30 अक्तूबर 2010
अनाज भूखों को खाने दें चूहों को नहीं: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा है कि गोदामों में खाद्यान्न को सड़ाने, समुद्र में फेंकने या चूहों द्वारा खाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से पूछा है कि वह देश के भूखे और बीपीएल परिवारों को अतिरिक्त खाद्यान्न क्यों नहीं दे देती। जस्टिस दलवीर भंडारी तथा दीपक वर्मा की बेंच ने कहा, ‘नौ वर्ष पहले कोर्ट ने आदेश पारित किया था। इसमें कहा गया था कि खासकर भारतीय खाद्यान्न निगम के गोदामों में उपलब्ध अतिरिक्त अनाज को बर्बाद नहीं किया जाए। उसे समुद्र में फेंककर या चूहों द्वारा खाकर बर्बाद नहीं होने देना चाहिए। जब तक योजनाओं को लागू नहीं किया जाता तब तक उनका कोई उपयोग नहीं है। जरूरी यह है कि खाद्यान्न भूखों तक पहुंचे।’ बेंच ने ये विचार अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल मोहन पराशरन द्वारा स्थगन चाहे जाने के बाद जारी आदेश में जताए। पराशरन का कहना था कि इस मुद्दे पर अटॉर्नी जनरल को जानकारी देनी थी। लेकिन वे चीफ जस्टिस की अदालत में व्यस्त होने के कारण आ नहीं पाए। बेंच ने कहा कि पर्याप्त खाद्यान्न रखना खाद्य सुरक्षा मुहैया करने और किसानों के हितों की रक्षा करने के लिहाज से जरूरी है। कुल मिलाकर हम यह कहना चाहते हैं कि एकत्रित किया गया अनाज समुचित रूप से संरक्षित रखा जाए। (Dainik Bhaskar)
सोने के प्रति दीवानगी
मुंबई October 28, 2010
भारतीय आभूषण विक्रेताओं को धनतेरस और दीवाली का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। इस मौके को भुनाने के लिए दुकानदार खास तैयारी करते हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से त्योहारी सीजन के ऐन मौके पर कीमतें बढऩे की वजह से दुकानदारी फीकी पड़ जाती है। आसमान छूती सोने-चांदी की कीमतों के बावजूद कारोबारी लिहाज से यह दीवाली पिछले साल की अपेक्षा बेहतर रहने वाली है क्योंकि ग्राहक अब मान गए हैं कि सोने- चांदी में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आने वाली है। इसके अलावा शादी विवाह का शुरू हो रहा सीजन भी बाजार में मांग पैदा कर रहा है।ग्राहकों ने धनतेरस पर खरीदारी के ऑर्डर देना शुरू कर दिया है। उमेद चंद्र तिलोकी चंद्र संस के कुमार जैन कहते हैं कि तेजी का एक लंबा दौर हो चुका है कीमतें गिरने की जगह बढ़ती जा रही है जिससे ग्राहकों को अब लगने लगा है कि इंतजार का कोई फायदा नहीं है क्योंकि जितना इंतजार किया जाएगा महंगाई उतनी बढ़ती जाएगी। (BS Hindi)
भारतीय आभूषण विक्रेताओं को धनतेरस और दीवाली का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। इस मौके को भुनाने के लिए दुकानदार खास तैयारी करते हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से त्योहारी सीजन के ऐन मौके पर कीमतें बढऩे की वजह से दुकानदारी फीकी पड़ जाती है। आसमान छूती सोने-चांदी की कीमतों के बावजूद कारोबारी लिहाज से यह दीवाली पिछले साल की अपेक्षा बेहतर रहने वाली है क्योंकि ग्राहक अब मान गए हैं कि सोने- चांदी में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आने वाली है। इसके अलावा शादी विवाह का शुरू हो रहा सीजन भी बाजार में मांग पैदा कर रहा है।ग्राहकों ने धनतेरस पर खरीदारी के ऑर्डर देना शुरू कर दिया है। उमेद चंद्र तिलोकी चंद्र संस के कुमार जैन कहते हैं कि तेजी का एक लंबा दौर हो चुका है कीमतें गिरने की जगह बढ़ती जा रही है जिससे ग्राहकों को अब लगने लगा है कि इंतजार का कोई फायदा नहीं है क्योंकि जितना इंतजार किया जाएगा महंगाई उतनी बढ़ती जाएगी। (BS Hindi)
सोना-चांदी न घर-मकान, खेत में उगे मुनाफे के धान
मुंबई October 29, 2010
बढिय़ा और दमदार रिटर्न हासिल करना हो तो रकम कहां लगानी चाहिए? सोने-चांदी में, शेयर में या जमीन जायदाद में? जवाब है, किसी में भी नहीं। रकम लगानी है तो मेंथा तेल में लगाइए। दरअसल दीवाली पर खत्म हो रहे संवत वर्ष 2066 में सबसे तगड़ा रिटर्न इसी कृषि जिंस ने दिया है। इस दौरान मेंथा तेल ने इस दौरान तकरीबन 120 फीसदी मुनाफा कमाया है, जो रिकॉर्ड है।दीवाली पर संवत वर्ष 2066 खत्म हो जाएगा और कारोबारी अपने बहीखाते से माथापच्ची कर रहे हैं, यह पता लगाने के लिए कि इस साल किस सौदे में सबसे ज्यादा फायदा हुआ और अगले संवत्सर में लक्ष्मी किस पर मेहरबान हो सकती हैं। लेकिन यह पहेली बूझने पर कारोबारियों को हैरानी हो रही है क्योंकि इस संवत्सर में मुनाफे के मामले में कृषि जिंस अव्वल रही हैं। सोने ने इस साल तकरीबन 24 फीसदी रिटर्न दिया है। इसी तरह चांदी ने 32 फीसदी, प्रॉपर्टी ने 30 फीसदी और शेयर बाजार ने 15 फीसदी रिटर्न दिया है। लेकिन मेंथा तेल के लिए आंकड़ा 120 फीसदी रहा है।पिछले साल हल्दी ने सबसे ज्यादा रिटर्न दिया था और इस साल मेंथा तेल मुनाफे का बादशाह रहा है। मेंथा तेल हाजिर और वायदा दोनों बाजार में मुनाफे के मामले में अव्वल रहा है। इसकी असल वजह मांग और आपूर्ति में भारी अंतर को माना जा रहा है। पिछले साल दीवाली के वक्त मेंथा तेल 520 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा था, लेकिन मांग बढऩे के साथ उसका भाव भी आसमान की ओर चल दिया। इस वक्त वायदा बाजार में इसका भाव 1,130 रुपये प्रति किलो और हाजिर बाजार में 1,190 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रहा है।ऐंजल ब्रोकिंग की जिंस विश्लेषक वेदिका कहती हैं, 'पिछली दीवाली पर मेंथा तेल का भाव ज्यादा नहीं था, लेकिन बाजार में कमी ने ही इसके भाव को हवा दी। दुनिया भर की जरूरत का 80 फीसदी मेंथा तेल भारत में ही होता है। उत्पादन कम हुआ तो विदेश से इसका आयात भी नहीं हो सकता। मेंथा की बुवाई इस बार कम हुई है और इस खबर से भी इसका भाव चढ़ गया है।' सरकारी अनुमान के अनुसार इस साल देश में 25,000 टन मेंथा का उत्पादन हुआ है, जो पिछले साल से 30 फीसदी कम है। हालांकि वेदिका कहती हैं कि मेंथा तेल के भाव में अब ज्यादा इजाफा नहीं होगा क्योंकि पहले ही यह चरम तक पहुंच चुका है।मेंथा तेल चाहे न चढ़े, लेकिन कारोबारियों को मालामाल करने वाली दूसरी जिंस कपास और अरंडी के तेल की कीमतें अभी और ऊपर जा सकती हैं। इस साल कपास का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 50 लाख गांठ अधिक होने की बात कही जा रही है। इसी वजह से सरकार ने 55 लाख गांठ कपास निर्यात की इजाजत भी दे दी है। शेयरखान कमोडिटी के विश्लेषक मेहुल अग्रवाल कहते हैं, 'कपास की कमी तो देश में नहीं है, लेकिन निर्यात की खबर को नकारात्मक शक्ल देकर सटोरिये भाव चढ़ा रहे हैं। सरकार इन पर नकेल कसती है तो भाव सही रहेंगे, लेकिन सरकार ने सुस्ती दिखाई तो कपास भी रिकॉर्डतोड़ भाव पर पहुंच जाएगा।'अग्रवाल के मुताबिक अरंडी के बीज के भाव कुछ दिन चढ़े रहेंगे क्योंकि दीवाली पर इनका खूब इस्तेमाल होता है। इनकी मांग भी इस वक्त ज्यादा है। इस साल कृषि जिंसों को देखें तो हल्दी ने 19.20 फीसदी, अरंडी बीज ने 25.67 फीसदी, रबर और जौ ने 24 फीसदी, सोया तेल ने 19 फीसदी, इलायची ने 14 फीसदी, काली मिर्च ने 8 फीसदी और जौ ने 3 फीसदी तक रिटर्न दिया है।दिलचस्प है कि चालू संवत्सर ने मेंथा किसानों को मालामाल कर दिया है, लेकिन आलू की खेती करने वाले बेहाल हो गए हैं। आलू किसानों को इस दरम्यान तकरीबन 58 फीसदी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह जबरदस्त पैदावार रही। (BS Hindi)
बढिय़ा और दमदार रिटर्न हासिल करना हो तो रकम कहां लगानी चाहिए? सोने-चांदी में, शेयर में या जमीन जायदाद में? जवाब है, किसी में भी नहीं। रकम लगानी है तो मेंथा तेल में लगाइए। दरअसल दीवाली पर खत्म हो रहे संवत वर्ष 2066 में सबसे तगड़ा रिटर्न इसी कृषि जिंस ने दिया है। इस दौरान मेंथा तेल ने इस दौरान तकरीबन 120 फीसदी मुनाफा कमाया है, जो रिकॉर्ड है।दीवाली पर संवत वर्ष 2066 खत्म हो जाएगा और कारोबारी अपने बहीखाते से माथापच्ची कर रहे हैं, यह पता लगाने के लिए कि इस साल किस सौदे में सबसे ज्यादा फायदा हुआ और अगले संवत्सर में लक्ष्मी किस पर मेहरबान हो सकती हैं। लेकिन यह पहेली बूझने पर कारोबारियों को हैरानी हो रही है क्योंकि इस संवत्सर में मुनाफे के मामले में कृषि जिंस अव्वल रही हैं। सोने ने इस साल तकरीबन 24 फीसदी रिटर्न दिया है। इसी तरह चांदी ने 32 फीसदी, प्रॉपर्टी ने 30 फीसदी और शेयर बाजार ने 15 फीसदी रिटर्न दिया है। लेकिन मेंथा तेल के लिए आंकड़ा 120 फीसदी रहा है।पिछले साल हल्दी ने सबसे ज्यादा रिटर्न दिया था और इस साल मेंथा तेल मुनाफे का बादशाह रहा है। मेंथा तेल हाजिर और वायदा दोनों बाजार में मुनाफे के मामले में अव्वल रहा है। इसकी असल वजह मांग और आपूर्ति में भारी अंतर को माना जा रहा है। पिछले साल दीवाली के वक्त मेंथा तेल 520 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा था, लेकिन मांग बढऩे के साथ उसका भाव भी आसमान की ओर चल दिया। इस वक्त वायदा बाजार में इसका भाव 1,130 रुपये प्रति किलो और हाजिर बाजार में 1,190 रुपये प्रति किलो के आसपास चल रहा है।ऐंजल ब्रोकिंग की जिंस विश्लेषक वेदिका कहती हैं, 'पिछली दीवाली पर मेंथा तेल का भाव ज्यादा नहीं था, लेकिन बाजार में कमी ने ही इसके भाव को हवा दी। दुनिया भर की जरूरत का 80 फीसदी मेंथा तेल भारत में ही होता है। उत्पादन कम हुआ तो विदेश से इसका आयात भी नहीं हो सकता। मेंथा की बुवाई इस बार कम हुई है और इस खबर से भी इसका भाव चढ़ गया है।' सरकारी अनुमान के अनुसार इस साल देश में 25,000 टन मेंथा का उत्पादन हुआ है, जो पिछले साल से 30 फीसदी कम है। हालांकि वेदिका कहती हैं कि मेंथा तेल के भाव में अब ज्यादा इजाफा नहीं होगा क्योंकि पहले ही यह चरम तक पहुंच चुका है।मेंथा तेल चाहे न चढ़े, लेकिन कारोबारियों को मालामाल करने वाली दूसरी जिंस कपास और अरंडी के तेल की कीमतें अभी और ऊपर जा सकती हैं। इस साल कपास का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 50 लाख गांठ अधिक होने की बात कही जा रही है। इसी वजह से सरकार ने 55 लाख गांठ कपास निर्यात की इजाजत भी दे दी है। शेयरखान कमोडिटी के विश्लेषक मेहुल अग्रवाल कहते हैं, 'कपास की कमी तो देश में नहीं है, लेकिन निर्यात की खबर को नकारात्मक शक्ल देकर सटोरिये भाव चढ़ा रहे हैं। सरकार इन पर नकेल कसती है तो भाव सही रहेंगे, लेकिन सरकार ने सुस्ती दिखाई तो कपास भी रिकॉर्डतोड़ भाव पर पहुंच जाएगा।'अग्रवाल के मुताबिक अरंडी के बीज के भाव कुछ दिन चढ़े रहेंगे क्योंकि दीवाली पर इनका खूब इस्तेमाल होता है। इनकी मांग भी इस वक्त ज्यादा है। इस साल कृषि जिंसों को देखें तो हल्दी ने 19.20 फीसदी, अरंडी बीज ने 25.67 फीसदी, रबर और जौ ने 24 फीसदी, सोया तेल ने 19 फीसदी, इलायची ने 14 फीसदी, काली मिर्च ने 8 फीसदी और जौ ने 3 फीसदी तक रिटर्न दिया है।दिलचस्प है कि चालू संवत्सर ने मेंथा किसानों को मालामाल कर दिया है, लेकिन आलू की खेती करने वाले बेहाल हो गए हैं। आलू किसानों को इस दरम्यान तकरीबन 58 फीसदी नुकसान उठाना पड़ा है। इसकी वजह जबरदस्त पैदावार रही। (BS Hindi)
मांग और आपूर्ति के आधार पर तय हों एथेनॉल के दाम
मुंबई October 29, 2010
रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने सिफारिश की है कि बाजार में मांग और आपूर्ति के आधार पर एथेनॉल की कीमतें तय होनी चाहिए और उसे नियंत्रण मुक्त किया जाना चाहिए। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने अपनी सिफारिश योजना आयोग के अंतर्गत गठित समिति को भेजी है, जिसे एथेनॉल की कीमतें तय करने के लिए गठित किया गया है। मंत्रालय का यह भी मानना है कि अगर पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाया जाना जरूरी है तो अगर तय दरों से ऊपर कीमतें जाती हैं तो उस एथेनॉल की बिक्री नुकसान पर किया जाना चाहिए। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि एथेनॉल आधारित अन्य उद्योगों पर भी आयात का असर पड़ेगा, जिससे कीमतें कम होंगी।तेल कंपनियों को गन्ना आधारित एथेनॉल उत्पादकों की ओर से 700 किलोलीटर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए रुचिपत्र मिला है, जबकि सालाना अनुमानित जरूरत 1000 किलोलीटर है। शेष एथेनॉल की मांग को सीधे एथेनॉल बनाने वाले उत्पादकों की ओर से पूरा किया जाएगा, जो इसका उत्पादन रसायन के रूप में करते हैं। इससे राज्यों के उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी होगी, जो राज्यवार अलग अलग होता है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा, 'बाजार में एथेनॉल की आपूर्ति कम होने से कीमतें तय होने पर एथेनॉल उत्पादकों को नुकसान होगा। खाद्य मंत्रालय जहां पेट्रोल में एथेनॉल मिलाए जाने के पक्ष में है, वहीं उसकी राय है कि एथेनॉल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय आधार पर तय हो, या कु छ आधार मूल्य तय हो जाए, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।' बहरहाल योजना आयोग की गठित समिति को अधिकार दिया गया है कि वह एथेनॉल की कीमतें तय करें। (BS Hindi)
रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने सिफारिश की है कि बाजार में मांग और आपूर्ति के आधार पर एथेनॉल की कीमतें तय होनी चाहिए और उसे नियंत्रण मुक्त किया जाना चाहिए। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय ने अपनी सिफारिश योजना आयोग के अंतर्गत गठित समिति को भेजी है, जिसे एथेनॉल की कीमतें तय करने के लिए गठित किया गया है। मंत्रालय का यह भी मानना है कि अगर पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाया जाना जरूरी है तो अगर तय दरों से ऊपर कीमतें जाती हैं तो उस एथेनॉल की बिक्री नुकसान पर किया जाना चाहिए। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि एथेनॉल आधारित अन्य उद्योगों पर भी आयात का असर पड़ेगा, जिससे कीमतें कम होंगी।तेल कंपनियों को गन्ना आधारित एथेनॉल उत्पादकों की ओर से 700 किलोलीटर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए रुचिपत्र मिला है, जबकि सालाना अनुमानित जरूरत 1000 किलोलीटर है। शेष एथेनॉल की मांग को सीधे एथेनॉल बनाने वाले उत्पादकों की ओर से पूरा किया जाएगा, जो इसका उत्पादन रसायन के रूप में करते हैं। इससे राज्यों के उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी होगी, जो राज्यवार अलग अलग होता है। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने कहा, 'बाजार में एथेनॉल की आपूर्ति कम होने से कीमतें तय होने पर एथेनॉल उत्पादकों को नुकसान होगा। खाद्य मंत्रालय जहां पेट्रोल में एथेनॉल मिलाए जाने के पक्ष में है, वहीं उसकी राय है कि एथेनॉल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय आधार पर तय हो, या कु छ आधार मूल्य तय हो जाए, जिससे किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके।' बहरहाल योजना आयोग की गठित समिति को अधिकार दिया गया है कि वह एथेनॉल की कीमतें तय करें। (BS Hindi)
चीनी वायदा पर चर्चा दीवाली बाद
नई दिल्ली October 29, 2010
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कहा कि वह दीपावाली के बाद चीनी का वायदा कारोबार शुरू करने के बारे में चीनी उद्योगों और जिंस एक्सचेंजों से बातचीत शुरू करेगा। एफएमसी के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने बताया, 'हम दीवाली के बाद उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और एक्सचेंज के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, उसके बाद ही इस सिलसिले में अंतिम फैसला किया जाएगा।' वायदा बाजार इस मामले में फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहा है। केंद्र सरकार ने मई-2009 में चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि बढ़ती घरेल कीमतों पर अंकुश लगाया जा सके। पिछले साल फरवरी महीने में चीनी की कीमतें मुंबई में 44 रुपये प्रति किलोग्राम के अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच गई थीं। शुरुआत में 6 महीने के लिए कारोबार रोका गया था और बाद में इसे 30 सितंबर 2010 तक बढ़ा दिया गया। अब एफएमसी वायदा कारोबार शुरू करने की अनुमति देने के लिए स्वतंत्र है। उद्योग जगत के सूत्रों ने कहा कि आयोग इस मामले में कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। हालांकि वायदा कारोबार और कीमतों में बढ़ोतरी के बीच कोई खास संबंध स्थापित नहीं किया जा सका, लेकिन तमाम पार्टियां कीमतों में बढ़ोतरी के लिए इसे जिम्मेदार मानती हैं। उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह थी कि मांग की तुलना में उत्पादन बहुत कम हुआ था। मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटने के लिए अग्रिम स्टॉक और आयात का सहारा लेना पड़ा था। बाद में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन ने उत्पादन अनुमान बढ़ाकर 190 लाख टन कर दिया, जो पहले 150 लाख टन था। इसे देखते हुए सरकार और उपभोक्ता- दोनों को राहत मिली है।बहरहाल, वायदा बाजार आयोग नजदीकी से इस सत्र में चीनी उद्योग की प्रगति पर नजर रख रहा है। उम्मीद की जा रही है कि नियामक वायदा कारोबार को शुरू करने की अनुमति दे देगा और इस तरह का पहला सौदा दिसंबर में डिलिवरी के लिए आ जाएगा। तब तक उत्पादन और उत्पादकता के सही आंकड़े आने शुरू हो जाएंगे, क्योकि शुरुआती किस्म के गन्ने की पेराई पर्याप्त मात्रा में हो जाएगी। बेहतरीन उत्पादकता और रकबा बढऩे के चलते इस साल गन्ने के उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी रहेगी। उद्योग जगत का अनुमान है कि 2010-11 में गन्ने का कुल उत्पादन 3000 टन रहेगा। 2009-10 में गन्ने का कुल उत्पादन 2740 टन रहा था। लगातार 2 साल तक चीनी उत्पादन में कमी के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस साल देश में खपत की तुलना में चीनी का उत्पादन ज्यादा होगा। (BS Hindi)
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कहा कि वह दीपावाली के बाद चीनी का वायदा कारोबार शुरू करने के बारे में चीनी उद्योगों और जिंस एक्सचेंजों से बातचीत शुरू करेगा। एफएमसी के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने बताया, 'हम दीवाली के बाद उद्योग जगत के प्रतिनिधियों और एक्सचेंज के अधिकारियों से मुलाकात करेंगे, उसके बाद ही इस सिलसिले में अंतिम फैसला किया जाएगा।' वायदा बाजार इस मामले में फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहा है। केंद्र सरकार ने मई-2009 में चीनी के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था, ताकि बढ़ती घरेल कीमतों पर अंकुश लगाया जा सके। पिछले साल फरवरी महीने में चीनी की कीमतें मुंबई में 44 रुपये प्रति किलोग्राम के अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच गई थीं। शुरुआत में 6 महीने के लिए कारोबार रोका गया था और बाद में इसे 30 सितंबर 2010 तक बढ़ा दिया गया। अब एफएमसी वायदा कारोबार शुरू करने की अनुमति देने के लिए स्वतंत्र है। उद्योग जगत के सूत्रों ने कहा कि आयोग इस मामले में कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है। हालांकि वायदा कारोबार और कीमतों में बढ़ोतरी के बीच कोई खास संबंध स्थापित नहीं किया जा सका, लेकिन तमाम पार्टियां कीमतों में बढ़ोतरी के लिए इसे जिम्मेदार मानती हैं। उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने तर्क दिया कि कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह थी कि मांग की तुलना में उत्पादन बहुत कम हुआ था। मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटने के लिए अग्रिम स्टॉक और आयात का सहारा लेना पड़ा था। बाद में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन ने उत्पादन अनुमान बढ़ाकर 190 लाख टन कर दिया, जो पहले 150 लाख टन था। इसे देखते हुए सरकार और उपभोक्ता- दोनों को राहत मिली है।बहरहाल, वायदा बाजार आयोग नजदीकी से इस सत्र में चीनी उद्योग की प्रगति पर नजर रख रहा है। उम्मीद की जा रही है कि नियामक वायदा कारोबार को शुरू करने की अनुमति दे देगा और इस तरह का पहला सौदा दिसंबर में डिलिवरी के लिए आ जाएगा। तब तक उत्पादन और उत्पादकता के सही आंकड़े आने शुरू हो जाएंगे, क्योकि शुरुआती किस्म के गन्ने की पेराई पर्याप्त मात्रा में हो जाएगी। बेहतरीन उत्पादकता और रकबा बढऩे के चलते इस साल गन्ने के उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी रहेगी। उद्योग जगत का अनुमान है कि 2010-11 में गन्ने का कुल उत्पादन 3000 टन रहेगा। 2009-10 में गन्ने का कुल उत्पादन 2740 टन रहा था। लगातार 2 साल तक चीनी उत्पादन में कमी के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस साल देश में खपत की तुलना में चीनी का उत्पादन ज्यादा होगा। (BS Hindi)
ग्वार: उपज बढ़ी, फिर भी बढ़े भाव
नई दिल्ली October 29, 2010
अधिक उत्पादन के बावजूद ग्वार के भाव में तेजी दर्ज की जा रही है। कारोबारियों का कहना है कि सटोरिये वायदा बाजार में इसके दाम बढ़ा रहे हैं, जिसका असर हाजिर भाव पर हो रहा है। भाव में तेजी की दूसरी वजह मांग बढऩा भी है, हालांकि देश में ग्वार का उत्पादन पहले लगाए गए अनुमान से कम रहने की आशंका है।पिछले 15 दिनों के दौरान राजस्थान की बीकानेर मंडी में ग्वार के भाव 150 रुपये बढ़कर 1950-2000 रुपये प्रति क्विंटल और हरियाणा की आदमपुर मंडी में इसके दाम 200 रुपये बढ़कर 2180-2200 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। इस दौरान नैशनल कमोडिटी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में ग्वार का नवंबर वायदा 2064 रुपये से बढ़कर 2160 रुपये के स्तर पर जा पहुंचा।ग्वार के मुख्य उत्पादक राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित 'श्रीनाथ गम ऐंड केमिकल्स' के अविनाश राठी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस साल देश में ग्वार की बंपर पैदावार हुई है और मंडियों में नई आवक भी हो रही है, बावजूद इसके मंडियों में ग्वार और ग्वारगम की कीमतें बढ़ रही है। राठी दाम बढऩे की वजह सट्टेबाजी को मानते हैं। सटोरियों द्वारा दाम बढ़ाने की बात से 'हरियाणा ग्वारगम ऐंड केमिकल्स' के निदेशक सुरेंद्र सिंघल भी इत्तेफाक रखते हैं। सिंघल ने बताया कि देश में इस बार 9-10 लाख टन ग्वार की पैदावार होने की संभावना है, जबकि वायदा बाजार एनसीडीएक्स में पैदावार से तीन गुने सौदे हो रहे हैं। इस वजह से ही ग्वार के भाव में तेजी आई है। नई आवक के बारे में आदमपुर मंडी के ग्वार कारोबारी दिनेश गर्ग ने कहा कि मंडी में 2500 बोरी (100 किलोग्राम) की आवक हो रही है। बीकानेर के ग्वार कारोबारी मिर्चूमल का कहना है कि फिलहाल मंडी में करीब 300 बोरी नई आवक हो रही है। शुरुआत में लगाए गए अनुमान के मुताबिक ग्वार की पैदावार कम रह सकती है। सिंघल इस बारे में कहते है कि शुरुआत में 12-12.5 लाख टन ग्वार की पैदावार होने का अनुमान लगाया था, लेकिन सितंबर में हुई भारी बारिश के कारण फसल को नुकसान हुआ है। इस वजह से पैदावार घटकर 10 लाख टन रह जाने की आशंका है। सबसे अधिक गिरावट हरियाणा में आएगी। इस राज्य में पैदावार 3.5-4 लाख टन के बजाय 2.5-3 लाख टन रह सकती है। बहरहाल, उत्पादन बढऩे की वजह से कारोबारियों को ग्वारगम का निर्यात बढऩे की उम्मीद है। अमेरिका, यूरोप, चीन और खाड़ी देशों को ग्वार गम का निर्यात किया जाता है। वर्ष 2010-11 के दौरान निर्यात बढ़कर 2.50 लाख टन से अधिक हो सकता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एपीडा) के अनुसार वर्ष 2009-10 में 2.16 लाख टन ग्वारगम का निर्यात किया गया था। (BS Hindi)
अधिक उत्पादन के बावजूद ग्वार के भाव में तेजी दर्ज की जा रही है। कारोबारियों का कहना है कि सटोरिये वायदा बाजार में इसके दाम बढ़ा रहे हैं, जिसका असर हाजिर भाव पर हो रहा है। भाव में तेजी की दूसरी वजह मांग बढऩा भी है, हालांकि देश में ग्वार का उत्पादन पहले लगाए गए अनुमान से कम रहने की आशंका है।पिछले 15 दिनों के दौरान राजस्थान की बीकानेर मंडी में ग्वार के भाव 150 रुपये बढ़कर 1950-2000 रुपये प्रति क्विंटल और हरियाणा की आदमपुर मंडी में इसके दाम 200 रुपये बढ़कर 2180-2200 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। इस दौरान नैशनल कमोडिटी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में ग्वार का नवंबर वायदा 2064 रुपये से बढ़कर 2160 रुपये के स्तर पर जा पहुंचा।ग्वार के मुख्य उत्पादक राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित 'श्रीनाथ गम ऐंड केमिकल्स' के अविनाश राठी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस साल देश में ग्वार की बंपर पैदावार हुई है और मंडियों में नई आवक भी हो रही है, बावजूद इसके मंडियों में ग्वार और ग्वारगम की कीमतें बढ़ रही है। राठी दाम बढऩे की वजह सट्टेबाजी को मानते हैं। सटोरियों द्वारा दाम बढ़ाने की बात से 'हरियाणा ग्वारगम ऐंड केमिकल्स' के निदेशक सुरेंद्र सिंघल भी इत्तेफाक रखते हैं। सिंघल ने बताया कि देश में इस बार 9-10 लाख टन ग्वार की पैदावार होने की संभावना है, जबकि वायदा बाजार एनसीडीएक्स में पैदावार से तीन गुने सौदे हो रहे हैं। इस वजह से ही ग्वार के भाव में तेजी आई है। नई आवक के बारे में आदमपुर मंडी के ग्वार कारोबारी दिनेश गर्ग ने कहा कि मंडी में 2500 बोरी (100 किलोग्राम) की आवक हो रही है। बीकानेर के ग्वार कारोबारी मिर्चूमल का कहना है कि फिलहाल मंडी में करीब 300 बोरी नई आवक हो रही है। शुरुआत में लगाए गए अनुमान के मुताबिक ग्वार की पैदावार कम रह सकती है। सिंघल इस बारे में कहते है कि शुरुआत में 12-12.5 लाख टन ग्वार की पैदावार होने का अनुमान लगाया था, लेकिन सितंबर में हुई भारी बारिश के कारण फसल को नुकसान हुआ है। इस वजह से पैदावार घटकर 10 लाख टन रह जाने की आशंका है। सबसे अधिक गिरावट हरियाणा में आएगी। इस राज्य में पैदावार 3.5-4 लाख टन के बजाय 2.5-3 लाख टन रह सकती है। बहरहाल, उत्पादन बढऩे की वजह से कारोबारियों को ग्वारगम का निर्यात बढऩे की उम्मीद है। अमेरिका, यूरोप, चीन और खाड़ी देशों को ग्वार गम का निर्यात किया जाता है। वर्ष 2010-11 के दौरान निर्यात बढ़कर 2.50 लाख टन से अधिक हो सकता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एपीडा) के अनुसार वर्ष 2009-10 में 2.16 लाख टन ग्वारगम का निर्यात किया गया था। (BS Hindi)
28 अक्तूबर 2010
4.77 लाख टन दलहन के आयात सौदे किए
