मुंबई June 26, 2009
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से मांग में आ रही भारी कमी से चिंतित लौह धातुओं के कारोबारियों ने सरकार सुरक्षा की गुहार की है।
वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते वैश्विक मांग मे कमी आई है और इससे 8500 करोड़ रुपये का भारत का लौह अयस्क कारोबार बुरी तरह प्रभावित है। उद्योग को बचाने के लिए कारोबारियों ने सरकार से सस्ते चीनी आयात से बचाव के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है।
सुरक्षा की जरूरत बताते हुए इंडियन फेरो एलॉय प्रोडयूसर्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि आयात पर लगा मूल सीमा शुल्क जारी रखा जाना चाहिए, जो 3 साल पहले 10 प्रतिशत की दर से लागू किया गया था। 2005-06 के 10 प्रतिशत के स्तर से चरणबध्द तरीके से इसे पिछले साल खत्म कर दिया गया।
बजट पूर्व अपनी अनुसंशा में एसोसिएशन ने सरकार से कहा है कि यह रोजगार आधारित उद्योग है, जिस पर वैश्विक वित्तीय संकट का गहरा असर पड़ा है, क्योंकि उपभोक्ता उद्योग में मांग बहुत गिर गई है। इसकी वजह से माल जमा हो गया है। परिणाम यह हुआ है कि फैक्टरियां कम उत्पादन के लिए मजबूर हो गई हैं, और कामगारों से काम छिन गया है।
घरेलू और वैश्विक बाजार में कीमतों में गिरावट की वजह से स्थिति और गंभीर हो गई है। यह उद्योग पिछले साल तक अपनी कुल क्षमता का 70 प्रतिशत उत्पादन कर रहा था। लेकिन आर्थिक मंदी आने के बाद से क्षमता का उपभोग घटकर 30-40 प्रतिशत रह गया है।
बहहाल, भारत का लौह धातुओं का निर्यात वित्त वर्ष 2007-08 में बढ़कर 1049.45 करोड़ रुपये का हो गया, जबकि इसके पहले साल 779.82 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ था। वहीं घरेलू बंदरगाहों पर वित्त वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान कुल आवक 815.39 करोड़ रुपये की रही। चीन कई साल से लौह धातुओं की डंपिंग भारत के बाजारों में कर रहा है।
लौह धातुओं का प्रयोग बहुत कम मात्रा में स्टील बनाने में भी किया जाता है, जिसकी मात्रा कच्चे माल के कुल मूल्य की 1 प्रतिशत होती है। लेकिन स्टील उद्योग इस कच्चे माल की उपेक्षा नहीं कर सकता।
सरकार ने 2007-08 में रोस्टेड मॉलिबिड्नम के आयात पर 4 प्रतिशत अतिरिक्त सीमा शुल्क लगा दिया था, साथ ही निकल प्लेट पर सेनवेट लगे होने की वजह से उद्योग पर बुरा असर पड़ रहा है। (BS Hindi)
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