09 नवंबर 2008
दो माह बाद भी मक्का समर्थन मूल्य से नीचे
विश्व बाजार दूसरे अनाजाों के साथ मक्का के भाव में भारी कमी का खामियाजा भारतीय मक्का किसानों को भुगतना पड़ रहा है। इस साल खरीफ सीजन में मक्के के उत्पादन में कमी की आशंका के बावजूद खुले बाजार में इसके दाम ज्यादातर उत्पादक राज्यों में 840 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को छू नहीं पा रहे हैं। इसकी वजह सरकारों की लापरवाही ही मानी जा सकती है क्योंकि उत्पादक राज्यों में दो माह से फसल आने के बावजूद सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है। हालांकि निजी कंपनियों ने निचले मूल्य पर मक्का की खरीद शुरू कर दी है।मक्का के प्रमुख उत्पादन राज्य आंध्रप्रदेश सहित कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में इसके दाम एमएसपी के नीचे चल रहे हैं। आंध्रप्रदेश की निजामाबाद मंडी में मक्के के दाम 830 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र में दाम 810 रुपये, कर्नाटक में 825 रुपये प्रति क्विंटल हैं। दामों में सबसे ज्यादा कमी मध्यप्रदेश में आई है, जहां दाम 760 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक चल रहे हैं। निजामाबाद में मक्के के व्यापारी पूनम चंद गुप्ता के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्के के दामों में काफी गिरावट आ गई है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्के के दाम 185 डॉलर प्रति टन के स्तर पर हैं। जबकि भारतीय मक्का 195 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है। जिससे भारत से इसकी निर्यात मांग में कमी आई है। इसके अलावा मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो गई है। पूरे देश में इस समय एक लाख बोरी की आवक हो रही है। आवक के दबाव से भी कीमतों में नरमी बनी हुई है। मक्के के दामों में आई इस कमी को देखते हुए निजी कंपनियों ने मक्के की खरीद शुरू कर दी है। जिसमें कारगिल, अदानी, एडब्लूपी और नोबल ग्रेन प्रमुख हैं। पूनम चंद के अनुसार इस साल मक्के में नमी की मात्रा ज्यादा होने से भी उसे कम दाम मिल रहे है। मक्के में 12 फीसदी की नमी को स्वीकार किया जाता है। इसके बाद जितनी ज्यादा नमी बढ़ती है, उसकी कीमत उतनी कम होती जाती है। इस साल खरीफ सीजन में 130 लाख टन मक्के के उत्पादन का अनुमान है। जबकि पिछले साल खरीफ सीजन में 150 लाख टन मक्के का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar)
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