27 जून 2009
पहली वर्षगांठ पर टिप्पणी
वर्षगांठ बीते समय को जांचकर भविष्य की योजना बनाने का मौका होता है। बिजनेस भास्कर की आज पहली वर्षगांठ है और यह एक दिलचस्प साल रहा है। बीता साल आसान नहीं था, यह आप सब जानते हैं, पर फिर आसान काम तो हर कोई कर लेता है। जब बिजनेस भास्कर का पहला संस्करण 27 जून को भोपाल में आरंभ किया गया तब माहौल तेजी का था। तेजी से बिजनेस भास्कर भी तीन महीनों के भीतर इंदौर, रायपुर, पानीपत, हिसार, जालंधर, अमृतसर, लुधियाना, पटियाला और चंडीगढ़ जा पहुंचा। लेकिन 8 सितंबर को जब हमारा दिल्ली संस्करण आरंभ हुआ तो वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था। अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट से हिल गई थी। ग्लोबल स्टॉक मार्केट ध्वस्त हो गए थे, पर बिजनेस भास्कर बढ़ता रहा। इसलिए क्योंकि हम आपको आर्थिक निर्णयों में मदद करने में सफल हुए। यही हमारी खासियत है और खूबी है कि हर आर्थिक निर्णय में एक समझदार दोस्त की तरह आप हमसे राय लेते रहे।अब एक साल बाद, हमें उत्सुकता यह नहीं है कि कल क्या होगा, या परसों क्या होगा। हमारी उत्सुकता दीर्घकालीन हो गई है। हम अगले दस साल की सोच रहे हैं। सब कहते हैं कि भविष्य के बार में सोचो तो अतीत को ध्यान में रखो। हम अतीत से सीखना तो चाहते हैं पर उससे बंधना नहीं चाहते। इसलिए बिजनेस भास्कर के हर एक पत्रकार ने यह सोचने की कोशिश की है कि अगले दस साल मंे ऐसा क्या हो सकता है जो समूचे विश्व को बदल दे।हर बदलाव एक विचार से शुरू होता है और अगर विचार प्रबल हो तो उसको हकीकत बनने में देर नहीं लगती। यहां पर ऐसा ही एक विचार है सड़क को लेकर। आज की तारीख में सड़कों पर आदमी के लिए जगह नहीं है। सड़कों पर आखिरकार चलती तो गाड़ियां हैं जो सिर्फ प्रदूषण करती हैं और शोर-शराबा बढ़ाती हैं। मगर फिर भी हम घर छोटे कर और पार्क काट कर सड़कें बना रहे हैं। पेवमेंट्स तो मानों खत्म ही हो गए हैं। जबकि यूरोपीय देशों में साइकिल और पैदल चलने वालों के लिए जगह बढ़ाई जा रही है। कुछ ऐसी ही सोच हमारी तेल और खाद्य सिक्योरिटी के बार में भी है। देश में पानी कम हो रहा है। हर शहर और गांव में किल्लत बढ़ रही है। ऐसे बदलते परिवेश में क्या विकसित देशों को मक्का और गन्ने कर्ो इधन तेल में बदलना चाहिए? खाद्य पदार्थो के बढ़ते भावों का एक बड़ा कारण है फसलों का गाड़ियों के लिए तेल बनाने में इस्तेमाल, यह भी आदमी की बनाई हुई समस्या है।क्या इस पूर समावेश पर ऑटोमोबाइल निर्माता कुछ कर नहीं सकते हैं? अगर टाटा सबसे सस्ती कार नैनो खड़ी कर सकती है, तो क्या वही सोच एक सार्वजनिक परिवहन या ग्रीन कार के लिए नहीं हो सकती। ऐसी कार जो प्रदूषण न कर और तेल भी न खाए। अगर ऐसा हुआ तो क्या खाद्य और ऊर्जा सिक्योरिटी की समस्या हल नहीं हो जाएगी?हर चीज एक सोच से शुरू होती है। कभी-कभी हम सोचने से डरते हैं, क्योंकि हमें यह तो पता है कि क्या नहीं हो सकता है। पर अगर हम यह मान लें कि सब कुछ हो सकता है और फिर सोचें, तो क्या हम एक नए मुकाम की कल्पना नहीं कर सकते?यही एक चीज है जो बिजनेस भास्कर के हर पत्रकार में समाई हुई है कि कुछ भी नामुमकिन नहीं है। बस आपसे दोस्ती बनी रहे (Buisness Bhaskar)
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