नई दिल्ली- कमोडिटी एक्सचेंजों ने सरकार से मांग की है कि आने वाले बजट में फाइनेंस एक्ट 2008 से कमोडिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) को हटा लिया जाए। इन एक्सचेंज का समर्थन करते हुए इंडस्ट्री चैंबर सीआईआई, फिक्की और एसोचैम ने भी अनुरोध किया है कि फाइनेंस एक्ट 2008 से कमोडिटी डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट्स पर लगने वाले सीटीटी को हटा लिया जाए। खास बात यह है कि बाजार नियामक फारवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने गेहूं वायदा के कारोबार से प्रतिबंध हटा लिया है, इसके बावजूद कमोडिटीज फ्यूचर्स का वायदा कारोबार राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। यहां तक कि अब तो आम चुनाव भी समाप्त हो चुका है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति और पीडीएस मंत्रालय का काम संभालने के तुरंत बाद शरद पवार ने कहा था कि चावल, उड़द और तूर के वायदा कारोबार के बारे में कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जाएगा। उसके बाद से मानसून को लेकर अनिश्चितता है और खाद्य सुरक्षा एक्ट तथा सरकार द्वारा दालों को पीडीएस में रखने का मुद्दा भी राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामला बन रहा है। इसके अलावा सरकार के कुछ हिस्सों का विचार है कि सीटीटी से कमोडिटी के वायदा कारोबार को लेकर होने वाली कयासबाजियों को भी रोकने में मदद मिलती है।
अपने बजट पूव ज्ञापन में कमोडिटी एक्सचेंजों एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और एनएमसीई ने कहा है कि सीटीटी को एसटीटी (सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स) की तरह न माना जाए क्योंकि कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट अब भी 'शुरुआती अवस्था' में है और यह महज चार सालों से अस्तित्व में है। अपनी बात को मजबूती देने के लिए उनका तर्क है कि कमोडिटी मार्केट में बैंकों, वित्तीय संस्थानों और एफआईआई या फिर म्यूचुअल फंडों को भाग लेने की इजाजत नहीं है। इसी अवधि में उपलब्ध कॉन्ट्रैक्ट और बैंकों, वित्तीय संस्थानों और एफआईआई या फिर म्यूचुअल फंडों जैसे खिलाड़ियों की भागेदारी के अनुसार एसटीटी का स्वरूप काफी बढ़ा है। वित्त मंत्री ने 2008-09 केंदीय बजट में सीटीटी लगाने का प्रस्ताव दिया था। (ET Hindi)
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