चालू वित्त वर्ष में अभी तक सार्वजनिक कंपनियों पीईसी, एमएमटीसी, एसटीसी, नेफेड और एनसीसीएफ ने कुल 4.77 लाख टन दलहन के आयात सौदे किए हैं। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कुल आयात सौदों में से 3.06 लाख टन दालें भारतीय बदरगाहों पर पहुंच गई हैं। हालांकि घरेलू बाजार में दालों के मूल्य में गिरावट दर्ज की जा रही है। इस वजह से प्राइवेट आयातकों ने दलहन का आयात धीमा कर दिया है। लेकिन सार्वजनिक कंपनियां पहले ही तरह ही दालों का आयात कर रही हैं।उन्होंने बताया कि सार्वजनिक कंपनियों द्वारा कुल आयात की गई दालों में से 1.58 लाख टन दालें सार्वजनिक कंपनियां बाजार में निविदा के माध्यम से बेच चुकी हैं। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में आवंटन के लिए 2.96 लाख टन दालों के आयात सौदे किए जा चुके हैं। इसमें से 1.51 लाख टन दालें देश में आ चुकी हैं। पिछले साल पीडीएस में आवंटन के लिए कुल 2.50 लाख टन दालों का ही आयात किया था। उन्होंने बताया कि खरीफ फसलों में दालों की पैदावार में 39 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान है। कृषि मंत्रालय के 2010-11 के आरंभिक अनुमान के अनुसार दलहन उत्पादन 43 लाख टन से बढ़कर 60 लाख टन का होने का अनुमान है। उत्पादन अनुमान में बढ़ोतरी और उत्पादक मंडियों में आवक बढऩे से दालों की थोक कीमतों में गिरावट बननी शुरू हो गई है। फुटकर में भी जल्दी ही कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। मुंबई के दलहन आयातक भावेन भाई ने बताया कि घरेलू बाजार में दालों की कीमतों में गिरावट आने से प्राइवेट आयातकों ने आयात सौदे कम कर दिए हैं। इस समय केवल सार्वजनिक कंपनियां ही आयात कर रही हैं। म्यांमार की उड़द का भाव घटकर मुंबई में 1,000 डॉलर, लेमन अरहर का भाव घटकर 810 डॉलर, मूंग दाल का भाव घटकर 945 डॉलर और मूंग का भाव घटकर 1,080 डॉलर प्रति टन रह गया है। अकोला के दलहन व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में उड़द और मूंग की आवक बढ़ गई है। दिसंबर में नई अरहर की आवक भी शुरू हो जाएगी। इसीलिए थोक कीमतों में गिरावट बनी हुई है। उत्पादक मंडियों में उड़द का भाव घटकर 3,000 रुपये मूंग का भाव 3,200 से 3,400 रुपये, अरहर का भाव घटकर 3,200 से 3,450 रुपये और मसूर का भाव 3,200 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। बात पते कीउत्पादक मंडियों में उड़द और मूंग की आवक बढ़ गई है। दिसंबर में नई अरहर की आवक भी शुरू हो जाएगी। इसीलिए थोक कीमतों में गिरावट बनी हुई है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
भंडारण प्राधिकरण ने बढ़ाई उम्मीद
मुंबई October 27, 2010
भंडारण (विकास एवं विनियमन) अधिनियम के तहत एक भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) के गठन को प्रभावी तरीके से लागू किए जाने से भारत के कृषि जिंस क्षेत्र के समग्र विकास की उम्मीद है। सबसे महत्वपूर्ण है कि यह दूर दराज के इलाकों में गांवों से जुड़े किसानों को उनके उत्पादों की बिक्री की चिंता दूर करेगा। फसल तैयार होने पर किसानों की सबसे बड़ी चिंता उचित दाम पर उस जिंस की बिक्री की होती है।इस समय देश के दूर दराज के इलाकों के किसानों को सरकारी सहायता का फायदा नहीं मिल पाता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदाम न होने के चलते इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भी फायदा नहीं मिलता है। ज्यादातर गोदाम इस समय जिला केंद्रों पर हैं, जहां दूर के इलाकों के किसान अपना माल लेकर नहीं पहुंच पाते हैं। इससे बेहतर समझकर वे स्थानीय आढ़तियों या महाजनों को अपना उत्पाद 40-45 प्रतिशत कम दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं। लेकिन अगर डब्ल्यूडीआरए को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो निश्चित रूप से बिक्री का तनाव दूर हो जाएगा। फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज प्रवर्तित नैशनल बल्क हैंडलिंग कार्पोरेशन (एनबीएचसी) के प्रबंध निदेशक अनिल चौधरी ने कहा, 'डब्ल्यूडीआरए का व्यापक उद्देश्य है कि बड़े कॉर्पोरेट घराने बड़े निवेशकों के रूप में दूर-दराज के गांवों में निवेश करें। साथ ही सरकार इस सेक्टर में गोदामों पर निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है। अभी तक निवेशक स्थानीय करों व स्टॉक सीमा की समस्याओं के चलते इससे दूरी बनाए हुए हैं।'कुल निवेश में 20-25 प्रतिशत की मदद किए जाने से पर्याप्त निवेशक प्रभावित नहीं हुए, क्योंकि गोदामों में निवेश को वे दीर्घावधि कारोबार का हिस्सा मानते हैं। वे बाजार से जुड़े प्रोत्साहन चाहते थे, जिससे वे सरकारी हस्तक्षेप के बगैर काम कर सकें। इस अधिनियम को सितंबर 2007 में संसद में पेश किया गया था। डब्ल्यूआर में मोलतोल के प्रावधान के साथ इससे सुविधा बढ़ी है। अधिसूचना के मुताबिक प्राधिकार में एक चेयरमैन और दो से ज्यादा सदस्य नहीं होंगे। सरकार ने 1974 बैच के उत्तर प्रदेश के आईएएस अधिकारी दिनेश राय को प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त किया है। अहमदाबाद की सेंट्रल वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन के क्षेत्रीय प्रबंधक वीके त्यागी ने कहा, 'यह हमारी सिफारिश थी और अंत में सरकार ने इसे मान लिया।' देश की प्रमुख भंडारण कारोबार करने वाली सीडब्ल्यूसी के क्षेत्रीय प्रबंधक त्यागी ने कहा कि डब्ल्यूआर के समर्थन के साथ कृषि उत्पादों की खरीद से ग्रामीण इलाकों में कर्ज का प्रवाह भी बढ़ेगा। इससे देश भर में कर्ज दिए जाने का एक मानक भी तय हो सकेगा। इससे कृषि जिंस कारोबार की पूरी श्रृंखला में विश्वास बढ़ेगा और जिंस प्रबंधन तंत्र बेहतर होगा। इससे बाद में जिंस वायदा एक्सचेंजों को भी फायदा होगा।एनसीडीईएक्स प्रवर्तित नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के प्रबंध निदेशक संजय कौल ने कहा, 'यह एक सकारात्मक बदलाव है। हम ऐसा ही चाहते थे।' (BS Hindi)
भंडारण (विकास एवं विनियमन) अधिनियम के तहत एक भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) के गठन को प्रभावी तरीके से लागू किए जाने से भारत के कृषि जिंस क्षेत्र के समग्र विकास की उम्मीद है। सबसे महत्वपूर्ण है कि यह दूर दराज के इलाकों में गांवों से जुड़े किसानों को उनके उत्पादों की बिक्री की चिंता दूर करेगा। फसल तैयार होने पर किसानों की सबसे बड़ी चिंता उचित दाम पर उस जिंस की बिक्री की होती है।इस समय देश के दूर दराज के इलाकों के किसानों को सरकारी सहायता का फायदा नहीं मिल पाता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गोदाम न होने के चलते इन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भी फायदा नहीं मिलता है। ज्यादातर गोदाम इस समय जिला केंद्रों पर हैं, जहां दूर के इलाकों के किसान अपना माल लेकर नहीं पहुंच पाते हैं। इससे बेहतर समझकर वे स्थानीय आढ़तियों या महाजनों को अपना उत्पाद 40-45 प्रतिशत कम दाम पर बेचने को मजबूर होते हैं। लेकिन अगर डब्ल्यूडीआरए को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो निश्चित रूप से बिक्री का तनाव दूर हो जाएगा। फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज प्रवर्तित नैशनल बल्क हैंडलिंग कार्पोरेशन (एनबीएचसी) के प्रबंध निदेशक अनिल चौधरी ने कहा, 'डब्ल्यूडीआरए का व्यापक उद्देश्य है कि बड़े कॉर्पोरेट घराने बड़े निवेशकों के रूप में दूर-दराज के गांवों में निवेश करें। साथ ही सरकार इस सेक्टर में गोदामों पर निवेश के लिए प्रोत्साहित कर रही है। अभी तक निवेशक स्थानीय करों व स्टॉक सीमा की समस्याओं के चलते इससे दूरी बनाए हुए हैं।'कुल निवेश में 20-25 प्रतिशत की मदद किए जाने से पर्याप्त निवेशक प्रभावित नहीं हुए, क्योंकि गोदामों में निवेश को वे दीर्घावधि कारोबार का हिस्सा मानते हैं। वे बाजार से जुड़े प्रोत्साहन चाहते थे, जिससे वे सरकारी हस्तक्षेप के बगैर काम कर सकें। इस अधिनियम को सितंबर 2007 में संसद में पेश किया गया था। डब्ल्यूआर में मोलतोल के प्रावधान के साथ इससे सुविधा बढ़ी है। अधिसूचना के मुताबिक प्राधिकार में एक चेयरमैन और दो से ज्यादा सदस्य नहीं होंगे। सरकार ने 1974 बैच के उत्तर प्रदेश के आईएएस अधिकारी दिनेश राय को प्राधिकरण का चेयरमैन नियुक्त किया है। अहमदाबाद की सेंट्रल वेयरहाउसिंग कार्पोरेशन के क्षेत्रीय प्रबंधक वीके त्यागी ने कहा, 'यह हमारी सिफारिश थी और अंत में सरकार ने इसे मान लिया।' देश की प्रमुख भंडारण कारोबार करने वाली सीडब्ल्यूसी के क्षेत्रीय प्रबंधक त्यागी ने कहा कि डब्ल्यूआर के समर्थन के साथ कृषि उत्पादों की खरीद से ग्रामीण इलाकों में कर्ज का प्रवाह भी बढ़ेगा। इससे देश भर में कर्ज दिए जाने का एक मानक भी तय हो सकेगा। इससे कृषि जिंस कारोबार की पूरी श्रृंखला में विश्वास बढ़ेगा और जिंस प्रबंधन तंत्र बेहतर होगा। इससे बाद में जिंस वायदा एक्सचेंजों को भी फायदा होगा।एनसीडीईएक्स प्रवर्तित नैशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के प्रबंध निदेशक संजय कौल ने कहा, 'यह एक सकारात्मक बदलाव है। हम ऐसा ही चाहते थे।' (BS Hindi)
एनसीडीईएक्स में गैर कृषि जिंसों के कारोबार ने पकड़ी रफ्तार
मुंबई October 27, 2010
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में लगभग पिछले एक महीने से गैर कृषि कमोडिटी के वायदा कारोबार में नियमित उछाल दर्ज की जा रही है। एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक कच्चा तेल (लाइट स्वीट क्रूड कांट्रैक्ट), तांबा (कॉपर कैथोड) और इस्पात जैसे गैर कृषि कमोडिटी का वायदा कारोबार बहुत बढ़ गया है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि एनसीडीईएक्स में पॉलीप्रोपिलीन, पॉलीएथिलीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) जैसे उत्पादों के अनुबंध पर भी निगाह रखी जा रही है।उल्लेखनीय है कि यह एक्सचेंज कृषि कमोडिटी के कारोबार में अग्रणी रही है। बाजार के कुल कारोबार का 90 फीसदी हिस्सा इसी खंड का होता है। एनसीडीईएक्स के मुख्य बिजनेस अधिकारी विजय कुमार ने बताया, 'गैर कृषि कमोडिटी खंड में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए एक्सचेंज का यह रणनीतिक कदम है, जिनके भाव अंतरराष्टï्रीय बाजार के आधार पर चढ़ते-उतरते हैं। एनसीडीईएक्स अब कृषि कमोडिटी के कारोबार में स्थापित हो चुकी है। अब गैर कमोडिटी खंड के कारोबार में तेजी देखकर इसके सदस्य काफी उत्साहित हैं। इस खंड के कारोबार की मौलिक गतिविधियां तेज हुई हैं। इस्पात के मामले में हमने पहले ही अच्छी-खासी उपलब्धि हासिल की हुई है इसलिए एक्सचेंज अब सभी खंडों के तमाम पहलूओं पर पैनी निगाह रख रहा है।गौरतलब है कि तेल कंपनियों ने हाल ही में पेट्रोलियम मंत्रालय के तत्वावधान में पेट्रोरसायन उत्पादों के वायदा अनुबंध की ट्रेडिंग का प्रतिनिधित्व किया था। कमोडिटी बाजार नियामक फॉवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) में इस प्रस्ताव पर चर्चा भी की गई थी। बावजूद इसके सक्रिय घरेलू बाजार की कमी की वजह से यह विचार फलीभूत नहीं हो पाया। लेकिन पिछले कुछ समय से हालत सुधरने लगी है और पेट्रोरसायन बाजार का कारोबार कई गुना बढ़ गया है। मांग भी बढ़ी है क्योंकि कई घरेलू ग्राहकों को आयात करना पड़ता है। एक तेल कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'बेहतर मूल्य वसूली के मामले में एक्सचेंज पॉलीमर का अनुबंध शुरू करके मदद कर सकते हैं।एनसीडीईएक्स ने पहले से ही पीई, पीपी और पीवीसी के लिए हाजिर बाजार में कोट देना शुरू कर दिया है। इन तमाम उत्पादों की कीमतें वैश्विक बाजार के रुझान से तय होती हैं।बहरहाल, कच्चे तेल के वायदा अनुबंध में इस वर्ष सितंबर से तेजी शुरू हुई है। उस दौरान इस खंड का वायदा अनुबंध सामान्य स्तर 1,701-2,000 लाख रुपये से उछाल लेकर 19,659 लाख रुपये के स्तर पर जा पहुंचा। फिलहाल इसका वॉल्यूम लगभग 75,000-76,000 लाख रुपये है। नवंबर अनुबंध का ओपन इंटरेस्ट सितंबर से 12,800 (1,407 लाख रुपये) से बढ़कर 4,21,300 (73,550 लाख रुपये) के स्तर पर चला गया। (BS Hindi)
नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में लगभग पिछले एक महीने से गैर कृषि कमोडिटी के वायदा कारोबार में नियमित उछाल दर्ज की जा रही है। एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक कच्चा तेल (लाइट स्वीट क्रूड कांट्रैक्ट), तांबा (कॉपर कैथोड) और इस्पात जैसे गैर कृषि कमोडिटी का वायदा कारोबार बहुत बढ़ गया है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि एनसीडीईएक्स में पॉलीप्रोपिलीन, पॉलीएथिलीन और पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) जैसे उत्पादों के अनुबंध पर भी निगाह रखी जा रही है।उल्लेखनीय है कि यह एक्सचेंज कृषि कमोडिटी के कारोबार में अग्रणी रही है। बाजार के कुल कारोबार का 90 फीसदी हिस्सा इसी खंड का होता है। एनसीडीईएक्स के मुख्य बिजनेस अधिकारी विजय कुमार ने बताया, 'गैर कृषि कमोडिटी खंड में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए एक्सचेंज का यह रणनीतिक कदम है, जिनके भाव अंतरराष्टï्रीय बाजार के आधार पर चढ़ते-उतरते हैं। एनसीडीईएक्स अब कृषि कमोडिटी के कारोबार में स्थापित हो चुकी है। अब गैर कमोडिटी खंड के कारोबार में तेजी देखकर इसके सदस्य काफी उत्साहित हैं। इस खंड के कारोबार की मौलिक गतिविधियां तेज हुई हैं। इस्पात के मामले में हमने पहले ही अच्छी-खासी उपलब्धि हासिल की हुई है इसलिए एक्सचेंज अब सभी खंडों के तमाम पहलूओं पर पैनी निगाह रख रहा है।गौरतलब है कि तेल कंपनियों ने हाल ही में पेट्रोलियम मंत्रालय के तत्वावधान में पेट्रोरसायन उत्पादों के वायदा अनुबंध की ट्रेडिंग का प्रतिनिधित्व किया था। कमोडिटी बाजार नियामक फॉवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) में इस प्रस्ताव पर चर्चा भी की गई थी। बावजूद इसके सक्रिय घरेलू बाजार की कमी की वजह से यह विचार फलीभूत नहीं हो पाया। लेकिन पिछले कुछ समय से हालत सुधरने लगी है और पेट्रोरसायन बाजार का कारोबार कई गुना बढ़ गया है। मांग भी बढ़ी है क्योंकि कई घरेलू ग्राहकों को आयात करना पड़ता है। एक तेल कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, 'बेहतर मूल्य वसूली के मामले में एक्सचेंज पॉलीमर का अनुबंध शुरू करके मदद कर सकते हैं।एनसीडीईएक्स ने पहले से ही पीई, पीपी और पीवीसी के लिए हाजिर बाजार में कोट देना शुरू कर दिया है। इन तमाम उत्पादों की कीमतें वैश्विक बाजार के रुझान से तय होती हैं।बहरहाल, कच्चे तेल के वायदा अनुबंध में इस वर्ष सितंबर से तेजी शुरू हुई है। उस दौरान इस खंड का वायदा अनुबंध सामान्य स्तर 1,701-2,000 लाख रुपये से उछाल लेकर 19,659 लाख रुपये के स्तर पर जा पहुंचा। फिलहाल इसका वॉल्यूम लगभग 75,000-76,000 लाख रुपये है। नवंबर अनुबंध का ओपन इंटरेस्ट सितंबर से 12,800 (1,407 लाख रुपये) से बढ़कर 4,21,300 (73,550 लाख रुपये) के स्तर पर चला गया। (BS Hindi)
एसीई ने शुरू किया 5 कृषि उत्पादों का वायदा कारोबार
नई दिल्ली October 27, 2010
कोटक समूह की एसीई कमोडिटी एक्सचेंज ने आज देश के पांचवें राष्टï्रीय कमोडिटी बाजार के रूप में कारोबार शुरू कर दिया। शुरुआत में अरंडी के बीज, चना, सोयाबीन, सरसों और रिफाइन सोया तेल की ट्रेडिंग लॉन्च की गई है।शुरुआती दिन के पहले घंटे के दौरान इन तमाम कृषि कमोडिटी का दिसंबर अनुबंध ज्यादा सक्रिय रहा, हालांकि नवंबर 2010 और जनवरी 2011 के अनुबंध भी कारोबार के लिए उपलब्ध थे। एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर निपटान के लिए अरंडी बीज का अनुबंध 3,442 रुपये प्रति क्विंटल, चना 2,440 रुपये प्रति क्विंटल, सोयाबीन 2,244 रुपये प्रति क्विंटल, सरसों 570 रुपये प्रति 20 किलोग्राम और रिफाइन सोया तेल 545.90 रुपये प्रति 10 किलोग्राम खुले।उल्लेखनीय है कि यह एक्सचेंज पहले क्षेत्रीय स्तर (अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज) का था, जो अब राष्टï्रीय स्तर का हो गया है। इसने कमोडिटी बाजार नियामक फॉवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) से कच्चे तेल, सोने और बहुमूल्य धातुओं जैसे गैर-कृषि कमोडिटी की पेशकश की अनुमति मांगी है। कोटक समूह फिलहाल एसीई कमोडिटी एक्सचेंज का प्रमुख निवेशक है और उसके पास इसकी 51 फीसदी हिस्सेदारी है। इसमें हेफेड की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। (BS Hindi)
कोटक समूह की एसीई कमोडिटी एक्सचेंज ने आज देश के पांचवें राष्टï्रीय कमोडिटी बाजार के रूप में कारोबार शुरू कर दिया। शुरुआत में अरंडी के बीज, चना, सोयाबीन, सरसों और रिफाइन सोया तेल की ट्रेडिंग लॉन्च की गई है।शुरुआती दिन के पहले घंटे के दौरान इन तमाम कृषि कमोडिटी का दिसंबर अनुबंध ज्यादा सक्रिय रहा, हालांकि नवंबर 2010 और जनवरी 2011 के अनुबंध भी कारोबार के लिए उपलब्ध थे। एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर निपटान के लिए अरंडी बीज का अनुबंध 3,442 रुपये प्रति क्विंटल, चना 2,440 रुपये प्रति क्विंटल, सोयाबीन 2,244 रुपये प्रति क्विंटल, सरसों 570 रुपये प्रति 20 किलोग्राम और रिफाइन सोया तेल 545.90 रुपये प्रति 10 किलोग्राम खुले।उल्लेखनीय है कि यह एक्सचेंज पहले क्षेत्रीय स्तर (अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज) का था, जो अब राष्टï्रीय स्तर का हो गया है। इसने कमोडिटी बाजार नियामक फॉवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) से कच्चे तेल, सोने और बहुमूल्य धातुओं जैसे गैर-कृषि कमोडिटी की पेशकश की अनुमति मांगी है। कोटक समूह फिलहाल एसीई कमोडिटी एक्सचेंज का प्रमुख निवेशक है और उसके पास इसकी 51 फीसदी हिस्सेदारी है। इसमें हेफेड की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। (BS Hindi)
27 अक्तूबर 2010
निर्यात और फार्मा उद्योग की मांग से मेंथा तेल 20फीसदी तेज
निर्यातकों के साथ घरेलू फार्मा उद्योग की मांग बढऩे से चालू महीने में मेंथा तेल की कीमतों में 20 फीसदी की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में मंगलवार को मेंथा तेल का भाव बढ़कर 1,170-1,180 रुपये प्रति किलो हो गया। वायदा बाजार में निवेशकों की खरीद से इसके दाम 24 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। चालू सीजन में मेंथा तेल के उत्पादन में करीब 18 फीसदी की कमी आने की संभावना है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी आठ से दस फीसदी की तेजी आने की संभावना है। एसेंशियल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष योगेश दुबे ने बताया कि इस समय अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के आयातकों की मांग अच्छी बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रिस्टल बोल्ड का दाम चालू महीने के शुरू में 22 से 23 डॉलर प्रति किलो (सीएंडएफ)था जो बढ़कर मंगलवार को 29-30 डॉलर प्रति किलो हो गया है। उन्होंने बताया कि पिछले डेढ़ महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढऩे से निर्यातकों को पड़ते लग रहे हैं। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2010-11 के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) के दौरान मेंथा उत्पादों के निर्यात में 16 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान निर्यात घटकर 7,000 टन का ही हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8,325 टन का निर्यात हुआ था। उत्तर प्रदेश मेंथा उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में मेंथा तेल का उत्पादन घटकर 27-28 हजार टन ही होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल देश में 32-33 हजार टन मेंथा तेल का उत्पादन हुआ था। नई फसल के उत्पादन में कमी की आशंका के कारण ही अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के आयातकों की मांग बढ़ गई है। साथ ही त्यौहारी सीजन होने के कारण घरेलू फार्मा कंपनियों की मांग भी पहले की तुलना में ज्यादा आ रही है। ग्लोरियस केमिकल के डायरेक्टर अनुराग रस्तोगी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल की दैनिक आवक कम होकर 400-500 ड्रम (एक ड्रम-180 किलो) की रह गई है। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का दाम चालू महीने में करीब 200 रुपये प्रति किलो तक बढ़ चुके हैं। शुक्रवार को चंदौसी में मेंथा तेल का भाव बढ़कर 1,170-1,180 रुपये प्रति किलो हो गया। दिल्ली में क्रिस्टल बोल्ड का भाव बढ़कर इस दौरान 1,350-1,360 रुपये प्रति किलो हो गया। घरेलू और निर्यातकों की मांग को देखते हुए मौजूदा कीमतों में और भी 90 से 100 रुपये प्रति किलो की तेजी आने की संभावना है। निवेशकों की खरीद से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में 24 फीसदी की तेजी आ चुकी है। पहली अक्टूबर को नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेल का भाव 886 रुपये प्रति किलो था, जो मंगलवार को बढ़कर 1,107 रुपये प्रति किलो हो गया।बात पते कीएमसीएक्स में मेंथा तेल नवंबर वायदा चालू माह में 24 फीसदी बढ़कर 1,107 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। हाजिर के मुकाबले वायदा में तेजी ज्यादा आई। (Business Bhaskar.....r s rana)
बिहार में तो 'फांस' बन गई चीनी की मिठास
नई दिल्ली October 26, 2010
बिहार में कभी चीनी और एथेनॉल में निवेश करने के लिए लोग टूटे पड़े थे, लेकिन अब उन लोगों के निशान मिलने भी मुश्किल हैं। 2006 और 2007 के दरम्यान राज्य में 24,000 करोड़ रुपये के निवेश के जो प्रस्ताव आए थे, उनमें से बमुश्किल 10 फीसदी को अमली जामा पहनाया गया क्योंकि चीनी का चक्र गड़बड़ाता रहा और ईंधन में एथेनॉल मिलाने का अभियान परवान ही नहीं चढ़ सका। राजश्री शुगर्स, धामपुर शुगर्स और इंडिया ग्लाइकॉल्स जैसी कंपनियों ने इस काम से हाथ खींचना ही बेहतर समझा।चीनी और एथेनॉल में ज्यादा निवेश के प्रस्ताव 2006 के आरंभ में आए थे, जब चीनी उद्योग शबाब पर था। लेकिन अक्टूबर 2006 से शुरू हुए चीनी सत्र में जबरदस्त पैदावार हुई और चीनी के दाम आसमान पर आ गए। गोदामों में चीनी भर गई और इस उद्योग के खिलाडिय़ों के लिए किसानों को गन्ने का भुगतान करना भी दूभर हो गया। उस वक्त सरकार को ब्याज मुक्त कर्ज देकर, चीनी का अतिरिक्त बफर स्टॉक बनाकर और निर्यात में सहयोग कर इस उद्योग को संकट से उबारना पड़ा था।राज्य में रोजाना 10,000 टन पेराई क्षमता वाली चीनी मिल लगाने के लिए 550 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाने वाली दिल्ली की एक कंपनी के एक अधिकारी ने बताया, 'शुरुआत में कंपनियां माली हालत पतली होने की वजह से हिचक रही थीं। पिछले साल उनकी तिजोरियां तो सुधर गईं, लेकिन चीनी उद्योग को महसूस हुआ कि बेजा क्षमता बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है।लगातार सुर्खियों में रहे एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम की चाल भी बेहद सुस्त रही है। 2006 में शुरू हुए इस कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाना था। लेकिन कई राज्य सरकारों ने एथेनॉल के राज्य में आने और जाने पर कर लगा दिया। कई एथेनॉल निर्माता अल्कोहल की कीमत बढऩे की वजह से एथेनॉल की आपूर्ति से मुकर गए।बिहार सरकार ने राज्य चीनी निगम की 15 बीमार मिलों की नीलामी की योजना भी बनाई थी, लेकिन इसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। 2006 से अब तक सरकार केवल 6 मिलें बेच सकी है। (BS Hindi)
बिहार में कभी चीनी और एथेनॉल में निवेश करने के लिए लोग टूटे पड़े थे, लेकिन अब उन लोगों के निशान मिलने भी मुश्किल हैं। 2006 और 2007 के दरम्यान राज्य में 24,000 करोड़ रुपये के निवेश के जो प्रस्ताव आए थे, उनमें से बमुश्किल 10 फीसदी को अमली जामा पहनाया गया क्योंकि चीनी का चक्र गड़बड़ाता रहा और ईंधन में एथेनॉल मिलाने का अभियान परवान ही नहीं चढ़ सका। राजश्री शुगर्स, धामपुर शुगर्स और इंडिया ग्लाइकॉल्स जैसी कंपनियों ने इस काम से हाथ खींचना ही बेहतर समझा।चीनी और एथेनॉल में ज्यादा निवेश के प्रस्ताव 2006 के आरंभ में आए थे, जब चीनी उद्योग शबाब पर था। लेकिन अक्टूबर 2006 से शुरू हुए चीनी सत्र में जबरदस्त पैदावार हुई और चीनी के दाम आसमान पर आ गए। गोदामों में चीनी भर गई और इस उद्योग के खिलाडिय़ों के लिए किसानों को गन्ने का भुगतान करना भी दूभर हो गया। उस वक्त सरकार को ब्याज मुक्त कर्ज देकर, चीनी का अतिरिक्त बफर स्टॉक बनाकर और निर्यात में सहयोग कर इस उद्योग को संकट से उबारना पड़ा था।राज्य में रोजाना 10,000 टन पेराई क्षमता वाली चीनी मिल लगाने के लिए 550 करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाने वाली दिल्ली की एक कंपनी के एक अधिकारी ने बताया, 'शुरुआत में कंपनियां माली हालत पतली होने की वजह से हिचक रही थीं। पिछले साल उनकी तिजोरियां तो सुधर गईं, लेकिन चीनी उद्योग को महसूस हुआ कि बेजा क्षमता बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है।लगातार सुर्खियों में रहे एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम की चाल भी बेहद सुस्त रही है। 2006 में शुरू हुए इस कार्यक्रम के तहत पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाना था। लेकिन कई राज्य सरकारों ने एथेनॉल के राज्य में आने और जाने पर कर लगा दिया। कई एथेनॉल निर्माता अल्कोहल की कीमत बढऩे की वजह से एथेनॉल की आपूर्ति से मुकर गए।बिहार सरकार ने राज्य चीनी निगम की 15 बीमार मिलों की नीलामी की योजना भी बनाई थी, लेकिन इसे ज्यादा सफलता नहीं मिली। 2006 से अब तक सरकार केवल 6 मिलें बेच सकी है। (BS Hindi)
कॉफी किसानों ने मांगा सस्ता कर्ज
बेंगलुरु October 25, 2010
देश के प्रमुख कॉफी उत्पादक इलाकों के किसानों ने सरकार से शुल्क ढांचे में कटौती करने और कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) को फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की अपील की है।कॉफी किसानों ने बजट पूर्व परामर्श के तहत वाणिज्य मंत्रालय और कॉफी बोर्ड से आगामी केंद्रीय बजट में ये कदम उठाए जाने की मांग की है। कॉफी बोर्ड के सदस्य और कर्नाटक के कॉफी किसान नंदा बेलिअप्पा ने बताया, 'चूंकि ज्यादातर भारतीय कॉफी का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता है कि इसलिए इसे निर्यातोन्मुख कमोडिटी समझा जाना चाहिए। यही वजह है कि निर्यात प्रतिस्पद्र्घा बढ़ाने के लिए उत्पाद, सीमा और बिक्री समेत अन्य शुल्कों में कटौती की जानी चाहिए।उन्होंने बताया कि ऐसा करने से कॉफी किसानों की लागत में करीब 10 फीसदी तक गिरावट आएगी। गौरतलब है कि भारत में हर साल लगभग 2,80,000 से 3,00,000 टन कॉफी का उत्पादन होता है। इसमें से करीब 70 फीसदी कॉफी निर्यात कर दी जाती है। किसानों ने वाणिज्यिक बैंकों से कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने की भी मांग की है। बेलिअप्पा ने कहा, 'जब बैंकों को नाबार्ड की ओर से 4-4.5 फीसदी ब्याज दर पर वित्तीय मदद हासिल होती है, तो किसानों को 6-6.5 फीसदी ब्याज दर पर ऋण मिलना चाहिए, न कि ऊंची दरों पर।प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए उधार दिशानिर्देशों के तहत कॉफी किसानों को सस्ता ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। किसानों ने कॉपर सल्फेट को भी औद्योगिक रसायन श्रेणी में रखे जाने के बजाय फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की मांग की है। बेलिअप्पा ने बताया, 'यदि सरकार कॉपर सल्फेट को फफूंदनाशक श्रेणी में रखती है, तो इससे कॉफी किसानों को बड़ी राहत मिलेगी क्योंकि इसकी कीमत अधिक होती है जिससे किसानों की लागत बढ़ जाती है।नीले थोथे का इस्तेमाल अरेबिका काफी में पतझड़ की बीमारी रोकने के लिए किया जाता है, जिसकी लागत 8,000 रुपये प्रति 50 किलोग्राम पड़ती है।उन्होंने कहा, 'किसानों को कॉफी की खेती के लिए प्रति एकड़ 60 किलोग्राम नीले थोथे की जरूरत होती है। यदि सरकार इसे फफंूदनाशक की श्रेणी में ले आती है तो इसका भाव कम हो जाएगा। अन्य दूसरे किसानों का भी कहना है कि नीले थोथे का इस्तेमाल दूसरी बागवानी फसलों में भी किया जाता है इसलिए इसे औद्योगिक रसायन की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।कॉफी निर्यात संगठन के अध्यक्ष रमेश राजा ने इस मामले में कहा कि सरकार को रुपये में स्थिर बनाए रखना चाहिए ताकि निर्यात उद्योग को फायदा हो सके। उन्होंने कहा, 'देश में पूंजी की आवक रोकने के लिए उठाए गए किसी भी कदम से रुपया मजबूत होता है और ऐसा होने से कॉफी निर्यात प्रभावित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि कॉफी उद्योग को कम ब्याज दरों पर ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भारतीय कॉफी निर्यातक उन देशों के निर्यातकों से प्रतिस्पद्र्घा नहीं कर सकते जहां ब्याज दरें तुलनात्मक रूप से कम हैं।बहरहाल, कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जाबिर अश्गर ने कहा कि कॉफी किसानों की मांग पर इस वर्ष 4 नवंबर को आयोजित होनेवाली बोर्ड की बैठक में विचार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय का मानना है कि कॉफी के भाव फिलहाल सर्वोच्च स्तर पर बने हुए हैं, इसलिए वे ब्याज दरों में कटौती करने में ज्यादा रुचि नहीं रखते। जाहिर है, वाणिज्य मंत्रालय फिलहाल ऐसा करने के पक्ष में नहीं है। (BS Hindi)
