25 जून 2009
साढ़े छह लाख टन गेहूं उत्पाद निर्यात की अनुमति
केंद्र सरकार ने 6.5 लाख टन गेहूं उत्पादों जैसे आटा, मैदा व सूजी के निर्यात को मंजूरी दे दी है। हालांकि अभी अधिसूचना जारी नहीं हुई है। बुधवार को दिल्ली में एग्री सर्विस कंपनी एसोकॉम इंडिया द्वारा आयोजित कांफ्रेंस में खाद्य उपभोक्ता मामले तथा सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में संयुक्त सचिव शिराज हुसैन ने कहा कि गेहूं उत्पादों के निर्यात को मंजूरी दे दी गई है।सरकार जल्दी ही अधिसूचना जारी करेगी। गेहूं व गैर बासमती चावल निर्यात के सवाल पर उन्होंने बताया कि गेहूं और चावल का देश में भरपूर स्टॉक है लेकिन जुलाई के बाद मौसम की स्थिति देखकर ही निर्यात पर निर्णय लिया जाएगा। सूत्रों के अनुसार चालू फसल सीजन में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अभी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 247 लाख टन गेहूं और 306 लाख टन चावल की खरीद कर चुकी है। वर्तमान में हो रही खरीद को देखते हुए 250 लाख टन गेहूं और 325 लाख टन चावल की खरीद होने की संभावना है जबकि सरकार के पास पिछले साल का बकाया स्टॉक भी बचा हुआ है। रोलर फ्लोर मिलर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि विदेशी बाजार के मुकाबले घरेलू बाजार में गेहूं उत्पादों के दाम तो ऊंचे चल रहे हैं। लेकिन विदेशों के मुकाबले भारत में मिलिंग लागत कम है, ऐसे में पड़ोसी देशों इंडोनेशिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार को निर्यात पड़ते लगने की संभावना है क्योंकि इन देशों में गेहूं का उत्पादन काफी कम होता है तथा फ्लोर मिलों की संख्या भी कम है। हालांकि इन देशों में केवल मैदा की ही खपत होती है। ऐसे में भारत से मैदा का ही निर्यात होने की संभावना है। दिल्ली बाजार में इस समय मैदा के भाव 1300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि गेहूं के भाव 1050 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। एक क्विंटल गेहूं से 50 किलो मैदा बनती है। उधर शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में गेहूं के भाव लगभग 200 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं।कांफ्रेंस में दलहन और तिलहन के उत्पादन में बढ़ोतरी न होना और आयात में लगातार इजाफा होने पर भी चिंता जताई गई। भारत में जनसंख्या की बढ़ोतरी दर जहां 1.8 फीसदी है वही खाद्यान्न के उत्पादन में मात्र 1.6 फीसदी की ही बढ़ोतरी हो रही है। इसके अलावा घटता भूजलस्तर भी चिंताजनक है। जिस तरह से भूमि का जलस्तर घट रहा है उससे आगामी दस सालों में भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। गेहूं और गन्ने की फसल को पानी की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है। ऐसे में सूखे से लड़ने वाले बीजों का विकास करके ही इस समस्या का निदान किया जा सकता है। (Business Bhaskar....R S Rana)
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