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19 जून 2009

नई तकनीक से बढ़ेगा ह्वाइट पीपर का उत्पादन

कोच्चि: नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लीनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम (एनआईआईएसटी) की नई तकनीक से देश में ह्वाइट पीपर के उत्पादन में क्रांति आ सकती है। 50,000 टन वैश्विक उत्पादन की तुलना में देश में फिलहाल करीब 500 टन ह्वाइट पीपर का उत्पादन होता है। बेरी के सबसे ऊपर के हरे छिलके को हटाकर ह्वाइट पीपर का उत्पादन किया जाता है। इसके उत्पादन में अपनाया जा रहा परंपरागत तरीका थोड़ा अजीब है। ग्रीन पीपर की छाल को सबसे पहले बहते जल में एक हफ्ते तक रखा जाता है। यह प्रक्रिया तब तक अपनाई जाती है जब तक कि उसका बाहरी छिलका अलग न हो जाए। ह्वाइट पीपर उत्पादन की इस प्रकिया में श्रमिकों की ज्यादा मांग होती है और साथ ही यह खर्चीली भी है।
एनआईआईएसटी के डॉ. वी बी मणिलाल ने ईटी को बताया कि नई तकनीक के तहत ग्रीन पीपर को माइक्रोबायल कल्चर सॉल्यूशन में धोया जाता है। उन्होंने बताया, 'इस प्रक्रिया में बेरी के बाहरी हिस्से पर एन्जाइम अभिक्रिया करता है और भीतरी हिस्से तथा छाल के बीच संपर्क टूट जाता है।' उन्होंने बताया कि इसके बाद सफेद गिरी को धोने के बाद उसका उपयोग ह्वाइट पीपर के रूप में होने लगता है। ह्वाइट पीपर बनाने की प्रक्रिया में बोयोगैस और जैविक खाद भी आसानी से बन जाती है। एनआईआईएसटी की नई तकनीक में ग्रीन बेरी से ह्वाइट पीपर बनाने में केवल दो दिनों का समय लगता है। वी बी मणिपाल ने बताया कि सूखा पीपर बनने में चार दिन का इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि यदि पीपर बनाने की प्रक्रिया में तापमान आवश्यकता से कम रहा तो इसके उत्पादन में एक दिन ज्यादा समय लग जाता है। तिवरुवनंतपुरम के इस संस्थान से करीब 9 लोगों को इस नई तकनीक के लिए लाइसेंस दिया गया है। इस बात की उम्मीद है कि नई तकनीक से ह्वाइट पीपर के उत्पादन में वृद्धि आएगी। अमेरिका और यूरोप के बाजारों में इसकी मांग ज्यादा है। (ET Hindi)

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