देश के प्रमुख कॉफी उत्पादक इलाकों के किसानों ने सरकार से शुल्क ढांचे में कटौती करने और कम दरों पर ऋण उपलब्ध कराने के साथ-साथ नीला थोथा (कॉपर सल्फेट) को फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की अपील की है।कॉफी किसानों ने बजट पूर्व परामर्श के तहत वाणिज्य मंत्रालय और कॉफी बोर्ड से आगामी केंद्रीय बजट में ये कदम उठाए जाने की मांग की है। कॉफी बोर्ड के सदस्य और कर्नाटक के कॉफी किसान नंदा बेलिअप्पा ने बताया, 'चूंकि ज्यादातर भारतीय कॉफी का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता है कि इसलिए इसे निर्यातोन्मुख कमोडिटी समझा जाना चाहिए। यही वजह है कि निर्यात प्रतिस्पद्र्घा बढ़ाने के लिए उत्पाद, सीमा और बिक्री समेत अन्य शुल्कों में कटौती की जानी चाहिए।उन्होंने बताया कि ऐसा करने से कॉफी किसानों की लागत में करीब 10 फीसदी तक गिरावट आएगी। गौरतलब है कि भारत में हर साल लगभग 2,80,000 से 3,00,000 टन कॉफी का उत्पादन होता है। इसमें से करीब 70 फीसदी कॉफी निर्यात कर दी जाती है। किसानों ने वाणिज्यिक बैंकों से कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराने की भी मांग की है। बेलिअप्पा ने कहा, 'जब बैंकों को नाबार्ड की ओर से 4-4.5 फीसदी ब्याज दर पर वित्तीय मदद हासिल होती है, तो किसानों को 6-6.5 फीसदी ब्याज दर पर ऋण मिलना चाहिए, न कि ऊंची दरों पर।प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए उधार दिशानिर्देशों के तहत कॉफी किसानों को सस्ता ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। किसानों ने कॉपर सल्फेट को भी औद्योगिक रसायन श्रेणी में रखे जाने के बजाय फफूंदनाशक श्रेणी में रखे जाने की मांग की है। बेलिअप्पा ने बताया, 'यदि सरकार कॉपर सल्फेट को फफूंदनाशक श्रेणी में रखती है, तो इससे कॉफी किसानों को बड़ी राहत मिलेगी क्योंकि इसकी कीमत अधिक होती है जिससे किसानों की लागत बढ़ जाती है।नीले थोथे का इस्तेमाल अरेबिका काफी में पतझड़ की बीमारी रोकने के लिए किया जाता है, जिसकी लागत 8,000 रुपये प्रति 50 किलोग्राम पड़ती है।उन्होंने कहा, 'किसानों को कॉफी की खेती के लिए प्रति एकड़ 60 किलोग्राम नीले थोथे की जरूरत होती है। यदि सरकार इसे फफंूदनाशक की श्रेणी में ले आती है तो इसका भाव कम हो जाएगा। अन्य दूसरे किसानों का भी कहना है कि नीले थोथे का इस्तेमाल दूसरी बागवानी फसलों में भी किया जाता है इसलिए इसे औद्योगिक रसायन की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए।कॉफी निर्यात संगठन के अध्यक्ष रमेश राजा ने इस मामले में कहा कि सरकार को रुपये में स्थिर बनाए रखना चाहिए ताकि निर्यात उद्योग को फायदा हो सके। उन्होंने कहा, 'देश में पूंजी की आवक रोकने के लिए उठाए गए किसी भी कदम से रुपया मजबूत होता है और ऐसा होने से कॉफी निर्यात प्रभावित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि कॉफी उद्योग को कम ब्याज दरों पर ऋण मुहैया कराया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'भारतीय कॉफी निर्यातक उन देशों के निर्यातकों से प्रतिस्पद्र्घा नहीं कर सकते जहां ब्याज दरें तुलनात्मक रूप से कम हैं।बहरहाल, कॉफी बोर्ड के उपाध्यक्ष जाबिर अश्गर ने कहा कि कॉफी किसानों की मांग पर इस वर्ष 4 नवंबर को आयोजित होनेवाली बोर्ड की बैठक में विचार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वाणिज्य मंत्रालय का मानना है कि कॉफी के भाव फिलहाल सर्वोच्च स्तर पर बने हुए हैं, इसलिए वे ब्याज दरों में कटौती करने में ज्यादा रुचि नहीं रखते। जाहिर है, वाणिज्य मंत्रालय फिलहाल ऐसा करने के पक्ष में नहीं है। (BS Hindi)
मंत्रालय देगा एथेनॉल भाव पर राय
नई दिल्ली October 25, 2010
मंत्रिसमूह (जीओएम) स्तर पर रसायन मंत्रालय एथेनॉल के मसले पर अपनी राय नहीं मनवा सका, लेकिन मंत्रालय ने सौमित्र चौधरी समिति में जगह हासिल कर ली है। यह समिति एथेनॉल की कीमतों के बारे में फार्मूला तैयार कर रही है। योजना आयोग के सदस्य की अध्यक्षता में बनी समिति ने हाल के दिनों में कुछ बैठकें की हैं। इसमें चीनी उद्योग के प्रतिनिधि, खाद्य मंत्रालय, तेल कंपनियां और पेट्रोलियम मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल हुए। रसायन मंत्रालय इसका हाल का विस्तार है। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'सौमित्र चौधरी समिति में रसायन मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी सदस्य के रूप में शामिल होगा। जब समिति की अगली बैठक होगी तो रसायन उद्योग भी मंत्रालय के माध्यम से इसमें शामिल होगा। प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली मंत्रिसमूह की बैठक में एथेनॉल मिलाने की योजना की स्वीकृति मिली थी, जिसका रसायन उद्योग ने विरोध किया था। जहां रसायन उद्योग इसे अपने विचार रखने की संभावना के रूप में देख रहा है, वहीं एथेनॉल की कीमतें तय किए जाने का फॉर्मूला तैयार किए जाने के ठीक पहले रसायन उद्योग को इस समिति में शामिल किए जाने से चीनी उद्योग आश्चर्यचकित है। चीनी उद्योग का मानना है कि एथेनॉल की कीमतें तय किए जाने में रसायन उद्योग की भूमिका नहीं है। जुबिलेंट आर्गेनोसिस और इंडिया ग्लाइकॉल जैसे प्रमुख रसायन उद्योग शीरे के प्राथमिक उपभोक्ता हैं। इसके साथ ही शराब और एथेनॉल उद्योग भी शीरे का इस्तेमाल करते हैं। रसायन उद्योग इस बात का विरोध कर रहा है कि मिश्रण को अनिवार्य बनाया जाए और इसकी कीमतें 27 रुपये प्रति लीटर तय कर दी जाएं। केंद्रीय कैबिनेट ने पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाए जाने को अपनी अनुमति दे दी है। इस साल अप्रैल में हुई बैठक में मंत्रिसमूह ने एथेनॉल की कीमतें 27 रुपये प्रति लीटर तय की थी। बहरहाल, रसायन मंत्री एमके अजगिरी के कुछ सवाल उठाए जाने पर जुलाई में एक बार फिर मंत्रिसमूह की बैठक हुई। मंत्रिसमूह ने एक बार फिर कहा कि 27 रुपये प्रति लीटर के भाव अस्थायी रूप से तय किए जाएं, बाद में कीमतों का अंतिम फैसला सौमित्र चटर्जी की अध्यक्षता वाली समिति करेगी। यह इसके पहले की 21.50 रुपये प्रति लीटर कीमतों के विरुद्ध था। चीनी उद्योग ने एथेनॉल खरीद के लिए रुचि पत्र भी जारी कर दिया था, जिससे इस कीमत पर पेट्रोल में एथेनॉल की मिलावट कभी भी शुरू हो जाए। एथेनॉल को हरित ईंधन के रूप में जाना जाता है। इसकी पेट्रोल में मिलावट करने से भारत की तेल आयात पर निर्भरता भी कम होगी। कुछ सार्वजनिक कंपनियां खुद भी एथेनॉल का उत्पादन करने को सोच रही हैं। मसलन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने एथेनॉल उत्पादन के लिए 2008 में बिहार में बीमार पड़ी दो मिलें खरीदी थीं। ये मिलें दिसंबर से एथेनॉल का उत्पादन शुरू कर देंगी। (BS Hindi)
मंत्रिसमूह (जीओएम) स्तर पर रसायन मंत्रालय एथेनॉल के मसले पर अपनी राय नहीं मनवा सका, लेकिन मंत्रालय ने सौमित्र चौधरी समिति में जगह हासिल कर ली है। यह समिति एथेनॉल की कीमतों के बारे में फार्मूला तैयार कर रही है। योजना आयोग के सदस्य की अध्यक्षता में बनी समिति ने हाल के दिनों में कुछ बैठकें की हैं। इसमें चीनी उद्योग के प्रतिनिधि, खाद्य मंत्रालय, तेल कंपनियां और पेट्रोलियम मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल हुए। रसायन मंत्रालय इसका हाल का विस्तार है। उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'सौमित्र चौधरी समिति में रसायन मंत्रालय का एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी सदस्य के रूप में शामिल होगा। जब समिति की अगली बैठक होगी तो रसायन उद्योग भी मंत्रालय के माध्यम से इसमें शामिल होगा। प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाली मंत्रिसमूह की बैठक में एथेनॉल मिलाने की योजना की स्वीकृति मिली थी, जिसका रसायन उद्योग ने विरोध किया था। जहां रसायन उद्योग इसे अपने विचार रखने की संभावना के रूप में देख रहा है, वहीं एथेनॉल की कीमतें तय किए जाने का फॉर्मूला तैयार किए जाने के ठीक पहले रसायन उद्योग को इस समिति में शामिल किए जाने से चीनी उद्योग आश्चर्यचकित है। चीनी उद्योग का मानना है कि एथेनॉल की कीमतें तय किए जाने में रसायन उद्योग की भूमिका नहीं है। जुबिलेंट आर्गेनोसिस और इंडिया ग्लाइकॉल जैसे प्रमुख रसायन उद्योग शीरे के प्राथमिक उपभोक्ता हैं। इसके साथ ही शराब और एथेनॉल उद्योग भी शीरे का इस्तेमाल करते हैं। रसायन उद्योग इस बात का विरोध कर रहा है कि मिश्रण को अनिवार्य बनाया जाए और इसकी कीमतें 27 रुपये प्रति लीटर तय कर दी जाएं। केंद्रीय कैबिनेट ने पेट्रोल में 5 प्रतिशत एथेनॉल मिलाए जाने को अपनी अनुमति दे दी है। इस साल अप्रैल में हुई बैठक में मंत्रिसमूह ने एथेनॉल की कीमतें 27 रुपये प्रति लीटर तय की थी। बहरहाल, रसायन मंत्री एमके अजगिरी के कुछ सवाल उठाए जाने पर जुलाई में एक बार फिर मंत्रिसमूह की बैठक हुई। मंत्रिसमूह ने एक बार फिर कहा कि 27 रुपये प्रति लीटर के भाव अस्थायी रूप से तय किए जाएं, बाद में कीमतों का अंतिम फैसला सौमित्र चटर्जी की अध्यक्षता वाली समिति करेगी। यह इसके पहले की 21.50 रुपये प्रति लीटर कीमतों के विरुद्ध था। चीनी उद्योग ने एथेनॉल खरीद के लिए रुचि पत्र भी जारी कर दिया था, जिससे इस कीमत पर पेट्रोल में एथेनॉल की मिलावट कभी भी शुरू हो जाए। एथेनॉल को हरित ईंधन के रूप में जाना जाता है। इसकी पेट्रोल में मिलावट करने से भारत की तेल आयात पर निर्भरता भी कम होगी। कुछ सार्वजनिक कंपनियां खुद भी एथेनॉल का उत्पादन करने को सोच रही हैं। मसलन, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन ने एथेनॉल उत्पादन के लिए 2008 में बिहार में बीमार पड़ी दो मिलें खरीदी थीं। ये मिलें दिसंबर से एथेनॉल का उत्पादन शुरू कर देंगी। (BS Hindi)
फुहार से धान के किसान चिंतित
चंडीगढ़ October 26, 2010
देश के उत्तरी इलाकों में शुक्रवार को हुई छिटपुट बारिश की वजह से पंजाब और हरियाणा में धान की फसल उगाने वाले किसानों की चिंता बढ़ गई है। पश्चिमी हलचल के चलते पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में जो हल्की बारिश हुई है, उससे धान की फसल पर प्रतिकूल असर होने की आशंका जताई जा रही है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इन दोनों राज्यों में धान का कुल रकबा 38.5 लाख हेक्टेयर है और कुल 1.82 करोड़ टन उत्पादन की संभावना है, लेकिन 40 फीसदी फसल की कटाई नहीं हो पाई है।भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के नमी मानदंडों के मुताबिक इस वर्ष जिन किसानों की उपज में 17 फीसदी से अधिक नमी रहेगी, उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस मसले पर लुधियाना के एक किसान का कहना है कि चूंकि एफसीआई के गोदामों में अतिरिक्त अनाज अटे पड़े हैं इसलिए सरकारी एजेंसियां नमी को लेकर रूढि़वादी रवैया अपना रही हैं। उनका कहना है कि कम आपूर्ति वाली स्थिति में 25-26 फीसदी नमी की मौजूदगी वाला धान भी उठ जाता है।इस वर्ष बेमौसम बारिश ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है। सरकारी गोदामों में अतिरिक्त अनाज पड़े होने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियां ज्यादा नमी की मौजूदगी वाले धान खरीदने के लिए उत्साहित नहीं होंगी और इन दोनों राज्यों में निजी कारोबारियों की भूमिका भी नगण्य है। ऐसे में किसानों को अपनी उपज का भंडार खुद ही तैयार करना पड़ेगा।
हरियाणा में असरहरियाणा के वैज्ञानिकों की राय है कि छिटपुट बारिश की वजह से इस वर्ष प्रदेश में धान की फसल की उत्पादकता प्रभावित होगी। उनका कहना है कि प्रदेश के कुछ इलाकों में जलजमाव देखा गया है। इसके चलते पौधों में अनाज भराव प्रक्रिया प्रभावित होगी, खास तौर पर बासमती किस्मों के धान में। नतीजतन उत्पादन गिरेगा। बारिश की वजह से धान में नमी की मात्रा भी बढ़ जाएगी। नतीजा यह होगा कि सरकारी एजेंसियां एवं निजी क्षेत्र की मिलें इन्हें खरीदने से कतराएंगी।'हरियाणा प्रदेश राइस मिलर ऐंड डीलर एसोसिएशनÓ के महासचिव जेवेल सिंघला ने बताया कि छिटपुट बारिश की वजह से प्रदेश के कुछ जिलों में बासमती धान की फसल प्रभावित होगी।
पंजाब में असरपंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने छिटपुट बारिश की वजह से धान की फसल को होने वाले नुकसान के आकलन के लिए विशेष गिर्दवारी का आदेश दिया है। प्रदेश सरकार के सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने वित्त आयुक्त (राजस्व) को आदेश दे रखा है कि वे संबंधित उपायुक्तों को वर्षा प्रभावित इलाकों में धान की फसल को हुए नुकसान की गिर्दवारी प्रक्रिया जल्द निपटाने के लिए कहें। बादल ने यह भी कहा है कि सरकारी नियमों के मुताबिक प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा।प्रदेश के किसानों को आशंका है कि सरकारी एजेंसियों एवं निजी क्षेत्र के कारोबारियों की ओर से धान खरीदारी के लिए जांच के समय उपज में अधिक नमी की मौजूदगी रहेगी, जिसकी वजह से उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि मॉनसून की अवधि बढऩे और भारी बारिश के चलते धान की फसलों को पहले ही काफी क्षति पहुंची है और अब यह बेमौसम फुहार किसानों के लिए जले पर नमक जैसा है।उल्लेखनीय है कि अनाज में नमी को लेकर एफसीआई के अडिय़ल रवैये की वजह से कई किसानों के वैसे अनाज, जिनमें 17 फीसदी से अधिक नमी होगी, उन्हें नहीं उठाया जाएगा। (BS hindi)
देश के उत्तरी इलाकों में शुक्रवार को हुई छिटपुट बारिश की वजह से पंजाब और हरियाणा में धान की फसल उगाने वाले किसानों की चिंता बढ़ गई है। पश्चिमी हलचल के चलते पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाकों में जो हल्की बारिश हुई है, उससे धान की फसल पर प्रतिकूल असर होने की आशंका जताई जा रही है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इन दोनों राज्यों में धान का कुल रकबा 38.5 लाख हेक्टेयर है और कुल 1.82 करोड़ टन उत्पादन की संभावना है, लेकिन 40 फीसदी फसल की कटाई नहीं हो पाई है।भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के नमी मानदंडों के मुताबिक इस वर्ष जिन किसानों की उपज में 17 फीसदी से अधिक नमी रहेगी, उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा। इस मसले पर लुधियाना के एक किसान का कहना है कि चूंकि एफसीआई के गोदामों में अतिरिक्त अनाज अटे पड़े हैं इसलिए सरकारी एजेंसियां नमी को लेकर रूढि़वादी रवैया अपना रही हैं। उनका कहना है कि कम आपूर्ति वाली स्थिति में 25-26 फीसदी नमी की मौजूदगी वाला धान भी उठ जाता है।इस वर्ष बेमौसम बारिश ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी है। सरकारी गोदामों में अतिरिक्त अनाज पड़े होने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र की एजेंसियां ज्यादा नमी की मौजूदगी वाले धान खरीदने के लिए उत्साहित नहीं होंगी और इन दोनों राज्यों में निजी कारोबारियों की भूमिका भी नगण्य है। ऐसे में किसानों को अपनी उपज का भंडार खुद ही तैयार करना पड़ेगा।
हरियाणा में असरहरियाणा के वैज्ञानिकों की राय है कि छिटपुट बारिश की वजह से इस वर्ष प्रदेश में धान की फसल की उत्पादकता प्रभावित होगी। उनका कहना है कि प्रदेश के कुछ इलाकों में जलजमाव देखा गया है। इसके चलते पौधों में अनाज भराव प्रक्रिया प्रभावित होगी, खास तौर पर बासमती किस्मों के धान में। नतीजतन उत्पादन गिरेगा। बारिश की वजह से धान में नमी की मात्रा भी बढ़ जाएगी। नतीजा यह होगा कि सरकारी एजेंसियां एवं निजी क्षेत्र की मिलें इन्हें खरीदने से कतराएंगी।'हरियाणा प्रदेश राइस मिलर ऐंड डीलर एसोसिएशनÓ के महासचिव जेवेल सिंघला ने बताया कि छिटपुट बारिश की वजह से प्रदेश के कुछ जिलों में बासमती धान की फसल प्रभावित होगी।
पंजाब में असरपंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने छिटपुट बारिश की वजह से धान की फसल को होने वाले नुकसान के आकलन के लिए विशेष गिर्दवारी का आदेश दिया है। प्रदेश सरकार के सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने वित्त आयुक्त (राजस्व) को आदेश दे रखा है कि वे संबंधित उपायुक्तों को वर्षा प्रभावित इलाकों में धान की फसल को हुए नुकसान की गिर्दवारी प्रक्रिया जल्द निपटाने के लिए कहें। बादल ने यह भी कहा है कि सरकारी नियमों के मुताबिक प्रभावित किसानों को उचित मुआवजा दिया जाएगा।प्रदेश के किसानों को आशंका है कि सरकारी एजेंसियों एवं निजी क्षेत्र के कारोबारियों की ओर से धान खरीदारी के लिए जांच के समय उपज में अधिक नमी की मौजूदगी रहेगी, जिसकी वजह से उन्हें अस्वीकार कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि मॉनसून की अवधि बढऩे और भारी बारिश के चलते धान की फसलों को पहले ही काफी क्षति पहुंची है और अब यह बेमौसम फुहार किसानों के लिए जले पर नमक जैसा है।उल्लेखनीय है कि अनाज में नमी को लेकर एफसीआई के अडिय़ल रवैये की वजह से कई किसानों के वैसे अनाज, जिनमें 17 फीसदी से अधिक नमी होगी, उन्हें नहीं उठाया जाएगा। (BS hindi)
कपास की मार से कपड़ा महंगा
मुंबई October 26, 2010
कपास की कीमतों में जबरदस्त तेजी का असर अब कपड़ा बाजार पर भी पडऩे लगा है। पिछले 6 महीनों में कपास की कीमतें करीब 35 फीसदी बढ़ी हैं जिससे धागे के भाव बढऩे की वजह से कपड़े की कीमतें भी प्रभावित हो रही थीं। कपास की बढ़ती कीमतों की वजह से कपड़ा कारोबारियों ने भी अब अपने दाम 10-15 फीसदी तक बढ़ा दिए हैं। यार्न उत्पादकों की तरफ से बढ़ते दबाव को देखते हुए कपड़ा कारोबारी अगले 1 महीने में कीमतों में 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी और कर सकते हैं। दीवाली से ऐन पहले कीमतों में की गई बढ़ोतरी कपड़े की बिक्री को प्रभावित कर सकती है। 6 महीने पहले कपास की कीमतें 31000 रुपये प्रति कैंडी थी जो निर्यात की हवा से अब 42000 रुपये प्रति कैंडी से ऊपर पहुंच गई हैं। 1 साल पहले कपास 25000 रुपये प्रति कैंडी बिक रहा था। इस तरह देखा जाए तो 1 साल के अंदर कपास की कीमतें 68 फीसदी जबकि 6 महीने में 35 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं। कपास की कीमतें बढऩे की वजह से बुनकरों की मजबूरी है कि वह अपने उत्पाद के लिए अधिक दाम मांगे। यार्न की कीमतें भी पिछले छह महीने में करीब 25 फीसदी तक बढ़ाई जा चुकी है। इसके बावजूद कपड़े के भाव पर ज्यादा असर नहीं दिखाई दे रहा था। लेकिन दशहरे के बाद कपड़ा कारोबारियों द्वारा भी कीमतें बढ़ाए जाने का ऐलान किया जाने लगा है। देश में यूनिफार्म बनाने वाली अग्रणी कंपनी जी फॉब के केतुल शाह कहते हैं कि इस बार देश में अधिक कपास उत्पादन की खबरें आ रही हैं जिसकी वजह से हमको लग रहा था कि कपास की कीमतें नियंत्रित हो जाएंगी, इसके अलावा हमारे पास करीब 3 महीने का स्टॉक भी था जिससे हमने अभी तक कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की थी लेकिन मजबूरी वश हमको कीमतों में बढ़ोतरी करनी ही पड़ी। केतुल शाह कहते हैं कि दशहरे के बाद हमने अपने उत्पादों में 8-15 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है जो आगे कपास की कीमतों पर निर्भर करेंगी कि इनको कम किया जाए या और बढ़ाया जाए।कपड़ा कारोबारियों की प्रमुख संस्था भारत मर्चेंट चैंबर के अध्यक्ष एवं राज फैब्रिक के चेयरमैन राजीव सिंघल कहते हैं कि दीवाली से ऐन पहले कीमतों में बढ़ोतरी करना सही कदम नहीं कहा जा सकता है लेकिन कच्चे माल की कीमतें आसमान पर जाने की वजह से मजबूरन कीमतों में बढ़ोतरी करनी ही पड़ी है। सिंघल के अनुसार कपड़ों के हिसाब से अलग अलग बढ़ोतरी की गई है। फिलहाल औसतन कपड़े की कीमतों में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और कपास की बढ़ती कीमतों पर लगाम नहीं लगाया गया तो अगले एक दो महीने में एक और बढ़ोतरी बाजार में देखने को मिलेगी, क्योंकि कोई भी कारोबारी घाटे में सौदा नहीं कर सकता है।महाराष्ट्र टेक्सटाइल मर्चेंट मैन्यूफेक्चरस एसोसिएशन केमुंबई रीजन के अध्यक्ष एवं जीडीपी समूह के चेयरमैन शंकर केजरीवाल के अनुसार कपास की कीमतों की वजह से उत्पादन इकाइयां प्रभावित हो रही हैं। वर्तमान में जो कीमतें बढ़ाई गई हैं इसके बाद भी कपास की कीमतें नियंत्रण में नहीं आई तो 1-2 महीने में कपड़े के दाम 15-20 फीसदी तक और बढ़ जाएंगे। कपास की तेजी ने कारोबारियों के आगे दो ही रास्ते छोड़े हैं, कीमतों में बढ़ोतरी करेंं या फिर उत्पादन इकाइयों में ताला लगा दें। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। (BS Hindi)
कपास की कीमतों में जबरदस्त तेजी का असर अब कपड़ा बाजार पर भी पडऩे लगा है। पिछले 6 महीनों में कपास की कीमतें करीब 35 फीसदी बढ़ी हैं जिससे धागे के भाव बढऩे की वजह से कपड़े की कीमतें भी प्रभावित हो रही थीं। कपास की बढ़ती कीमतों की वजह से कपड़ा कारोबारियों ने भी अब अपने दाम 10-15 फीसदी तक बढ़ा दिए हैं। यार्न उत्पादकों की तरफ से बढ़ते दबाव को देखते हुए कपड़ा कारोबारी अगले 1 महीने में कीमतों में 10 फीसदी तक की बढ़ोतरी और कर सकते हैं। दीवाली से ऐन पहले कीमतों में की गई बढ़ोतरी कपड़े की बिक्री को प्रभावित कर सकती है। 6 महीने पहले कपास की कीमतें 31000 रुपये प्रति कैंडी थी जो निर्यात की हवा से अब 42000 रुपये प्रति कैंडी से ऊपर पहुंच गई हैं। 1 साल पहले कपास 25000 रुपये प्रति कैंडी बिक रहा था। इस तरह देखा जाए तो 1 साल के अंदर कपास की कीमतें 68 फीसदी जबकि 6 महीने में 35 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ चुकी हैं। कपास की कीमतें बढऩे की वजह से बुनकरों की मजबूरी है कि वह अपने उत्पाद के लिए अधिक दाम मांगे। यार्न की कीमतें भी पिछले छह महीने में करीब 25 फीसदी तक बढ़ाई जा चुकी है। इसके बावजूद कपड़े के भाव पर ज्यादा असर नहीं दिखाई दे रहा था। लेकिन दशहरे के बाद कपड़ा कारोबारियों द्वारा भी कीमतें बढ़ाए जाने का ऐलान किया जाने लगा है। देश में यूनिफार्म बनाने वाली अग्रणी कंपनी जी फॉब के केतुल शाह कहते हैं कि इस बार देश में अधिक कपास उत्पादन की खबरें आ रही हैं जिसकी वजह से हमको लग रहा था कि कपास की कीमतें नियंत्रित हो जाएंगी, इसके अलावा हमारे पास करीब 3 महीने का स्टॉक भी था जिससे हमने अभी तक कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की थी लेकिन मजबूरी वश हमको कीमतों में बढ़ोतरी करनी ही पड़ी। केतुल शाह कहते हैं कि दशहरे के बाद हमने अपने उत्पादों में 8-15 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है जो आगे कपास की कीमतों पर निर्भर करेंगी कि इनको कम किया जाए या और बढ़ाया जाए।कपड़ा कारोबारियों की प्रमुख संस्था भारत मर्चेंट चैंबर के अध्यक्ष एवं राज फैब्रिक के चेयरमैन राजीव सिंघल कहते हैं कि दीवाली से ऐन पहले कीमतों में बढ़ोतरी करना सही कदम नहीं कहा जा सकता है लेकिन कच्चे माल की कीमतें आसमान पर जाने की वजह से मजबूरन कीमतों में बढ़ोतरी करनी ही पड़ी है। सिंघल के अनुसार कपड़ों के हिसाब से अलग अलग बढ़ोतरी की गई है। फिलहाल औसतन कपड़े की कीमतों में 15 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और कपास की बढ़ती कीमतों पर लगाम नहीं लगाया गया तो अगले एक दो महीने में एक और बढ़ोतरी बाजार में देखने को मिलेगी, क्योंकि कोई भी कारोबारी घाटे में सौदा नहीं कर सकता है।महाराष्ट्र टेक्सटाइल मर्चेंट मैन्यूफेक्चरस एसोसिएशन केमुंबई रीजन के अध्यक्ष एवं जीडीपी समूह के चेयरमैन शंकर केजरीवाल के अनुसार कपास की कीमतों की वजह से उत्पादन इकाइयां प्रभावित हो रही हैं। वर्तमान में जो कीमतें बढ़ाई गई हैं इसके बाद भी कपास की कीमतें नियंत्रण में नहीं आई तो 1-2 महीने में कपड़े के दाम 15-20 फीसदी तक और बढ़ जाएंगे। कपास की तेजी ने कारोबारियों के आगे दो ही रास्ते छोड़े हैं, कीमतों में बढ़ोतरी करेंं या फिर उत्पादन इकाइयों में ताला लगा दें। लंबे समय तक इंतजार करने के बाद कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। (BS Hindi)
25 अक्तूबर 2010
घरेलू इलायची के मूल्य पर दबाव
