10 नवंबर 2008
मेटल चमकाएगी स्टरलाइट की सेहत
नई दिल्ली : तमाम कमोडिटी की कीमतों ने उल्टी राह पकड़ ली है जिसका असर इनका उत्पादन करने वाली कंपनियों के शेयरों के भाव पर दिख रहा है। वैश्विक वित्तीय संकट से इन कंपनियों की हालत और खराब हो गई है, क्योंकि घबराए निवेशक सुरक्षित ठिकानों की ओट ले चुके हैं। धातु उत्पादकों की आमदनी बहुत हद तक आर्थिक चक्र से जुड़ी होती है लिहाजा अधिकतर धातु कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट देखी गई है। अधिकतर मामलों में शेयर की कीमतों में कमी और कमोडिटी उत्पादकों की आमदनी में अनुमानित गिरावट (छोटी से मध्यम अवधि में) में कोई तुलनात्मक संबंध नहीं दिख रहा है। दूसरी ओर स्टरलाइट इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों की बाजार पूंजी इतनी तेजी से कम हुई है कि मूल्यांकन के लिहाज से यह शेयर आकर्षक बन गया है। लंबे समय के लिए निवेश करने वाले इस शेयर को मौजूदा भाव पर खरीद कर फायदा उठा सकते हैं। कारोबार: स्टरलाइट इंडस्ट्रीज मुख्यत: अलौह धातुओं, खासकर तांबा, एल्युमीनियम, जस्ता और सीसा का उत्पादन करती हैं। इसके कारोबार में तांबा से जुड़े व्यवसाय का हिस्सा 50 फीसदी है, लेकिन लाभ में इसकी हिस्सेदारी महज 10-15 फीसदी है। इसकी वजह यह है कि स्टरलाइट को तांबे में ज्यादातर ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग शुल्क ही मिलते हैं जो अपेक्षाकृत कम होते हैं। जस्ता सबसे लाभ वाला कारोबार है और कंपनी की आमदनी में इसका हिस्सा 30 फीसदी और कुल परिचालन लाभ में 60 फीसदी है। स्टरलाइट अपनी सूचीबद्ध सहयोगी कंपनी हिंदुस्तान जिंक के जरिए जस्ते का कारोबार करती है। एल्युमीनियम कारोबार में स्टरलाइट की उत्पादन क्षमता 4 लाख टन है। इसने इसे और बढ़ाने की योजना बनाई है। एल्युमीनियम और जिंक व्यवसायों में यह एकीकृत कंपनी है और दुनिया में बेहद कम लागत पर उत्पादन करने वाली कंपनियों में इसका शुमार है। उत्पादन पर औसत लागत के लिहाज से जिंक पर इसका खर्च 686 डॉलर प्रति टन (बगैर रॉयल्टी) और एल्युमीनियम पर 1,750 डॉलर प्रति टन है। कैलेंडर वर्ष 2009 तक स्टरलाइट जब अपने कारोबार के लिए माल की आपूर्ति से जुड़े सभी इंतजाम कर लेगी तो एल्युमीनियम की उत्पादन लागत और कम हो जाएगी। वित्तीय स्थिति: कंपनी की कुल बिक्री (सामूहिक आधार पर) पिछले तीन वर्षों में तीन गुनी से अधिक होकर 26,400 करोड़ रुपए हो चुकी है। शुद्ध लाभ इसी अवधि में सात गुना बढ़ा है। दिलचस्प है कि पिछले 15 वर्षों में इसे कभी भी घाटे का सामना नहीं करना पड़ा, यहां तक कि कमोडिटी में गिरावट के पिछले चक्र के दौरान भी। भारत में यह सबसे बड़ी जिंक उत्पादक है। इसका परिचालन प्रतिशत लाभ (ऑपरेटिंग मार्जिन) 55-60 फीसदी है। जिंक के मौजूदा भाव (करीब 1,200 डॉलर प्रति टन) पर भी, जो दुनिया भर में कई कंपनियों के लिए उत्पादन की मार्जिनल कॉस्ट से काफी कम है, स्टरलाइट परिचालन प्रतिशत लाभ को 40-45 फीसदी के दायरे में रखने में कामयाब हो सकती है। एल्युमीनियम कारोबार में कंपनी का परिचालन प्रतिशत लाभ 25 फीसदी है जो नाल्को और हिंडाल्को जैसी इसकी प्रतिद्वंद्वियों से थोड़ा ही कम है। इसकी वजह यह है कि इसके