नई दिल्ली: खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से आग्रह किया है कि इस क्षेत्र के लिए एक अलग नीति बनाई जाए और आम चुनावों के पहले हटाए गए आयात कर को दोबारा लगाया जाए। सेंट्रल आर्गनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओओआईटी) ने यह अनुरोध करते हुए कहा है कि अलग नीति बनाने से ही देश में तिलहन उत्पादन में सुधार होगा और आयात पर निर्भरता भी घटेगी जिसके चलते सरकारी खजाने पर दबाव भी पहले के मुकाबले कम हो जाएगा। एक अधिकारी ने बताया, 'उपयुक्त खाद्य तेल नीति के अभाव में चुनिंदा निर्यातक देशों पर हमारी निर्भरता बरकरार रहेगी।' इस साल 75 लाख टन से ज्यादा खाद्य तेलों की आयात का अनुमान जताया गया है। इतनी ही मात्रा में देश में भी उत्पादन का अनुमान है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन जैसे केंद्र सरकार के कार्यक्रमों में 2011-12 तक चावल, गेहूं और दाल के उत्पादन में बढ़ोतरी करना प्राथमिकता में शामिल है, लेकिन इसमें तिलहन को शामिल नहीं किया गया है। सीओओआईटी के मुताबिक, तिलहन के क्रांतिकारी उत्पादन में ऐसे कार्यक्रमों को अपनाने की सख्त जरूरत है। संगठन के अनुसार, तिलहन के कुल उत्पादन और प्रति एकड़ उपज में बढ़ोतरी के लिए किसानों को समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का फायदा देना बहुत जरूरी है। उद्योग के एक जानकार ने बताया, 'अब तक खाद्य तेलों पर आयात शुल्क तदर्थ आधार पर लगाया जाता रहा है जिससे कारोबारियों के एक खास तबके को आयात पर लाभ मिलता रहा है। इसके बजाय आयात शुल्क को बड़े पैमाने पर आयात पर अंकुश के लिए नियामक उपाय के रूप में अपनाया जाना चाहिए।' इस उद्योग के विशेषज्ञों के अनुसार केन्द्र में नई सरकार बनने पर आयात कर में बढ़ोतरी का अनुमान लगाकर कारोबारियों ने इस साल बड़े पैमाने पर आयात किया। (ET Hindi)
26 जून 2009
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