पैदावार बढऩे और निर्यात मांग कमजोर होने से चालू महीने में इलायची की कीमतों में करीब 25 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। वायदा बाजार में सप्ताह भर में ही इसके दाम करीब दस फीसदी तक घट चुके हैं। देश में इलायची की पैदावार करीब 13 फीसदी बढऩे का अनुमान है। उधर ग्वाटेमाला में भी नई फसल की आवक शुरू हो गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले ग्वाटेमाला की इलायची चार डॉलर प्रति किलो सस्ती है। ऐसे में घरेलू बाजार में नवंबर मध्य के बाद इलायची की मौजूदा कीमतों में और भी आठ-दस फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। अनुकूल मौसम से चालू फसल सीजन में देश में इलायची की पैदावार 13 फीसदी बढऩे का अनुमान है। पिछल साल देश में 12,800 टन इलायची की पैदावार हुई थी जबकि चालू सीजन में पैदावार बढ़कर 14,500 टन होने का अनुमान है। इस समय नीलामी केद्रों पर इलायची की साप्ताहिक आवक बढ़कर 300-350 टन हो गई है। इस समय घरेलू बाजार में त्यौहारी मांग बनी हुई है लेकिन दीपावली के बाद त्यौहारी मांग कम हो जाएगी, साथ ही आवक बढऩे की संभावना है। इसीलिए नीलामी केंद्रों पर इलायची की मौजूदा कीमतों में और भी करीब 100 रुपये प्रति किलो की गिरावट आने की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) के दौरान इलायची का निर्यात 33 फीसदी घटा है। इस दौरान 200 टन इलायची का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 300 टन निर्यात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची का भाव 19 से 24 डॉलर प्रति किलो है। जबकि ग्वाटेमाला की इलायची का भाव 15 से 19 डॉलर प्रति किलो है। पिछले एक महीने में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची की कीमतों में करीब सात डॉलर प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। ग्वाटेमाला में भी चालू सीजन में इलायची की पैदावार पिछले साल के 15 हजार टन से बढ़कर 18 हजार टन होने का अनुमान है। ग्वाटेमाला से शिपमेंट भी चालू हो गई है। नवंबर-दिसंबर में ग्वाटेमाला में भी आवक बढ़ जाएगी। ऐसे में भारत से निर्यात मांग में और भी कमी आने की संभावना है। नीलामी केंद्रों पर इलायची की दैनिक आवक बढ़कर 50-60 टन की हो गई है। पिछले एक महीने में इसके दाम करीब 200-250 रुपये प्रति किलो तक घट चुके हैं। कोच्चि में शनिवार को 6.5 एमएम क्वालिटी की इलायची का भाव घटकर 800-810 रुपये, 7 एमएम क्वालिटी की इलायची का भाव घटकर 850-860 रुपये, 7.5 एमएम क्वालिटी की इलायची का भाव 900-910 से और आठ एमएम क्वालिटी की इलायची का भाव घटकर 960 से 1,000 रुपये प्रति किलो रह गया। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमएसीएक्स) पर पिछले सप्ताह भर में इलायची की कीमतों में 9.6 फीसदी का मंदा आया है। 14 अक्टूबर को इलायची का भाव 1,022 रुपये प्रति किलो था जबकि शनिवार को भाव घटकर 923 रुपये प्रति किलो रह गए। - - आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.net बात पते कीदिवाली के बाद इलायची की त्यौहारी मांग कम हो जाएगी, साथ ही आवक बढऩे की संभावना है। इसीलिए नीलामी केंद्रों पर इलायची की मौजूदा कीमतों में और भी करीब 100 रुपये प्रति किलो की गिरावट आने की संभावना है। (Business Bhaskar...r s rana)
खुले आकाश तले खाद्यान्न नहीं रखना पड़ेगा सरकार को
खुले आकाश के नीचे सरकारी अनाज सडऩे की नौबत शायद अगले साल नहीं आएगी। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल से नए गोदाम बनाए जाने की योजना में कोई अड़ंगा नहीं लगा तो एक साल में 164 लाख टन अनाज रखने के लिए नए गोदाम उपलब्ध हो जाएंगे। नए गोदाम बनाने के लिए प्राप्त हुई निविदाओं के मूल्यांकन का काम अंतिम चरण में है। उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) द्वारा नवंबर मध्य नए गोदामों को मंजूरी दे दी जाएगी। निवेशकों को नए गोदाम 12 महीने के भीतर तैयार करने हैं।एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हर राज्य में एक नोडल एजेंसी बनाई गई है। हरियाणा में हेफेड को नोडल एजेंसी बनाया गया है। जबकि पंजाब में पनग्रेन ओर पंजाब स्टेट वेयर हाउस कारपोरेशन को नोडल एजेंसी बनाया गया है। राज्य सरकारों द्वारा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत दस साल के लिए संशोधित गारंटी योजना के तहत मांगी गई निविदा में निवेशकों ने काफी अच्छा उत्साह दिखाया है। पंजाब और हरियाणा में तय सीमा से क्रमश: दो और चार गुना ज्यादा क्षमता के गोदामों के लिए निविदाएं प्राप्त हुईं। इनके मूल्यांकन का काम अंतिम चरण में है। एफसीआई की उच्च स्तीय समिति की नवंबर महीने में होने वाली बैठक में गोदामों के निर्माण को मंजूरी दे दी जाएगी।हरियाणा मे एफसीआई के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हरियाणा में 38.80 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित करनी है। जबकि राज्य में 120 लाख टन क्षमता के गोदाम बनाने की निविदा प्राप्त हुईं। उधर पंजाब में 51.25 लाख के गोदाम बनाने हैं जबकि निविदा 100 लाख टन क्षमता के गोदामों के लिए प्राप्त हुईं। इन राज्यों में निविदा के मूल्यांकन का काम लगभग पूरा हो चुका है। उन्होंने बताया कि निवेशकों को गोदाम तैयार करने के लिए एक साल का समय दिया गया है। निर्माण में देरी होने पर जुर्माने का प्रावधान है। इसलिए उम्मीद है कि ज्यादातर गोदाम अगले 9 से 12 महीने में बनकर तैयार हो जाएंगे। अन्य राज्यों में राजस्थान में 2.60 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 26.81 लाख टन, मध्य प्रदेश में 2.95 लाख टन, केरल में 15 हजार टन, कर्नाटक में 6.36 लाख टन, आंध्र प्रदेश में 5.56 लाख टन, तमिलनाडु में 3.45 लाख टन, महाराष्ट्र में 8.14 लाख टन, छत्तीसगढ़ में 5,000 टन, गुजरात में 3.52 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 1.56 लाख टन, झारखंड में 1.75 लाख टन, बिहार में 3 लाख टन, हिमाचल प्रदेश में 1.42 लाख टन, जम्मू-कश्मीर में 3.61 लाख टन, उत्तराखंड में 25 हजार टन, और उड़ीसा में तीन लाख टन की भंडारण क्षमता बढ़ानी है। उन्होंने बताया कि एफसीआई के अलावा अन्य एजेंसियों और राज्य सरकारों के पास इस समय अनाज भंडारण की कुल क्षमता 308 लाख टन है। करीब 164 लाख टन की भंडारण की अतिरिक्त क्षमता मिलने के बाद कुल भंडारण क्षमता बढ़कर 472 लाख टन की हो जाएगी। पहली अक्टूबर को केंद्रीय पूल में 462.21 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूदा है जो तय मानकों 212 लाख टन बफर के दोगुने से ज्यादा है। इस लिहाज से सरकार के पास उपलब्ध अनाज से कहीं ज्यादा भंडारण क्षमता होगी। ऐसे में खुले आकाश के नीचे तिरपाल से ढककर अनाज रखने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उल्लेखनीय है कि पिछले महीनों के दौरान बारिश के दौरान खुले में रखा अनाज खराब होने के कारण सरकार को खासी आलोचना झेलनी पड़ी थी।बात पते कीखुले आकाश के नीचे तिरपाल से ढककर अनाज रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पिछले महीने बारिश के दौरान खुले में रखा अनाज खराब होने के कारण सरकार को खासी आलोचना झेलनी पड़ी थी। (Business Bhaskar.....r s rana)
टायरों के घरेलू उत्पादन में 29 प्रतिशत की बढ़त
कोच्चि October 24, 2010
भारत में गाडिय़ों की बिक्री में जबरदस्त इजाफा होने से इसका सकारात्मक प्रभाव टायर के घरेलू उत्पादन पर पड़ा है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-अगस्त माह के दौरान टायर का कुल घरेलू उत्पादन लगभग 29 फीसदी बढ़ा है। इस अवधि में प्राय: सभी तरह के टायरों के उत्पादन में वृद्घि देखी गई। टायर निर्माता संघ (एटीएमए) के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि आलोच्य अवधि के दौरान सभी बड़ी टायर कंपनियों का कुल उत्पादन बढ़कर 4,71,20,250 टायर हो गया। जबकि पिछले साल इसी अवधि में कंपनियों ने 3,66,51,250 टायरों का उत्पादन किया था। आंकड़ों के मुताबिक उत्पादन में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी स्कूटर सेगमेंट के टायरों में 65 फीसदी रही। जबकि तीन पहिये वाली गाडिय़ों के टायरों का उत्पादन 44 फीसदी और यात्री कारों के टायरों का उत्पादन 43 फीसदी बढ़ा। टायरों के उत्पादन में वृद्घि के बाद भी इसके दामों में बढ़ोतरी दर्ज हुई। टायरों का मूल्य बढ़ाने में प्राकृतिक रबर का अहम योगदान रहा। हाल के दिनों में प्रकृतिक रबर के दामों में वृद्घि से टायर का उत्पादन खर्च बढ़ गया है। इसके अलावा गाडिय़ों की बिक्री बढऩे से टायरों की मांग में खूब इजाफा हुआ है। जिसके चलते टायर महंगे हुए हैं। भारतीय वाहन विनिर्माता संघ (सियाम) के आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल-सितंबर अवधि के दौरान वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 41.59 फीसदी बढ़ी। जबकि कारों की बिक्री 33.58 फीसदी और दोपहिया वाहनों की बिक्री में 25.86 फीसदी का इजाफा हुआ। निश्चित रूप से गाडिय़ों की बिक्री में वृद्घि का असर इसके मूलभूत उपकरणों पर भी दिखा। खासकर टायरों के उत्पादन पर। इस साल अप्रैल-अगस्त माह के दौरान भारत में स्कूटर सेगमेंट में 74,59,185 टायरों का उत्पादन हुआ। वहीं यात्री कारों के टायरों का उत्पादन बढ़कर 1,02,91,161 इकाई पहुंच गया। जबकि पिछले साल की इसी अवधि में केवल 71,72,530 टायरों का निर्माण हुआ था। एटीएमए के आंकड़ों के अनुसार ट्रक और बसों के टायरों के उत्पादन में करीब 2 फीसदी की वृद्घि दर्ज हुई और यह 61,05,900 से बढ़कर 62,46,811 टायर हो गया। इसी तरह मोटरसाइकिल के टायरों का उत्पादन भी 30 फीसदी तक बढ़ा। वर्ष 2009-10 में अप्रैल-अगस्त माह के दौरान मोटरसाइकिल के 1,33,75,130 टायरों का उत्पादन हुआ था जबकि इस साल इसी अवधि में यह बढ़कर 1,74,20,421 टायर हो गया। (BS Hindi)
भारत में गाडिय़ों की बिक्री में जबरदस्त इजाफा होने से इसका सकारात्मक प्रभाव टायर के घरेलू उत्पादन पर पड़ा है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-अगस्त माह के दौरान टायर का कुल घरेलू उत्पादन लगभग 29 फीसदी बढ़ा है। इस अवधि में प्राय: सभी तरह के टायरों के उत्पादन में वृद्घि देखी गई। टायर निर्माता संघ (एटीएमए) के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि आलोच्य अवधि के दौरान सभी बड़ी टायर कंपनियों का कुल उत्पादन बढ़कर 4,71,20,250 टायर हो गया। जबकि पिछले साल इसी अवधि में कंपनियों ने 3,66,51,250 टायरों का उत्पादन किया था। आंकड़ों के मुताबिक उत्पादन में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी स्कूटर सेगमेंट के टायरों में 65 फीसदी रही। जबकि तीन पहिये वाली गाडिय़ों के टायरों का उत्पादन 44 फीसदी और यात्री कारों के टायरों का उत्पादन 43 फीसदी बढ़ा। टायरों के उत्पादन में वृद्घि के बाद भी इसके दामों में बढ़ोतरी दर्ज हुई। टायरों का मूल्य बढ़ाने में प्राकृतिक रबर का अहम योगदान रहा। हाल के दिनों में प्रकृतिक रबर के दामों में वृद्घि से टायर का उत्पादन खर्च बढ़ गया है। इसके अलावा गाडिय़ों की बिक्री बढऩे से टायरों की मांग में खूब इजाफा हुआ है। जिसके चलते टायर महंगे हुए हैं। भारतीय वाहन विनिर्माता संघ (सियाम) के आंकड़ों के अनुसार इस साल अप्रैल-सितंबर अवधि के दौरान वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री 41.59 फीसदी बढ़ी। जबकि कारों की बिक्री 33.58 फीसदी और दोपहिया वाहनों की बिक्री में 25.86 फीसदी का इजाफा हुआ। निश्चित रूप से गाडिय़ों की बिक्री में वृद्घि का असर इसके मूलभूत उपकरणों पर भी दिखा। खासकर टायरों के उत्पादन पर। इस साल अप्रैल-अगस्त माह के दौरान भारत में स्कूटर सेगमेंट में 74,59,185 टायरों का उत्पादन हुआ। वहीं यात्री कारों के टायरों का उत्पादन बढ़कर 1,02,91,161 इकाई पहुंच गया। जबकि पिछले साल की इसी अवधि में केवल 71,72,530 टायरों का निर्माण हुआ था। एटीएमए के आंकड़ों के अनुसार ट्रक और बसों के टायरों के उत्पादन में करीब 2 फीसदी की वृद्घि दर्ज हुई और यह 61,05,900 से बढ़कर 62,46,811 टायर हो गया। इसी तरह मोटरसाइकिल के टायरों का उत्पादन भी 30 फीसदी तक बढ़ा। वर्ष 2009-10 में अप्रैल-अगस्त माह के दौरान मोटरसाइकिल के 1,33,75,130 टायरों का उत्पादन हुआ था जबकि इस साल इसी अवधि में यह बढ़कर 1,74,20,421 टायर हो गया। (BS Hindi)
खाद्यान्न ही नहीं, खाद भी मिलावटी
नई दिल्ली October 24, 2010
नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश की मिलावट वाले एनपीके मिश्रण में करीब एक चौथाई सामान्यतया कम गुणवत्ता वाले होते हैं। वहीं करीब 12 प्रतिशत सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) जो फॉस्फेटिक फर्टिलाइजर वाले सल्फर के रूप में जाना जाता है, खराब गुणवत्ता वाला है।ये आंकड़े देश की प्रमुख 71 उर्वरक प्रयोगशालाओं से सामने आए हैं, जिनका उन्होंने पिछले 5 साल के दौरान परीक्षण किया है। 2004-05 से 2008-09 के बीच किए गए इन परीक्षणों के लिए करीब 1 लाख नमूनों का परीक्षण हर साल किया गया।हाल में हुई रबी कान्फ्रेंस 2010 में कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक नोट में कहा गया है कि हर साल करीब 5000-6000 नमूने अलग गुणवत्ता के होते हैं, जो मानकों को पूरा नहीं करते। डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के मामले में खराब गुणवत्ता के नमूने 3 प्रतिशत हैं, जो प्रमुख फॉस्फेटिक उर्वरक है। वहीं यूरिया के मामले में 0.5 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता के मिले, जो नाइट्रोजन वाले उर्वरक के रूप में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। वहीं कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (सीएएन) और म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) जैसे अन्य उर्वरकों के मामले में 1-2 प्रतिशत मामले खराब गुणवत्ता वाले आए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के प्रसार में महाराष्ट्र अन्य राज्यों को पीछे छोड़कर पहले स्थान पर बरकरार है। इस राज्य में एकत्र किए गए नमूनों में से 17 प्रतिशत उर्वरक नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते। इसके बाद महाराष्ट्र आता है, जहां 13 प्रतिशत से ज्यादा नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरकों में उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में 8-9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश और केरल में 5-6 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। अन्य राज्यों में खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के नमूनों का प्रतिशत 0.7 से 5 है। कृ षि मंत्रालय के नोट में कहा गया है कि इससे संकेत मिलता है कि कम गुणवत्ता वाले उर्वरक का प्रसार इससे कहीं ज्यादा हो सकता है, जो इन आंकड़ों में सामने आया है। उर्वरक की गुणवत्ता, कीमतों, कारोबार व वितरण का नियमन फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के तहत होता है। मंत्रालय ने अपने नोट में कहा है, 'तमाम राज्य इसके खिलाफ कदम उठाते हैं, लेकिन इसमें से कुछ मामले ही न्यायालय तक पहुंचते हैं। अपराधियों को दंडित किए जाने के मामले तो दुर्लभ हैं।'राज्यों द्वारा केंद्र सरकार को विनिर्माता के आधार पर खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक मुहैया कराने की बाध्यता है। खासकर यूरिया के मामले में अगर कोई खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक उपलब्ध कराता है तो उपलब्ध कराई जाने वाली सब्सिडी में से कटौती का प्रावधान है। लेकिन कोई भी राज्य नियमित रूप से यह आंकड़ा नहीं देता है। मंत्रालय के नोट में कहा गया है, 'कई बार इस सिलसिले में निवेदन के बावजूद अभी भी ज्यादातर राज्यों से आंकड़े आने का इंतजार है। इस तरह के राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। इन राज्यों ने पिछले 3 साल, 2006-07 से आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।' (BS Hindi)
नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश की मिलावट वाले एनपीके मिश्रण में करीब एक चौथाई सामान्यतया कम गुणवत्ता वाले होते हैं। वहीं करीब 12 प्रतिशत सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) जो फॉस्फेटिक फर्टिलाइजर वाले सल्फर के रूप में जाना जाता है, खराब गुणवत्ता वाला है।ये आंकड़े देश की प्रमुख 71 उर्वरक प्रयोगशालाओं से सामने आए हैं, जिनका उन्होंने पिछले 5 साल के दौरान परीक्षण किया है। 2004-05 से 2008-09 के बीच किए गए इन परीक्षणों के लिए करीब 1 लाख नमूनों का परीक्षण हर साल किया गया।हाल में हुई रबी कान्फ्रेंस 2010 में कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक नोट में कहा गया है कि हर साल करीब 5000-6000 नमूने अलग गुणवत्ता के होते हैं, जो मानकों को पूरा नहीं करते। डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के मामले में खराब गुणवत्ता के नमूने 3 प्रतिशत हैं, जो प्रमुख फॉस्फेटिक उर्वरक है। वहीं यूरिया के मामले में 0.5 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता के मिले, जो नाइट्रोजन वाले उर्वरक के रूप में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। वहीं कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (सीएएन) और म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) जैसे अन्य उर्वरकों के मामले में 1-2 प्रतिशत मामले खराब गुणवत्ता वाले आए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के प्रसार में महाराष्ट्र अन्य राज्यों को पीछे छोड़कर पहले स्थान पर बरकरार है। इस राज्य में एकत्र किए गए नमूनों में से 17 प्रतिशत उर्वरक नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते। इसके बाद महाराष्ट्र आता है, जहां 13 प्रतिशत से ज्यादा नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरकों में उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में 8-9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश और केरल में 5-6 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। अन्य राज्यों में खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के नमूनों का प्रतिशत 0.7 से 5 है। कृ षि मंत्रालय के नोट में कहा गया है कि इससे संकेत मिलता है कि कम गुणवत्ता वाले उर्वरक का प्रसार इससे कहीं ज्यादा हो सकता है, जो इन आंकड़ों में सामने आया है। उर्वरक की गुणवत्ता, कीमतों, कारोबार व वितरण का नियमन फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के तहत होता है। मंत्रालय ने अपने नोट में कहा है, 'तमाम राज्य इसके खिलाफ कदम उठाते हैं, लेकिन इसमें से कुछ मामले ही न्यायालय तक पहुंचते हैं। अपराधियों को दंडित किए जाने के मामले तो दुर्लभ हैं।'राज्यों द्वारा केंद्र सरकार को विनिर्माता के आधार पर खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक मुहैया कराने की बाध्यता है। खासकर यूरिया के मामले में अगर कोई खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक उपलब्ध कराता है तो उपलब्ध कराई जाने वाली सब्सिडी में से कटौती का प्रावधान है। लेकिन कोई भी राज्य नियमित रूप से यह आंकड़ा नहीं देता है। मंत्रालय के नोट में कहा गया है, 'कई बार इस सिलसिले में निवेदन के बावजूद अभी भी ज्यादातर राज्यों से आंकड़े आने का इंतजार है। इस तरह के राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। इन राज्यों ने पिछले 3 साल, 2006-07 से आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।' (BS Hindi)
23 अक्तूबर 2010
गुड़ की कीमतों में अभी रहेगा गिरावट का रुख
उत्पादक मंडियों में नये गुड़ की आवक बनने से कीमतों में गिरावट बननी शुरू हो गई है। पिछले पंद्रह दिनों में वायदा बाजार में गुड़ की कीमतों में 3.3 फीसदी और हाजिर बाजार में 5 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी और चीनी के दाम कम होने का असर गुड़ की कीमतों पर भी रहेगा। चालू सीजन में उत्तर प्रदेश में गन्ने के बुवाई क्षेत्रफल में 1.24 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल गुड़ स्टॉकिस्टों को भारी घाटा उठाना पड़ा था इसलिए नए सीजन में स्टॉकिस्टों की खरीद भी कम रहेगी। ऐसे में नवंबर में गुड़ की मौजूदा कीमतों में और भी आठ-दस फीसदी गिरावट के आसार हैं।वायदा में गिरावट शुरू नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवशकों की मुनाफावसूली से गुड़ की कीमतों में गिरावट आई है। पिछले पंद्रह दिनों में एनसीडीईएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 3.3 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। आठ अक्टूबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में गुड़ का भाव 947.20 रुपये प्रति 40 किलो था जो22 अक्टूबर को घटकर 915.40 रुपये प्रति 40 किलो रह गया। दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 9,320 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि उत्पादक मंडियों में नए गुड़ की आवक शुरू हो गई है लेकिन स्टॉकिस्टों की खरीद कमजोर बनी हुई है। ऐसे में आवक का दबाव बनने पर मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आ सकती है। गन्ने की पैदावार ज्यादा कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू सीजन में उत्तर प्रदेश में 21.01 लाख हैक्टेयर में गन्ने की बुवाई हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 19.77 लाख हैक्टेयर में हुई थी। हालांकि राज्य के कुछेक क्षेत्रों में बाढ़ से गन्ने की फसल प्रभावित भी हुई है लेकिन प्रति हैक्टेयर उत्पादन और बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी को देखते हुए गन्ने की पैदावार पिछले साल से ज्यादा होने की संभावना है। दीपावली बाद बढ़ेगी गुड़ की आवक फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बताया कि नए गुड़ की आवक तो शुरू हो गई है लेकिन आवक का दबाव दीपावली बाद ही बनने की संभावना है। चालू सीजन में गन्ने का उत्पादन तो ज्यादा रहेगा ही साथ में चीनी की कीमतें भी पिछले साल की तुलना में काफी कम है। इसका असर चालू पेराई सीजन में गुड़ की कीमतों पर पडऩे की संभावना है। नए गुड़ की आवक शुरू गुड़ के थोक कारोबारी मांगी लाल मुंदड़ा ने बताया कि मुजफ्फरनगर मंडी में 10 से 12 हजार मन (एक मन-40 किलो) की आवक शुरू हो गई है। आवक के मुकाबले मांग कम होने से कीमतों में गिरावट आई है। पिछले पंद्रह दिनों में इसकी कीमतों में पांच फीसदी की गिरावट आ चुकी है। शुक्रवार को मंडी में चाकू गुड़ का भाव 1,100 से घटकर 1,150 रुपये और खुरप्पापाड़ का भाव 1,000 रुपये प्रति 40 किलो रह गया। (Business Bhaskar....r s rana)
चाशनी में डूबेगा उत्तर प्रदेश
लखनऊ October 21, 2010
उत्तर प्रदेश में इस साल पेराई सत्र के दौरान चीनी उत्पादन 30 फीसदी बढ़कर 65 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। 2008-09 में यह आंकड़ा 40 लाख टन था। हाल ही में आई बाढ़ के कारण पेराई सत्र थोड़ा देर यानी नवंबर के मध्य से शुरू हो सकता है। इस साल देश में गन्ने का बुआई क्षेत्र और उत्पादन बढ़कर क्रमश: 21 लाख हेक्टेयर और 12.4 करोड़ टन होने का अनुमान है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के सचिव के एन शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हालांकि बाढ़ के कारण फसल को नुकसान हुआ है, जिससे लक्षित आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है।' इस बार अच्छा मॉनसून रहने से वसूली फीसदी बढ़कर 9.40 फीसदी होने की उम्मीद है, जिसका मतलब है गन्ने की प्रति इकाई से अधिक चीनी उत्पादन। अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा नहीं की है। पिछले साल एसएपी 165 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन गन्ने की कमी और चीनी के रिकॉर्ड दाम के कारण मिलें किसानों से 280-300 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही थीं।हालांकि इस सत्र में चीनी के भाव गिरकर 2,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। राज्य में पंचायत चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गन्ने का एसएपी तय करेगी। गन्ना किसानों ने साफ कह दिया है कि वे 300 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर नहीं मानेंगे। उनका तर्क है कि गन्ना उगाने की लागत ही बढ़कर 250 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है और उन्हें कम से कम 50 रुपये प्रति क्विंटल का मार्जिन चाहिए। उत्तर प्रदेश सहकारी गन्ना सोसायटी महासंघ के श्रीकांत सिंह कहते हैं, 'गन्ना आयुक्त के साथ 12 अक्टूबर को हुई हमारी बैठक में हमने 325 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की थी। हमने कहा था कि इसमें शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला शीरा भी शामिल किया जाना चाहिए।' दूसरी ओर मिलों ने पिछले साल के दाम देने में असमर्थता जता दी है। शुक्ला ने बताया, 'हम चाहते हैं कि सरकार 180 रुपये प्रति क्विंटल एसएपी तय करे।'पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ इकाइयां गन्ने के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल दे रही हैं। गुड़, खांडसारी और अनाज व्यापारी संघ के सदस्य नरेंद्र कुमार ने बताया कि नवंबर के पहले हफ्ते में खांडसारी इकाइयां भी काम करना शुरू कर देंगी। देश में होने वाले कुल गन्ना बुआई क्षेत्र में राज्य की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। (BS Hindi)
उत्तर प्रदेश में इस साल पेराई सत्र के दौरान चीनी उत्पादन 30 फीसदी बढ़कर 65 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। 2008-09 में यह आंकड़ा 40 लाख टन था। हाल ही में आई बाढ़ के कारण पेराई सत्र थोड़ा देर यानी नवंबर के मध्य से शुरू हो सकता है। इस साल देश में गन्ने का बुआई क्षेत्र और उत्पादन बढ़कर क्रमश: 21 लाख हेक्टेयर और 12.4 करोड़ टन होने का अनुमान है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के सचिव के एन शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हालांकि बाढ़ के कारण फसल को नुकसान हुआ है, जिससे लक्षित आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है।' इस बार अच्छा मॉनसून रहने से वसूली फीसदी बढ़कर 9.40 फीसदी होने की उम्मीद है, जिसका मतलब है गन्ने की प्रति इकाई से अधिक चीनी उत्पादन। अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा नहीं की है। पिछले साल एसएपी 165 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन गन्ने की कमी और चीनी के रिकॉर्ड दाम के कारण मिलें किसानों से 280-300 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही थीं।हालांकि इस सत्र में चीनी के भाव गिरकर 2,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। राज्य में पंचायत चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गन्ने का एसएपी तय करेगी। गन्ना किसानों ने साफ कह दिया है कि वे 300 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर नहीं मानेंगे। उनका तर्क है कि गन्ना उगाने की लागत ही बढ़कर 250 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है और उन्हें कम से कम 50 रुपये प्रति क्विंटल का मार्जिन चाहिए। उत्तर प्रदेश सहकारी गन्ना सोसायटी महासंघ के श्रीकांत सिंह कहते हैं, 'गन्ना आयुक्त के साथ 12 अक्टूबर को हुई हमारी बैठक में हमने 325 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की थी। हमने कहा था कि इसमें शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला शीरा भी शामिल किया जाना चाहिए।' दूसरी ओर मिलों ने पिछले साल के दाम देने में असमर्थता जता दी है। शुक्ला ने बताया, 'हम चाहते हैं कि सरकार 180 रुपये प्रति क्विंटल एसएपी तय करे।'पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ इकाइयां गन्ने के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल दे रही हैं। गुड़, खांडसारी और अनाज व्यापारी संघ के सदस्य नरेंद्र कुमार ने बताया कि नवंबर के पहले हफ्ते में खांडसारी इकाइयां भी काम करना शुरू कर देंगी। देश में होने वाले कुल गन्ना बुआई क्षेत्र में राज्य की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। (BS Hindi)
चावल निर्यातक काटेंगे चांदी!
