नई दिल्ली: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के जरिए आम लोगों पर सीधी महंगाई के असर का पता चलता है। यह महंगाई मई में दोहरे अंकों में पहुंच गई है। इसके साथ ही यह सूचकांक पिछले तीन महीनों में उच्चतम सालाना मुद्रास्फीति के स्तर पर आ गया है। पिछले साल इसी महीने के मुकाबले उपभोक्ताओं के वर्ग के लिए कीमतों में 10.2 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। सीपीआई के ये आंकड़े थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर जारी होने वाले मुद्रास्फीति के उन आंकड़ों के कुछ ही दिनों बाद जारी हुए हैं, जिनमें इसे तीन दशकों में पहली बार शून्य से नीचे बताया गया है। मजेदार बात यह है कि ग्रामीण इलाकों में खुदरा महंगाई दर इस साल जनवरी में 11 फीसदी से ज्यादा होने के बाद लगातार चार महीनों से गिर रही थी।
औद्योगिक कर्मचारियों के लिए भी खुदरा मुद्रास्फीति के ग्रामीण महंगाई दर की ही तर्ज पर बढ़ने की संभावना है। खुदरा महंगाई दर की गणना तीन अलग-अलग उपभोक्ता मूल्य सूचकांकों की गणना के आधार पर की जाती है, जो क्रमश: ग्रामीण मजदूर, कृषि श्रमिक और औद्योगिक कर्मचारियों के लिए होते हैं। डब्ल्यूपीआई और सीपीआई में अंतर कंजम्पशन बास्केट में शामिल वस्तुओं में अंतर के कारण पैदा होता है। जहां डब्ल्यूपीआई में खाद्य वस्तुओं का भार 15.2 फीसदी होता है, वहीं इन तीनों सीपीआई में इसका भार 50 फीसदी से ज्यादा होता है। खाद्यान्नों की कीमतों में मुद्रास्फीति की दर इस समय 9 फीसदी के इर्द-गिर्द घूम रही है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि डब्ल्यूपीआई के ऋणात्मक होने के बावजूद सीपीआई के 10 वर्षों के उच्चतम स्तर पर रहने के कारण आरबीआई पर मौद्रिक नीति में उदारता नहीं दिखाने का दबाव पड़ेगा। साथ ही इन आंकड़ों से सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च बढ़ाने की अपनी योजनाओं को भी धीमा कर सकती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव के मुताबिक थोक मूल्य मुद्रास्फीति भले ही ऋणात्मक जोन में पहुंच गई हो, लेकिन खाद्य सामग्रियों और प्राथमिक वस्तुओं की महंगाई दर अभी भी काफी अधिक है। उन्होंने मौद्रिक नीति का संकेत देते हुए कहा कि इसे तय करते समय मुद्रास्फीति के सभी पक्षों को ध्यान में रखा जाता है। राव ने हाल ही में दिए अपने बयान में कहा, 'भारत जैसे देश में खाद्यान्न की कीमतें एक दायरे में रखना काफी जरूरी है। केन्द्रीय बैंक जुलाई की नीतिगत समीक्षा में सभी तरह के रुझानों को ध्यान में रखेगा। इसी में हम ग्रोथ और महंगाई दर के लक्ष्यों की भी समीक्षा करेंगे।' इससे पहले वित्त सचिव अशोक चावला ने डब्ल्यूपीआई के आधार पर मापी गई मुद्रास्फीति की दर के कारण किसी भी बड़े नीतिगत बदलाव की संभावना को खारिज कर दिया था। वित्त मंत्रालय द्वारा स्थिति की समीक्षा में ये संकेत दिए गए थे कि विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के कारण ग्रामीण आय में हुई बढ़त इस इलाकों में मुद्रास्फीति की दर बढ़ने का एक कारण हो सकती है। (ET Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें