मुंबई June 25, 2009
मानसून के देर से आने की आशंका से सोयाबीन किसानों को बीजों के स्टॉक को दोगुना रखने के लिए मजबूर होना पड रहा है।
बीजों का दोगुना स्टॉक औसत जरूरत से ज्यादा है। दरअसल किसानों को यह चिंता सता रही है कि मानसून में देरी होने से इस सीजन में दूसरी दफे बुआई करनी पड़ सकती है। सामान्य परिस्थितियों में देश में बुआई के लिए 5.5-6 लाख टन सोयाबीन के बीजों की जरूरत होती है।
लेकिन मानसून में देरी होने से पहली बार बोए गए बीज सूखे मौसम की वजह से खराब हो सकते हैं या फिर देर से भारी वर्षा होने की वजह से भी बीज बर्बाद हो सकते हैं। ऐसे में किसान दोबारा बुआई की आशंका की वजह से ज्यादा बीजों का भंडार तैयार कर रहे हैं।
इंदौर के सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (एसओपीए) के अनुमान के मुताबिक किसानों के पास 12 लाख टन से ज्यादा बीज हैं जो सामान्य जरूरत से दोगुने हैं। अभी तक 100 किलोग्राम वाली बोरी रोजाना आवक 50,000-70,000 बोरी से ज्यादा है जो पिछले साल की समान अवधि में 25,000 बोरी से भी कम थी।
एसओपीए के कोऑर्डीनेटर राजेश अग्रवाल का कहना है, 'मार्च तक आवक बहुत कम थी और किसानों को ऐसा अनुमान था कि कीमतों में बढ़ोतरी होगी।' किसान अक्सर जून में ही सोयाबीन की बुआई करते हैं क्योंकि उसी वक्त मानसून आता है। कुल फसल क्षेत्र के लगभग 15 फीसदी पर इस महीने के दौरान बुआई हो जाती है। लेकिन बुआई अभी शुरू नहीं हो पाई है क्योंकि मानसून ने वक्त पर दस्तक नहीं दी है।
सोयाबीन के बुआई के लिए जमीन में थोड़ी नमी जरूरी होती है जबकि ज्यादातर सोयाबीन उत्पादक राज्यों में इसकी कमी है। जून में अब तक बारिश में 40-60 फीसदी तक की कमी रिकॉर्ड की गई है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) को उम्मीद है कि इस साल मानसून की बारिश 96 फीसदी तक होगी।
देश के ज्यादातर हिस्सों की बारिश में लगभग 15 दिनों तक की देरी हो रही है खासतौर पर सोयाबीन उत्पादक राज्यों जिसमें दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र भी शामिल है। बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य मध्यप्रदेश में मानसून के आने में 10 दिन तक की देरी हो सकती है और अभी इसके असर का मूल्यांकन करना भी बाकी है।
हालांकि अगर मध्य मानसून की अवधि मसलन जुलाई के दौरान भी बारिश होती है तो जून में बुआई के नुकसान की भरपाई की जा सकती है। देश के सबसे बड़े सोयाबीन पेराई की कंपनी रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिनेश शारा का कहना है कि किसान मानूसन का इंतजार ही कर रहे हैं।
बुआई में देरी होने से फसल पकने की समय सीमा भी बढ़ जाएगी, इसी वजह से फसल की कटाई का काम देर से होगा। लेकिन जुलाई के दौरान बेहतर बारिश होने के बावजूद भी बुआई में देरी होगी और बहुत ज्यादा बारिश की उम्मीदों पर भी पानी फिर जाएगा। शारा का कहना है कि इस साल निश्चित तौर पर रकबे में बढ़ोतरी होगी।
एनसीडीईएक्स में भी सोयाबीन की कीमतों में बढ़त देखी गई और इंदौर में यह कीमत मंदी के मौसम में भी 2809 रुपये प्रति क्विंटल हो गई जो लगभग 85 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल 18 नवंबर को फसल की कटाई वाले मौसम के दौरान बिक्री की कीमत 1517 रुपये प्रति क्विंटल तक थी।
सरकार ने पिछले साल काले और पीले सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य क्रमश: 910 रुपये और 1050 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1350 रुपये और 1390 रुपये कर दिया था। देश में इस बुआई के सीजन में सोयाबीन का रकबा पिछले साल के 96 लाख हेक्टेयर के मुकाबले बढ़कर 1 करोड़ हेक्टेयर हो सकता है। वर्ष 2008-09 में देश में सोयाबीन का कुल उत्पादन 108 लाख टन रिकॉर्ड किया गया जो इससे पहले साल में 94.73 लाख टन था। (BS Hindi)
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