चंडीगढ़ October 22, 2010
भारत के चावल निर्यातकों को इस साल बेहतर उम्मीदें नजर आ रही हैं। बाासमती चावल के अधिक उत्पादन के अनुमानों से खुश निर्यातकों को इस साल निर्यात को लेकर बेहतर आसार हैं। वैश्विक बाजार में निर्यात के लिए माकूल अवसर हैं। फिलीपींस में तूफान की वजह से फसलों को नुकसान पहुंचा है, वहीं थाइलैंड और पाकिस्तान में बाढ़ के चलते फसल तबाह हुई है। ऐसे में भारत के निर्यातक उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें वैश्विक बाजार में बेहतर दाम मिलेंगे। दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के पहले हिस्से में ज्यादा बारिश होने की वजह से बासमती उत्पादन की बेहतर संभावनाएं बनी हैं। इसकी वजह है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में देर से बोई जाने वाली बासमती की किस्मों की बुआई हुई है और कुल मिलाकर बासमती का रकबा बढ़ा है। आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन और एग्रीकल्चर ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए) के अनुमानों के मुताबिक बासमती डेवलपमेंट फंड के सहयोग का फायदा हुआ है। इसके चलते बासमती का रकबा इस साल बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल 14 लाख हेक्टेयर था।पिछले साल बासमती चावल का कुल उत्पादन करीब 45 लाख टन था। कारोबारियों, किसानों और निर्यातकों का मानना है कि इस साल उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। ज्यादा उत्पादन से निर्यातकों को बेहतर मुनाफा मिलने की उम्मीद है। अधिक आपूर्ति की वजह से निर्यातकों को किसानों से मोलभाव करने का भी मौका मिलेगा। एपीईडीए से जुड़े सूत्रों के मुताबिक चावल उद्योग और एपीईडीए के साथ पंजीकृत कारोबारियों ने कुल 32 लाख टन चावल खरीद के ऑर्डर दिए हैं। साथ ही वास्तविक निर्यात 20 लाख टन रहने की उम्मीद है। लेकिन निर्यातकोंं का कहा है कि डीजीएफटी के बंदरगाहों से प्राप्त एपीडीईए के निर्यात आंकड़ों के मुताबिक स्थिति कुछ स्पष्ट नहीं है। निर्यातक पंजीकरण के लिए शुल्क जमा करते हैं और उन्होंने अनिश्चित सौदों के लिए पंजीकरण नहीं कराया है। दावत बासमती राइस के प्रबंध निदेशक वीके अरोरा ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि इस साल नए बाजारों पर भारत की नजर है, जिसके चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि बासमती की घरेलू मांग में 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, क्योंकि लोगों की आय बढ़ रही है।आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने भी निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी बाजारों में फसल खराब होने की वजह से निर्यात में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। उनके मुताबिक पश्चिम एशिया में पूसा1121 किस्मय की मांग बढ़ी है। इस समय भारत से बासमती की कुल 11 किस्मों का निर्यात किया जाता है। निर्यातकों को एकमात्र भय है कि अगर अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये में मजबूती आती है तो निर्यातकों के मुनाफे में कमी आएगी। भारतीय चावल का ज्यादातर निर्यात ईरान के जरिए होता है और इसके चलते मुनाफा कम हो सकता है। एपीईडीए ने पिछले साल बासमती के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन तय किया गया है। पिछले साल कुल निर्यात 1000 करोड़ रुपसे से ज्यादा का हुआ था। (BS Hindi)
भारत के चावल निर्यातकों को इस साल बेहतर उम्मीदें नजर आ रही हैं। बाासमती चावल के अधिक उत्पादन के अनुमानों से खुश निर्यातकों को इस साल निर्यात को लेकर बेहतर आसार हैं। वैश्विक बाजार में निर्यात के लिए माकूल अवसर हैं। फिलीपींस में तूफान की वजह से फसलों को नुकसान पहुंचा है, वहीं थाइलैंड और पाकिस्तान में बाढ़ के चलते फसल तबाह हुई है। ऐसे में भारत के निर्यातक उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें वैश्विक बाजार में बेहतर दाम मिलेंगे। दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के पहले हिस्से में ज्यादा बारिश होने की वजह से बासमती उत्पादन की बेहतर संभावनाएं बनी हैं। इसकी वजह है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में देर से बोई जाने वाली बासमती की किस्मों की बुआई हुई है और कुल मिलाकर बासमती का रकबा बढ़ा है। आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन और एग्रीकल्चर ऐंड प्रॉसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए) के अनुमानों के मुताबिक बासमती डेवलपमेंट फंड के सहयोग का फायदा हुआ है। इसके चलते बासमती का रकबा इस साल बढ़कर 18 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले साल 14 लाख हेक्टेयर था।पिछले साल बासमती चावल का कुल उत्पादन करीब 45 लाख टन था। कारोबारियों, किसानों और निर्यातकों का मानना है कि इस साल उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी। ज्यादा उत्पादन से निर्यातकों को बेहतर मुनाफा मिलने की उम्मीद है। अधिक आपूर्ति की वजह से निर्यातकों को किसानों से मोलभाव करने का भी मौका मिलेगा। एपीईडीए से जुड़े सूत्रों के मुताबिक चावल उद्योग और एपीईडीए के साथ पंजीकृत कारोबारियों ने कुल 32 लाख टन चावल खरीद के ऑर्डर दिए हैं। साथ ही वास्तविक निर्यात 20 लाख टन रहने की उम्मीद है। लेकिन निर्यातकोंं का कहा है कि डीजीएफटी के बंदरगाहों से प्राप्त एपीडीईए के निर्यात आंकड़ों के मुताबिक स्थिति कुछ स्पष्ट नहीं है। निर्यातक पंजीकरण के लिए शुल्क जमा करते हैं और उन्होंने अनिश्चित सौदों के लिए पंजीकरण नहीं कराया है। दावत बासमती राइस के प्रबंध निदेशक वीके अरोरा ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि इस साल नए बाजारों पर भारत की नजर है, जिसके चलते निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि बासमती की घरेलू मांग में 30-40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, क्योंकि लोगों की आय बढ़ रही है।आल इंडिया राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने भी निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी बाजारों में फसल खराब होने की वजह से निर्यात में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। उनके मुताबिक पश्चिम एशिया में पूसा1121 किस्मय की मांग बढ़ी है। इस समय भारत से बासमती की कुल 11 किस्मों का निर्यात किया जाता है। निर्यातकों को एकमात्र भय है कि अगर अन्य अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपये में मजबूती आती है तो निर्यातकों के मुनाफे में कमी आएगी। भारतीय चावल का ज्यादातर निर्यात ईरान के जरिए होता है और इसके चलते मुनाफा कम हो सकता है। एपीईडीए ने पिछले साल बासमती के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य 900 डॉलर प्रति टन तय किया गया है। पिछले साल कुल निर्यात 1000 करोड़ रुपसे से ज्यादा का हुआ था। (BS Hindi)
22 अक्तूबर 2010
राष्ट्रीय बीज विधेयक संसद के अगले सत्र में सदन में पेश होगा
सरकार राष्ट्रीय बीज विधेयक 2004 को कुछ संशोधनों के साथ संसद के आगामी सत्र में फिर पेश कर सकती है। विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव को हाल में मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिल गयी है और इसमें नकली बीजों की बिक्री जैसे अपराधों के लिए जुर्माने आदि के प्रावधान कड़े कर दिए गए हैं। खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने संवाददाताओं को बताया कि प्रस्तावित विधेयक के संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने की संभावना है। ै उन्होंने कहा कि यह विधेयक किसानों के हितों की रक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होगा और यह एक बेहतर विधेयक है जिसके जरूरत पिछले कुछ वर्षों से महसूस की जा रही है। विधेयक में अतिरिक्त संशोधन के तहत बीज कंपनियों को समय समय पर राज्य सरकार को बीज क्षेत्र के बारे में रिपोर्ट जमा करानी होगी। (Dainik Hinustan)
उच्च गुणवत्ता वाले बीजों से उत्पादन बढ़ाः पवार
नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने शुक्रवार को राष्ट्रीय बीज निगम (एनएससी) की प्रशंसा की। पवार ने कहा कि एनएससी द्वारा किसानों को उचित दर पर मुहैया कराए गए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों से देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है।पवार ने एनएससी और भारतीय राजकीय कृषि निगम (एसएफसीआई) से लाभांश के चेक प्राप्त करते हुए कहा, "एनएससी में बुृनियादी सुधार हुआ है और उसने किसानों को उचित दरों पर उच्च गुणवत्ता वाले बीज मुहैया कराए हैं। इसके कारण देश में कृषि उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई है।"ज्ञात हो कि एनएससी प्रथम श्रेणी की मिनी रत्न कम्पनी है। इस कम्पनी ने इस वर्ष 472 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड कारोबार किया है, जो पिछले वर्ष के कारोबार से 62 प्रतिशत अधिक है।एनएससी ने मौजूदा वर्ष में 15.10 लाख क्विं टल से अधिक उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन किया है, जबकि कम्पनी ने पिछले वर्ष 10.18 क्विं टल उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन किया था।एनएससी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एस.के.रूंगटा ने पवार को 2.26 करोड़ रुपये का लाभांश चेक प्रदान किया। जबकि एसएफसीआई ने 1.57 करोड़ रुपये का लाभांश चेक पवार को प्रदान किया। (Parbhat Khabar)
चीनी निर्यात के लिए 23 रिलीज आर्डर
बेहतर हालातनिर्यात आर्डर 5.9 लाख टन के लिए248 लाख टन उत्पादन का अनुमाननिर्यात ओजीएल में करने का दबाव चालू पेराई सीजन (2010-11) में 248 लाख टन चीनी के उत्पादन अनुमान और पिछले साल के 48 लाख टन चीनी के बकाया स्टाक के चलते सहज महसूस कर रही केंद्र सरकार चीनी निर्यात के मोर्चे पर कदम बढ़ाने लगी है। इसके तहत करीब छह साल पहले आयात की गई चीनी, पिछले साल आयात की गई रिफाइंड चीनी और गैर रिफाइंड चीनी (रॉ शुगर) के निर्यात के लिए 23 रिलीज आर्डर जारी किये जा चुके हैं। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि यह आर्डर 5.9 लाख टन चीनी के लिए जारी किये गये हैं। हालांकि इसमें से अभी तक कितनी मात्रा निर्यात हुई है इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। अधिकारी के मुताबिक बेहतर उत्पादन की संभावना के चलते सरकार पर चीनी निर्यात को ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) में रखने का दबाव बन रहा है। इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें भारत के अनुकूल हैं। इसलिए निर्यात की बेहतर संभावना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 750 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है। जहां तक घरेलू बाजार की बात है तो यहां कीमतें 2600 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास चल रही हैं जो पिछले साल से करीब 1200 रुपये प्रति क्विंटल कम हैं। इसलिए अगर सरकार समय रहते निर्यात खोलने का फैसला ले लेती है तो चालू सीजन में भी गन्ना किसानों को बेहतर कीमत मिल सकती है। चीनी निर्यात के लिए जो रिलीज आर्डर जारी किये गये हैं उनमें सात आयातित रिफाइंड चीनी के लिए हैं। निर्यात की जाने वाली आयातित रिफाइंड चीनी की मात्रा 1.7 लाख टन है। इसमें 95,000 टन चीनी रेणुका शुगर की और 20,000 टन ईआडी पैरी की है। इसके निर्यात के साथ शर्त यह है कि अगर सरकार निर्देश देती है तो इस निर्यात के बदले में इन कंपनियों को 2010-11 के दौरान रॉ शुगर का आयात करना पड़ेगा। पिछले सीजन में आयात की गई और बंदरगाहों पर पड़ी रॉ शुगर के लिए पांच रिलीज आर्डर जारी किये गये हैं। इस रॉ शुगर की मात्रा करीब ढाई लाख टन है। इसमें सबसे अधिक 2.10 लाख टन चीनी बजाज हिंदुस्तान लिमिटेड की है। बलरामपुर चीनी की 20,000 टन, धामपुर शुगर की 5,500 टन, उत्तम शुगर की 7,000 टन और डालमिया शुगर की 1500 टन चीनी है। एडवांस लाइसेंस के तहत करीब छह साल पहले आयात की गई चीनी के निर्यात के लिए 11 रिलीज आर्डर जारी किये गये हैं। एडवांस लाइसेंस के तहत आयात की गई चीनी की मात्रा करीब आठ लाख टन है। इसके निर्यात के लिए सरकार ने मार्च, 2011 की समयसीमा रखी है। इसके पहले इसके निर्यात के लिए कई बार समयावधि बढ़ाई जा चुकी है। चालू सीजन के बेहतर उत्पादन की संभावना को देखते हुए सरकार इस लंबित पड़े मामले को भी निपटाना चाहती है। (Business Bhaskar)
सोने के बाजार में ऑफर्स की भरमार
नई दिल्ली।। अगर आप त्योहारी सीजन में सोने के जूलरी या सिक्के की खरीदारी करने जा रही हैं तो थोड़ा इंतजार करना फायदेमंद साबित हो सकता है। क्योंकि, त्योहारी सीजन में सोने की मार्केट की रौनक बढ़ाने के लिए ब्रांडेड कंपनियों ने छूट और आकर्षक ऑफर स्कीमों के साथ खरीदारों पर लकी ड्रॉ के जरिये ढेरों इनामों की बौछार करना शुरू कर दिया है। गीतांजलि और तनिष्क जैसी कंपनियों ने इसकी शुरुआत कर दी है। एक्सपर्ट्स की मानें तो जिस तरह की छूट और ऑफर की स्कीमें ब्रांडेड कंपनियों ने शुरू की हैं, धीरे-धीरे रिटेल कंपनियां भी शुरू करेंगी। कारोबारी चिंतित मार्केट एक्सपर्ट के. के. मदान का कहना है, कारोबारियों को अब यह चिंता सता रही है कि अगर वे ग्राहकों को आकर्षित करने में नाकाम रहे तो उनके कारोबार पर काफी हद तक नेगेटिव असर पड़ेगा। एक अनुमान के अनुसार, त्योहारी सीजन में कुल कारोबार का करीब 30 से 40 पर्सेंट कारोबार होता है। अब यह एक तरफ कारोबार कंपनियों की मजबूरी बन गई है कि वे ऐसा कुछ करें कि ग्राहक मार्केट में आएं और खरीदारी करें। इंतजार में फायदा सुदामा डायमंड जूलर्स के एमडी संजय गुप्ता का कहना है, बड़ी और ब्रांडेड कंपनियों की छूट स्कीमें उनकी अपनी कारोबारी रणनीति पर आधारित रहती हैं। वे दाम और प्रॉफिट मार्जिन के हिसाब से इस तरह की स्कीमें मार्केट में पेश करती हैं। जब ब्रांडेड कंपनियां ऐसी स्कीमें मार्केट में पेश करती हैं तो उसका असर पूरी तरह से मार्केट पर पड़ता है। इसका एक असर यह होता है कि रिटेल कारोबारियों पर भी ऐसी स्कीमें लाने का दबाव बनता है। कीमतों पर पड़ेगा दबाव मार्केट एक्सपर्ट विजय सिंह का कहना है कि इस वक्त सोने का बाजार सटोरियों की मुट्ठी में हैं। मगर जब डिमांड में और कमी होगी, ग्राहक मार्केट में नहीं आएंगे तो सटोरियों को मुट्ठी खोलनी होगी। कारोबारियों को मार्केट में ग्राहकों को लाने के लिए प्रॉफिट मार्जिन से समझौता करना होगा। (ET Hindi)
गन्ना किसानों के हितों की रक्षा की जाएगी : पवार
नई दिल्ली: खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने आज कहा कि केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएंगी कि सितंबर, 2011 को समाप्त होने वाले चालू चीनी वर्ष में गन्ना किसानों को उनके उत्पादों के लिए सही कीमत प्राप्त हो सके। पवार ने यहां संवाददाताओं से कहा, किसानों को सही कीमत मिले इसके लिए हमें जो भी कदम उठाना होगा, वह हम राज्य सरकारों के साथ मिलकर उठाएंगे। पवार का यह बयान इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अनुमानित भारी चीनी उत्पादन को देखते हुए आगे गन्ना कीमतों में गिरावट आने के कयास लगाए जा रहे हैं। देश में गन्ने का उत्पादन चालू चीनी वर्ष में 16 प्रतिशत बढ़कर 32.49 करोड़ टन होने की उम्मीद है। पिछले साल गन्ना उत्पादन 27.7 करोड़ टन रहा था। एक ओर जहां गन्ना उत्पादन के बढ़ने की खबर से उपभोक्ताओं को राहत की सांस मिली है, वहीं इससे गन्ना उत्पादकों को अपने उत्पादों के लिए उम्मीद से कम मूल्य मिलने की संभावना जताई जा रही है। इस साल एक समय खुदरा बाजार में चीनी के दाम 50 रुपए प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गए थे। हालांकि कृषि मंत्री ने कहा कि सरकार किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों के बीच संतुलन कायम करने का प्रयास करेगी। पवार ने कहा, चीनी अगर 40-50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर उपलब्ध होती है तो किसानों को बेहतर कीमत प्राप्त होगी। लेकिन हमें संतुलित दृष्टिकोण अख्तियार करना होगा। किसानों और उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षित करना होगा। इस बीच, जनवरी मध्य के बाद से दिल्ली में चीनी का खुदरा मूल्य 40 फीसदी घटकर 30 रुपए प्रति किलोग्राम पर आ गया है। देश में 2009-10 के चीनी वर्ष में 1.9 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था। गन्ना खेती के रकबे में वृद्धि को देखते हुए इसका उत्पादन बढ़कर 2.6 करोड़ टन होने की संभावना है। (ET Hindi)
हाजिर एक्सचेंजों के लिए बनेंगे बेहतर मानक
मुंबई October 21, 2010
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) बाजार से जुड़े कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों के मुताबिक हाजिर एक्सचेंजों के लिए मानक बनाने पर काम कर रहा है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि यह एफएमसी के उन दिशानिर्देशों का हिस्सा होगा, जिसके तहत हाजिर एक्सचेंजों को फारवर्ड कांट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट (एफआरसीए) से छूट मिलेगी। इसके तहत एक दिन के वायदा और इंट्रा डे कारोबार का नियमन होता है। एक अधिकारी ने कहा, 'अब हाजिर एक्सचेंजों को एफआरसीए के सेक्शन 27 से अलग अलग मामलों के मुताबिक छूट मिलेगी। हम एक विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की प्रक्रिया में हैं, जिसके तहत हाजिर एक्सचेंज एक दिन की कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडिंग कर सकेंगे और इसमें एफआरसीए के प्रावधान लागू नहीं होंगे। वे कार्पोरेट गवर्नेंस के मानकों के मुताबिक काम कर सकेंगे, जो एफएमसी शीघ्र ही पेश करेगा।सामान्यतया हाजिर एक्सचेंजों का नियमन का काम राज्य सरकारों या राज्य सरकारों द्वारा संचालित एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) द्वारा होता है। कारोबारियों को इससे डिलिवरी को लेकर समस्या होती है। बहरहाल एफएमसी के नियमन और संचालन का मामला तभी बनता है, जब इन एक्सचेंजों की जरूरतों के मुताबिक एफएमसी की ओर से छूट मिले, जिससे वे एक दिन की एक्सपायरी वाले सौदे कर सकें, जिसमें इंट्राडे नेटिंग ( एक दिन के दौरान कारोबार) होता है। इस सेटलमेंट में यह जरूरी नहीं है कि सामानों की डिलिवरी हो, लेकिन कारोबार नकदी के जरिए होता है और एक बार जब नकद में सौदा हो जाता है तो यह एफआरसीए के प्रावधानों में आ जाता है। अधिकारी ने कहा, 'हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो एक्सचेंज यह छूट चाहते हैं, वे अच्छी तरह से संचालित हो सकें।'उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि बाजार से संबंधित गवर्नेंस के लिए योग्यता के मानकों की जरूरत होती है और कुल पूंजी के हिसाब से ब्रोकर सदस्य तय होते हैं। सदस्य निश्चित मानकों के मुताबिक होने चाहिए, उनके अन्य कारोबार और ग्राहकों तथा कारोबार में पारदर्शिता, सौदों की प्रकृति मांग और आपूर्ति पर आधारित होनी चाहिए। इससे यह जाना जा सकेगा कि कारोबार कौन कर रहा है, किस चीज का कारोबार हो रहा है और इसका वायदा कारोबार या अन्य किसी संबंधित कारोबार से कोई टकराव नहींं है।अधिकारी ने कहा कि बड़ा उद्देश्य यह है कि हाजिर एक्सचेंजों का संचालन इस तरह से हो कि वे जिंस कारोबार के विकास में उत्प्रेरक का काम कर सकें। वे किसानों से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक से जुड़े होते हैं। वे किसानों, गोदामों, बैंकों, खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों और तमाम अन्य अंतिम उपभोक्ताओं से जुड़े हैं। बहरहाल यह जुड़ाव मजबूत नहीं है, क्योंकि बुनियादी ढांचे की स्थिति बहुत खराब है और किसान इस समय अपने उत्पादों का सिर्फ 25-30 प्रतिशत मूल्य पाते हैं। अधिकारी ने स्पष्ट किया कि विचार यह है कि किसानों को उनके उत्पादों के बेहतर दाम मिल सके। आदर्श स्थिति यह होगी कि किसान अपने उत्पादों की कीमतों को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में रहें। इसी को उद्देश्य बनाकर सारी कवायद शुरू की गई है, जिससे हाजिर एक्सचेंज वैल्यू चेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। (BS Hindi)
वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) बाजार से जुड़े कॉर्पोरेट गवर्नेंस के मानकों के मुताबिक हाजिर एक्सचेंजों के लिए मानक बनाने पर काम कर रहा है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि यह एफएमसी के उन दिशानिर्देशों का हिस्सा होगा, जिसके तहत हाजिर एक्सचेंजों को फारवर्ड कांट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट (एफआरसीए) से छूट मिलेगी। इसके तहत एक दिन के वायदा और इंट्रा डे कारोबार का नियमन होता है। एक अधिकारी ने कहा, 'अब हाजिर एक्सचेंजों को एफआरसीए के सेक्शन 27 से अलग अलग मामलों के मुताबिक छूट मिलेगी। हम एक विस्तृत दिशानिर्देश तैयार करने की प्रक्रिया में हैं, जिसके तहत हाजिर एक्सचेंज एक दिन की कॉन्ट्रैक्ट ट्रेडिंग कर सकेंगे और इसमें एफआरसीए के प्रावधान लागू नहीं होंगे। वे कार्पोरेट गवर्नेंस के मानकों के मुताबिक काम कर सकेंगे, जो एफएमसी शीघ्र ही पेश करेगा।सामान्यतया हाजिर एक्सचेंजों का नियमन का काम राज्य सरकारों या राज्य सरकारों द्वारा संचालित एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) द्वारा होता है। कारोबारियों को इससे डिलिवरी को लेकर समस्या होती है। बहरहाल एफएमसी के नियमन और संचालन का मामला तभी बनता है, जब इन एक्सचेंजों की जरूरतों के मुताबिक एफएमसी की ओर से छूट मिले, जिससे वे एक दिन की एक्सपायरी वाले सौदे कर सकें, जिसमें इंट्राडे नेटिंग ( एक दिन के दौरान कारोबार) होता है। इस सेटलमेंट में यह जरूरी नहीं है कि सामानों की डिलिवरी हो, लेकिन कारोबार नकदी के जरिए होता है और एक बार जब नकद में सौदा हो जाता है तो यह एफआरसीए के प्रावधानों में आ जाता है। अधिकारी ने कहा, 'हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जो एक्सचेंज यह छूट चाहते हैं, वे अच्छी तरह से संचालित हो सकें।'उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि बाजार से संबंधित गवर्नेंस के लिए योग्यता के मानकों की जरूरत होती है और कुल पूंजी के हिसाब से ब्रोकर सदस्य तय होते हैं। सदस्य निश्चित मानकों के मुताबिक होने चाहिए, उनके अन्य कारोबार और ग्राहकों तथा कारोबार में पारदर्शिता, सौदों की प्रकृति मांग और आपूर्ति पर आधारित होनी चाहिए। इससे यह जाना जा सकेगा कि कारोबार कौन कर रहा है, किस चीज का कारोबार हो रहा है और इसका वायदा कारोबार या अन्य किसी संबंधित कारोबार से कोई टकराव नहींं है।अधिकारी ने कहा कि बड़ा उद्देश्य यह है कि हाजिर एक्सचेंजों का संचालन इस तरह से हो कि वे जिंस कारोबार के विकास में उत्प्रेरक का काम कर सकें। वे किसानों से लेकर अंतिम उपभोक्ता तक से जुड़े होते हैं। वे किसानों, गोदामों, बैंकों, खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों और तमाम अन्य अंतिम उपभोक्ताओं से जुड़े हैं। बहरहाल यह जुड़ाव मजबूत नहीं है, क्योंकि बुनियादी ढांचे की स्थिति बहुत खराब है और किसान इस समय अपने उत्पादों का सिर्फ 25-30 प्रतिशत मूल्य पाते हैं। अधिकारी ने स्पष्ट किया कि विचार यह है कि किसानों को उनके उत्पादों के बेहतर दाम मिल सके। आदर्श स्थिति यह होगी कि किसान अपने उत्पादों की कीमतों को लेकर मोलभाव करने की स्थिति में रहें। इसी को उद्देश्य बनाकर सारी कवायद शुरू की गई है, जिससे हाजिर एक्सचेंज वैल्यू चेन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें। (BS Hindi)
कपास के बढ़ते दाम से धागा व परिधान निर्माताओं को संकट
चंडीगढ़ October 21, 2010
कपास की कीमतों में जबरदस्त तेजी आई है। इससे परिधान निर्माता और धागा उत्पादकों को संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। केंद्र सरकार के फैसले को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए परिधान निर्माताओं ने कहा कि 55 लाख गांठ कपास के निर्यात को अनुमति देना गैर जरूरी था। इसकी वजह से घरेलू बाजार में कीमतों में जोरदार तेजी आई।पंजाब में कपास की कीमतों में जोरदार तेजी आई है। इस साल एक मन कपास की कीमत 3800 रुपये पर पहुंच गई है, जो पिछले साल 2400-2500 रुपये प्रति मन थी। जिंदल कोटेक्स के एमडी संदीप जिंदल ने कहा कि सरकार कपास के निर्यात पर ढील दे रही है, जबकि घरेलू खपत में तेजी आई है। इसकी वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।जिंदल ने कहा कि कपास की घरेलू मांग उच्च स्तर पर बनी हुई है, ऐसे में निर्यात किए जाने के बारे में फैसले पर सरकार को फिर से विचार करने की जरूरत है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा कि कपास की कीमतों में इस साल आई तेजी की तीन प्रमुख वजहें हैं। इस साल पहले साल की तुलना में पहले का स्टॉक कम था, क्योंकि वैश्विक बाजार में कीमतों में तेजी रही। अग्रिम स्टॉक पिछले साल जहां 70 लाख गांठ था, वहीं इस साल अग्रिम स्टॉक महज 40 लाख गांठ रहा।कीमतों में तेजी का एक अन्य कारण पाकिस्तान की बाढ़ है। पाकिस्तान में कपास का करीब एक तिहाई रकबा बाढ़ की चपेट में आ गया, इसकी वजह से वैश्विक कपास कारोबार में तेजी का रुख बना। तीसरे- कपास की आवक में देरी की वजह से भी कीमतों पर दबाव बढ़ा। कुवाम इंटरनैशनल फैशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजीव गुप्ता ने कहा कि कपास के निर्यात को अनुमति दिए जाने से घरेलू विनिर्माताओं के लिए माल की कमी हो रही है। कपास की कीमतों में तेजी से निश्चित रूप से परिधान की कीमतों पर असर पड़ेगा और इसमें बढ़ोतरी होगी।सुपरफाइन निटर्स लिमिटेड के निदेशक अजित लाकड़ा ने सरकार से मांग की कि कीमतों पर नियंत्रण लगाने के लिए तत्काल कदम उठाया जाना चाहिए। खासकर अटकलबाजियों के चलते बढ़ रही कीमतों पर लगाम लगना जरूरी है। उन्होंने मांग की कि कपास को जमा किए जाने की सीमा भी तय होनी चाहिए, जिससे जमाखोरी पर नियंत्रण लग सके। (BS Hindi)
कपास की कीमतों में जबरदस्त तेजी आई है। इससे परिधान निर्माता और धागा उत्पादकों को संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। केंद्र सरकार के फैसले को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए परिधान निर्माताओं ने कहा कि 55 लाख गांठ कपास के निर्यात को अनुमति देना गैर जरूरी था। इसकी वजह से घरेलू बाजार में कीमतों में जोरदार तेजी आई।पंजाब में कपास की कीमतों में जोरदार तेजी आई है। इस साल एक मन कपास की कीमत 3800 रुपये पर पहुंच गई है, जो पिछले साल 2400-2500 रुपये प्रति मन थी। जिंदल कोटेक्स के एमडी संदीप जिंदल ने कहा कि सरकार कपास के निर्यात पर ढील दे रही है, जबकि घरेलू खपत में तेजी आई है। इसकी वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है।जिंदल ने कहा कि कपास की घरेलू मांग उच्च स्तर पर बनी हुई है, ऐसे में निर्यात किए जाने के बारे में फैसले पर सरकार को फिर से विचार करने की जरूरत है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा कि कपास की कीमतों में इस साल आई तेजी की तीन प्रमुख वजहें हैं। इस साल पहले साल की तुलना में पहले का स्टॉक कम था, क्योंकि वैश्विक बाजार में कीमतों में तेजी रही। अग्रिम स्टॉक पिछले साल जहां 70 लाख गांठ था, वहीं इस साल अग्रिम स्टॉक महज 40 लाख गांठ रहा।कीमतों में तेजी का एक अन्य कारण पाकिस्तान की बाढ़ है। पाकिस्तान में कपास का करीब एक तिहाई रकबा बाढ़ की चपेट में आ गया, इसकी वजह से वैश्विक कपास कारोबार में तेजी का रुख बना। तीसरे- कपास की आवक में देरी की वजह से भी कीमतों पर दबाव बढ़ा। कुवाम इंटरनैशनल फैशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संजीव गुप्ता ने कहा कि कपास के निर्यात को अनुमति दिए जाने से घरेलू विनिर्माताओं के लिए माल की कमी हो रही है। कपास की कीमतों में तेजी से निश्चित रूप से परिधान की कीमतों पर असर पड़ेगा और इसमें बढ़ोतरी होगी।सुपरफाइन निटर्स लिमिटेड के निदेशक अजित लाकड़ा ने सरकार से मांग की कि कीमतों पर नियंत्रण लगाने के लिए तत्काल कदम उठाया जाना चाहिए। खासकर अटकलबाजियों के चलते बढ़ रही कीमतों पर लगाम लगना जरूरी है। उन्होंने मांग की कि कपास को जमा किए जाने की सीमा भी तय होनी चाहिए, जिससे जमाखोरी पर नियंत्रण लग सके। (BS Hindi)
चीनी उत्पादन में होगी 35 फीसदी वृद्घि
नई दिल्ली October 21, 2010