एल्युमीनियम कारोबार को माल की आपूर्ति तथा अन्य सहूलियतें देने की व्यवस्था पूरी तरह एकीकृत नहीं है और अपनी जरूरत की कुछ एल्युमिना की व्यवस्था इसे खुले बाजार से करनी पड़ती है। लगाई गई पूंजी पर इसका रिटर्न (आरओसीई) 25 फीसदी है। जिंक कारोबार में आरओसीई सबसे ज्यादा लगभग 90 फीसदी है। विस्तार योजनाएं: स्टरलाइट अपनी जिंक और एल्युमीनियम उत्पादन क्षमताएं बढ़ा रही है। कंपनी वित्त वर्ष 2010 तक जिंक उत्पादन क्षमता 10 लाख टन कर लेगी। इसी तरह छत्तीसगढ़ के कोरबा में एल्युमीनियम गलाने की क्षमता को भी 3.2 लाख टन तक बढ़ाया जाएगा जो मौजूदा क्षमता का लगभग दोगुना होगी। विस्तार के बाद उड़ीसा में झारसूगुडा और लांजीगढ़ में एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता में 12.5 लाख टन का इजाफा होगा। झारसूगुडा और लांजीगढ़ का कारोबार वेदांता एल्युमिना (वीएएल) के अंतर्गत है। वीएएल में स्टरलाइट की 29.5 फीसदी हिस्सेदारी है और उसे इसी अनुपात में फायदा होगा। इसकी मूल कंपनी वेदांता रिसोर्सेज ने हाल में उड़ीसा में बाक्साइट भंडार के खनन के लिए मंजूरी हासिल की है। इससे इसे एल्युमीनियम उत्पादन की लागत कम करने में मदद मिलेगी। मर्चेंट पावर बिजनेस से भी कारोबार की गति बढ़ेगी। 2,400 मेगावाट के विद्युत संयंत्र के 2009 के अंत तक उत्पादन शुरू करने की संभावना है। मूल्यांकन: स्टरलाइट की विभिन्न कामकाजी सहयोगी कंपनियों में हिस्सेदारी है और यह कुछ कारोबारी क्षेत्रों में अपने दम पर भी काम करती है, लिहाजा ईटीआईजी ने इसका मूल्यांकन सम ऑफ द पार्ट्स (एसओटीपी) और डिस्काउंटेड कैश फ्लो (डीसीएफ) प्रणालियों से किया। सूचीबद्ध कंपनी हिंदुस्तान जिंक में इसकी 64.9 फीसदी हिस्सेदारी है। अपने मौजूदा भाव पर इस शेयर का मूल्यांकन करीब 8,662 करोड़ रुपए है। स्टरलाइट ने विभिन्न लिक्विड म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश भी किया है जिसका मूल्य मार्च 2008 के अंत में 7,700 करोड़ रुपए था। इनमें से कई फंड योजनाओं (मुख्यत: डेट फंड) की नेट एसेट वैल्यू में पिछले छह महीनों में या तो कोई खास बदलाव नहीं आया है या बढ़ोतरी हुई है। समूचे पोर्टफोलियो पर 10 फीसदी डिस्काउंट लेने पर मौजूदा बाजार मूल्य 7,000 करोड़ रुपए है। स्टरलाइट के तांबा और एल्युमीनियम व्यवसायों के लिए ऑपरेटिंग कैश फ्लो की गणना में एबिट्डा को प्रॉक्सी के रूप में लिया गया है। सात वर्षों के लिए एबिट्डा में 5 फीसदी बढ़ोतरी के अनुमान और 25 फीसदी डिस्काउंटिंग फैक्टर के साथ स्टरलाइट की मौजूदा वैल्यू डीसीएफ प्रणाली से करीब 13,000 करोड़ रुपए है। अगर एसओटीपी और डीसीएफ प्रणालियों से मिली वैल्यू को जोड़ दिया जाए और 3,200 करोड़ रुपए के कर्ज को समायोजित किया जाए तो स्टरलाइट की बाजार पूंजी 25,575 करोड़ रुपए होती है जो इसकी 17,439 करोड़ रुपए की मौजूदा बाजार पूंजी से कहीं अधिक है। ऊर्जा कारोबार और जिंक तथा एल्युमीनियम व्यवसायों की विस्तार योजनाओं से होने वाले फायदे इसमें नहीं जोड़े गए हैं। लंबे समय के लिए निवेश करने वाले इस शेयर को अपने पोर्टफोलियो में शामिल कर फायदा उठा सकते हैं। (ET Hindi)
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