27 जून 2009
आयात पर देश की निर्भरता बढ़ने का अंदेशा
भारत की आयातित खाद्य तेलों और दलहनों पर निर्भरता लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले दस साल में देश का दलहन उत्पादन बढ़ने के बजाए घटा है जबकि पिछले चार साल में ही खाद्य तेलों का आयात बढ़कर लगभग दोगुना हो गया। सरकार दलहन और तिलहन में देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात तो करती है लेकिन इसके लिए जितने गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है, शायद इतने प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। हालत यही रही तो आगामी दस साल में भारत पूरी तरह से आयातित खाद्य तेलों पर निर्भर होने का अंदेशा है। दलहन में भी विदेशियों का मुंह ताकने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं होगा। ऐसी स्थिति से बचने के लिए सरकार को भगीरथ प्रयास करने होंगे।वर्ष 1998-99 में देश में 149 लाख टन दलहन उत्पादन हुआ था जबकि वर्ष 2008-09 में केंद्र सरकार ने तीसरे अग्रिम अनुमान में 141 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान लगाया है। मालूम हो कि हमारी सालाना खपत 170-180 लाख टन की है। अत: हर साल भारत को 25-30 लाख टन दालें आयात करनी पड़ती हैं। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर एस. के. सिंह ने बताया कि दलहन की ज्यादातर खेती आज भी असिचिंत क्षेत्रों में ही होती है। लेकिन चूंकि दलहन अब नकदी फसल में तब्दील हो रही है इसलिए किसानों का रुझान भी इसकी तरफ बढ़ रहा है। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान ने देश के 14 राज्यों के 368 जिले चिन्हित किए हैं। ये राज्य हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, यूपी, बिहार, उड़ीसा, प. बंगाल और मध्य भारत के महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा दक्षिण के आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं। इन राज्यों के किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीज और दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं। 2011 तक देश में दलहन का 170 लाख टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। उम्मीद है कि जिस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं उससे अगले पांच-दस साल में देश दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा। सेंट्रल आर्गनाजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड के कार्यकारी निदेशक डी. एन. पाठक ने बताया कि सरकार को एक ऑयल सीड डवलपमेंट फंड बनाना चाहिए जो कि किसानों को बीज, खाद्य और दवाइयां उपलब्ध कराए। इसमें प्राइवेट सेक्टर को भागीदार बनाया जाए तथा संबंधित विभागों की जवाबदेही तय की जाए। किसानों को अपनी फसल का वाजिद दाम मिले, इसकी गारंटी होनी चाहिए। एरिया बढ़ाने के बजाय आज आवश्यकता है प्रति हैक्टेयर पैदावार बढ़ाने के प्रयासों की। पिछले दस सालों से सरसों और मूंगफली का प्रति हैक्टेयर उत्पादन बढ़ नहीं रहा है जबकि इनमें तेल की मात्रा अन्य तिलहनों से ज्यादा होती है। (Busienss Bhaskar....R S Rana)
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