विश्व के दूसरे बड़े चीनी उत्पादक देश भारत में चीनी उत्पादन में अक्टूबर से शुरू हुए चीनी वर्ष के दौरान 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इस साल गन्ने के रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है, साथ ही उत्पादकता भी बेहतर रहने की उम्मीद है। कृषि मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक गन्ने का उत्पादन 3240 लाख टन हो सकता है, जो पिछले साल के उत्पादन से 17 प्रतिशत ज्यादा होगा। राज्य गन्ना आयुक्तों की बैठक में यह अनुमान बढ़ाकर 3450 लाख टन कर दिया गया है। उद्योग जगत का अनुमान है कि इस साल गन्ना उत्पादन 3530 लाख टन रहेगा। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के एक अधिकारी के मुताबिक देश में 250 लाख टन से ज्यादा चीनी उत्पादन हो सकता है, जैसा कि 2007-08 में 263 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। उद्योग से जुड़े दर्जन भर से ज्यादा हिस्सेदारों- उत्पादकों, एसोसिएशनों, कारोबारियों, निर्यातकों आदि के बीच कराए गए बिजनेस स्टैंडर्ड के सर्वे के मुताबिक चीनी उत्पादन 250-260 लाख टन होने का अनुमान है। नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा कि उच्च उत्पादन का अनुमान इसलिए लगाया जा रहा है कि फसलों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है, साथ ही अच्छी बारिश की वजह से उत्पादकता भी बढऩे के अनुमान हैं। इस साल की शुरुआत में चीनी की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। साथ ही मिलों ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर दाम दिए थे। उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि इस साल रिकवरी दर भी बेहतर रहेगी, क्योंकि पर्याप्त बारिश हुई है। उत्तर प्रदेश में देर से पेराई का काम शुरू हुआ है, जिसकी वजह से राज्य में चीनी की रिकवरी बेहतर होने की उम्मीद है।
गुड़ की खपत कमचीनी उत्पादन बढऩे में एक और अहम बात है कि इस साल उम्मीद की जा रही है कि गुड़ बनाने में गन्ने की खपत कम रहेगी। मुजफ्फरनगर गुड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गुड़ निर्माण इकाइयों में गन्ने की खपत 30-35 प्रतिशत तक कम हो सकती है। उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी देश के कुल गुड़ उत्पादन में 55 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'गुड़ कारोबारियों ने पिछले साल कारोबार में अपना हाथ जला चुके हैं, इसलिए इस साल गतिविधियां धीमी रहने की उम्मीद है। अधिक उत्पादन से भारत को अंतरराष्ट्रीय चीनी कारोबार में प्रवेश का मौका मिलेगा। ऐसे समय में यह मौका मिल रहा है, जब चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतें ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी की वजह ब्राजील में फसल कमजोर होना है, जो दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। अगले साल के लिए वैश्विक बाजार में 30 लाख टन चीनी का अग्रिम स्टॉक रहने का अनुमान घट सकता है, जैसी कि पहले उम्मीद थी। ब्राजील से होने वाले चीनी निर्यात को लेकर अनिश्चितता और ज्यादातर वैश्विक बाजारों में आपूर्ति कम होने (पाकिस्तान व चीन में बाढ़ और रूस में सूखा पडऩे से) की वजह से अनुमान लगाया जा रहा है कि वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतों में 2011 के मध्य तक तेजी बनी रहेगी। शुरुआती स्टॉक 50 लाख टन रहने के साथ अगले सीजन के लिए चीनी की उपलब्धता 305 लाख टन रहेगी।
हो सकता है निर्यात चीनी की घरेलू खपत 220-230 लाख टन है और इस तरह से देश में 35 लाख टन अतिरिक्त चीनी रहने का अनुमान है। आईएसएमए और कोआपरेटिव फेडरेशन को उम्मीद है कि देश से चालू सत्र में 25-30 लाख टन चीनी का निर्यात हो सकता है, इसमें चीनी मिलों की फिर से निर्यात किए जाने की बाध्यता वाली चीनी भी शामिल है। वैश्विक मांग तेज होने से उद्योग पर दोहरा प्रभाव पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि पहला प्रभाव होगा कि घरेलू बाजार के बजाय मिलों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमाई बढ़ाने का मौका मिलेगा और दूसरे- निर्यात होने से घरेलू बाजार में भी चीनी की कीमतों में गिरावट पर लगाम लगेगी। जनवरी महीने में मिलों को 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव चीनी के दाम मिले थे। उम्मीद की जा रही है कि अब चीनी की कीमतेंं 2600-2800 रुपये प्रति क्विंटल पर बनी रहेंगी। (BS Hindi)
विश्व के दूसरे बड़े चीनी उत्पादक देश भारत में चीनी उत्पादन में अक्टूबर से शुरू हुए चीनी वर्ष के दौरान 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। इस साल गन्ने के रकबे में भी बढ़ोतरी हुई है, साथ ही उत्पादकता भी बेहतर रहने की उम्मीद है। कृषि मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक गन्ने का उत्पादन 3240 लाख टन हो सकता है, जो पिछले साल के उत्पादन से 17 प्रतिशत ज्यादा होगा। राज्य गन्ना आयुक्तों की बैठक में यह अनुमान बढ़ाकर 3450 लाख टन कर दिया गया है। उद्योग जगत का अनुमान है कि इस साल गन्ना उत्पादन 3530 लाख टन रहेगा। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (आईएसएमए) के एक अधिकारी के मुताबिक देश में 250 लाख टन से ज्यादा चीनी उत्पादन हो सकता है, जैसा कि 2007-08 में 263 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। उद्योग से जुड़े दर्जन भर से ज्यादा हिस्सेदारों- उत्पादकों, एसोसिएशनों, कारोबारियों, निर्यातकों आदि के बीच कराए गए बिजनेस स्टैंडर्ड के सर्वे के मुताबिक चीनी उत्पादन 250-260 लाख टन होने का अनुमान है। नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा कि उच्च उत्पादन का अनुमान इसलिए लगाया जा रहा है कि फसलों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है, साथ ही अच्छी बारिश की वजह से उत्पादकता भी बढऩे के अनुमान हैं। इस साल की शुरुआत में चीनी की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। साथ ही मिलों ने किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर दाम दिए थे। उद्योग जगत के जानकारों का कहना है कि इस साल रिकवरी दर भी बेहतर रहेगी, क्योंकि पर्याप्त बारिश हुई है। उत्तर प्रदेश में देर से पेराई का काम शुरू हुआ है, जिसकी वजह से राज्य में चीनी की रिकवरी बेहतर होने की उम्मीद है।
गुड़ की खपत कमचीनी उत्पादन बढऩे में एक और अहम बात है कि इस साल उम्मीद की जा रही है कि गुड़ बनाने में गन्ने की खपत कम रहेगी। मुजफ्फरनगर गुड़ ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गुड़ निर्माण इकाइयों में गन्ने की खपत 30-35 प्रतिशत तक कम हो सकती है। उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी देश के कुल गुड़ उत्पादन में 55 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'गुड़ कारोबारियों ने पिछले साल कारोबार में अपना हाथ जला चुके हैं, इसलिए इस साल गतिविधियां धीमी रहने की उम्मीद है। अधिक उत्पादन से भारत को अंतरराष्ट्रीय चीनी कारोबार में प्रवेश का मौका मिलेगा। ऐसे समय में यह मौका मिल रहा है, जब चीनी की अंतरराष्ट्रीय कीमतें ज्यादा हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी की वजह ब्राजील में फसल कमजोर होना है, जो दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है। अगले साल के लिए वैश्विक बाजार में 30 लाख टन चीनी का अग्रिम स्टॉक रहने का अनुमान घट सकता है, जैसी कि पहले उम्मीद थी। ब्राजील से होने वाले चीनी निर्यात को लेकर अनिश्चितता और ज्यादातर वैश्विक बाजारों में आपूर्ति कम होने (पाकिस्तान व चीन में बाढ़ और रूस में सूखा पडऩे से) की वजह से अनुमान लगाया जा रहा है कि वैश्विक बाजार में चीनी की कीमतों में 2011 के मध्य तक तेजी बनी रहेगी। शुरुआती स्टॉक 50 लाख टन रहने के साथ अगले सीजन के लिए चीनी की उपलब्धता 305 लाख टन रहेगी।
हो सकता है निर्यात चीनी की घरेलू खपत 220-230 लाख टन है और इस तरह से देश में 35 लाख टन अतिरिक्त चीनी रहने का अनुमान है। आईएसएमए और कोआपरेटिव फेडरेशन को उम्मीद है कि देश से चालू सत्र में 25-30 लाख टन चीनी का निर्यात हो सकता है, इसमें चीनी मिलों की फिर से निर्यात किए जाने की बाध्यता वाली चीनी भी शामिल है। वैश्विक मांग तेज होने से उद्योग पर दोहरा प्रभाव पड़ेगा। जानकारों का मानना है कि पहला प्रभाव होगा कि घरेलू बाजार के बजाय मिलों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमाई बढ़ाने का मौका मिलेगा और दूसरे- निर्यात होने से घरेलू बाजार में भी चीनी की कीमतों में गिरावट पर लगाम लगेगी। जनवरी महीने में मिलों को 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव चीनी के दाम मिले थे। उम्मीद की जा रही है कि अब चीनी की कीमतेंं 2600-2800 रुपये प्रति क्विंटल पर बनी रहेंगी। (BS Hindi)
चाशनी में डूबेगा उत्तर प्रदेश
लखनऊ October 21, 2010
उत्तर प्रदेश में इस साल पेराई सत्र के दौरान चीनी उत्पादन 30 फीसदी बढ़कर 65 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। 2008-09 में यह आंकड़ा 40 लाख टन था। हाल ही में आई बाढ़ के कारण पेराई सत्र थोड़ा देर यानी नवंबर के मध्य से शुरू हो सकता है। इस साल देश में गन्ने का बुआई क्षेत्र और उत्पादन बढ़कर क्रमश: 21 लाख हेक्टेयर और 12.4 करोड़ टन होने का अनुमान है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के सचिव के एन शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हालांकि बाढ़ के कारण फसल को नुकसान हुआ है, जिससे लक्षित आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है।' इस बार अच्छा मॉनसून रहने से वसूली फीसदी बढ़कर 9.40 फीसदी होने की उम्मीद है, जिसका मतलब है गन्ने की प्रति इकाई से अधिक चीनी उत्पादन। अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा नहीं की है। पिछले साल एसएपी 165 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन गन्ने की कमी और चीनी के रिकॉर्ड दाम के कारण मिलें किसानों से 280-300 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही थीं।हालांकि इस सत्र में चीनी के भाव गिरकर 2,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। राज्य में पंचायत चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गन्ने का एसएपी तय करेगी। गन्ना किसानों ने साफ कह दिया है कि वे 300 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर नहीं मानेंगे। उनका तर्क है कि गन्ना उगाने की लागत ही बढ़कर 250 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है और उन्हें कम से कम 50 रुपये प्रति क्विंटल का मार्जिन चाहिए। उत्तर प्रदेश सहकारी गन्ना सोसायटी महासंघ के श्रीकांत सिंह कहते हैं, 'गन्ना आयुक्त के साथ 12 अक्टूबर को हुई हमारी बैठक में हमने 325 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की थी। हमने कहा था कि इसमें शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला शीरा भी शामिल किया जाना चाहिए।' दूसरी ओर मिलों ने पिछले साल के दाम देने में असमर्थता जता दी है। शुक्ला ने बताया, 'हम चाहते हैं कि सरकार 180 रुपये प्रति क्विंटल एसएपी तय करे।'पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ इकाइयां गन्ने के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल दे रही हैं। गुड़, खांडसारी और अनाज व्यापारी संघ के सदस्य नरेंद्र कुमार ने बताया कि नवंबर के पहले हफ्ते में खांडसारी इकाइयां भी काम करना शुरू कर देंगी। देश में होने वाले कुल गन्ना बुआई क्षेत्र में राज्य की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। (BS Hindi)
उत्तर प्रदेश में इस साल पेराई सत्र के दौरान चीनी उत्पादन 30 फीसदी बढ़कर 65 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल प्रदेश में 52 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। 2008-09 में यह आंकड़ा 40 लाख टन था। हाल ही में आई बाढ़ के कारण पेराई सत्र थोड़ा देर यानी नवंबर के मध्य से शुरू हो सकता है। इस साल देश में गन्ने का बुआई क्षेत्र और उत्पादन बढ़कर क्रमश: 21 लाख हेक्टेयर और 12.4 करोड़ टन होने का अनुमान है।उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ के सचिव के एन शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हालांकि बाढ़ के कारण फसल को नुकसान हुआ है, जिससे लक्षित आंकड़ों में कुछ कमी आ सकती है।' इस बार अच्छा मॉनसून रहने से वसूली फीसदी बढ़कर 9.40 फीसदी होने की उम्मीद है, जिसका मतलब है गन्ने की प्रति इकाई से अधिक चीनी उत्पादन। अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) की घोषणा नहीं की है। पिछले साल एसएपी 165 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन गन्ने की कमी और चीनी के रिकॉर्ड दाम के कारण मिलें किसानों से 280-300 रुपये प्रति क्विंटल पर गन्ना खरीद रही थीं।हालांकि इस सत्र में चीनी के भाव गिरकर 2,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। राज्य में पंचायत चुनाव समाप्त होने के बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति गन्ने का एसएपी तय करेगी। गन्ना किसानों ने साफ कह दिया है कि वे 300 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर नहीं मानेंगे। उनका तर्क है कि गन्ना उगाने की लागत ही बढ़कर 250 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है और उन्हें कम से कम 50 रुपये प्रति क्विंटल का मार्जिन चाहिए। उत्तर प्रदेश सहकारी गन्ना सोसायटी महासंघ के श्रीकांत सिंह कहते हैं, 'गन्ना आयुक्त के साथ 12 अक्टूबर को हुई हमारी बैठक में हमने 325 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की थी। हमने कहा था कि इसमें शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाला शीरा भी शामिल किया जाना चाहिए।' दूसरी ओर मिलों ने पिछले साल के दाम देने में असमर्थता जता दी है। शुक्ला ने बताया, 'हम चाहते हैं कि सरकार 180 रुपये प्रति क्विंटल एसएपी तय करे।'पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गुड़ इकाइयां गन्ने के लिए 200 रुपये प्रति क्विंटल दे रही हैं। गुड़, खांडसारी और अनाज व्यापारी संघ के सदस्य नरेंद्र कुमार ने बताया कि नवंबर के पहले हफ्ते में खांडसारी इकाइयां भी काम करना शुरू कर देंगी। देश में होने वाले कुल गन्ना बुआई क्षेत्र में राज्य की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। (BS Hindi)
21 अक्तूबर 2010
अब दलहन की पैदावार बढ़ाए जाने पर जोर
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत खाद्यान्न उत्पादन बढऩे के लिए चालू वित्त वर्ष में 30 सितंबर तक केंद्र सरकार 787 करोड़ रुपये आवंटित कर चुकी है। गेहूं का उत्पादन तय लक्ष्य से ज्यादा हो रहा है जबकि चावल का उत्पादन बढ़कर चालू सीजन में तय लक्ष्य पूरा होने की संभावना है। इसीलिए अब दालों के उत्पादन को बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इसीलिए सबसे ज्यादा आवंटन दलहनी फसलों के लिए 410 करोड़ रुपये, चावल के लिए 220 करोड़ रुपये और गेहूं के लिए 157 करोड़ रुपये केंद्र सरकार जारी कर चुकी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का क्रियान्वयन संभालने वाले कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव मुकेश खुल्लर ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सबसे ज्यादा आवंटन मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को किया गया है। चालू वित्त वर्ष में मध्य प्रदेश को 140.72 करोड़ रुपये, महाराष्ट्र को 124.29 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश को 80.6 करोड़ रुपये, कर्नाटक को 59.07 करोड़ रुपये, बिहार को 51.56 करोड़ रुपये, राजस्थान को 66.05 करोड़ रुपये, उड़ीसा को 49.12 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। अन्य राज्यों में हरियाणा को 12.67 करोड़ रुपये, झारखंड को 16.49 करोड़ रुपये, पंजाब को 28.55 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश को 33.89 करोड़ रुपये, पश्चिम बंगाल को 33.94 करोड़ रुपये, तमिलनाडु को 27.08 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़ को 19.54 करोड़ रुपये, गुजरात को 13.11 करोड़ ओर केरल को 2.1 करोड़ रुपये का आवंटन किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत चालू वित्त वर्ष में 1,350 करोड़ रुपये जारी किए जाएंगे। सितंबर तक राज्यों को 787 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। चालू वित्त वर्ष में दलहन उत्पादन बढ़ाने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इसीलिए सरकार ने दलहन के राज्यों में भी बढ़ोतरी की है। पहले देश के 14 राज्यों के 158 जिलों को दलहन उत्पादन के लिए चिन्हित किया गया था लेकिन चालू वित्त वर्ष में सरकार ने 16 राज्यों के 467 जिलों में उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की शुरूआत 2007 में की गई थी। इसके तहत 11वीं योजना (2011-12) के अंत तक देश में 100 लाख टन चावल, 80 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन दलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी का लक्ष्य तय किया गया था। उन्होंने बताया कि गेहूं का उत्पादन तय लक्ष्य से ज्यादा हो गया है। चावल का उत्पादन भी चालू वर्ष में बढ़कर तय लक्ष्य तक पहुंचने की संभावना है। इसीलिए अब दलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इसका असर खरीफ सीजन में दिखा भी है। चालू खरीफ में देश में दालों के उत्पादन में करीब 40 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। सितंबर महीने में हुई बारिश से रबी में भी दालों का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ेगा। खरीफ में दालों का उत्पादन बढ़कर 60 लाख टन होने का अनुमान है तथा रबी में भी उत्पादन 100 से 105 लाख टन का लक्ष्य तय किया गया है।बात पते कीमिशन का असर खरीफ सीजन में दिख रहा है। दालों के उत्पादन में करीब 40 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। सितंबर की बारिश से रबी में भी दालों का बुवाई क्षेत्रफल बढ़ेगा। खरीफ में दालों का उत्पादन बढ़कर 60 लाख टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar.....aar as raana)
रत्न एवं आभूषण निर्यात चमका
मुंबई October 20, 2010
इस साल सितंबर महीने में भारत के रत्न एवं आभूषण निर्यात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। अमेरिकी बाजार में हीरों के सस्ते आभूषणों की मांग बढऩे की वजह से निर्यात में तेजी आई है। भारत के हीरों के आभूषण की 40 प्रतिशत खपत सिर्फ अमेरिका में होती है। जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2010 में कुल निर्यात 56 प्रतिशत बढ़कर 4061.87 मिलियन डॉलर हो गया है, जो पिछले साल के समान महीने में 2602.26 डॉलर था। रुपये के हिसाब से हालांकि कुल निर्यात 48.42 प्रतिशत बढ़कर 18708.96 करोड़ रुपये हो गया है, जो सितंबर 2009 में कुल 12605.36 करोड़ रुपये था। रत्न एवं आभूषण के कुल निर्यात में भी तेज बढ़ोतरी हुई है और सितंबर महीने में बढ़कर 2849.88 मिलियन डॉलर (13126.54 करोड़ रुपये) हो गया है। पिछले साल की समान अवधि में हुए 1756.53 मिलियन डॉलर (8508.63 करोड़ रुपये) की तुलना में इसमें रुपये के हिसाब से कुल 54.27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात 18893.38 मिलियन डॉलर (87042.84 करोड़ रुपये) का हुआ है। पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इसमें कुल 45.84 प्रतिशत (रुपये के हिसाब से 38.42 प्रतिशत) की तेजी आई है। सितंबर 2009 में कुल 12954.78 मिलियन डॉलर (62883.74 करोड़ रुपये) का निर्यात हुआ था।वित्त वर्ष की पहली छमाही में कच्चे हीरों का कुल आयात 5711.94 मिलियन डॉलर (26396.16 करोड़ रुपये) का रहा। इसमें पिछले साल की समान अवधि मेंं हुए 3939.44 मिलियन डॉलर (19111.83 करोड़ रुपये) की तुलना में 44.99 प्रतिशत (रुपये के हिसाब से 38.11 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है। विनिर्मित आभूषणों के निर्यात मेंं अप्रैल-सितंबर 2010 अवधि के दौरान डॉलर के हिसाब से पिछले साल की तुलना में कुल 30.05 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं रुपये के हिसाब से पिछले साल की तुलना में निर्यात में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।तराशे और पॉलिश किए गए हीरों का कुल निर्यात इस साल सितंबर महीने में 2398.57 मिलियन डॉलर (11047.82 करोड़ रुपये) का रहा। इसमें पिछले साल के हिसाब से डॉलर के हिसाब से 36.41 प्रतिशत और रुपये के हिसाब से 29.71 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सितंबर 2009 में कुल 1758.37 मिलियन डॉलर (8517.56 करोड़ रुपये) का निर्यात हुआ था। (BS Hindi)
इस साल सितंबर महीने में भारत के रत्न एवं आभूषण निर्यात में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। अमेरिकी बाजार में हीरों के सस्ते आभूषणों की मांग बढऩे की वजह से निर्यात में तेजी आई है। भारत के हीरों के आभूषण की 40 प्रतिशत खपत सिर्फ अमेरिका में होती है। जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2010 में कुल निर्यात 56 प्रतिशत बढ़कर 4061.87 मिलियन डॉलर हो गया है, जो पिछले साल के समान महीने में 2602.26 डॉलर था। रुपये के हिसाब से हालांकि कुल निर्यात 48.42 प्रतिशत बढ़कर 18708.96 करोड़ रुपये हो गया है, जो सितंबर 2009 में कुल 12605.36 करोड़ रुपये था। रत्न एवं आभूषण के कुल निर्यात में भी तेज बढ़ोतरी हुई है और सितंबर महीने में बढ़कर 2849.88 मिलियन डॉलर (13126.54 करोड़ रुपये) हो गया है। पिछले साल की समान अवधि में हुए 1756.53 मिलियन डॉलर (8508.63 करोड़ रुपये) की तुलना में इसमें रुपये के हिसाब से कुल 54.27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात 18893.38 मिलियन डॉलर (87042.84 करोड़ रुपये) का हुआ है। पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इसमें कुल 45.84 प्रतिशत (रुपये के हिसाब से 38.42 प्रतिशत) की तेजी आई है। सितंबर 2009 में कुल 12954.78 मिलियन डॉलर (62883.74 करोड़ रुपये) का निर्यात हुआ था।वित्त वर्ष की पहली छमाही में कच्चे हीरों का कुल आयात 5711.94 मिलियन डॉलर (26396.16 करोड़ रुपये) का रहा। इसमें पिछले साल की समान अवधि मेंं हुए 3939.44 मिलियन डॉलर (19111.83 करोड़ रुपये) की तुलना में 44.99 प्रतिशत (रुपये के हिसाब से 38.11 प्रतिशत) की बढ़ोतरी हुई है। विनिर्मित आभूषणों के निर्यात मेंं अप्रैल-सितंबर 2010 अवधि के दौरान डॉलर के हिसाब से पिछले साल की तुलना में कुल 30.05 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं रुपये के हिसाब से पिछले साल की तुलना में निर्यात में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।तराशे और पॉलिश किए गए हीरों का कुल निर्यात इस साल सितंबर महीने में 2398.57 मिलियन डॉलर (11047.82 करोड़ रुपये) का रहा। इसमें पिछले साल के हिसाब से डॉलर के हिसाब से 36.41 प्रतिशत और रुपये के हिसाब से 29.71 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सितंबर 2009 में कुल 1758.37 मिलियन डॉलर (8517.56 करोड़ रुपये) का निर्यात हुआ था। (BS Hindi)
काली मिर्च बाजार को मिलेगी नई ताकत
कोच्चि October 20, 2010
सफेद मिर्च (काली मिर्च की एक विशेष किस्म, जिसकी कटाई फसल पकने से पहले ही हो जाती है) के भाव में हालिया तेजी से काली मिर्च बाजार को नई ताकत मिल सकती है क्योंकि सफेद और काली मिर्च के भाव का अंतर अब बढ़ता हुआ 1,500 डॉलर प्रति टन हो गया है।सफेद मिर्च का औसत भाव फिलहाल 6,000 डॉलर प्रति टन है, जबकि काली मिर्च का अधिकतम भाव 4,500 डॉलर प्रति टन। यद्यपि इन दिनों इंडोनेशिया में 4,000-4,100 डॉलर प्रति टन भाव के दायरे में काली मिर्च उपलब्ध है, लेकिन वहां सफेद मिर्च की पेशकश 6,300-6,350 डॉलर प्रति टन के दायरे में की जा रही है। चीन जैसे देशों में तो सफेद मिर्च के भाव 6,400 डॉलर प्रति टन के स्तर पर जा पहुंचे हैं।यदि सफेद मिर्च के भाव में और तेजी आती है, तो ऐसे हालात में काली मिर्च की मांग बढ़ जाएगी, जिसकी वजह से इस कमोडिटी के बाजार में धीरे-धीरे उछाल आएगी। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा निकट भविष्य में नहीं बल्कि लंबी अवधि में होने की गुंजाइश है क्योंकि काली मिर्च के बाजार पर फिलहाल इंडोनशिया और ब्राजील की तगड़ी पकड़ बनी हुई है।गौरतलब है कि इंडोनेशिया फिलहाल एएसटीए ग्रेड वाली काली मिर्च की पेशकश 4,100 डॉलर प्रति टन कर रहा है, न केवल इस साल के लिए बल्कि अगले साल की शुरुआत के लिए भी। उधर वियतनाम में 500 ग्राम/लीटर ग्रेड वाली काली मिर्च 4,050 डॉलर प्रति टन उपलब्ध है, हालांकि वहां एएसटीए किस्म वाली काली मिर्च का भाव 4,600 डॉलर प्रति टन है। ब्राजील में फिलहाल काली मिर्च की खेती जोरों पर है और वहां यह 4,000-4,050 डॉलर प्रति टन बिक रही है। जाहिर है, काली मिर्च के वैश्विक बाजार पर फिलहाल इन दो देशों का नियंत्रण है क्योंकि उनके पास इस कमोडिटी का पर्याप्त भंडार हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष इसके भाव का दायरा बहुत ऊपर नहीं जाएगा।भारत में काली मिर्च का भाव फिलहाल 4,375 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है क्योंकि विदेशी बाजारों से इसके लिए कम पूछताछ हो रही है। इस कमोडिटी के भारतीय बाजार को जाड़े के मौसम में मांग बढऩे की उम्मीद है। इस बाजार में सामान्य तौर पर दीवाली के बाद तेजी आती है। इसलिए घरेलू स्तर पर काली मिर्च की मांग धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार के हालात में फिलहाल ज्यादा बदलाव आने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि ब्राजील और इंडोनेशिया ऐसा होने नहीं देंगे।उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया में 20,000-22,000 टन काली मिर्च का भंडार है और इस सीजन के दौरान ब्राजील में इसका भंडार 30,000 टन के स्तर पर जा पहुंचेगा। उनके गोदामों में काफी मात्रा में पिछले सीजन की भी काली मिर्च पड़ी है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में बाजार पर इनकी पकड़ मजबूत होगी। (BS Hindi)
सफेद मिर्च (काली मिर्च की एक विशेष किस्म, जिसकी कटाई फसल पकने से पहले ही हो जाती है) के भाव में हालिया तेजी से काली मिर्च बाजार को नई ताकत मिल सकती है क्योंकि सफेद और काली मिर्च के भाव का अंतर अब बढ़ता हुआ 1,500 डॉलर प्रति टन हो गया है।सफेद मिर्च का औसत भाव फिलहाल 6,000 डॉलर प्रति टन है, जबकि काली मिर्च का अधिकतम भाव 4,500 डॉलर प्रति टन। यद्यपि इन दिनों इंडोनेशिया में 4,000-4,100 डॉलर प्रति टन भाव के दायरे में काली मिर्च उपलब्ध है, लेकिन वहां सफेद मिर्च की पेशकश 6,300-6,350 डॉलर प्रति टन के दायरे में की जा रही है। चीन जैसे देशों में तो सफेद मिर्च के भाव 6,400 डॉलर प्रति टन के स्तर पर जा पहुंचे हैं।यदि सफेद मिर्च के भाव में और तेजी आती है, तो ऐसे हालात में काली मिर्च की मांग बढ़ जाएगी, जिसकी वजह से इस कमोडिटी के बाजार में धीरे-धीरे उछाल आएगी। हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा निकट भविष्य में नहीं बल्कि लंबी अवधि में होने की गुंजाइश है क्योंकि काली मिर्च के बाजार पर फिलहाल इंडोनशिया और ब्राजील की तगड़ी पकड़ बनी हुई है।गौरतलब है कि इंडोनेशिया फिलहाल एएसटीए ग्रेड वाली काली मिर्च की पेशकश 4,100 डॉलर प्रति टन कर रहा है, न केवल इस साल के लिए बल्कि अगले साल की शुरुआत के लिए भी। उधर वियतनाम में 500 ग्राम/लीटर ग्रेड वाली काली मिर्च 4,050 डॉलर प्रति टन उपलब्ध है, हालांकि वहां एएसटीए किस्म वाली काली मिर्च का भाव 4,600 डॉलर प्रति टन है। ब्राजील में फिलहाल काली मिर्च की खेती जोरों पर है और वहां यह 4,000-4,050 डॉलर प्रति टन बिक रही है। जाहिर है, काली मिर्च के वैश्विक बाजार पर फिलहाल इन दो देशों का नियंत्रण है क्योंकि उनके पास इस कमोडिटी का पर्याप्त भंडार हैं और उम्मीद की जा रही है कि इस वर्ष इसके भाव का दायरा बहुत ऊपर नहीं जाएगा।भारत में काली मिर्च का भाव फिलहाल 4,375 डॉलर प्रति टन के स्तर पर है क्योंकि विदेशी बाजारों से इसके लिए कम पूछताछ हो रही है। इस कमोडिटी के भारतीय बाजार को जाड़े के मौसम में मांग बढऩे की उम्मीद है। इस बाजार में सामान्य तौर पर दीवाली के बाद तेजी आती है। इसलिए घरेलू स्तर पर काली मिर्च की मांग धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार के हालात में फिलहाल ज्यादा बदलाव आने की गुंजाइश कम ही है क्योंकि ब्राजील और इंडोनेशिया ऐसा होने नहीं देंगे।उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया में 20,000-22,000 टन काली मिर्च का भंडार है और इस सीजन के दौरान ब्राजील में इसका भंडार 30,000 टन के स्तर पर जा पहुंचेगा। उनके गोदामों में काफी मात्रा में पिछले सीजन की भी काली मिर्च पड़ी है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले दिनों में बाजार पर इनकी पकड़ मजबूत होगी। (BS Hindi)
रबर की कीमतों पर वायदा का कहर!
