भोपाल May 25, 2010
मध्य प्रदेश में उत्पादित गेहूं की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के गेहूं की मांग बढ़ रही है।
इस वर्ष प्रदेश के अधिकतर निजी आटा मिल मालिक और एफएमसीजी कंपनियां मध्य प्रदेश से गेहूं और आटा न खरीदकर पड़ोसी राज्यों से खरीदारी कर रही हैं। इसका कारण प्रदेश के गेहूं का अन्य राज्यों की तुलना में 100 रुपये से लेकर 300 रुपये तक महंगा होना बताया जा रहा है।
इस समय खासतौर से प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं की मांग में 50 से 60 फीसदी तेजी दर्ज की गयी है। मध्य प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1200 रुपये प्रति क्विंटल है। इसमें प्रदेश सरकार द्वारा किसानों को दिया जा रहा 100 रुपये बोनस भी शामिल है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में गेहूं का समर्थन मूल्य 1100 रुपये प्रति क्विंटल है।
साथ ही प्रदेश में होने वाले शरबती जैसे विशेष किस्म के गेहूं के मूल्य में भी वृद्धि जारी है। ऐसे में प्रदेश के अधिकतर आटा मिल मालिकों को प्रदेश के बाहर से गेहूं खरीदना सस्ता पड़ रहा है। पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीदने पर मालिकों को माल ढुलाई के बाद भी प्रति क्विंटल 100 रुपये से 200 रुपये की बचत हो रही है।
ऐसे में मिल मालिक मध्य प्रदेश की अपेक्षा उत्तर प्रदेश और अन्य पड़ोसी राज्यों से गेहूं खरीद रहे हैं। प्राइवेट एफएमसीजी कंपनियों ने भी इस वर्ष प्रदेश के गेहूं की कम खरीद की है। खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के आंकड़ों के अनुसार, आईटीसी कंपनी ने पिछले वर्ष प्रदेश से 2 लाख टन गेहूं का उपार्जन किया था जबकि इस वर्ष कंपनी ने प्रदेश से गेहूं का उपार्जन केवल 60000 टन तक ही सीमित कर दिया है।
आईटीसी कंपनी गेहूं का प्रयोग कर आशीर्वाद, सनफीस्ट, किचेन ऑफ इंडिया जैसे उत्पादों का निर्माण करती है। इसके अलावा कारगिल कंपनी ने भी पिछले वर्ष के 65 हजार टन के गेहूं उपार्जन की तुलना में इस वर्ष 25 हजार टन कम गेहूं का उपार्जन किया है। कारगिल ने प्रदेश से इस वर्ष केवल 40 हजार टन गेहूं ही खरीदा है।
भारतीय खाद्य निगम के गुणवत्ता नियंत्रण प्रबंधक कमलजीत सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार का मुख्य उद्देश्य सबसे पहले किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाना है न कि व्यापारियों को। इसी कारण से किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस दिया जा रहा है। दूसरे राज्यों से प्रदेश में गेहूं को मंगाये जाने से रोकने के लिए सरकार ने अभी कोई विशेष नीति नहीं बना रही है।
उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में गेहूं की लोक-1 और शरबती जैसी अधिक प्रोटीन वाली किस्म का अधिक उत्पादन होता है। इसमें से शरबती गेहूं का प्रयोग एफएमसीजी कंपनियां अधिकतर पास्ता और आटा ब्रेड बनाने के लिए करती हैं। हालाकि इस वर्ष कंपनियों ने इसकी खरीद को कम किया है।
बी. जी. फूड प्रोडेक्टस (ग्वालियर) के विक्रय प्रबंधक बलवीर सिंह ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रदेश में उत्तर प्रदेश के गेहूं और आटे को भारी मात्रा में आयात करके लाया जा रहा है। मध्य प्रदेश की कुल आवश्यकता का लगभग 50 से 60 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश से पूरा किया जा रहा है।
इसका कारण मिल मालिकों को कम दाम में उत्पाद उपलब्ध हो जाना है। इसी के चलते व्यापारी और मिल मालिक प्रतिक्विंटल गेहूं पर 100 से 200 रुपये का लाभ कमा रहे हैं। इस संबंध में नीमच स्थित आदित्य एक्सट्रेक्शन के महेश तिवारी ने बताया सरकार द्वारा किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं पर बोनस दिये जाने से मांग में कमी दर्ज की गयी है।
उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान से सस्ते दाम पर मांग की पूर्ति की जा रही है। मध्य प्रदेश में आटे की कुल मांग की 15 से 30 फीसदी पूर्ति उत्तर प्रदेश से हो रही है। हालांकि गेहूं के मामले में ये दर दोगुनी से भी अधिक है। (बीएस हिंदी)
26 मई 2010
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