नई दिल्ली November 24, 2008
बासमती चावल की परिभाषा बदलने की कोशिशों के चलते पाकिस्तान के साथ भारत के रिश्ते पहले से तनावपूर्ण थे।
लेकिन हाल ही में पूसा-1121 को बासमती चावल की सूची में शामिल कर लेने से दोनों देशों के कटु संबंधों में और कड़वाहट आ गई है। हालांकि दोनों देश इस मुद्दे को सुलझाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं।मसले को सुलझाने के लिए इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हुई बैठक में दोनों देशों के मतभेद खुलकर सामने आ गए थे। हालांकि उद्योग सूत्रों का कहना है कि अगले साल फरवरी में ये दोनों देश इस कड़वाहट को दूर करने के लिए बातचीत की मेज पर मिल सकते हैं। संभावना जताई जा रही है कि दोनों देश भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रणाली के तहत बासमती चावल की संयुक्त परिभाषा तय कर सकते हैं और इसका पंजीकरण करा सकते हैं। मालूम हो कि कोई भी जिंस या उत्पाद यदि जीआई प्रणाली के तहत पंजीकृत हो जाता है तो इसकी मार्केटिंग में काफी सहूलियत मिलती है।ऐसा इसलिए कि पंजीकरण के बाद इन उत्पादों का कहीं और उत्पादन नहीं किया जा सकता है। इनका उत्पादन वहीं हो सकता है जहां के लिए इनका पंजीकरण किया गया है। इस बातचीत में शामिल सूत्र का कहना है कि दोनों देशों के वैज्ञानिक जनवरी या फरवरी में नई दिल्ली में मिलेंगे और मतभेद की वजहों को दूर करने की कोशिश करेंगे। मजेदार बात है कि पूसा-1121 की खेती गंगा के मैदानी इलाकों से बाहर हो रही है। कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैसे इस समय उत्तर प्रदेश में भी इसकी खेती खूब हो रही है। कर्नाटक में जहां 1,000 एकड में तो आंध्र प्रदेश में 500 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। पाकिस्तान को भय है कि यदि बासमती चावल की परिभाषा में परिवर्तन कर लेती है तो भारत इसका फायदा उठा ले जाएगा। मालूम हो कि केवल भारत और पाकिस्तान में ही बासमती पैदा किया जाता है। बता दें कि 29 अक्टूबर को पूसा-1121 को बासमती की श्रेणी में शामिल किया गया था। (BS Hindi)
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