पुणे June 23, 2009
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा अल नीनो प्रभाव की वजह से इस साल मानसून के कमजोर होने की भविष्यवाणी को काफी सर्तकता से ले रहा है।
हालांकि आईएमडी डब्ल्यूएमओ से इत्तेफाक नहीं रखता है और उसका कहना है, 'अलनीनो और मानसून का बढ़ना, दोनों घटनाएं बहुत ज्यादा एक दूसरे से जुड़ी नहीं है।' आईएमडी जून-सितंबर के दौरान सामान्य बारिश के पूर्वानुमान पर ही फिलहाल टिकी हुई है।
आईएमडी पुणे के उप महानिदेशक ए बी मजूमदार ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हम मानसून पर अलनीनो प्रभाव की संभावनाओं पर विचार करेंगे और उसके बाद हम नई दिल्ली में 25 जून को अंतिम घोषणा करेंगे। तब तक हम डब्ल्यूएमओ द्वारा बताए गए अलनीनो कारक पर टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे।'
दिलचस्प बात यह है कि पुणे के इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटिओरोलॉजी के प्रमुख वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने प्रशांत क्षेत्र में बनने वाले अलनीनो पर चिंता जताई है। वैज्ञानिकों का कहना है, 'अगर अलनीनो प्रभाव प्रशांत महासागर के मध्य हिस्से में बनता है तब ज्यादा संभावना है कि भारत में मानसून की बढ़त पर इसका उल्टा असर पड़ेगा।'
इस साल मार्च से ही आईएमडी यह पूर्वानुमान लगा रही है कि जून-सितंबर के सीजन के दौरान सामान्य मानसून आएगा। हालांकि बिल्कुल सही वक्त पर 23 मई को केरल तट पर मानसून ने दस्तक दी लेकिन दक्षिण-पश्चिमी हवाएं पूरे देश भर में नहीं बढ़ पाई हैं।
डब्ल्यूएमओ ने यह भविष्यवाणी की है अलनीनो प्रशांत महासागर में औसत से कहीं ज्यादा बन रहा है। गौरतलब है कि अलनीनो सूखा और विपरीत मौसम की परिस्थितियों को पैदा करने में अपनी भूमिका निभाता है।
मानसून में देर होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को जबरदस्त नुकसान हो सकता है क्योंकि इसका असर गर्मी की खरीफ फसल पर पड़ेगा। खरीफ सीजन जुलाई और अगस्त के महीने के दौरान होगा क्योंकि यह ऐसा वक्त है जब भारत की सालाना बारिश का 65 फीसदी इन्हीं महीनों के दौरान होता है। यह वर्षा बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि 60 फीसदी से ज्यादा खरीफ की खेती सीधे तौर पर मानसून पर निर्भर है।
रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत को वर्ष 2004 में बहुत ज्यादा सूखे के असर को झेलना पड़ा था जब इसी तरह के अलनीनो प्रभाव देखा गया। देर से आने वाले मानसून की वजह से जून के महीने में होने बारिश में 45 फीसदी तक की कमी आई है।
डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में यह चिंता जताई गई है कि अलनीनो प्रभाव की वजह से ही मानसून की राह में रुकावट पैदा हो रही है। दिलचस्प बात यह है कि यह आईएमडी द्वारा इस सीजन में सामान्य बारिश के अनुमानों को सिरे से खारिज करता है।
मजूमदार कहते हैं, 'अलनीनो प्रभाव भारत से बेहद दूर क्षेत्र में तैयार होता है, इसी वजह से यह जरूरी नहीं है कि इससे भारत में बारिश प्रभावित हो। वर्ष 2004 में भारत में भयंकर सूखा पड़ा था। हमें वर्ष 1997 को भी याद करना चाहिए जब अल नीनो की तीव्र स्थिति बनने के बावजूद देश में भारी वर्षा हुई थी। इसी वजह से हम डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।'
जब उनसे यह पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि जून-सितंबर में मानसून की बारिश में कमी आएगी तो उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की। बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए आईआईटीएम के वैज्ञानिक डॉ कृष्ण कुमार ने कहा, 'मानसून की बढ़त प्रभावित होती रही है। अगर प्रशांत महासागर में अलनीनो प्रभाव बनता है तो भरपूर संभावना है कि मानसून की बढ़त आगे भी प्रभावित हो। हालांकि इन दो चीजों का कोई सीधा संबंध नहीं है। '
कुमार का कहना है, 'भारतीय मानसून तभी प्रभावित होती है जब अलनीनो प्रशांत महासागर के मध्यक्षेत्र में बनता है। हमें अलनीनो के विकास पर निगाह रखनी होगी।' (BS Hindi)
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