 नवंबर 2008
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