लखनऊ June 25, 2009
पंजाब में सरकारी दफ्तरों में एसी बंद हुए तो दिल्ली में कम पानी के इस्तेमाल की सलाह। वहीं उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में बुआई में देरी हो रही है।
बांध सूख रहे हैं तो बिजली का संकट भी लाजिमी है। महाराष्ट्र में सोयाबीन और धान उगाने वाले किसान अपनी जुगत लगा रहे हैं तो कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात में भविष्य को लेकर चिंता उभर रही है। देश भर में फैले बिजनेस स्टैंडर्ड संवाददाताओं ने मानसून में देरी का जायजा लिया, पेश है खास अंश...
उत्तर प्रदेश में धान की 60 प्रतिशत खेती मानसून पर निर्भर है। इसके चलते सूखे की नौबत आने के आसार हैं। खरीफ की फसल को लेकर किसानों में मानसून को लेकर खासी चिंता है, क्योंकि नकदी फसल के रूप में यहां के किसान धान और गन्ने पर ज्यादा निर्भर हैं।
सामान्यतया उत्तर प्रदेश में मानसून 18 जून को आ जाता है, लेकिन देश के शेष हिस्सों की तरह यहां भी मानसून में देरी हो रही है। अगर मानसून 30 जून के बाद आता है, तो सूखे जैसी स्थिति हो जाएगी और फसलों को भारी नुकसान होगा। इस सिलसिले में कृषि विभाग ने पहले ही किसानों के लिए दिशानिर्देश जारी कर दिया है।
अगर 30 जून तक मानसून आ भी जाता है तो यहां की धान और गन्ने फसलों को 20 प्रतिशत नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। अगर मानसून 15 जुलाई को आता है तो धान की फसल 40 प्रतिशत प्रभावित होगी, वहीं गन्ने की फसल के 50 प्रतिशत तक प्रभावित होने के आसार हैं। कृषि वैज्ञानिक एसएस सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि धान और गन्ने के अलावा ज्वार, बाजरे और मक्के की फसल को भी नुकसान होगा।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान राजबीर सिंह कहते हैं, मानसून में देरी से हर किसान के माथे पर बल है लेकिन सिंचाई की सुविधा होने से धान बिजाई के लिए पौधों की तैयारी चल रही है। सरकारी आंकड़े भी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में धान बोने के लिए 78 फीसदी पौधों की तैयारी पूरी हो चुकी है। किसानों को सबसे अधिक इस बात की चिंता सता रही हैं कि धान बोने के बाद बारिश की जरूरत होती है और तब बारिश नहीं हुई तो सिंचाई के साधन से उनका काम नहीं चल पाएगा। (BS Hindi)
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