03 अक्तूबर 2009
चीन की खरीद घटने से कॉपर 6फीसदी नरम
चीन द्वारा कॉपर की खरीद कम करने के कारण इसकी कीमतों में छह फीसदी की नरमी आई है। चीन में मांग के मुकाबले अधिक स्टॉक होने से इसका आयात बीते दो माह में घटा है। पिछले एक माह के दौरान लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) कॉपर तीन माह अनुबंध के दाम 6470 डॉलर से घटकर 5980 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। वहीं इस दौरान घरेलू बाजार में इसके दाम 317 रुपये से घटकर 298 रुपये प्रति किलो पर आ गए हैं।कॉपर कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि एलएमई की तर्ज पर घरेलू बाजार में इसके मूल्यों में 20 रुपये प्रति किलो तक की गिरावट आई है। उनके अनुसार घरेलू मांग फिलहाल ठीक चल रही हैं। चीन में कॉपर का स्टॉक अधिक होने के कारण इसके आयात में पिछले दो माह से गिरावट आ रही है। अगस्त के दौरान यहां रिफाइंड कॉपर का आयात जुलाई के मुकाबले 24 फीसदी घटकर 2.19 लाख टन रह गया। जुलाई में भी इसका आयात घटा था। चालू वर्ष के पहले माह के दौरान इसका आयात पिछली समान अवधि के मुकाबले 52.7 फीसदी बढ़कर 17.6 लाख टन हो गया था। इसके चलते चीन में मांग के मुकाबले कॉपर का स्टॉक अधिक हो गया है। यही कारण है कि चीन ने इसकी खरीदारी कम कर दी है। उधर एंजिल ब्रोकिंग के कमोडिटी विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बताया कि एलएमई में कॉपर की इन्वेंट्री अधिक होने के कारण इसकी कीमतों में गिरावट आई हैं। एलएमई में कॉपर की इन्वेंट्री 3.46 लाख टन को पार कर चुकी हैं। अगस्त माह से इसकी इन्वेंट्री करीब 20 फीसदी बढ़ चुकी है। उनके अनुसार अमेरिका में घरों की बिक्री घटने के कारण विश्व बाजार में कॉपर की मांग में कमी आई है। अगस्त में जुलाई के मुकाबले घरों की बिक्री तीन फीसदी कम रही। इस वजह से भी कॉपर की कीमतों में कमी को बल मिला है। वैश्विक आर्थिक हालातों में सुधार के चलते कॉपर की मांग में इजाफा हुआ था। भारत में जहां कारों की बिक्री बढ़ने, कॉमन वेल्थ खेल और निर्माण क्षेत्र में इसकी मांग बढ़ी हैं। वहीं अन्य देशों में इसकी मांग सुधरने लगी है। जानकारों के अनुसार आगे आर्थिक हालातों में सुधार की गति तेज होने पर कॉपर की मांग और बढ़ने की संभावना हैं। कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9त्न होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (बिज़नस भास्कर)
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