कोच्चि October 20, 2010
भारतीय टायर निर्माताओं ने 190 से 191 रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर प्राकृतिक रबर की खरीदारी की है। उनको आशंका है कि आने वाले दिनों में रबर की कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर दिख रहा है। इसके पहले जुलाई में रबर 186 से 187 रुपये प्रति किलो के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। उधर, रबर के वायदा भाव में भी तगड़ा उछाल दर्ज हुआ है। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीएक्स) में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत बढ़कर 19,760 रुपये प्रति 100 किलो पर पहुंच गई। इस बीच, टायर विनिर्माता संघ (एटीएमए) ने हाजिर बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में आई भारी तेज के लिए वायदा बाजार को जिम्मेदार ठहराया है। एटीएमए का आरोप है कि वायदा बाजार में कीमतें बढऩे का असर हाजिर बाजार पर भी दिख रहा है और इसी के चलते इसमें भारी उतार-चढ़ाव भी आया है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को लिखे एक पत्र में एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुद्घराज ने कहा है कि 18 अक्टूबर को वायदा बाजार में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत 186 रुपये से बढ़कर 191 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई थी। यानी दिन में यह करीब 5 रुपये तक बढ़ गया। इसी तरह 20 अक्टूबर को जनवरी माह के अनुबंध के लिए इसकी कीमत 200 रुपये प्रति किलो के स्तर को छू गई है। वायदा बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज उछाल से इसका असर हाजिर बाजर में भी दिख रहा है और यहां भी इसकी कीमतों में आग लगी हुई है। स्थानीय बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड की कीमत बढ़कर 186 रुपये प्रति किलो हो गई। इससे रबर खरीदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि भाव बढऩे की आशंका में ही प्राकृतिक रबर के कुल कारोबार की मात्रा बढ़कर 8,000 टन पहुंच गई है। जबकि सामान्य दिनों औसतन केवल 3,000 से 4,000 टन प्राकृतिक रबर का कारोबार होता था। ओपेन पोजिशन में इसके भाव के नीचे आने से ऐसा संकेत मिल रहा है कि इंट्रा-डे प्लेयर्स किसी बड़े सौदे की तैयारी में है। यानी रबर के वायदा भाव में सट्टेबाजों द्वारा जान-बूझ कर उतार-चढ़ाव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें आशंका है कि तेजी का यह बुलबुला ट्रेडर्स द्वारा जानबूझ कर पैदा किया जा रहा है। दूसरी तरफ, ब्याज दरें बढऩे की आशंका में जापान में रबर का वायदा भाव एक सप्ताह के निम्न स्तर पर चला गया है। सामान्य तौर पर घरेलू वायदा बाजार का रुख टोकियो कमोडिटी एक्सचेंज (टोकॉम) के रुख से तय होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 18 अक्टूबर को टोकॉम में रबर के वायदा भाव में करीब 4 येन की गिरावट आई इसके बावजूद घरेलू एक्सचेंज में रबर के वायदा भाव में 5 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज हुई। एटीएमए ने कहा कि रबर बोर्ड ने देश में रबर का स्टॉक 2.75 लाख टन घोषित किया है, जो तर्कसंगत नहीं है। एटीएमए का कहना है कि वायदा भाव पर एफएमसी अगर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाता है तो कम से कम इसमें 4 फीसदी तक के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर इसे 1 फीसदी तक सीमित करे। (BS Hindi)
भारतीय टायर निर्माताओं ने 190 से 191 रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर प्राकृतिक रबर की खरीदारी की है। उनको आशंका है कि आने वाले दिनों में रबर की कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर दिख रहा है। इसके पहले जुलाई में रबर 186 से 187 रुपये प्रति किलो के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। उधर, रबर के वायदा भाव में भी तगड़ा उछाल दर्ज हुआ है। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीएक्स) में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत बढ़कर 19,760 रुपये प्रति 100 किलो पर पहुंच गई। इस बीच, टायर विनिर्माता संघ (एटीएमए) ने हाजिर बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में आई भारी तेज के लिए वायदा बाजार को जिम्मेदार ठहराया है। एटीएमए का आरोप है कि वायदा बाजार में कीमतें बढऩे का असर हाजिर बाजार पर भी दिख रहा है और इसी के चलते इसमें भारी उतार-चढ़ाव भी आया है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को लिखे एक पत्र में एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुद्घराज ने कहा है कि 18 अक्टूबर को वायदा बाजार में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत 186 रुपये से बढ़कर 191 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई थी। यानी दिन में यह करीब 5 रुपये तक बढ़ गया। इसी तरह 20 अक्टूबर को जनवरी माह के अनुबंध के लिए इसकी कीमत 200 रुपये प्रति किलो के स्तर को छू गई है। वायदा बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज उछाल से इसका असर हाजिर बाजर में भी दिख रहा है और यहां भी इसकी कीमतों में आग लगी हुई है। स्थानीय बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड की कीमत बढ़कर 186 रुपये प्रति किलो हो गई। इससे रबर खरीदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि भाव बढऩे की आशंका में ही प्राकृतिक रबर के कुल कारोबार की मात्रा बढ़कर 8,000 टन पहुंच गई है। जबकि सामान्य दिनों औसतन केवल 3,000 से 4,000 टन प्राकृतिक रबर का कारोबार होता था। ओपेन पोजिशन में इसके भाव के नीचे आने से ऐसा संकेत मिल रहा है कि इंट्रा-डे प्लेयर्स किसी बड़े सौदे की तैयारी में है। यानी रबर के वायदा भाव में सट्टेबाजों द्वारा जान-बूझ कर उतार-चढ़ाव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें आशंका है कि तेजी का यह बुलबुला ट्रेडर्स द्वारा जानबूझ कर पैदा किया जा रहा है। दूसरी तरफ, ब्याज दरें बढऩे की आशंका में जापान में रबर का वायदा भाव एक सप्ताह के निम्न स्तर पर चला गया है। सामान्य तौर पर घरेलू वायदा बाजार का रुख टोकियो कमोडिटी एक्सचेंज (टोकॉम) के रुख से तय होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 18 अक्टूबर को टोकॉम में रबर के वायदा भाव में करीब 4 येन की गिरावट आई इसके बावजूद घरेलू एक्सचेंज में रबर के वायदा भाव में 5 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज हुई। एटीएमए ने कहा कि रबर बोर्ड ने देश में रबर का स्टॉक 2.75 लाख टन घोषित किया है, जो तर्कसंगत नहीं है। एटीएमए का कहना है कि वायदा भाव पर एफएमसी अगर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाता है तो कम से कम इसमें 4 फीसदी तक के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर इसे 1 फीसदी तक सीमित करे। (BS Hindi)
रबर की कीमतों पर वायदा का कहर!
कोच्चि October 20, 2010
भारतीय टायर निर्माताओं ने 190 से 191 रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर प्राकृतिक रबर की खरीदारी की है। उनको आशंका है कि आने वाले दिनों में रबर की कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर दिख रहा है। इसके पहले जुलाई में रबर 186 से 187 रुपये प्रति किलो के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। उधर, रबर के वायदा भाव में भी तगड़ा उछाल दर्ज हुआ है। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीएक्स) में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत बढ़कर 19,760 रुपये प्रति 100 किलो पर पहुंच गई। इस बीच, टायर विनिर्माता संघ (एटीएमए) ने हाजिर बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में आई भारी तेज के लिए वायदा बाजार को जिम्मेदार ठहराया है। एटीएमए का आरोप है कि वायदा बाजार में कीमतें बढऩे का असर हाजिर बाजार पर भी दिख रहा है और इसी के चलते इसमें भारी उतार-चढ़ाव भी आया है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को लिखे एक पत्र में एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुद्घराज ने कहा है कि 18 अक्टूबर को वायदा बाजार में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत 186 रुपये से बढ़कर 191 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई थी। यानी दिन में यह करीब 5 रुपये तक बढ़ गया। इसी तरह 20 अक्टूबर को जनवरी माह के अनुबंध के लिए इसकी कीमत 200 रुपये प्रति किलो के स्तर को छू गई है। वायदा बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज उछाल से इसका असर हाजिर बाजर में भी दिख रहा है और यहां भी इसकी कीमतों में आग लगी हुई है। स्थानीय बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड की कीमत बढ़कर 186 रुपये प्रति किलो हो गई। इससे रबर खरीदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि भाव बढऩे की आशंका में ही प्राकृतिक रबर के कुल कारोबार की मात्रा बढ़कर 8,000 टन पहुंच गई है। जबकि सामान्य दिनों औसतन केवल 3,000 से 4,000 टन प्राकृतिक रबर का कारोबार होता था। ओपेन पोजिशन में इसके भाव के नीचे आने से ऐसा संकेत मिल रहा है कि इंट्रा-डे प्लेयर्स किसी बड़े सौदे की तैयारी में है। यानी रबर के वायदा भाव में सट्टेबाजों द्वारा जान-बूझ कर उतार-चढ़ाव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें आशंका है कि तेजी का यह बुलबुला ट्रेडर्स द्वारा जानबूझ कर पैदा किया जा रहा है। दूसरी तरफ, ब्याज दरें बढऩे की आशंका में जापान में रबर का वायदा भाव एक सप्ताह के निम्न स्तर पर चला गया है। सामान्य तौर पर घरेलू वायदा बाजार का रुख टोकियो कमोडिटी एक्सचेंज (टोकॉम) के रुख से तय होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 18 अक्टूबर को टोकॉम में रबर के वायदा भाव में करीब 4 येन की गिरावट आई इसके बावजूद घरेलू एक्सचेंज में रबर के वायदा भाव में 5 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज हुई। एटीएमए ने कहा कि रबर बोर्ड ने देश में रबर का स्टॉक 2.75 लाख टन घोषित किया है, जो तर्कसंगत नहीं है। एटीएमए का कहना है कि वायदा भाव पर एफएमसी अगर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाता है तो कम से कम इसमें 4 फीसदी तक के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर इसे 1 फीसदी तक सीमित करे। (BS Hindi)
भारतीय टायर निर्माताओं ने 190 से 191 रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर पर प्राकृतिक रबर की खरीदारी की है। उनको आशंका है कि आने वाले दिनों में रबर की कीमतें और बढ़ेंगी क्योंकि बाजार में मांग और आपूर्ति के बीच बड़ा अंतर दिख रहा है। इसके पहले जुलाई में रबर 186 से 187 रुपये प्रति किलो के उच्च स्तर पर पहुंच गया था। उधर, रबर के वायदा भाव में भी तगड़ा उछाल दर्ज हुआ है। नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीएक्स) में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत बढ़कर 19,760 रुपये प्रति 100 किलो पर पहुंच गई। इस बीच, टायर विनिर्माता संघ (एटीएमए) ने हाजिर बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में आई भारी तेज के लिए वायदा बाजार को जिम्मेदार ठहराया है। एटीएमए का आरोप है कि वायदा बाजार में कीमतें बढऩे का असर हाजिर बाजार पर भी दिख रहा है और इसी के चलते इसमें भारी उतार-चढ़ाव भी आया है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को लिखे एक पत्र में एटीएमए के महानिदेशक राजीव बुद्घराज ने कहा है कि 18 अक्टूबर को वायदा बाजार में नवंबर माह के अनुबंध के लिए रबर की कीमत 186 रुपये से बढ़कर 191 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई थी। यानी दिन में यह करीब 5 रुपये तक बढ़ गया। इसी तरह 20 अक्टूबर को जनवरी माह के अनुबंध के लिए इसकी कीमत 200 रुपये प्रति किलो के स्तर को छू गई है। वायदा बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज उछाल से इसका असर हाजिर बाजर में भी दिख रहा है और यहां भी इसकी कीमतों में आग लगी हुई है। स्थानीय बाजार में आरएसएस-4 ग्रेड की कीमत बढ़कर 186 रुपये प्रति किलो हो गई। इससे रबर खरीदारों की मुश्किलें बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि भाव बढऩे की आशंका में ही प्राकृतिक रबर के कुल कारोबार की मात्रा बढ़कर 8,000 टन पहुंच गई है। जबकि सामान्य दिनों औसतन केवल 3,000 से 4,000 टन प्राकृतिक रबर का कारोबार होता था। ओपेन पोजिशन में इसके भाव के नीचे आने से ऐसा संकेत मिल रहा है कि इंट्रा-डे प्लेयर्स किसी बड़े सौदे की तैयारी में है। यानी रबर के वायदा भाव में सट्टेबाजों द्वारा जान-बूझ कर उतार-चढ़ाव किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हमें आशंका है कि तेजी का यह बुलबुला ट्रेडर्स द्वारा जानबूझ कर पैदा किया जा रहा है। दूसरी तरफ, ब्याज दरें बढऩे की आशंका में जापान में रबर का वायदा भाव एक सप्ताह के निम्न स्तर पर चला गया है। सामान्य तौर पर घरेलू वायदा बाजार का रुख टोकियो कमोडिटी एक्सचेंज (टोकॉम) के रुख से तय होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि 18 अक्टूबर को टोकॉम में रबर के वायदा भाव में करीब 4 येन की गिरावट आई इसके बावजूद घरेलू एक्सचेंज में रबर के वायदा भाव में 5 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज हुई। एटीएमए ने कहा कि रबर बोर्ड ने देश में रबर का स्टॉक 2.75 लाख टन घोषित किया है, जो तर्कसंगत नहीं है। एटीएमए का कहना है कि वायदा भाव पर एफएमसी अगर तत्काल प्रतिबंध नहीं लगाता है तो कम से कम इसमें 4 फीसदी तक के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित कर इसे 1 फीसदी तक सीमित करे। (BS Hindi)
किसानों को मिलीं राहत की बूंदें
नई दिल्ली October 20, 2010
सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 20 रुपये प्रति क्विंटल यानी 1.8 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी के साथ 1,120 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। वहीं मसूर और चने की दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 380 रुपये प्रति क्विंटल तक की बढ़ोतरी की गई है।नए सत्र में खरीद के लिए गेहूं के समर्थन मूल्य में की गई बढ़ोतरी 1.82 प्रतिशत रही, जो पिछले 5 साल में सबसे कम बढ़ोतरी है। इससे संकेत मिलता है कि देश में अनाज का पर्याप्त भंडार है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन आफ इंडिया की सचिव वीना शर्मा ने कहा, 'यह मामूली बढ़ोतरी है, लेकिन इससे किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा।आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल की समिति (सीसीईए) ने 2010-11 की रबी फसलों के एमएसपी को मंजूरी दी। सीसीईए की बैठक के बाद गृह मंत्री पी चिदंबरम ने संवाददाताओं को यह जानकारी दी। पिछले सत्र में रबी की प्रमुख फसल गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,100 रुपये प्रति क्विंटल था। ताजा संशोधन के अनुसार, मसूर दाल का एमएसपी 380 रुपये बढ़कर 2,250 रुपये प्रति क्विंटल और चने की दाल का एमएसपी 340 रुपये बढ़कर 2,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। वहीं चने का बाजार भाव इस समय 2400-2900 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने इस साल दालों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने तथा आयात पर निर्भरता घटाने के लिए इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में खासा इजाफा किया है।कृषि मंत्रालय ने 2010-11 में दालों का उत्पादन 1.65 करोड़ टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। पिछले साल देश में दालोंं उत्पादन 1.45 करोड़ टन था। सीसीईए ने इसके साथ ही सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 20 रुपये बढ़ाकर 1,850 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने को भी मंजूरी दे दी है। 'सैफ्लावर का एमएसपी 1,680 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,800 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। जौ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 30 रुपये की बढ़ोतरी की गई है और अब यह 780 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।एग्रीवाच में विश्लेषक अंकिता प्रकाश ने कहा, 'समर्थन मूल्य में इस बढ़ोतरी से कम अवधि के लिए कीमतों में तेजी आएगी।कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की जाती है। खरीफ सत्र में दालों के ऊंचे समर्थन मूल्य से इसके बुआई क्षेत्र में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है और खरीफ सत्र का उत्पादन बढ़कर 60 लाख टन हो जाने की उम्मीद है।
बीज विधेयक में संशोधनों को मंजूरीसरकार ने बीज विधेयक, 2004 में अतिरिक्त संशोधनों को मंजूरी दे दी जिनमें नकली बीज बेचने जैसे अपराधों के लिए और ऊंचे जुर्माने का प्रस्ताव हैं। एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीज विधेयक, 2004 में अतिरिक्त संशोधनों को मंजूरी दी। विधेयक में एक और प्रावधान शामिल किया गया है जिसके तहत पौध किस्म संरक्षण एवं किसान अधिकार प्राधिकरण तथा जैव विविधता प्राधिकार के अध्यक्षों को केंद्रीय बीज समिति में नामांकित किया जाएगा। (BS Hindi)
सरकार ने गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 20 रुपये प्रति क्विंटल यानी 1.8 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी के साथ 1,120 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। वहीं मसूर और चने की दालों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 380 रुपये प्रति क्विंटल तक की बढ़ोतरी की गई है।नए सत्र में खरीद के लिए गेहूं के समर्थन मूल्य में की गई बढ़ोतरी 1.82 प्रतिशत रही, जो पिछले 5 साल में सबसे कम बढ़ोतरी है। इससे संकेत मिलता है कि देश में अनाज का पर्याप्त भंडार है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन आफ इंडिया की सचिव वीना शर्मा ने कहा, 'यह मामूली बढ़ोतरी है, लेकिन इससे किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा।आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडल की समिति (सीसीईए) ने 2010-11 की रबी फसलों के एमएसपी को मंजूरी दी। सीसीईए की बैठक के बाद गृह मंत्री पी चिदंबरम ने संवाददाताओं को यह जानकारी दी। पिछले सत्र में रबी की प्रमुख फसल गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,100 रुपये प्रति क्विंटल था। ताजा संशोधन के अनुसार, मसूर दाल का एमएसपी 380 रुपये बढ़कर 2,250 रुपये प्रति क्विंटल और चने की दाल का एमएसपी 340 रुपये बढ़कर 2,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। वहीं चने का बाजार भाव इस समय 2400-2900 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने इस साल दालों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने तथा आयात पर निर्भरता घटाने के लिए इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में खासा इजाफा किया है।कृषि मंत्रालय ने 2010-11 में दालों का उत्पादन 1.65 करोड़ टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। पिछले साल देश में दालोंं उत्पादन 1.45 करोड़ टन था। सीसीईए ने इसके साथ ही सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 20 रुपये बढ़ाकर 1,850 रुपये प्रति क्विंटल किए जाने को भी मंजूरी दे दी है। 'सैफ्लावर का एमएसपी 1,680 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,800 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। जौ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 30 रुपये की बढ़ोतरी की गई है और अब यह 780 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।एग्रीवाच में विश्लेषक अंकिता प्रकाश ने कहा, 'समर्थन मूल्य में इस बढ़ोतरी से कम अवधि के लिए कीमतों में तेजी आएगी।कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की जाती है। खरीफ सत्र में दालों के ऊंचे समर्थन मूल्य से इसके बुआई क्षेत्र में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है और खरीफ सत्र का उत्पादन बढ़कर 60 लाख टन हो जाने की उम्मीद है।
बीज विधेयक में संशोधनों को मंजूरीसरकार ने बीज विधेयक, 2004 में अतिरिक्त संशोधनों को मंजूरी दे दी जिनमें नकली बीज बेचने जैसे अपराधों के लिए और ऊंचे जुर्माने का प्रस्ताव हैं। एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीज विधेयक, 2004 में अतिरिक्त संशोधनों को मंजूरी दी। विधेयक में एक और प्रावधान शामिल किया गया है जिसके तहत पौध किस्म संरक्षण एवं किसान अधिकार प्राधिकरण तथा जैव विविधता प्राधिकार के अध्यक्षों को केंद्रीय बीज समिति में नामांकित किया जाएगा। (BS Hindi)
तिलहन उत्पादन बढ़ेगा 15-18 फीसदी
मुंबई October 20, 2010
इस साल 106 प्रतिशत मॉनसूनी बारिश के चलते जमीन में पर्याप्त नमी रही। इसके चलते तिलहन के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। तेल वर्ष 2010-11 (नवंबर से अक्टूबर) में उत्पादन 15-18 प्रतिशत बढऩे का अनुमान है। इस कारोबार से जुड़े एक दर्जन से ज्यादा प्रतिनिधियों- जिसमें किसान, कारोबारी, आयातक और कारोबार प्रतिनिधि शामिल हैं, ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि कुल उत्पादन 232 से 243 लाख टन तक रहने का अनुमान है। पिछले साल कुल 205.1 लाख टन उत्पादन हुआ था। इसमें खरीफ के तिलहन उत्पादन में करीब 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक इस साल 142 लाख टन तिलहन उत्पादन होगा। वहीं पिछले साल कुल 122.8 लाख टन तिलहन उत्पादन हुआ था। इस सत्र की शुरुआत में मॉनसूनी बारिश कम होने की वजह से किसानों की गतिविधियां देर से देखने को मिली। मॉनसून के जोर पकडऩे पर किसानों ने तिलहन की बुआई तेज कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि बुआई का रकबा 0.32 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ 175 लाख हेक्टेयर हो गया। जबकि पिछले साल 174 लाख हेक्टेयर रकबे में तिलहन की बुआई हुई थी। तिलहन के उत्पादन के शुरुआती अनुमान की तुलना में पुनरीक्षित अनुमानों में उत्पादन बढऩे की उम्मीद की गई है। खासकर मूंगफली उत्पादन का अनुमान 39 लाख टन से बढ़ाकर 44 लाख टन कर दिया गया है। वहीं सोयाबीन उत्पादन 95 लाख टन से मामूली गिरकर 92-95 लाख टन रहने का अनुमान है। एक प्रमुख खाद्य तेल विश्लेषक और उद्योग जगत के जाने माने जानकार गोविंदभाई पटेल ने कहा, 'शुरुआती अठखेलियों के बाद मौसम अनुकूल हो गया, जो पूरे खरीफ सत्र के दौरान बेहतर रहा। देर से हुई बारिश और देश भर में इसके प्रसार के चलते कुल उत्पादन के अनुमानों में बाद में बढ़ोतरी करनी पड़ी। सोयाबीन की कीमतें घरेलू बाजार में ज्यादा रहने की वजह से किसानों ने सोयाबीन, सूरजमुखी और मूंगफली की बुआई के रकबे में बढ़ोतरी की। बहरहाल, रबी सत्र में सरसों की बुआई को गेहूं से जबरदस्त प्रतिस्पर्धा मिलने वाली है। 2010-11 में पेराई के लिए तिलहन की उपलब्धता भी पिछले साल की तुलना में ज्यादा रहने की उम्मीद है। देश में कुल तिलहन उत्पादन का 80 प्रतिशत पेराई के काम आता है, जबकि शेष 20 प्रतिशत सीधे खाने, पशुओं के खाने और बीज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। देश में कुल खाद्य तेल का उत्पादन 13 प्रतिशत बढ़कर 2010-11 में 70 लाख टन रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल कुल 62 लाख टन उत्पादन हुआ था। सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के चेयरमैन सत्यनारायण अग्रवाल ने घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा, 'उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी भारत में तेल की खपत को देखते हुए पर्याप्त नहीं है। इससे भारत आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। इसलिए जरूरत है कि एक और हरित क्रांति आए, जो उच्च गुणवत्ता वाले हाइब्रिड बीज-जेनेटिकली मोडिफॉइड बीजों के माध्यम से आ सकती है, जिसे खाद्य तेलों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है।भारत में हर साल कुल खपत का करीब 55 प्रतिशत वनस्पति तेल का आयात होता है। देश में वनस्पति तेल की कुल जरूरत 157 लाख टन है। इसकी आपूर्ति अर्जेंटीना, इंडोनेशिया और मलेशिया से होती है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अध्यक्ष सुशील गोयनका ने कहा, 'मौसम की स्थिति को देखते हुए हम खरीफ और रबी दोनों सीजन में होने वाले तिलहन उत्पादन को लेकर आशावान हैं। ज्यादा उत्पादन से निश्चित रूप से आयात से निर्भरता कम होगी।गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री के मुताबिक, 'भारत में घरेलू उत्पादन बढऩे के बावजूद आयात में बढ़ोतरी होगी। देश में खाद्य तेल का आयात 2010-11 में 93 लाख टन पर पहुंच सकता है। इसकी वजह यह है कि देश में प्रति व्यक्ति तेल की खपत बढ़ी है और आबादी बढऩे के चलते तेल आयात में पाम ऑयल की हिस्सेदारी बढ़ रही है। मिस्त्री ने कहा कि सरकार को आयात शुल्क के बारे में फिर से विचार करना चाहिए। (BS Hindi)
इस साल 106 प्रतिशत मॉनसूनी बारिश के चलते जमीन में पर्याप्त नमी रही। इसके चलते तिलहन के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। तेल वर्ष 2010-11 (नवंबर से अक्टूबर) में उत्पादन 15-18 प्रतिशत बढऩे का अनुमान है। इस कारोबार से जुड़े एक दर्जन से ज्यादा प्रतिनिधियों- जिसमें किसान, कारोबारी, आयातक और कारोबार प्रतिनिधि शामिल हैं, ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि कुल उत्पादन 232 से 243 लाख टन तक रहने का अनुमान है। पिछले साल कुल 205.1 लाख टन उत्पादन हुआ था। इसमें खरीफ के तिलहन उत्पादन में करीब 63 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक इस साल 142 लाख टन तिलहन उत्पादन होगा। वहीं पिछले साल कुल 122.8 लाख टन तिलहन उत्पादन हुआ था। इस सत्र की शुरुआत में मॉनसूनी बारिश कम होने की वजह से किसानों की गतिविधियां देर से देखने को मिली। मॉनसून के जोर पकडऩे पर किसानों ने तिलहन की बुआई तेज कर दी। इसका परिणाम यह हुआ कि बुआई का रकबा 0.32 प्रतिशत की मामूली बढ़त के साथ 175 लाख हेक्टेयर हो गया। जबकि पिछले साल 174 लाख हेक्टेयर रकबे में तिलहन की बुआई हुई थी। तिलहन के उत्पादन के शुरुआती अनुमान की तुलना में पुनरीक्षित अनुमानों में उत्पादन बढऩे की उम्मीद की गई है। खासकर मूंगफली उत्पादन का अनुमान 39 लाख टन से बढ़ाकर 44 लाख टन कर दिया गया है। वहीं सोयाबीन उत्पादन 95 लाख टन से मामूली गिरकर 92-95 लाख टन रहने का अनुमान है। एक प्रमुख खाद्य तेल विश्लेषक और उद्योग जगत के जाने माने जानकार गोविंदभाई पटेल ने कहा, 'शुरुआती अठखेलियों के बाद मौसम अनुकूल हो गया, जो पूरे खरीफ सत्र के दौरान बेहतर रहा। देर से हुई बारिश और देश भर में इसके प्रसार के चलते कुल उत्पादन के अनुमानों में बाद में बढ़ोतरी करनी पड़ी। सोयाबीन की कीमतें घरेलू बाजार में ज्यादा रहने की वजह से किसानों ने सोयाबीन, सूरजमुखी और मूंगफली की बुआई के रकबे में बढ़ोतरी की। बहरहाल, रबी सत्र में सरसों की बुआई को गेहूं से जबरदस्त प्रतिस्पर्धा मिलने वाली है। 2010-11 में पेराई के लिए तिलहन की उपलब्धता भी पिछले साल की तुलना में ज्यादा रहने की उम्मीद है। देश में कुल तिलहन उत्पादन का 80 प्रतिशत पेराई के काम आता है, जबकि शेष 20 प्रतिशत सीधे खाने, पशुओं के खाने और बीज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। देश में कुल खाद्य तेल का उत्पादन 13 प्रतिशत बढ़कर 2010-11 में 70 लाख टन रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल कुल 62 लाख टन उत्पादन हुआ था। सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री ऐंड ट्रेड (सीओओआईटी) के चेयरमैन सत्यनारायण अग्रवाल ने घरेलू तिलहन उत्पादन बढ़ाने पर जोर देते हुए कहा, 'उत्पादन में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी भारत में तेल की खपत को देखते हुए पर्याप्त नहीं है। इससे भारत आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। इसलिए जरूरत है कि एक और हरित क्रांति आए, जो उच्च गुणवत्ता वाले हाइब्रिड बीज-जेनेटिकली मोडिफॉइड बीजों के माध्यम से आ सकती है, जिसे खाद्य तेलों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित हो सकती है।भारत में हर साल कुल खपत का करीब 55 प्रतिशत वनस्पति तेल का आयात होता है। देश में वनस्पति तेल की कुल जरूरत 157 लाख टन है। इसकी आपूर्ति अर्जेंटीना, इंडोनेशिया और मलेशिया से होती है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अध्यक्ष सुशील गोयनका ने कहा, 'मौसम की स्थिति को देखते हुए हम खरीफ और रबी दोनों सीजन में होने वाले तिलहन उत्पादन को लेकर आशावान हैं। ज्यादा उत्पादन से निश्चित रूप से आयात से निर्भरता कम होगी।गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री के मुताबिक, 'भारत में घरेलू उत्पादन बढऩे के बावजूद आयात में बढ़ोतरी होगी। देश में खाद्य तेल का आयात 2010-11 में 93 लाख टन पर पहुंच सकता है। इसकी वजह यह है कि देश में प्रति व्यक्ति तेल की खपत बढ़ी है और आबादी बढऩे के चलते तेल आयात में पाम ऑयल की हिस्सेदारी बढ़ रही है। मिस्त्री ने कहा कि सरकार को आयात शुल्क के बारे में फिर से विचार करना चाहिए। (BS Hindi)
