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19 जून 2009

सीसीआई पर बैंकों के 4000 करोड़ रुपये अभी भी बाकी

सरकार की ओर से किसानों से कपास खरीदने के लिए बैंकों से लिए गए कर्ज का करीब आधा हिस्सा कॉटन कारपोरशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने चुका दिया है। सीसीआई के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर ने बताया कि बैंकों से लिए गए 8000 करोड़ रुपये कर्ज में से करीब 4000 करोड़ रुपये अभी भी बाकी हैं। गौरतलब है कि कंपनी ने किसानों से कॉटन खरीदने के लिए बैंकों से करीब 8,000 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। ग्रोवर ने बताया कि सरकार से वित्तीय सहायता मिलने और स्टॉक बेचने से हुई आय से आधा कर्ज लौटा दिया गया है। उन्होंने बताया कि इस साल मार्च के अंत में सरकार ने कंपनी को कपास खरीदने के लिए 650 करोड़ रुपये उपलब्ध कराए थे। कपास की किसानों से खरीद और खुले बाजार में प्रचलित भाव पर बिक्री से होने वाले घाटे की सरकार भरपाई कर देती है। ऐसे में पैसे की कोई किल्लत नहीं हुई है। आम बजट पेश होने के बाद कुछ और वित्तीय मदद की मांग सरकार से की जाएगी। सीसीआई ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास की खरीद की है। कंपनी द्वारा अब तक करीब 89.4 लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलो) कपास की खरीद हुई है। पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब 27.5 लाख गांठ कपास की खरीद हुई थी। इस दौरान कं पनी ने करीब 79.4 लाख गांठ कपास की बिकवाली भी कर चुकी है। सरकार की ओर से नेफेड और सीसीआई ने किसानों से कपास खरीदी है। लेकिन सरकार द्वारा एमएसपी में तगड़ा इजाफा करने से नेफेड को कपास खरीद में पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ा है। जिससे निपटने के लिए कंपनी ने कर्ज लिया है। सरकार ने इस साल कॉटन के एमएसपी करीब 40 फीसदी का इजाफा किया है। वहीं वैव्श्रिक स्तर पर जारी मंदी की वजह से इस साल कॉटन की निर्यात मांग कमी देखी जा रही है। सरकार द्वारा एमएसपी बढ़ाने की वजह से भी भारतीय कॉटन विदेशी बाजारों में कम प्रतिस्पर्धी साबित हो रही है। ऐसे में कॉटन किसानों का माल न निकलने की आशंका जताई जा रही थी। जिसे निपटने के लिए सरकार ने कॉटन कापरेरशन ऑफ इंडिया और नैफेड को सामने लाया है। हालांकि इस पूरी कवायद में सीासीआई और सरकार को काफी वित्तीय बोझ उठाना पड़ा है। घरलू बाजार में कपड़ा और धागा मिलों की मांग भी इस साल कम रही है। मुख्य रुप से आर्थिक संकठ की वजह से कंपनियों का कारोबार भी प्रभावित हुआ है। (Business Bhaskar)

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