नई दिल्ली October 04, 2009
जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं, चावल, मक्का और अन्य खाद्यान्न फसलों की कीमतें 2050 तक 121 से 194 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं।
जलवायु में बदलाव के चलते इन फसलों की उत्पादकता कम हो सकती है, जिससे दक्षिण एशिया के 1.6 अरब लोगों की खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और इससे पूरी दुनिया में 2.5 करोड़ और बच्चे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं।
इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीच्यूट (आईएफपीआरआई) द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर किए गए शोध से ये अनुमान सामने आए हैं। बैंकाक में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर आयोजित एक सम्मेलन में यह रिपोर्ट जारी की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से हुए बदलाव की स्थिति का सामना करने और इसके असर को कम करने के लिए कृषि और ग्रामीण विकास पर सालाना 1.5 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश दक्षिण एशिया में करना पड़ेगा।
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए 7 अरब डॉलर खर्च करने होंगे। इसमें से आधा निवेश सिंचाई सुविधाओं पर खर्च करना होगा। इसके अलावा कृषि शोध पर खर्च बढ़ाने के साथ ग्रामीण इलाकों में सड़कों और निजी बाजारों के विकास पर खर्च करना होगा, जिससे गांव के गरीब इसका फायदा उठा सकें।
विशेष रूप से दक्षिण एशिया के देशों भारत, बांग्लादेश, नेपाल और अफगानिस्तान की चर्चा करते हुए कहा गया है कि इन देशों में फसलों की उत्पादकता कम होगी और इन इलाकों में ग्लेशियर के पिघलने, बाढ़, सूखे और असमान वर्षा सहित जलवायु परिवर्तन से होने वाली अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
दक्षिण एशिया में गेहूं का उत्पादन 2000 के स्तर से 2050 तक 50 प्रतिशत गिर सकता है। चावल की उत्पादकता 17 प्रतिशत और मक्के की उत्पादकता इस दौरान 6 प्रतिशत गिरने की संभावना है। आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि खाद्यान्न की कीमतें जलवायु परिवर्तन के बावजूद बढ़ेंगी, लेकिन वैश्विक तापमान से संकट और बढ़ेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कीमतों में बदलाव जलवायु परिवर्तन का कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव का एक प्रमुख संकेतक है। अगर जलवायु परिवर्तन नहीं होता है, जो भी अनुमान के मुताबिक इस दौरान गेहूं की कीमतों में कमोबेश 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी, लेकिन जलवायु परिवर्तन के बाद कीमतों में बढ़ोतरी 194 प्रतिशत तक हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन के बगैर चावल की कीमतों में बढ़ोतरी 60 प्रतिशत की रहेगी, लेकिन अगर बदलाव होता है तो कीमतें 121 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ेंगी। मक्के की कीमतें 60 प्रतिशत तक बढ़ने का अनुमान है और इस दौरान अगर जलवायु परिवर्तन होगा तो इसकी कीमतें 153 प्रतिशत तक बढ़ जाएंगी।
जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्यान्न की कीमतें बढ़ जाने से एशिया में खाद्यान्न खपत 2050 तक 24 प्रतिशत घटने के अनुमान हैं। इसी तरह से औसत कैलोरी उपलब्धता भी इस दौरान 15 प्रतिशत कम हो जाएगी।
जलवायु परिवर्तन न होने पर कुपोषित बच्चों की संख्या दक्षिण एशिया में जहां 2000 के 7।6 करोड़ से गिरकर 2050 तक 2.5 करोड़ होने के अनुमान हैं, वहीं अगर जलवायु परिवर्तन होता है, जो कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़कर इस इलाके में 5.9 करोड़ हो जाएगी। (बीएस हिन्दी)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें