नई दिल्ली June 26, 2009
मानसूनी बारिश में देरी की वजह से जल आधारित विद्युत उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत की कमी आई है।
इसे देखते हुए विद्युत मंत्रालय ने कोयला और प्राकृतिक गैस आधारित विद्युत उत्पादन पर जोर देना शुरू कर दिया है। मंत्रालय ने कहा है कि गैर आधारित विद्युत संयंत्रों को पहली बार करीब पूरी क्षमता में चलाया जा रहा है, जिससे जल आधारित संयंत्रों से उत्पादन में आई कमी की भरपाई की जा सके।
हाल के आंकडों के मुताबिक, पिछले पखवाड़े के 36,000 मेगावॉट की तुलना में इस समय विद्युत उत्पादन गिरकर 25,000 मेगावॉट रह गया है। वहीं प्रतिदिन की मांग में 3,900 मेगावॉट की बढ़ोतरी हुई है।
केंद्रीय बिजली सचिव एचएस ब्रह्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा, 'हमने इसके बारे में कृ षि मंत्रालय को सूचित कर दिया है और इस मसले पर हम मौसम विभाग के भी संपर्क में बने हुए हैं। अगर बारिश नहीं होती है तो 10 जुलाई तक एक आपात योजना भी बनाई जा सकती है। भारत सरकार के मौसम विभाग निदेशालय ने सूचित किया है कि 72 घंटों के भीतर भारी बारिश की उम्मीद है।'
कृष्णा गोदावरी बेसिन के डी-6 ब्लॉक से प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में बढ़ोतरी हुई है, जिसके चलते बिजली मंत्रालय आत्मविश्वास से लबरेज है कि अगर मानसून समय से नहीं आता तो विद्युत उत्पादन की उचित व्यवस्था कर ली जाएगी। ब्रह्मा का कहना है कि गैस आधारित विद्युत उत्पादन अब 2,000 मेगावॉट से बढ़कर अब 14,000 मेगावॉट हो गया है।
उद्योग जगत में मंदी और उर्वरकों के उत्पादन में कमी की वजह से इन क्षेत्रों में बिजली की खपत कम हुई है, जिससे विद्युत विभाग को राहत है। साथ ही उन्होंने कहा कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के गैस उत्पादन से भी राहत मिली है।
कुल विद्युत उत्पादन में प्राकृ तिक गैस की भूमिका अभी बहुत कम है। खासकर जल आधारित संयंत्रों से विद्युत उत्पादन का योगदान, कुल उत्पादन में 25 प्रतिशत है। ब्रह्मा ने कहा कि अगर 2000 मेगावॉट उत्पादन भी बढ़ जाता है तो यह बहुत बड़ी राहत होगी। इसके साथ ही कोयला आधारित संयंत्रों से विद्युत उत्पादन की क्षमता में भी बढ़ोतरी हो रही है और इससे 800 मेगावॉट विद्युत का अतिरिक्त उत्पादन होगा।
एनटीपीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'सामान्यतया बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने वाले महीनों के दौरान हम उत्पादन में बढ़ोतरी करते हैं। वास्तव में बिजली उपलब्ध कराने के लिए हम इस समय कोई संयंत्र रखरखाव कार्य नहीं कर रहे हैं। गर्मी के मौसम में मांग में बढ़ोतरी होती है और इस समय भी मानसून में देरी की वजह से मांग बढ़ी हुई है।'
ब्रह्मा ने कहा कि विद्युत उत्पादन के लिए पानी की उपलब्धता घटकर 15,000 क्यूसेक रह गई है, जबकि सामान्य उपलब्धता 20,000 क्यूसेक होती है। विद्युत उत्पादन के लिए मानसूनी बारिश तभी खतरा होती है, जब बारिश 10 प्रतिशत से ज्यादा कम होती है। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि बारिश 10 या 15 प्रतिशत कम होती है, तभी दबाव बढ़ेगा।
नैशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कार्पोरेशन (एनएचपीसी), जो देश की सबसे बड़ी विद्युत उत्पादन कंपनी है, के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'अब तक की स्थिति देखें तो हमारे उत्पादन में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है। लेकिन मानसून में आगे भी 15-20 दिन की देरी होती है तो कुछ संयंत्रों से विद्युत उत्पादन आंशिक रूप से प्रभावित होगा।'
एनएचपीसी की विद्युत उत्पादन क्षमता इस समय 5,175 मेगावॉट है, जो देश के कुल विद्युत उत्पादन का 4 प्रतिशत है। इसकी परियोजनाओं में से ज्यादातर संयंत्र नदी के बहाव (आरओआर) से संचालित हैं। आरओआर परियोजनाएं मौसमी प्रभाव, जैसे मानसून से बची हुई हैं क्योंकि उन्हें जल की आपूर्ति हिमालय के ग्लेशियर से होती है।
विभाग के अधिकारी ने कहा कि परियोजनाएं सहयोगी संस्थाओं से भी संचालित हैं, जैसे नर्मदा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डेवलपमेंट कार्पोरेशन (एनएचडीसी)- इन पर मानसून का प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि ये जल संचयन के आधार पर चलती हैं। एनएचडीसी की उत्पादन क्षमता 1500 मेगावॉट है, जिसमें 1000 मेगावॉट की मध्य प्रदेश की इंदिरा सागर परियोजना की है।
मुख्य समस्या देश के उत्तरी और पूर्वोत्तर भागों में है। कुल 174 विद्युत उत्पादन केंद्रों में 60 100 से ज्यादा जल आधारित विद्युत उत्पादन संयंत्र यानी 60 प्रतिशत उत्तर भारत में हैं। ये संयंत्र पानी के संकट का सामना कर रहे हैं। असम और मेघालय में भारी बारिश की वजह से उन इलाकों में स्थिति में सुधार आई है, लेकिन अरुणाचल प्रदेश के विद्युत उत्पादन केंद्रों पर संकट बरकरार है।
ब्रह्मा ने कहा कि अगर आरआईएल गैस का उत्पादन प्रतिदिन 80 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर (एमएससीएमडी) प्रतिदिन बढ़ाती है तो विद्युत क्षेत्र को गैस का आवंटन 18 एमएससीएमडी से बढ़कर 36 या 40 एमएससीएमडी हो जाएगा। (BS Hindi)
27 जून 2009
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