16 अक्तूबर 2010
पैदावार बढऩे से फुटकर में सस्ती हो सकती है दालें
खरीफ में दलहनों के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना से थोक कीमतों में गिरावट आई है। खरीफ में दालों के उत्पादन में 39.5 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। थोक कीमतों में आई गिरावट का असर आगामी दिनों में फुटकर कीमतों पर भी पड़ेगा। उत्पादक मंडियों में अरहर, उड़द और मूंग की कीमतों में पिछले डेढ़ महीने में करीब 700 से 800 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है। कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमार के अनुसार वर्ष 2010-11 खरीफ सीजन में दलहन का उत्पादन बढ़कर 60 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनका उत्पादन 43 लाख टन का हुआ था। अनुकूल मौसम से रबी में भी दालों की बुवाई बढऩे की संभावना है। दलहन के थोक कारोबारी निशांत मित्तल ने बताया कि दालों के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना से मांग कम हो गई है। इसीलिए पिछले डेढ़ महीने में ही इनके दाम 700 से 800 रुपये प्रति क्विंटल तक घट चुके हैं। दिल्ली थोक बाजार में अरहर दाल का भाव घटकर 5,000 से 6,000 रुपये, मूंग धोया का 5,450-5,500 रुपये, उड़द का 4,900-5,500 रुपये और मसूर लाल दाल का घटकर 3,600-4,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। हालांकि थोक कीमतों मेें आई गिरावट का फायदा अभी आम उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है। उपभोक्ताओं को अभी भी रिटेल स्टोर से मूंग दाल 85 से 89 रुपये और उड़द दाल 86 से 90 रुपये तथा अरहर दाल 69 से 72 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदनी पड़ रही है। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के डायरेक्टर सुनिल एस बंदेवार ने बताया कि खरीफ में उड़द और मूंग के साथ अरहर का उत्पादन बढऩे की संभावना है। उत्पादक मंडियों में मूंग और उड़द की आवक शुरू हो गई है तथा अरहर की आवक नवंबर-दिसंबर में बनेगी। गुलबर्गा मंडी में उड़द के भाव घटकर 3,500 से 4,000 रुपये, अरहर के 3,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मसूर का भाव बरेली और इंदौर मंडी में घटकर 3,240 से 3,300 रुपये और मूंग का भाव इंदौर मंडी में घटकर 3,500-3,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। नवंबर-दिसंबर में आवक बढ़ जायेगी तथा त्यौहारी मांग कम हो जायेगी जिससे कीमतों में और भी मंदे की संभावना है। जलगांव के दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि खरीफ में दलहनों के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना से आयातक नए आयात सौदे सीमित मात्रा में ही कर रहे हैं। मांग कम होने से आयातित दालों की कीमतों में पिछले महीने भर में ही 15 से 30 डॉलर प्रति टन तक की गिरावट आई है। लेमन अरहर का भाव घटकर मुंबई में 810 डॉलर, उड़द एफएक्यू का 1,150 डॉलर, मूंग पेड़ीसेवा का भाव घटकर 950 डॉलर प्रति टन और मसूर का भाव 780 डॉलर प्रति टन रह गया।बात पते कीनवंबर-दिसंबर में दलहन की आवक बढ़ जाएगी तथा त्यौहारी मांग कम हो जाएगी जिससे कीमतों में और भी गिरावट की संभावना है। आयातित दालों की कीमतों में भी पिछले महीने भर में 15 से 30 डॉलर प्रति टन की गिरावट आई। (Business Bhaskar...r s rana)
वनस्पति तेलों का आयात ६फीसदी बढ़ा
सितंबर महीने में वनस्पति तेलों के आयात में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अनुसार सितंबर महीने में वनस्पति तेलों का आयात बढ़कर 960,752 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 942,257 टन का हुआ था। सितंबर माह के दौरान खाद्य तेलों का आयात 8.9 फीसदी बढ़कर 942,257 टन हो गया। एसईए के मुताबिक तेल वर्ष नवंबर-09 से सितंबर-10 के दौरान वनस्पति तेलों के आयात में पांच फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।इस दौरान कुल वनस्पति तेलों का आयात बढ़कर 84.08 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 79.75 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। वनस्पति तेलों के आयात के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। सबसे ज्यादा आयात चीन द्वारा किया जाता है। सितंबर में पाम तेल का आयात 8 फीसदी बढ़कर 5.88 लाख टन हो गया। घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का स्टॉक बढ़कर करीब 15 लाख टन का है जो पिछले महीने के मुकाबले करीब 1.20 लाख टन ज्यादा है। पहली सितंबर को घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का 13.80 लाख टन का स्टॉक था। आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में पिछले महीने भर में ही करीब 64 से 95 डॉलर प्रति टन की तेजी आ चुकी है। आरबीडी पामेलीन का भाव बढ़कर इस दौरान 957 डॉलर से बढ़कर 1,052 डॉलर प्रति टन हो गया। क्रूड पाम तेल का भाव भी 906 डॉलर से बढ़कर 970 डॉलर प्रति टन और क्रूड सोयाबीन तेल का भाव 997 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 1,085 डॉलर प्रति टन हो गया। (Business Bhaskar)
त्योहारी मांग से सरसों के भाव में तेजी का रुख
तेल में त्योहारी मांग निकलने से सरसों की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले एक सप्ताह में वायदा बाजार में सरसों की कीमतों में 2.6 फीसदी और हाजिर बाजार में 2 फीसदी की तेजी आई है। खाद्य तेलों का आयात लगातार बढ़ रहा है। साथ ही घरेलू बाजार में खरीफ तिलहनों की आवक भी शुरू हो गई है। अनुकूल मौसम से रबी में सरसों की बुवाई भी बढऩे की संभावना है। ऐसे में सरसों की मौजूदा तेजी स्थिर रहने के आसार कम हैं।वायदा बाजार में मजबूती नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद बढऩे से पिछले एक सप्ताह में सरसों की कीमतों में 2.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। सात अक्टूबर को नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में सरसों का भाव 541.95 रुपये प्रति 20 किलो था, जो कि शुक्रवार को बढ़कर 556.30 रुपये प्रति 20 किलो हो गया। नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में 121,850 लॉट सरसों के खड़े सौदे हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि घरेलू बाजार में सरसों का बंपर स्टॉक बचा हुआ है। साथ ही खरीफ तिलहनों की आवक भी शुरू हो गई है। वैसे भी सरसों तेल के मुकाबले रिफाइंड सोया तेल और क्रूड पॉम तेल के भाव काफी नीचे हैं, इसलिए नवंबर के बाद त्योहारी मांग कम हो जायेगी। इससे सरसों की मौजूदा तेजी स्थिर रहने के आसार नहीं हैं। अलवर व्यापार मंडल के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में करीब 29-30 लाख टन सरसों का स्टॉक बचा हुआ है, जबकि उत्पादक मंडियों में खरीफ तिलहनों की दैनिक आवक शुरू हो गई है। इसीलिए आगामी दिनों में सरसों की पेराई कम हो जायेगी। ऐसे में सरसों की मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है। कृषि मंत्रालय के चौथे अनुमान के मुताबिक वर्ष 2009-10 में सरसों का उत्पादन 64.13 लाख टन का हुआ था। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेंमत गुप्ता ने बताया कि त्योहारी मांग निकलने से सरसों की कीमतों में 50 से 60 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। राजस्थान की उत्पादन मंडियों में सरसों के भाव 2575 से 2600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। दिल्ली में इसका भाव 2700 से 2710 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। सरसों तेल के भाव बढ़कर 5400 से 5450 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। खाद्य तेलों का आयात बढ़ा साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के अनुसार सितंबर महीने में खाद्य तेलों के आयात में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सितंबर महीने में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 960,752 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 942,257 टन का निर्यात हुआ था। तेल वर्ष 2009-10 के नवंबर-09 से सितंबर के दौरान कुल खाद्य तेलों के आयात में पांच फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 84.08 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 79.75 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था। खाद्य तेलों की उपलब्धता ज्यादा खाद्य तेलों के थोक व्यापारी आलोक कुमार ने बताया कि पिछले आठ-दिनों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी बनी हुई है। घरेलू बाजार में भी त्योहारी मांग निकलने से तेजी को बल मिला है। लेकिन खाद्य तेलों का आयात ज्यादा होने से घरेलू बाजार में उपलब्धता ज्यादा है। वैसे भी सरसों के मुकाबले रिफाइंड सोया तेल और क्रुड पॉम तेल का भाव काफी नीचे है। इसीलिए नवंबर के बाद त्योहारी मांग कम हो जायेगी। (Business Bhaskar....aar as raana(
इलायची पर भारी पड़ी तेज बारिश
कोच्चि October 14, 2010
केरल के मध्य और दक्षिणी इलाकों में हुई तेज बारिश का बहुत बुरा असर इलायची की फसल पर हुआ है। इस सत्र में इलायची का उत्पादन घटने के अनुमान हैं। उम्मीद की जा रही है कि इसके उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट आएगी, क्योंकि भारी बारिश की वजह से इलायची के पौध पर फंगस इनफेक्शन हो गया है। यह इलायची उत्पादन के बड़े इलाकों में देखा जा रहा है। इस साल राज्य के बारिश के तरीके में बहुत बदलाव आया है। अक्टूबर के अंत से दक्षिण पश्चिम मॉनसूनी बारिश शुरू होती है और पूर्वोत्तर मॉनसून खत्म हो जाता है। वहीं राज्य में हुई बेमौसम बारिश की वजह से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। राज्य के इडुक्की जिले में तेज बारिश से इलायची की पौध खराब हुई है। राज्य के कट्टापाना, वंदानमेडु, उडुबंचोला और अनाविलासम इलाकों में फंगस इनफेक्शन का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इन इलाकों में छोटे और मझोले किसानों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। किसानों के मुताबिक ज्यादा बारिश की वजह से पौधे और बीज खराब हो गए हैं। मजदूरों के संकट की वजह से कच्चे फलों को तोडऩे में भी कठिनाई हो रही है, इसकी वजह से भी बड़े पैमाने पर फसल प्रभावित हुई है। इस सत्र में कुल उत्पादन गिरकर 11,000 टन पहुंचने की उम्मीद है, जबकि सामान्य फसल 13,000-13,5000 टन होती है। बारिश की वजह से फसल की तोड़ाई और प्रसंस्करण पर भी असर पड़ा है। जो बीज तोड़कर रख लिए गए थे और अच्छी स्थिति में थे, वे भी भारी बारिश के चलते खराब हो गए हैं। एक इलायची उत्पादक पीजे कुरियाकोसे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मौसम अनुकूल न होने का असर पौध पर आने वाले दिनों में लगने वाले फूल पर भी बुरा असर पड़ेगा। उत्पादक इलाकों में पौधरोपण का काम चल रहा है साथ ही फसल की तोड़ाई का काम भी दिसंबर तक चलेगा। 90 दिन के सत्र में दो राउंड में फसल तोड़ी जाती है। इसके साथ ही इलाचयी के दाम गिरने से भी किसानों की चिंता बढ़ी है। नीलामी की औसत दरें फिलहाल 940 रुपये प्रति किलो हैं। वहीं इस माह की पहली तारीख को औसत कीमतें 1011 रुपये प्रति किलो और पिछले माह 25 तारीख को कीमतें 1038 रुपये प्रति किलो थीं। 4 सितंबर को इलायची के दाम 1323 रुपये प्रति किलो थे। कीमतों में गिरावट की वजह मौसमी आपूर्ति में बढ़ोतरी है। वहीं कीमतों में रोज-रोज होने वाली गिरावट से किसानों में अफरातफरी मची है। उनका कहना है कि खरीदारों के कार्टेल के चलते विभिन्न नीलामी केंद्रों पर कीमतें गिर रही हैं।जानकारों का कहना है कि इलाचयी की कीमतों में गिरावट आशा के विपरीत हो रही है, क्योंकि इलायची के बड़े आपूर्ति कर्ता ग्वाटेमाला में अभी कोई खास हलचल नही हैं। वहां पर स्थानीय मांग अच्छी है। किसानों को उम्मीद थी कि औसत कीमतें 1000 रुपये प्रति किलो से ऊपर रहेंगी, लेकिन कीमतों में गिरावट आ रही है। बहरहाल भारतीय इलायची का निर्यात बाजार भी बहुत बढिय़ा नहीं नजर आ रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल अगस्त अवधि के दौरान छोटी इलायची के निर्यात में 33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं बड़ी इलायची के निर्यात में 82 प्रतिशत की गिरावट इस अवधि के दौरान आई है। इस दौरान कुल 290 टन छोटी और बड़ी इलायची का निर्यात किया गया, जबकि 2009-10 की समान अवधि में 800 टन निर्यात हुआ था। (BS Hindi)
केरल के मध्य और दक्षिणी इलाकों में हुई तेज बारिश का बहुत बुरा असर इलायची की फसल पर हुआ है। इस सत्र में इलायची का उत्पादन घटने के अनुमान हैं। उम्मीद की जा रही है कि इसके उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट आएगी, क्योंकि भारी बारिश की वजह से इलायची के पौध पर फंगस इनफेक्शन हो गया है। यह इलायची उत्पादन के बड़े इलाकों में देखा जा रहा है। इस साल राज्य के बारिश के तरीके में बहुत बदलाव आया है। अक्टूबर के अंत से दक्षिण पश्चिम मॉनसूनी बारिश शुरू होती है और पूर्वोत्तर मॉनसून खत्म हो जाता है। वहीं राज्य में हुई बेमौसम बारिश की वजह से सामान्य जनजीवन प्रभावित हुआ है। राज्य के इडुक्की जिले में तेज बारिश से इलायची की पौध खराब हुई है। राज्य के कट्टापाना, वंदानमेडु, उडुबंचोला और अनाविलासम इलाकों में फंगस इनफेक्शन का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इन इलाकों में छोटे और मझोले किसानों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। किसानों के मुताबिक ज्यादा बारिश की वजह से पौधे और बीज खराब हो गए हैं। मजदूरों के संकट की वजह से कच्चे फलों को तोडऩे में भी कठिनाई हो रही है, इसकी वजह से भी बड़े पैमाने पर फसल प्रभावित हुई है। इस सत्र में कुल उत्पादन गिरकर 11,000 टन पहुंचने की उम्मीद है, जबकि सामान्य फसल 13,000-13,5000 टन होती है। बारिश की वजह से फसल की तोड़ाई और प्रसंस्करण पर भी असर पड़ा है। जो बीज तोड़कर रख लिए गए थे और अच्छी स्थिति में थे, वे भी भारी बारिश के चलते खराब हो गए हैं। एक इलायची उत्पादक पीजे कुरियाकोसे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मौसम अनुकूल न होने का असर पौध पर आने वाले दिनों में लगने वाले फूल पर भी बुरा असर पड़ेगा। उत्पादक इलाकों में पौधरोपण का काम चल रहा है साथ ही फसल की तोड़ाई का काम भी दिसंबर तक चलेगा। 90 दिन के सत्र में दो राउंड में फसल तोड़ी जाती है। इसके साथ ही इलाचयी के दाम गिरने से भी किसानों की चिंता बढ़ी है। नीलामी की औसत दरें फिलहाल 940 रुपये प्रति किलो हैं। वहीं इस माह की पहली तारीख को औसत कीमतें 1011 रुपये प्रति किलो और पिछले माह 25 तारीख को कीमतें 1038 रुपये प्रति किलो थीं। 4 सितंबर को इलायची के दाम 1323 रुपये प्रति किलो थे। कीमतों में गिरावट की वजह मौसमी आपूर्ति में बढ़ोतरी है। वहीं कीमतों में रोज-रोज होने वाली गिरावट से किसानों में अफरातफरी मची है। उनका कहना है कि खरीदारों के कार्टेल के चलते विभिन्न नीलामी केंद्रों पर कीमतें गिर रही हैं।जानकारों का कहना है कि इलाचयी की कीमतों में गिरावट आशा के विपरीत हो रही है, क्योंकि इलायची के बड़े आपूर्ति कर्ता ग्वाटेमाला में अभी कोई खास हलचल नही हैं। वहां पर स्थानीय मांग अच्छी है। किसानों को उम्मीद थी कि औसत कीमतें 1000 रुपये प्रति किलो से ऊपर रहेंगी, लेकिन कीमतों में गिरावट आ रही है। बहरहाल भारतीय इलायची का निर्यात बाजार भी बहुत बढिय़ा नहीं नजर आ रहा है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल अगस्त अवधि के दौरान छोटी इलायची के निर्यात में 33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं बड़ी इलायची के निर्यात में 82 प्रतिशत की गिरावट इस अवधि के दौरान आई है। इस दौरान कुल 290 टन छोटी और बड़ी इलायची का निर्यात किया गया, जबकि 2009-10 की समान अवधि में 800 टन निर्यात हुआ था। (BS Hindi)
अधिक दाल का हुआ मलाल
जयपुर October 14, 2010
राजस्थान में दलहनों की अधिक पैदावार किसानों के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है। अधिक फसल होने के कारण दलहनों के भाव आसमान से जमीन पर आने लगे हैं और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दलहनों पर लागू स्टॉक सीमा और विक्रय अवधि सीमा लागू होने के कारण व्यापारी भी अधिक माल खरीदने से कतरा रहे हैं। हाल ही में हुई राजस्थान खाद्य व्यापार महासंघ की बैठक में अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता ने कहा कि किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए महासंघ ने राज्य के खाद्य मंत्री को दलहनों पर लगी स्टॉक और विक्रय अवधि सीमा हटाने और केंद्रीय खाद्य मंत्री को दलहनों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव भेजा है। पिछले साल दालों के दाम में तेजी को देखते हुए राज्य सरकार ने एक साल के लिए दालों और चने पर स्टॉक सीमा और विक्रय अवधि सीमा लागू की थी। यह समय सीमा 30 सितंबर को समाप्त हो गई थी, लेकिन सरकार ने इसे और एक साल के लिए बढ़ा दिया है। स्टॉक सीमा के तहत एक व्यापारी 45 दिन के लिए अधिकतम 1000 क्विंटल दलहन और 75 दिन के लिए 3000 क्विंटल चना रख सकता है। गुप्ता ने कहा कि अगर सरकार किसानों और व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए 15 दिन में यह सीमा नहीं हटाती है, तो राज्य के व्यापारी इसके खिलाफ कठोर कदम उठा सकते हैं।जयपुर के दलहन व्यापारी श्याम नाटाणी ने बताया कि किसानों ने 70 रुपये के भाव देखकर मूंग की बुआई की थी। उन्हें इस बार भाव 50 रुपये किलो रहने की उम्मीद थी, लेकिन फिलहाल इसका भाव 3,200 रुपये से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि अभी तो आवक शुरू ही हुई है। इस साल राज्य में 5 लाख टन मूंग की उपज होने की उम्मीद है। (BS Hindi)
राजस्थान में दलहनों की अधिक पैदावार किसानों के लिए मुसीबत का सबब बन सकती है। अधिक फसल होने के कारण दलहनों के भाव आसमान से जमीन पर आने लगे हैं और किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है। दलहनों पर लागू स्टॉक सीमा और विक्रय अवधि सीमा लागू होने के कारण व्यापारी भी अधिक माल खरीदने से कतरा रहे हैं। हाल ही में हुई राजस्थान खाद्य व्यापार महासंघ की बैठक में अध्यक्ष बाबूलाल गुप्ता ने कहा कि किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए महासंघ ने राज्य के खाद्य मंत्री को दलहनों पर लगी स्टॉक और विक्रय अवधि सीमा हटाने और केंद्रीय खाद्य मंत्री को दलहनों के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने का प्रस्ताव भेजा है। पिछले साल दालों के दाम में तेजी को देखते हुए राज्य सरकार ने एक साल के लिए दालों और चने पर स्टॉक सीमा और विक्रय अवधि सीमा लागू की थी। यह समय सीमा 30 सितंबर को समाप्त हो गई थी, लेकिन सरकार ने इसे और एक साल के लिए बढ़ा दिया है। स्टॉक सीमा के तहत एक व्यापारी 45 दिन के लिए अधिकतम 1000 क्विंटल दलहन और 75 दिन के लिए 3000 क्विंटल चना रख सकता है। गुप्ता ने कहा कि अगर सरकार किसानों और व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए 15 दिन में यह सीमा नहीं हटाती है, तो राज्य के व्यापारी इसके खिलाफ कठोर कदम उठा सकते हैं।जयपुर के दलहन व्यापारी श्याम नाटाणी ने बताया कि किसानों ने 70 रुपये के भाव देखकर मूंग की बुआई की थी। उन्हें इस बार भाव 50 रुपये किलो रहने की उम्मीद थी, लेकिन फिलहाल इसका भाव 3,200 रुपये से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि अभी तो आवक शुरू ही हुई है। इस साल राज्य में 5 लाख टन मूंग की उपज होने की उम्मीद है। (BS Hindi)
हरियाणा में धान खरीद की कमजोर शुरुआत
चंडीगढ़ October 15, 2010
हरियाणा में धान की सरकारी खरीद की कमजोर शुरुआत हुई है। अब तक प्रदेश में कुल 6,61,979 टन धान की खरीद हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 11,20,631 टन धान उठ गया था। बावजूद इसके प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में खरीदारी बढ़ेगी। उनका कहना है कि अगले कुछ दिनों में बासमती धान की आवक बढ़ेगी। कृषि वैज्ञानिक और कारोबारी भी इस दावे का समर्थन करते हैं। चावल अनुसंधान केंद्र कॉल (हिसार) के वैज्ञानिकों ने कहा कि मॉनसून की अवधि बढऩे का असर निश्चित तौर पर धान उत्पादन पर होगा। इस वर्ष मॉनसून की अवधि बढऩे और अधिक तापमान की वजह से हरियाणा में धान की फसल पर कीड़ों के हमले की आशंका बढ़ी है। इसका असर फसल की उत्पादकता पर हो सकता है। हरियाणा प्रदेश राइस मिलर ऐंड डीलर्स एसोसिएशन के महासचिव जेवेल सिंघला ने कहा कि हरियाणा में इस वर्ष धान की फसल प्रभावित हुई है, बाढ़ की वजह से प्रदेश में धान के रकबे पर खासा असर हुआ है और मॉनसून के लंबा खींचने से स्थिति और खराब होने की आशंका है। (BS Hindi)
हरियाणा में धान की सरकारी खरीद की कमजोर शुरुआत हुई है। अब तक प्रदेश में कुल 6,61,979 टन धान की खरीद हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 11,20,631 टन धान उठ गया था। बावजूद इसके प्रदेश के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में खरीदारी बढ़ेगी। उनका कहना है कि अगले कुछ दिनों में बासमती धान की आवक बढ़ेगी। कृषि वैज्ञानिक और कारोबारी भी इस दावे का समर्थन करते हैं। चावल अनुसंधान केंद्र कॉल (हिसार) के वैज्ञानिकों ने कहा कि मॉनसून की अवधि बढऩे का असर निश्चित तौर पर धान उत्पादन पर होगा। इस वर्ष मॉनसून की अवधि बढऩे और अधिक तापमान की वजह से हरियाणा में धान की फसल पर कीड़ों के हमले की आशंका बढ़ी है। इसका असर फसल की उत्पादकता पर हो सकता है। हरियाणा प्रदेश राइस मिलर ऐंड डीलर्स एसोसिएशन के महासचिव जेवेल सिंघला ने कहा कि हरियाणा में इस वर्ष धान की फसल प्रभावित हुई है, बाढ़ की वजह से प्रदेश में धान के रकबे पर खासा असर हुआ है और मॉनसून के लंबा खींचने से स्थिति और खराब होने की आशंका है। (BS Hindi)
उर्वरक में मोटा मुनाफा!
मुंबई October 15, 2010
उर्वरक और एग्रोकेमिकल्स कंपनियों को दूसरी तिमाही में मुनाफे की उम्मीद है। इसकी वजह है कि मॉनसून बेहतर रहा है, और उर्वरकों की मांग बढ़ी है। इस तिमाही के दौरान उर्वरकों की कीमतों में तेजी रही है। डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) और यूरिया की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में क्रमश: 27 प्रतिशत और 44 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कुल मिलाकर देखें तो उर्वरक और एग्रोकेमिकल्स कंपनियों के राजस्व में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। परिचालन मुनाफे में 65 आधार अंक की बढ़ोतरी की उम्मीद है। टाटा केमिकल्स, जीएसएफसी और यूनाइटेड फॉस्फोरस के मुनाफे में 200 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। शुद्ध मुनाफे में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है- क्योंकि टाटा केमिकल्स, जीएसएफसी, रैलिस और दीपक फर्टिलाइजर को बेहतर मुनाफा हुआ है। एमके ग्लोबल के उर्वरक विश्लेषक का मानना है कि कोरोमंडल इंटरनैशनल, जुआरी इंडस्ट्रीज और चंबल फर्टिलाइजर्स जैसी कंपनियों को ज्यादा कारोबार के चलते मुनाफा होने की आस है। विश्लेषकों का मानना है कि उर्वरक सेग्मेंट में राजस्व में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और मार्जिन 80 आधार अंक बढ़ेगा। केमिकल सेग्मेंट के राजस्व में उम्मीद की जा रही है कि राजस्व पहले जैसा बरकरार रहेगा, वहीं मार्जिन मामूली रूप से गिरकर 183 आधार अंक रहेगा, क्योंकि केमिकल्स की कीमतें इस तिमाही के दौरान करीब स्थिर रही हैं। उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी भारतीय मॉनसून की सफलता पर निर्भर होती है। इसकी वजह से इस साल भारत में उर्वरकों की मांग तेज हुई है। उर्वरक के वैश्विक कारोबार में भारत की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है और इस तरह से भारत उर्वरकों की कीमतों की चाल में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले हफ्ते कीमतें 10-15 डॉलर प्रति टन कम हुई हैं, जबकि पिछले दो महीने में कीमतों में 100-120 डॉलर प्रति टन की तेजी दर्ज की गई है। डीएपी की कीमतें इस समय 560-575 डॉलर प्रति टन पर स्थिर हैं। यूरिया की कीमतों की चाल में अनाज की वैश्विक कीमतों का असर होता है। वैश्विक फर्टिलाइजर की कीमतों पर सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक सप्ताह में मक्के की कीमतें 11 प्रतिशत और गेहूं तथा सोया की कीमतें 9 प्रतिशत गिरी हैं। सिटी ग्रुप के विश्लेषकों को उम्मीद है कि डीएपी की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा, क्योंकि उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होगी। (BS Hindi)
उर्वरक और एग्रोकेमिकल्स कंपनियों को दूसरी तिमाही में मुनाफे की उम्मीद है। इसकी वजह है कि मॉनसून बेहतर रहा है, और उर्वरकों की मांग बढ़ी है। इस तिमाही के दौरान उर्वरकों की कीमतों में तेजी रही है। डाईअमोनियम फास्फेट (डीएपी) और यूरिया की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में क्रमश: 27 प्रतिशत और 44 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। कुल मिलाकर देखें तो उर्वरक और एग्रोकेमिकल्स कंपनियों के राजस्व में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है। परिचालन मुनाफे में 65 आधार अंक की बढ़ोतरी की उम्मीद है। टाटा केमिकल्स, जीएसएफसी और यूनाइटेड फॉस्फोरस के मुनाफे में 200 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। शुद्ध मुनाफे में 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी की उम्मीद है- क्योंकि टाटा केमिकल्स, जीएसएफसी, रैलिस और दीपक फर्टिलाइजर को बेहतर मुनाफा हुआ है। एमके ग्लोबल के उर्वरक विश्लेषक का मानना है कि कोरोमंडल इंटरनैशनल, जुआरी इंडस्ट्रीज और चंबल फर्टिलाइजर्स जैसी कंपनियों को ज्यादा कारोबार के चलते मुनाफा होने की आस है। विश्लेषकों का मानना है कि उर्वरक सेग्मेंट में राजस्व में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी और मार्जिन 80 आधार अंक बढ़ेगा। केमिकल सेग्मेंट के राजस्व में उम्मीद की जा रही है कि राजस्व पहले जैसा बरकरार रहेगा, वहीं मार्जिन मामूली रूप से गिरकर 183 आधार अंक रहेगा, क्योंकि केमिकल्स की कीमतें इस तिमाही के दौरान करीब स्थिर रही हैं। उर्वरकों की कीमतों में बढ़ोतरी भारतीय मॉनसून की सफलता पर निर्भर होती है। इसकी वजह से इस साल भारत में उर्वरकों की मांग तेज हुई है। उर्वरक के वैश्विक कारोबार में भारत की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है और इस तरह से भारत उर्वरकों की कीमतों की चाल में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले हफ्ते कीमतें 10-15 डॉलर प्रति टन कम हुई हैं, जबकि पिछले दो महीने में कीमतों में 100-120 डॉलर प्रति टन की तेजी दर्ज की गई है। डीएपी की कीमतें इस समय 560-575 डॉलर प्रति टन पर स्थिर हैं। यूरिया की कीमतों की चाल में अनाज की वैश्विक कीमतों का असर होता है। वैश्विक फर्टिलाइजर की कीमतों पर सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक सप्ताह में मक्के की कीमतें 11 प्रतिशत और गेहूं तथा सोया की कीमतें 9 प्रतिशत गिरी हैं। सिटी ग्रुप के विश्लेषकों को उम्मीद है कि डीएपी की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा, क्योंकि उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होगी। (BS Hindi)
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